किसान रागी फसल से कमा सकते हैं ज्यादा मुनाफा,मिलेट फसलों की पैदावारी की ओर कदम बढ़ाता गरियाबंद जिला।

मैनपुर/गरियाबंद(गंगा प्रकाश):-संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2023 को मिलेट वर्ष घोषित किया गया है, जिसके तहत राज्य शासन द्वारा मिलेट फसल जैसे कोदो कुटकी, रागी के फसल के क्षेत्र को बढ़ाने जोर दिया जा रहा है। जिले में पहली बार रबी सीजन में रागी फसल वृहद क्षेत्रों में लगाया जा रहा है। जिसे किसान भाई ग्रीष्मकालीन धान के विकल्प के रूप में लगा रहे है। उप संचालक कृषि श्री संदीप भोई से मिली जानकारी अनुसार ग्रीष्मकालीन धान में ज्यादा पानी, खाद व कीटनाशक आदि की आवश्यकता होती है तथा धान की कीमत 1300 से 1400 प्रति क्विंटल रहता है, इसके विपरीत रागी फसल में कम पानी, खाद व कीटनाशक की आवश्यकता होती है, रागी फसल की खेती समय पर कृषि कार्य पूर्ण कर लिया जावे तो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही फसल का समर्थन मूल्य 3578 रुपए प्रति क्विंटल पर विक्रय किया जा सकता है। रागी फसल में कीट- बीमारी भी नहीं के बराबर लगती है, जिससे फसल उत्पादन में कोई परेशानियां नहीं होती है। रागी फसल के रकबा को बढ़ाने शासन स्तर पर भी जोर दिया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप विभागीय योजनांतर्गत क्षेत्रवार प्रदर्शन लगाए जा रहे है तथा कृषि विभाग गरियाबंद के अधिकारियों द्वारा कृषकों का बैठक लेकर रागी फसल के खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देकर किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। रागी फसल के उपार्जन हेतु वन धन समिति द्वारा समर्थन मूल्य 3578 प्रति क्विंटल पर खरीदी की व्यवस्था है। बीज उत्पादन कार्यक्रम के तहत बीज निगम गरियाबंद में पंजीयन करवाकर रागी फसल के सभी उत्पाद को बीज निगम द्वारा उपार्जन किया जावेगा जिससे कृषकों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो सकता है। कृषकों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि विभाग कड़ी मेहनत कर रहीं है। राज्य स्तर पर भी रागी फसल को बढ़ाने हेतु कांकेर जिले में मिलेट प्लांट की स्थापना किया गया है।

मिलेट्स के फायदे – मिलेट्स में पोषक मूल्य उच्च होते है जिसमें कैल्शियम, आयरन, एमीनो एसिड, प्रोटीन, फास्फोरस एवं अन्य तत्व प्रचुर मात्रा में होने के कारण यह सभी के लिए गुणकारी होते है। कोदो- कुटकी, रागी के रेगुलर उपभोग से डायबिटीज पेशेंट, एनिमिक पेसेंट, कुपोषित, उच्च रक्तचाप आदि बीमारियों में फायदेमंद होता है। मिलेट्स के गुणों को बताने कृषि विभाग द्वारा व्यापक रूप से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। मैदानी अधिकारियों द्वारा उच्चतर माध्यमिक शाला तथा कॉलेज छात्रों को सप्ताह के प्रत्येक शनिवार को मिलेट्स के खेती व मिलेट्स के उपभोग करने हेतु व्याख्यान दिया जा रहा है।

रागी फसल लेने कृषि अमला किसानों को कर रहे जागरूक

बताते चले कि शासन के द्वारा जिले को मिलेट मिशन योजनांतर्गत 1200हे. का लक्ष्य दिया गया है, जिसके लिए निःशुल्क बीज वितरण एवं अन्य आदान सामग्री का वितरण किया गया है। जिले में रागी की बोवाई प्रारंभ हो गई है। रागी की खेती को जिले में सफल बनाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारी कर्मचारी ने कमर कस ली है। विदित हो कि इस वर्ष को पूरे विश्व में लघु धान्य (मिलेट) वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। रागी में उच्च गुणत्ता पोषक तत्व मौजूद होने की दृष्टि से इसका उपयोग कुपोषण हेतु व्रत उपवास में आहार कैल्शियम की उपलब्धता, कोलैस्ट्राल को दूर करने में विभिन्न प्रकार के पकवान बनाने एवं मल्टीग्रेन आटा में उपयोग होता है। रबी फसल में धान फसन की तुलना में कम पानी एवं कम खर्च में होने के कारण कृषक इस फसल को लगाने हेतु प्रोत्साहित हो रहे है। रागी फसल की खरीदी बीज निगम द्वारा किये जाने पर कृषकों को अधिक लाभ मिलेगा। साथ ही वन विभाग एवं अन्य एजेसिंयों द्वारा समर्थन मूल्य में क्रय किया जा सकता है। इसी परिपेक्ष्य में कोरबा जिले को 1200 हेक्टेयर में रागी फस्ल लगाने का लक्ष्य शासन से प्राप्त हुआ है। जिसकी पूर्ति हेतु कृषि विभाग के अधिकारी कर्मचारी गॉव-गॉव जाकर रागी फसल के कृषि की तकनीकी जानकारी एवं इसकी उच्च गुणवत्ता पोषक तत्व के बारे में जानकारी देकर कृषकों को उनके सिंचित क्षेत्र में फसल लगाने प्रोत्साहित कर रहे है।

वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी भावेश कुमार शांडिल्य ने बताया कि जिला कलेक्टर श्री प्रभात मालिक निर्देशन व श्री संदीप कुमार भोई  उप संचालक कृषि गरियाबंद के के मांर्ग दर्शन में जिले में मिलेट मिशन योजनांतर्गत प्रत्येक शनिवार को हाई स्कूलों में कृषि विभाग द्वारा मिलेट या लघु धान्य फसलों पर व्याख्यान दिया जा रहा है।साथ ही लघु धन्य फसलों के क्षेत्र विस्तार व पैदावार हेतु दीवार लेखन स्लोगन भी किया जा रहा है।रागी के बीजों को निःशुल्क किसानों को वितरण किया गया है।श्री शांडिल्य ने बताया कि

मुख्यमंत्री की पहल पर कोदो, कुटकी और रागी को कृषि विभाग की राजीव गांधी किसान न्याय योजना में शामिल किया गया है और इसके उत्पादक कृषकों को प्रोत्साहनस्वरूप प्रति एकड़ 9 हज़ार रुपए और यदि किसान धान के बदले लघु धान्य फसल जैसे कुटकी, रागी और कोदो लगायेंगे तो उन्हें 10,000 रुपए प्रति एकड़ रुपए की आदान सहायता भी दी जा रही है।

छत्तीसगढ़ सरकार मिलेट मिशन के तहत कोदो, कुटकी और रागी की उत्पादकता दोगुनी करने प्रयासरत है और खरीफ 2022 में छ.ग. राज्य लघु वनोपज संघ के माध्यम से सभी प्राथमिक वन समितियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपार्जन किया जा रहा है। समर्थन मूल्य पर कोदो, कुटकी और रागी की खरीदी करने वाला पहला और एक मात्र राज्य छत्तीसगढ़ है।जिसका न्यूनतम समर्थन मूल्य: कोदो 3000, कुटकी 3100 और रागी 3578 रुपए प्रति क्वि.हैं।

रागी फसल हेतु सिंचित जिलों के साथ गौठानो गॉवों के आसपास स्थित परव, नाला के किनारे को प्राथमिकता को लेकर बोवाई हेतु कार्यवाही किया जा रहा है। इसके लिए कृषि विभाग के द्वारा किसानों को रागी की खेती के लिए आवश्यक आदान सामग्री के साथ कृषि कार्यों हेतु तकनीकी मार्गदर्शन दिया जा रहा है। कृषि विभाग ने कृषकों से अपील की है कि ग्रीष्मकालीन धान के रकबे में अधिक से अधिक रागी फसल लेवें। इसके आलावा सिंचित नाली नालों में बंधान कर पानी को रोककर रागी फसल को लेवें।श्री शांडिल्य ने बताया गया कि धान फसल में ज्यादा पानी, खाद व कीटनाशक आदि की आवश्यकता होती है, रागी का फसल कम पानी, खाद व कीटनाशक से भी किया जा सकता है। रागी फसल की खेती समय पर कृषि कार्य पूर्ण कर ली जाए तो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही फसल का समर्थन मूल्य 3578 रुपए प्रति क्विंटल पर विक्रय किया जा सकता है। रागी फसल में कीट- बीमारी भी नहीं के बराबर लगती है, जिससे फसल उत्पादन में कोई परेशानियां नहीं होती है। रागी फसल के रकबा को बढ़ाने शासन स्तर पर भी जोर दिया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप विभागीय योजनांतर्गत क्षेत्रवार प्रदर्शन लगाए जा रहे है तथा कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा कृषकों का बैठक लेकर रागी फसल के खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देकर किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा हैं।श्री शांडिल्य द्वारा बताया गया कि रागी का फसल सामान्यतः रबी के मौसम में लगाया जाता है जो 110 से 115 दिन के बीच तैयार होता है।

रागी की खेती (मंडुआ) सूखा आशंकित इलाकों में भी देती है बढ़िया कमाई:भावेश कुमार शांडिल्य

हमारे संवाददाता से लंबी चर्चा में भावेश कुमार शांडिल्य वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी मैनपुर ने कहा कि रागी की खेती छत्तीसगढ़ सहित देश के अनेक राज्यों में होती है। रागी की फसल सूखा और खरपतवार के प्रति काफ़ी सहनशील होती है। रागी में सामान्य जल भराव को बर्दाश्त करने की क्षमता होता है। इसका यही गुण इसे बारानी यानी वर्षा-निर्भर और सूखा आशंकित इलाकों के लिए बहुत उपयोगी बना देता है। इसीलिए बुन्देलखंड जैसे कम बारिश वाले इलाकों में भी रागी की फसल से अच्छी पैदावार मिल जाती है। हालाँकि, मंडुआ का प्रमुख उत्पादक छत्तीसगढ़ के बस्तर व झारखंड है।उपजाऊ खेतों में इसे धान के साथ अन्त:फसल की तरह भी उगा सकते हैं। इस तरह, रागी प्रतिकूल परिस्थितियों में और कम देखभाल होने पर भी अच्छी पैदावार देने वाली फसल के रूप में अपनी ख़ास पहचान रखती है।  

धान की फसल नहीं लगा पाने की अवस्था में रागी को आकस्मिक फसल की तरह लगा सकते हैं। पौष्टिकता से भरपूर यह अनाज स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों का ख़ूब ध्यान आकर्षित कर रहा है।रागी में प्राकृतिक रूप से काफ़ी मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है। इससे बच्चों में हड्डियों का विकास बढ़िया होता है तथा वयस्कों की हड्डियों में मज़बूती मिलती है। यह पौष्टिक होने के अलावा सस्ता और सुपाच्य भी होता है। रेशा-तत्वों से भरपूर रागी के सेवन से क़ब्ज़ की शिकायत दूर होती है।रागी की खेती को यदि वैज्ञानिक तरीके से किया जाए तो किसानों को इससे शानदार उपज और कमाई मिल सकती है। रागी का वानस्पतिक नाम एलुसिन कोरकाना है।

रागी फसल रोपाई करते कृषक कोमल साहू पथरी वि.ख. मैनपुर जिला गरियाबंद(छ. ग.)

रागी की खेती का वैज्ञानिक तरीका

श्री शांडिल्य बताया कि सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के विशेषज्ञों के अनुसार, रागी की खेती को लेकर हुए प्रयोगों का निष्कर्ष है कि यदि धान की दो पंक्तियों के साथ रागी की दो पंक्तियाँ एक साथ रोपी जाएँ तो दोनों की अच्छी उपज प्राप्त होती है। समय रहते धान की फसल नहीं लगा पाने की दशा में रागी को आकस्मिक फसल की तरह लगाया जा सकता है।रागी की फसल सभी किस्म की मिट्टी में उगाई जा सकती है। लेकिन ज़्यादा जीवांश वाली मिट्टी में पैदावार ज़्यादा मिलती है। रागी के लिए मिट्टी की pH मान 4.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। खेत की तैयारी के लिए तीन से चार बार खेत की अच्छी तरह से जुताई करके पाटा चला दें। गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर 2.5 टन की दर से खेत में मिला दें।श्री शांडिल्य ने आगे बताया कि रागी की उन्नत किस्में हैं – GPU 45, शुवा (OUAT-2), चिलिका (IOB-10), भैरवी (BM 9-1) और VL-149. ये किस्में 105-120 दिनों में तैयार होकर 22-37 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देती हैं। रागी की उपज क्षमता प्रजातियों तथा उनकी परिपक्वता अवधि पर निर्भर करती है। रागी का मौजूदा न्यूनतम समर्थन मूल्य 3377 रुपये प्रति क्विंटल है।श्री शांडिल्य ने आगे कहा कि रागी की बुआई के लिए दो विधियाँ प्रचलित हैं। सीधी बुआई और पौधरोपण यानी धान की फसल की तरह रोपाई करना। रोपाई वाले पौधों को 25 से 28 दिनों का होना चाहिए। यदि सीधी बुआई की बात करें तो पंक्तियों में 20 सेमी की दूरी रखते हुए इसकी बुआई की जा सकती है। इसके लिए 10 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज की ज़रूरत पड़ेगी, जबकि रोपाई विधि में प्रति हेक्टेयर 7 से 8 किग्रा बीज पर्याप्त है। रोपाई के वक़्त पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 20 सेमी तथा पौध से पौध की दूरी 10 सेमी रखना चाहिए।बुआई से पहले रागी के बीजों का उपचार ज़रूर करना चाहिए। इसके लिए प्रति किग्रा बीज को 2 से 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम/ कार्बोक्सिन/क्लोरोथेलोनिल से उपचारित करने के बाद ही बुआई करनी चाहिए। रागी की खेती में खाद का इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी की जाँच ज़रूर करवानी चाहिए। वैसे सामान्य खेतों के लिए प्रति हेक्टेयर 2.5 टन गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट को अन्तिम जुताई के वक़्त देना ठीक रहता है।कम अवधि में तैयार होने वाली किस्मों की यदि सीधी बुआई करनी हो तो नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम को 20:30:20 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए। लम्बी अवधि वाली किस्मों के लिए इसकी मात्रा 40:30:20 होनी चाहिए। बुआई या रोपाई के समय नाइट्रोजन की एक-चौथाई मात्रा तथा फॉस्फोरस और पोटेशियम की पूरी मात्रा को खेतों में डालना चाहिए। बुआई या रोपाई के 25 दिनों बाद नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा तथा 35 से 40 दिनों बाद बाक़ी बची एक-चौथाई मात्रा डालनी चाहिए।श्री शांडिल्य ने आगे बताया कि खरपतवारों के नियंत्रण के लिए रागी की फसल में बुआई के 21 से 25 दिनों बाद पहली निराई और इसके 15 दिनों बाद दूसरी गुराई करनी चाहिए। यदि खरपतवार का नियंत्रण रसायनों से करना हो तो आइसो प्रोटोरॉन नामक दवा की एक लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर बुआई के 48 घंटों के भीतर छिड़काव करना चाहिए। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की अधिकता होने पर 24-डी नामक दवा की एक किग्रा मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर 20-25 दिनों बाद छिड़काव करना चाहिए।धान की तरह रागी की फसल में भी झुलसा रोग का प्रकोप पाया जाता है। कभी-कभी यह बहुत हानिकारक होता है। इसमें पत्तियों पर गोल-गोल या अंडाकार भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। बाद में ये धब्बे राख जैसे दिखने लगते हैं। इसके लिए रोगरोधी किस्मों को बीजोपचार के बाद इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा साफ नामक दवा 2 ग्राम या प्रति लीटर पानी में कार्बोडाजिम की 1 ग्राम मात्रा का घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।रागी की फसल में कीट कभी-कभी समस्या पैदा कर देते हैं। इससे उत्पादन में कमी आ जाती है।श्री शांडिल्य ने आगे बताया कि की कटुआ कीट ये कीट जड़, तना और पत्तियों को काटकर नुकसान पहुँचाते हैं। इनके नियंत्रण के लिए साफ़-सफ़ाई का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। फसल अवशेष और खरपतवार को नष्ट करते रहना चाहिए। प्रति लीटर पानी में 2 ग्राम की दर से लाभकारी फफूँद बवेरिया बेसियाना का घोल बनाकर छिड़काव करने से भी कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है। रसायनों में क्लोरपायरीफॉस एक लीटर दवा 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से भी अच्छे परिणाम मिलते हैं।

गुलाबी तनाछेदक

श्री शांडिल्य ने आगे कहा कि इस कीट का लार्वा रागी के तने में छेदकर उसे अन्दर से खोखला कर देता है। इससे मध्य वाला तना भूरा हो जाता है। कल्लों के निकलने की अवस्था में डेड हर्ट के लक्षण प्रदर्शित होते हैं। गुलाबी तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए प्रकाश प्रपंच का उपयोग प्रति हेक्टेयर में तीन से चार बार किया जा सकता है। ट्राइकोडर्मा पैरासाइट के अंडों से से बनी ट्राइकोकार्ड को पत्तों में स्टैपल किया जा सकता है। इनसे निकलने वाले परजीवी गुलाबी तनाछेदक के लार्वा को नष्ट करते हैं। इसके रोकथाम के लिए फॉस्फोमिडोन दवा की 500 मिली मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यह दवा इस कीट के नियंत्रण में सक्षम पायी गयी है।लाही कीट यह समूह में रहने वाला कीट है। ये रागी फसल की पत्तियों, कोमल डंठलों तथा तने का रस चूसकर फसल को कमज़ोर बना देते हैं। पौधों पर चींटियों की उपस्थिति इसके आक्रमण को इंगित करती है। लाही कीट के नियंत्रण के लिए डायमेथोएट दवा का एक मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाने के बाद छिड़काव कर देना चाहिए।

रागी की फसल कम दिनों में तैयार होकर अच्छी उपज देती है। फसल पकने के बाद कटाई करके रागी की बालियों को तीन से चार दिनों तक खलिहान की धूप में सुखाने के बाद दाने निकालने चाहिए। फिर साफ़-सफ़ाई करके इसे भंडारित करना चाहिए या बाज़ार में बेचना चाहिए।

जानिए रागी खाने के फायदे

 प्राचीन काल से ही हमारे देश में पारम्परिक मोटे अनाज जैसे कि ज्वार, जौं, मक्का आदि का सेवन किया जाता रहा है। इन्हीं मोटे अनाजों में से एक है रागी। यह अनाज सेहत के लिए बहुत ही लाभकारी है। रागी को मंडुआ, नाचनी, फिंगर मिलेट आदि नामों से जाना जाता है। रागी का स्वाद बेहद स्वादिष्ट होता है एवं यह ऊर्जा का महत्पूर्ण घटक भी है। रागी के छोटे-छोटे दानों में कई समस्याओं को ठीक करने के राज छिपे हुए हैं। यदि इस अनाज को अपने रोज के आहार में शामिल कर लिया जाये तो निश्चित ही स्वास्थ के साथ-साथ सौंदर्य सम्बंधित कई समस्याओं में लाभ मिलेगा।रागी एक ऐसा अनाज है जिनमें कई तरह के औषधिय गुण पाए जाते हैं। आज कुछ लोग तो रागी के फायदे से अवगत हैं परन्तु अधिकांश लोगों को रागी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। 

रागी में पाए जाने वाले पोषक तत्व

1. कैल्शियम की कमी को दूर करने में है फायदेमंद

2. रागी के उपयोग से करें कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित

3. मधुमेह रोग को नियंत्रित करने में फायदेमंद है

4. खून की कमी को बढ़ाने में है फायदेमंद

5. वजन कम करने में है फयदेमंद

6. शिशुओं के लिए फायदेमंद है रागी

7. माँ के दूध को बढ़ाने में है फायदेमंद

8. रक्तचाप को कम करने में है फायदेमंद

रागी के अन्य गुणकारी फायदे

रागी सबसे पुराना और खाने वाले अनाजों में से एक है। यह वह पहला अनाज है जिसे भारत में लगभग 4000 वर्ष पूर्व लाया गया था। रागी ना सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि पौष्टिकता से भी भरपूर होता है। रागी की फसल की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे पूरी साल में कभी भी खेतों में लगाया जा सकता है क्योंकि इस अनाज की खेती का कोई निश्चित समय नहीं होता है। रागी की फसल को पककर आने में बहुत कम समय लगता है।रागी का पौधा ऊंचाई वाले क्षेत्रों या पहाड़ी इलाकों में ज्यादा फलता फूलता है इसलिए नेपाल तथा भारत के हिमालय में लगभग 2000 मीटर ऊँची पहाड़ियों पर रागी की खेती की जाती है। रागी की मुख्या विशेषता यह भी है कि इसमें अमीनो अम्ल तथा मेथोनाइन पाया जाता है जो कि स्टार्च की प्रधानता वाले अन्य भोज्य पदार्थों में नही पाया जाता। रागी के अनेक गुणकारी फायदों की वजह से ही अब इसे सुपर फूड के नाम से भी जाना जाता है।

कैसा दिखाई देता है रागी

रागी को आप पहली बार देखेंगे तो यह आपको एकदम राई की तरह लगेगा क्योंकि वाकई यह देखने में कुछ-कुछ राई की तरह ही होता है। रागी का बीज या दाना गोलाकार और छोटा होता है। रागी के बीज भूरे रंग के तथा झुर्रीदार होते हैं।प्रायः आपने देखा होगा कि जब हम कई दिनों तक किसी अनाज को स्टोर करके रखते हैं तो उस अनाज को कीट से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का उपयोग करना पड़ता है। ताकि वह अधिक समय तक सुरक्षित रह सके। परन्तु रागी एक ऐसा अनाज है जिसको संग्रह करने के लिए कीटनाशक दवाइयों का उपयोग नहीं करना पड़ता है। साथ ही बता दें कि रागी को मोटे अनाजों की श्रेणी में रखा गया है। मोटे अनाज किसे कहते हैं यदि आपको नहीं पता तो मोटे अनाज वे अनाज हैं जिन्हे लगाने में ज्यादा मशक्क्त नहीं करनी पड़ती है। इन्हे आसानी से लगाया जा सकता है। रागी भी ऐसा ही एक अनाज है जो ऊँची पहाड़ियों पर आसानी से लग जाता है। यही रागी कि सबसे बड़ी विशेषता भी है।

कैसा होता है रागी का पौधा

रागी का पौधा लगभग एक मीटर तक ऊँचा होता है तथा यह पोएसी कुल का पौधा है। रागी के पौधे को शुष्क मौसम में उगाया जा सकता है। रागी के पौधों की किस्म की बात की जाये तो इसकी कई किस्में पाई जाती हैं। रागी की उन्ही किस्मों में से हम आपको इसकी कुछ खास किस्मों को विस्तार से बताते हैं ।

1:GPU 45- रागी की इस किस्म के पौधे हरे होते है और वालियाँ थोड़ी मुड़ी हुई होती हैं। रागी की इस किस्म की फसल जल्दी पककर तैयार हो जाती है। बता दें कि रागी पौधे की यह किस्म झुलसन रोग के लिये प्रतिरोधी है।

2: शुव्रा (OUAT-2) – रागी के इस किस्म के एक मीटर ऊंचाई वाले पौधों में 7-8 सेमी लम्बी वालियाँ होती हैं। यह किस्म सभी झुलसन के लिए माध्यम प्रतिरोधी होती है।

3:VL149 -रागी पौधे के इस किस्म के पौधों की गांठे रंगीन एवं वालियाँ हल्की बैगनी रंग की होती हैं। इस किस्म का उत्पादन मैदानी एवं पठारी क्षेत्रों में किया जाता है। यह झुलसन रोग के लिए प्रतिरोधी है।

4:चिलिका (OEB-10) -रागी की इस किस्म के पौधे ऊंचे, पत्तियां चैड़ी होती एवं हल्के हरे रंग की होती हैं। यह झुलसन रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी एवं छेदक कीट के लिए प्रतिरोधी है।

रागी के इन पौधों को उन्नत किस्म की संज्ञा दी गई है। बता दें कि रागी के बीज झुर्रीदार और एक ओर से चपटे होते हैं। जो कि बेहद सुन्दर दिखते हैं।

रागी का सर्वाधिक उत्पादन कहाँ होता है

रागी मूल रूप से इथियोपिया के उच्च इलाकों का पौधा है। यह अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाता है। भारत में रागी लगभग चार हज़ार वर्ष पूर्व में आया था। यदि हम भारत की बात करें तो रागी भारत में सर्वाधिक उत्पादन की जाने वाली फसल है इसलिए भारत रागी का सबसे बड़ा निर्यात करने वाला देश भी है। भारत के कर्नाटक राज्य में रागी का सबसे अधिक उत्पादन किया जाता है अतः कर्नाटक राज्य भारत का सबसे बड़ा रागी उत्पादक राज्य है। कर्नाटक के बाद तमिलनाडु, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड एवं उत्तराखंड में भी रागी के सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है।

रागी का हिंदी में नाम – मंडुआ, नाचनी, रागी

रागी का अंग्रेजी में नाम – इण्डियन मिलेट, फिंगर मिलेट 

रागी का का तमिल में नाम – केलवारागू

रागी का राजस्थान में नाम – रागी

रागी का गुजराती में नाम – नावतोनागली

रागी का अरबी में नाम – तैलाबौन

रागी का संस्कृत में नाम – नृत्यकुण्डल

रागी का तेलगु में नाम – रागुलु

रागी का पंजाब में नाम – चालोडरा

रागी का मराठी में नाम – नचीरी

रागी का मलयालम में नाम – मुत्तरि

रागी का उपयोग कैसे किया जाता है

रागी एक ऐसा अनाज है जिसका उपयोग अलग-अलग प्रान्त में आवश्यकता के आधार पर कई प्रकार से किया जाता है। आप रागी का उपयोग रोटी के रूप में, हलुआ के रूप में, इडली डोसा के रूप में, लड्डू, बिस्किट आदि के रूप में कर सकते हैं। बता दें कि कुछ लोग रागी का उपयोग बर्फी बनाने में भी करते हैं।

रागी के जबरदस्त फायदे

 रागी कैल्शियम की कमी को दूर करने में  फायदेमंद हैं।मानव शरीर में सभी जरुरी पोषक तत्वों का होना अति आवश्यक है। यदि शरीर में पोषक तत्वों की कमी होती है तो शरीर में कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसे ही तत्वों में से एक तत्व कैल्शियम है जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही जरुरी है। कैल्शियम की कमी से ना सिर्फ हमारे शरीर की हड्डियां और मासपेशियां कमजोर होती हैं बल्कि इसकी कमी से बच्चों की लम्बाई नहीं बढ़ पाती है, बाल झड़ने लगते हैं और याददाश्त भी कमजोर होने लगती है।अक्सर लोग कैल्शियम की कमी होने पर कैल्शियम युक्त सप्लीमेंट्स लेना शुरू कर देते हैं जो हमारे शरीर पर दुष्प्रभाव डालते हैं। कैल्शियम की कमी को देशी खाद्य पदार्थों का सेवन करके आसानी से दूर किया जा सकता है। सप्लीमेंट्स के लेने से शरीर को जो कैल्शियम चाहिए होता है वह तो मिलता नहीं है अपितु इसके हानिकारक नुकसान देखने को मिलते हैं। जबकि देशी खाद्य पदार्थों के लेने से उच्च कैल्शियम की प्राप्ति होती है एवं इससे शरीर को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुँचती है। बता दें की रागी में सबसे अधिक कैल्शियम पाया जाता है। रागी का रोजाना आहार में उपयोग करने से कैशियम की कमी को आसानी से दूर किया जा सकता है।

रागी के उपयोग से करें कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित

कोलेस्ट्रॉल शरीर के रक्त में पाया जाने वाला वसा है जो कि शरीर की कार्य प्रणाली के लिए अति आवश्यक है। लेकिन कोलेस्ट्रॉल के बढ़ जाने से यह अत्यधिक घातक हो जाता है इसलिए बढ़ते हुए कोलेस्टॉल पर नियंत्रण करना बेहद जरुरी है। कोलेस्टॉल के बढ़ने के कारण शरीर में रक्त के थक्के बन जाते हैं जिससे ह्रदय से सम्बंधित कई बीमारियां हो जाती हैं। बता दें कि रागी में लेसिथिन और मिथियोनिन नामक अमीनो अम्ल पाये जाते हैं जो लीवर में मौजूद वसा को कम कर देता है। इसके यह अम्ल लीवर में वसा को जमने भी नहीं देते हैं। यदि आप आसानी से कोलेस्ट्रॉल को कम करना चाहते हैं तो रागी का इस्तेमाल आपके लिए लाभकारी रहेगा।

मधुमेह रोग को नियंत्रित करने में फायदेमंद है

मधुमेह रोग आजकल काफी प्रचलित हो गया है। बता दें कि भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर सबसे अधिक मधुमेह के रोगी हैं इसलिए भारत को डायबिटीज का कैपिटल कहा जाता है। यह एक गंभीर रोग है जिसका ठीक होना संभव नहीं है क्योंकि यदि किसी व्यक्ति को एक बार यह रोग हो जाता है तो पूरी जिंदगी उस व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ता है। लेकिन मधुमेह रोग पर नियंत्रण करके इसे रोका जरूर जा सकता है।रागी में प्रचुर मात्रा में पॉलीफेनोल और फाइबर पाया जाता है जो कि मधुमेह को कम करता है, यह ग्लाइसेमिक इंडेक्स फूड है जो खाने की तृष्णा अर्थात क्रेविंग को कम करता है। इसके आलावा रागी अनाज में फाइटोकेमिकल्स तत्व भी पाए जाते हैं जो शरीर की पाचन प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं। जिसकी वजह से शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है। रागी का सेवन करने से शरीर में ग्लूकोस का स्तर कम होता है जो कि मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए जरुरी होता है।

खून की कमी को बढ़ाने में है फायदेमंद

रागी खून की कमी से पीड़ित लोंगो के लिए वरदान है क्योंकि रागी में आयरन की उच्च मात्रा पाई जाती है जो की शरीर में खून के स्तर को बढ़ाता है। प्रायः खून की कमी को एनीमिया रोग कहा जाता है जो की सबसे ज्यादा महिलाओं और बच्चों में देखा जाता है। खून बढ़ाने के लिए आप रागी का उपयोग किसी भी रूप में कर सकते हैं लेकिन रागी के बीजों को अंकुरित करके सुबह खाली पेट सेवन करना खून बढ़ाने का सबसे बेहतर ईलाज है। इस उपाय को करने से जल्द खून की कमी को दूर किया जा सकता है।

वजन कम करने में है फयदेमंद

अक्सर आपने सुना होगा कि रोटी कम खाने से वजन कम हो जाता है लेकिन बता दें की यह वजन सिर्फ उतने समय के लिए ही कम होता है जब तक रोटियों का सेवन कम किया जाये यदि आप एक दो दिन उसी मात्रा में रोटी खाने लगे जिस मात्रा में पहले खाते थे तो आपका वजन ज्यों का त्यों हो जायेगा। इसी लिए अगर वजन काम करना ही है तो रागी एक अच्छा उपाय है। दोस्तों रागी में फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो वजन को कम करता है। इसलिए यदि अन्य अनाजों की रोटी का सेवन करने की अपेक्षा यदि आप रागी अनाज से बनी रोटियों का सेवन करेंगे तो आपका वजन निश्चित ही कम हो जायेगा ।

शिशुओं के लिए फायदेमंद है रागी

रागी एक पौष्टिक आहार है जो ना सिर्फ बड़ों के लिए फायदेमंद है बल्कि बच्चों के लिए भी गुणकारी है। प्रायः बच्चों का छः माह के हो जाने के बाद उनको पौष्टिक अनाज आहार के रूप में दिया जाता है जो कि बच्चों के सम्पूर्ण विकास के लिए अति महत्पूर्ण होता है। रागी में कैल्शियम और प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। कैल्शियम और प्रोटीन वह तत्व है जो किसी भी शिशु के विकास के लिए जरुरी होते हैं। इसके आलावा रागी में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल, एंटी-डायबिटिक गुण भी पाए जाते हैं जो शिशुओं को कई बीमारियों से बचाते हैं। वस्तुतः कुछ शिशुओं में खून की कमी पाई जाती है तो हम आपको ऊपर बता चुके हैं कि रागी में आयरन की भरपूर मात्रा पाई जाती है जिसके सेवन करने से खून की कमी भी दूर हो जाती है।

अगर शिशु को यदि आप पहली बार रागी का सेवन करा रहे हैं तो रागी की मात्रा सीमित रखें। क्योंकि रागी की अत्यधिक मात्रा का सेवन शिशु को नुकसान पंहुचा सकता है।

माँ के दूध को बढ़ाने में है फायदेमंद

चिक्तिसकों का कहना है कि नवजात शिशु के लिए माँ का दूध अमृत के सामान है। अतः शिशु को कम से कम छह माह तक केवल माँ के दूध का ही सेवन कराना चाहिए। यदि शिशु को माँ के दूध की मात्रा कम मिलती है तो यह शिशु के विकास में मुख्य बाधा बनती है। शिशु को ब्रेस्टफीडिंग कराने के लिए माताओं को रागी का उपयोग करना चाहिए। रागी में अमीनो अम्ल, कैल्शियम, आयरन उच्च मात्रा में पाया जाता है। यह वो तत्व हैं जो कि माँ का दूध बढ़ाने के लिए मदद करते हैं। बता दें गर्भावस्था के दौरान रागी का सेवन अति लाभकारी होता है।

रक्तचाप को कम करने में है फायदेमंद

आमतौर पर रक्तचाप बढ़ने की समस्या आम हो गई है। रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए प्रतिदिन रक्तचाप की दवाई का सेवन करना पड़ता है। रागी में बहुत से तत्व ऐसे होते है जो कि रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं। बता दें कि प्रतिदिन रागी के आटे की रोटी खाने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है।

रागी के अन्य गुणकारी फायदे

1-रागी त्वाचा के लिए बेहद लाभकारी है। रागी के उपयोग से त्वचा मुलायम, जंवा और खूबसूरत बनती है। त्वचा को निखारने के लिए आप रागी के आटे का उपयोग उपटन के रूप में कर सकते हैं।

2-रागी के सेवन से हड्डियां मजबूत बनती है क्योंकि रागी में कैल्सियम की मात्रा अत्यधिक होती है।

3-रागी अनाज पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। बता दें कि रागी में ऐल्कलाइन तत्व पाया जाता है जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करता है।

4-रागी एक मोटा अनाज होने के साथ-साथ इसमें फाइवर जैसे कुछ गुणकारी तत्व पाए जाते हैं जो कब्ज की बीमारी को दूर करते हैं।

रागी से होने वाले नुकसान

जिस प्रकार एक सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी प्रकार हर चीज के भी दो पहलु होते हैं। एक लाभदायक और दूसरा नुकसानदायक हालाँकि रागी के फायदे अनेक है और नुकसान ना के बराबर है। फिर भी हमें रागी से होने वाले नुकसान की जानकारी होनी चाहिए। तो आइये जानते है रागी के क्या नुकसान है –

1- रागी के अत्यधिक सेवन करने से ऑक्सालिक अम्ल  का संचार तेज गति से होने लगता है। यह अम्ल पथरी वाले रोगियों को नुकसान करता है।

2-रागी का अत्यधिक सेवन किडनी वाले मरीजों के लिए नुकसान दायक होता है।

3-बच्चों को रागी का अधिक सेवन करना नुकसानदायक हो सकता है।

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