नवगीत, भूले मानवता

स्वरचित पूनम दुबे वीणा की कलम सेेअम्बिकापुरर छत्तीसगढ़

भूल गये है मानवता 

देख कर करें अनदेखे

खून बनता श्वेत पानी

भोग रहे भाग्य लेखे ।

कटुता छाई अपनों में

खुंँदस संग सदा रखते

ध्यान अपनों का हटाकर

औरों की बाते करते

पाला पड़ता है बुद्धि में

जी रहे सब कर्म रेखे…….

भोग रहे भाग्य ……

खंडहर रिश्तों का हुआ

बूढ़ी आँखे बह आई

बचपन बच्चों का दिखता

चलचित्रों में समा आई

भूतों का बना बसेरा

अपने देते है धोखे……..

भोग रहे भाग्य…….. 

रिश्तों की मर्यादा नहींं

चुल्हा चौका बांट दिया

मुक खड़ी है ये दिवारें

 पाई -पाई बांट लिया

जब घरों ने भीत खींची

टूटते परिवार देखे……..

भोग रहे भाग्य……….

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