
अरविन्द तिवारी
जगन्नाथपुरी (गंगा प्रकाश) – हिन्दुओं के सार्वभौम धर्मगुरु एवं हिन्दू राष्ट्र के प्रणेता पूज्यपाद पुरी शंकराचार्य जी सर्वकारण सर्वेश्वर की सर्वरूपों में सृष्टि के रूप में अभिव्यक्ति की चर्चा करते हुये संकेत करते हैं कि छान्दोग्यपनिषत् के अनुशीलन से प्राण , नेत्र , सूर्य , द्युलोक की तेजोरूपता होने के कारण तादात्म्यापत्ति सिद्ध है। अतएव प्राण की तृप्ति से परोवरीय क्रम से नेत्र , सूर्य , द्युलोक तथा तेज की तृप्ति सुनिश्चित है। इनकी तृप्ति से विद्वान् होता भोक्ता की प्रजा , पशु , अन्न , तेज तथा ब्रह्मवर्चस की समुपलब्धि सुलभ तृप्ति सुनिश्चित है। व्यान , श्रोत्र , चन्द्रमा और दिक् की जल तथा आकाश रूपता होने के कारण तादात्म्यापत्ति सिद्ध है। अतएव व्यान की तृप्ति से परोवरीय क्रम से श्रोत्र , चन्द्रमा , दिक् और आकाश की तृप्ति सुनिश्चित है। इनकी तृप्ति से विद्वान् होता भोक्ता की प्रजा , पशु , अन्न , तेज तथा ब्रह्मवर्चस की समुपलब्धि सुलभ तृप्ति सुनिश्चित है। अपान , वाक् तथा अग्नि की पृथिवी रूपता होने के कारण तादात्म्यापत्ति सिद्ध है। अतएव अपान की तृप्ति परोवरीय क्रम से वाक् अग्नि और पृथिवी की तृप्ति सुनिश्चित है। इनकी तृप्ति से विद्वान् होता भोक्ता की प्रजा, पशु, अन्न , तेज तथा ब्रह्मवर्चस की समुपलब्धि – सुलभ तृप्ति सुनिश्चित है। समान , मन , पर्जन्य और विद्युत् की जलरूपता होने के कारण तादात्म्यापत्ति सिद्ध है। अतएव समान की तृप्ति से परोवरीय क्रम से मन , पर्जन्य , विद्युत् तथा जल की तृप्ति सुनिश्चित है। इनकी तृप्ति से विद्वान् होता भोक्ता की प्रजा , पशु , अन्न , तेज तथा ब्रह्मवर्चस की समुपलब्धि – सुलभ तृप्ति सुनिश्चित है। उदान और त्वक् की वायु तथा आकाश रूपता होने के कारण तादात्म्यापत्ति सिद्ध है। अतएव उदान की तृप्ति से परोवरीय क्रमसे त्वक् , वायु और आकाश की तृप्ति सुनिश्चित है। इनकी तृप्ति से विद्वान् होता भोक्ता की प्रजा , पशु , अन्न , तेज तथा ब्रह्मवर्चस की समुपलब्धि- सुलभ तृप्ति सुनिश्चित है। सर्वकारण सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर की यज्ञ संज्ञा है I सर्वकारण सर्वेश्वर की सर्वरूपों में अभिव्यक्ति सृष्टि है ; जो कि यज्ञसामग्री तथा यज्ञफल से सम्पन्न है। कारण की कार्य भावापत्ति जहाँ सृष्टि है ; वहाँ कार्य की कारण भावापत्ति रूपा संहृति यज्ञ की समग्र सिद्धि है। परोवरीय क्रम से कारण संज्ञक अधिकरण में कार्य की तादात्म्यापत्ति यज्ञ की सिद्धि है। यज्ञ संज्ञक परमात्मा से जगत् का पर्यवसान यज्ञ संज्ञक परमात्मा ही सिद्ध है। भूतं भव्याय – सिद्ध साध्य के लिये – इस गाथा को चरितार्थ करने वाली सर्ग प्रक्रिया है। इसमें पूर्व की सिद्ध तथा उत्तरोत्तर की साध्य संज्ञा है। भव्यं भूताय – साध्य ( कार्य) सिद्ध ( कारण) के लिये – इस गाथा को चरितार्थ करने वाली प्रलय प्रक्रिया है। यजमान द्वारा अभिमन्त्रित अन्नरसमय हवनीय द्रव्य की अग्नि भावापत्ति , अग्नि की आदित्य भावापत्ति यज्ञ है। आदित्य की वृष्टि भावापत्ति , वृष्टि की अन्न भावापत्ति , अन्न की भूत ( जीव) भावापत्ति फल है। पार्थिव प्रपञ्च की पृथ्वी भावापत्ति , पृथ्वी की जल भावापत्ति , जल की तेजोभावापत्ति , तेज की वायु भावापत्ति , वायु की आकाश भावापत्ति , आकाश की अव्यक्त भावापत्ति और अव्यक्त की ब्रह्मात्म भावापत्ति यज्ञ है। तद्वत् ग्राह्य विषय की ग्राहक करण भावापत्ति, ग्राहक् करण की अनुग्राहक अधिदैव भावापत्ति , अनुग्राहक अधिदैव की धारक जीव भावापत्ति और धारक जीव की अधिष्ठानात्मक शिवात्म भावापत्ति यज्ञ तथा यज्ञफल है।