हरि और हर के मिलन का दिन है बैकुंठ चतुर्दशी – अरविन्द तिवारी

नई दिल्ली (गंगा प्रकाश)– कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। बैकुंठ चतुर्दशी एक ऐसा अवसर है , जिस दिन आप भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की एक साथ पूजा करके उन्हें प्रसन्न कर दोनों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि शिवपुराण की कथा के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही भगवान शिव ने भगवान विष्णु को चक्र प्रदान किया था। इसी दिन ही भगवान विष्णु ने शिवजी को 108 कमल पुष्प अर्पित किये थे। इस दिन जो भी व्यक्ति भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करता है , उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है और वो जन्म मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। आज भगवान विष्णु अर्थात हरि और भगवान शिव अर्थात् हर के मिलन का दिन है। चातुर्मास में भगवान विष्णु के योगनिद्रा में चले जाने के कारण सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव के पास होता है। इसके बाद देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु निद्रा से जागते हैं। तब चतुर्दशी के दिन बैकुंठ के द्वार खुलते हैं और भगवान शिव सृष्टि का कार्यभार पुन: विष्णुजी को सौंपने बैकुंठ जाते हैं। इसी उपलक्ष्य में बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। आज के दिन भगवान शिव उन्हें दोबारा सृष्टि के संचालन का कार्यभार सम्हालने को देते हैं और उसके बाद से मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। पूरे साल में सिर्फ इसी दिन हरि-हर की पूजा एक साथ होती है। बैकुंठ चतुर्दशी को भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा से मनोकामनायें पूरी होती हैं। इस मौके पर मंदिरों में विशेष अनुष्ठान संपन्न किये जाते हैं। इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु और शिव दोनों की पूजा की जाती है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन निशिथकाल में हरि और हर का मिलन करवाया जाता है। इस साल बैकुंठ चतुर्दशी पर बेहद खास योग का संयोग बन रहा है जिसमें विष्णुजी और शिव की पूजा से दोगुना फल मिलेगा। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद साफ कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन निशिताकाल में श्रीहरि विष्णु की पूजा का विधान है। सुख समृद्धि , धन-धान्य , स्वर्णाभूषण , सुख-शांति , पारिवारिक प्रेम की प्राप्ति के लिये बैकुंठ चतुर्दशी के दिन एक महाउपाय सभी को अवश्य करना चाहिये। इस दिन सायंकाल के समय घर के पूजा स्थान में एक चौकी पर थोड़े से अक्षत की ढेरी लगाकर इसके मध्य में एक मिट्टी का दीपक रखें। इस दीपक में चार बातियां और शुद्ध घी डालकर प्रज्जवलित करें। प्रज्वलित करने से पहले दीपक का पूजन करें। इसके सामने बैठकर विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। या ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की ग्यारह माला स्फटिक की माला से करें। दीपक पूर्ण हो जाने के बाद चावल की ढेरी में से थोड़े से चांवल एक लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रखें और शेष चावल जल में प्रवाहित कर दें। मध्यरात्रि में भगवान विष्णु की 108 कमल के फूलों से पूजा करें। इस दिन विष्णुजी को बेलपत्र और शिव को तुलसी दल चढ़ाने का भी विधान है। शिव शंकर की आराधना कर  उनका दूध , गंगाजल से अभिषेक करें। ऊँ शिवकेशवाय नम: मंत्र का एक माला जाप करें या फिर ऊँ हरिहर नमाम्यहं मंत्र का जाप भी कर सकते हैं।

बैकुंठ चतुर्दशी की कथा

एक बार नारदजी पृथ्वीलोक का भ्रमण करके बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णुजी ने नारदजी से आने का कारण पूछा। नारदजी ने कहा- हे भगवन! आपको पृथ्वीवासी कृपानिधान कहते हैं किंतु उससे तो केवल आपके प्रिय भक्त ही तर पाते हैं , साधारण नर-नारी नहीं। इसलिये कोई ऐसा उपाय बताइये जिससे साधारण नर-नारी भी आपकी कृपा के पात्र बन जायें। इस पर भगवान बोले- हे नारद ! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हुये भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेंगे उनको स्वर्ग प्राप्त होगा। इसके बाद भगवान विष्णु ने जय-विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को बैकुंठ के दरवाजे खुले रखे जायें। भगवान ने यह भी बताया कि इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजा करेगा उसे बैकुंठधाम प्राप्त होगा।   

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