
कौन हैं अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस, जिसके प्रधानमंत्री मोदी पर बयानों को भाजपा बोल रही हैं ‘राष्ट्र पर हमला’
प्रकाश कुमार यादव
नई दिल्ली(गंगा प्रकाश):- क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए विदेशों से अभियान चलाए जा रहे हैं। क्या अमेरिका और ब्रिटेन की सत्ता में बैठे लोग पीएम मोदी से इतने नाखुश हैं कि वह उन्हें भारत के प्रधानमंत्री पद से हटाने की कोशिशों में जुटे हैं। क्या रूस और व्लादिमीर पुतिन के साथ दोस्ताना संबंध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारी पड़ सकते हैं। क्या विदेशी ताकतें भारत में ऐसा कुछ कर सकती हैं, जिससे नरेंद्र मोदी को प्रदानमंत्री के पद से हटाया जा सके. यह कोई मनगढ़ंत शंकाएं नहीं हैं, बल्कि एक शोध में यह बात सामने आई है।सेंटर फॉर रिसर्च ऑन ग्लोबलाइजेशन के एफ. विलियम एंगडाहल का दावा है कि घटनाओं की श्रृंखला बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए अमेरिका व इग्लैंड द्वारा एक अभियान शुरू किया गया है। एंगडाहल के मुताबिक वर्तमान भू-राजनीति परिस्थितियों में भारत के प्रधानमंत्री मोदी के रुख से अमेरिका व यूरोपीय देश खुश नहीं हैं। उनके अनुसार यूक्रेन युद्ध को लेकर वाशिंगटन और यूरोपीय संघ ने रूस पर अभूतपूर्व आर्थिक प्रतिबंध लगा रखा है। लेकिन भारत रूस का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक साझीदार बना हुआ है। ऐसे में रूस के खिलाफ लगाया गया प्रतिबंध प्रभावी नहीं हो पा रहा है।
एंगडाहल के लेख में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार और ब्रिटेन के बार-बार के प्रयासों के बावजूद मोदी ने रूसी व्यापार के खिलाफ प्रतिबंधों में शामिल होने से इनकार कर दिया है। इसी प्रकार मोदी के नेतृत्व में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ वाशिंगटन का साथ देने से भी परहेज किया है। बार-बार परिणाम भुगतने की अमेरिकी धमकियों के बावजूद भारत बड़े पैमाने पर रूसी तेल खरीद पर अमेरिकी प्रतिबंधों को मानने से इनकार किया है। ब्रिक्स का साथी सदस्य होने के अलावा, भारत रूसी रक्षा उपकरणों का एक प्रमुख खरीदार भी है। इसके कारण भी एंग्लो-अमेरिकन समूह मोदी सरकार से असंतुष्ट है।
एंगडाहल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जनवरी में मोदी और उनके प्रमुख वित्तीय समर्थक पर एक एंग्लो-अमेरिकन हमला शुरू किया गया। उनके मुताबिक वॉल स्ट्रीट वित्तीय फर्म, हिंडनबर्ग रिसर्च ने, जिस पर अमेरिकी इंटेलीजेंस के साथ संबंध होने का संदेह है, जनवरी में मोदी के निकटस्थ कहे जाने वाले अरबपति गौतम अदानी को निशाना बनाया। इससे अदानी समूह को 120 बिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ। लेख के मुताबिक हिंडनबर्ग के पास मोदी से करीबी संबंध रखने वालों की खुफिया जानकारी हो सकती है। इसी आधार पर हिंडनबर्ग ने अदानी समूह को निशाना बनाया।
उसी महीने जब अदानी पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई, जनवरी में ब्रिटिश सरकार के स्वामित्व वाली बीबीसी ने एक डॉक्यूमेंट्री जारी की, जिसमें 2002 में गुजरात में हुए सांप्रदायिक दंगों में मोदी की भूमिका का आरोप लगाया गया था, जब वे वहां के मुख्यमंत्री थे। एंगडाहल के मुताबिक बीबीसी की रिपोर्ट ब्रिटेन के विदेश कार्यालय द्वारा बीबीसी को दी गई अप्रकाशित खुफिया जानकारी पर आधारित थी। लेख के मुताबिक एक और संकेत मिलता है कि वाशिंगटन और लंदन भारत में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं। 92 वर्षीय अमेरिकी उद्योगपति जॉर्ज सोरोस ने 17 फरवरी को वार्षिक म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में कहा कि अब मोदी के गिने-चुने दिन हैं।
सोरोस ने कहा, भारत में लोकतंत्र है, लेकिन इसके नेता नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। सोरोस ने कहा कि एक तरफ भारत क्वाड (जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान भी शामिल हैं) का सदस्य है, लेकिन यह रूस से भी बहुत घनिष्ठ संबंध रखते हुए व्यापार कर रहा और तेल खरीद रहा है। सोरोस ने कह कि मैं भारत में एक लोकतांत्रिक पुनरुद्धार की उम्मीद करता हूं।
पीएम मोदी को क्यों हटाना चाहता है अमेरिका का अरबपति जॉर्ज सोरोस?
अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के बयान के बाद भारत में खलबली मची हुई है।जॉर्ज सोरोस ने कहा है कि उद्योगपति अडानी के साम्राज्य में मचे उथल-पुथल के बाद पीएम नरेंद्र मोदी को अपनी संसद को जवाब देना होगा और इससे भारत में लोकतांत्रिक परिवर्तन का रास्ता खुलेगा, सोरोस के इस बयान पर बीजेपी ने तीखा हमला किया और कहा है कि एक विदेशी व्यक्ति भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में दखल देने की नापाक कोशिश कर रहा है।अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दिए बयान पर बवाल मच गया है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि पीएम मोदी जॉर्ज सोरोस के निशाने पर हैं।कांग्रेस ने भी सोरोस की निंदा की है और कहा है कि भारत में लोकतांत्रिक बदलाव का रास्ता चुनावी प्रक्रिया है।सोरोस जैसे लोग हमारे चुनावी नतीजे नहीं तय कर सकते हैं।
दरअसल, जॉर्ज सोरोस ने अडानी मुद्दे पर पीएम मोदी पर निशाना साधा,सोरोस ने दावा किया है कि अडानी के मुद्दे पर भारत में एक लोकतांत्रिक परिवर्तन होगा,हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब सोरोस ने पीएम मोदी पर निशाना साधा है।इससे पहले 2020 में जॉर्ज ने कहा था कि मोदी के नेतृत्व में भारत तानाशाही व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।सोरोस म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे।उन्होंने इस दौरान कहा कि भारत का मामला दिलचस्प है।भारत लोकतांत्रिक देश है लेकिन नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। मोदी के तेजी से बड़ा नेता बनने के पीछे अहम वजह मुस्लिमों के साथ की गई हिंसा है।सोरोस ने कहा था कि भारत क्वाड का मेंबर है जिसमें ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान भी उसके साथ है। लेकिन भारत इसके बावजूद रूस से बड़े डिस्काउंट पर तेल खरीद रहा है और मुनाफा कमा रहा।
मोदी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए अमेरिका रच रहा है साजिशें,CIA पूरी ताकत से जुटा, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया प्रोपेगेंडा फैला रहा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जिस तरह से नया भारत अपने पौराणिक वैभव के साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ आगे बढ़ रहा है वह दुनिया के कुछ देशों को नागवार गुजर रहा है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका को अलग मिर्ची लगी हुई है क्योंकि नया भारत उसकी हां में हां नहीं मिला रहा है बल्कि उसे आंख भी दिखा रहा है। अमेरिका से हथियार खरीदने की जगह भारत ने रूस को चुना, इससे वह तिलमिलाया हुआ है। उसकी सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि आज वह सरकार में किसी मंत्री या नेता को ‘खरीद’ भी नहीं पा रह है। जैसा कि वह कांग्रेस के शासन काल में किया करता था। जैसा कि उसने 1994 में इसरो के वैज्ञानिक नंबी नारायण पर जासूसी का आरोप लगवाकर किया था। उस वक्त नंबी नारायण के नेतृत्व में भारत क्रायोजेनिक बनाने के अंतिम चरण में पहुंच गया था। 1994 में नंबी पर आरोप लगाया गया था कि जिस क्रायोजेनिक इंजन तकनीक पर वो काम कर रहे थे, उसकी तकनीक उन्होंने लीक करा दी है। नारायणन समेत तीन साइंटिस्ट गिरफ्तार कर लिए गए थे। उन पर आरोप लगा था कि वो ये तकनीक पाकिस्तान को बेच रहे थे। हालांकि ये आरोप बाद में खारिज हो गया। पुलिस की लाख कोशिश के बाद भी कुछ ऐसा नहीं मिला, जिसे आपत्तिजनक कहा जा सके। अमेरिका अपनी चाल में सफल रहा था और भारत अपने अंतरिक्ष अभियान में 15-20 साल पीछे चला गया। इसी तरह आज भारत UPI पेमेंट सिस्टम दुनिया में धूम मचा रहा है और इससे अमेरिकी कंपनी वीजा मास्टरकार्ड व्यापक नुकसान होने वाला है। पीएम मोदी के नेतृत्व में नया भारत जिस तरह से मजबूत हो रहा है वह अमेरिका को नहीं सुहा रहा है और अब वह मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए साजिशें रच रहा है। इसके लिए वह देश के विपक्षी दलों, देशविरोधी गतिविधियों में शामिल तत्वों, लेफ्ट-लिबरल गैंग, खान मार्केट गैंग और अर्बन नक्सलियों को हर तरह से मदद पहुंचा रहा है।इस संबंध में दडायरेक्टरीचडॉटकॉम ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें मोदी शासन के खिलाफ अमेरिका साजिश का पर्दाफाश किया गया है। लेख में कहा गया है कि मोदी शासन को सत्ता से हटाने के लिए अमेरिका पूरी ताकत से मेहनत कर रहा है। इसके लिए हिलेरी-ओबामा भी इस साजिश का हिस्सा हैं जो कि बाइडन के पीछे की वास्तविक शक्ति हैं। पीएम मोदी के साथ समस्या यह नहीं है कि वह एक हिंदू राष्ट्रवादी हैं, बल्कि यह है कि उन्हें खरीदा नहीं जा सकता। अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA जिन्हें खरीद नहीं पाता उनसे घृणा करती है। यहां यह याद रखने की बात है कि कैसे CIA ने भारत के क्रायोजेनिक इंजन के विकास को बर्बाद कर दिया? नंबी नारायणन और अन्य को खरीदा नहीं जा सकता था।इसलिए उन्होंने कांग्रेस में शक्तिशाली भारतीय राजनेताओं के साथ मिलकर इसरो वैज्ञानिकों को बदनाम करने के लिए महिला जासूस का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने अब इसरो के वैज्ञानिकों को बरी कर दिया है।लेकिन बहुमूल्य समय नष्ट हो गया और वैज्ञानिकों की एक पीढ़ी को काम करने से रोक दिया गया।
विक्टोरिया नुलैंडः यूएस डीप स्टेट का शासन परिवर्तन एजेंट
ओबामा हिलेरी कैबल आर्म्स, फार्मा और ऑयल लॉबी को नियंत्रित करती है और इसमें 3 महिलाएं हैं। सुसान राइस, सामंथा पावर और विक्टोरिया नुलैंड। विक्टोरिया को यूएस डीप स्टेट के शासन परिवर्तन एजेंट के रूप में जाना जाता है। 2013 में यूक्रेन में विरोध प्रदर्शन के पीछे विक्टोरिया का ही हाथ था। आप देख सकते हैं कि वह किसी देश के लिए कितनी खतरनाक रूप से काम कर सकती है। मार्च 2022 में दिल्ली की अपनी यात्रा पर, वह खुले तौर पर लीली(LeLi)गिरोह, पत्रिकाओं, जनहित याचिका कार्यकर्ताओं से मिलीं और तमिलनाडु राज्य के नेताओं के साथ गुप्त बैठकें कीं। कोई आश्चर्य नहीं कि राहुल और डीएमके यूनियन ऑफ स्टेट्स मॉडल की बात कर रहे हैं। इस तरह आने वाले दिनों में कुछ नए नैरेटिव सामने आएं तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
विक्टोरिया नुलैंड की भारत यात्रा का मकसद
विक्टोरिया नुलैंड की यात्रा के दौरान मुख्य उद्देश्य “थोरियम”थी, तमिलनाडु का अर्थ थोरियम और थोरियम का अर्थ तमिलनाडु है। सीआईए भारत में एजेंटों को नहीं खोना चाहती। वही नूलैंड भारत में है जो हमें रूस के खिलाफ अमेरिका का समर्थन करने के लिए कह रही है। और भारत में रहते हुए वह कई सीएए विरोधी समूहों / लोगों से मिली क्यों? उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की वकील करुणा नंदी के साथ काफी समय बिताया। अब करुणा को यह कहने के लिए जाना जाता है कि “तीन तलाक पसंद की स्वतंत्रता है। अगर कोई हिंदू पुरुष अपनी पत्नी से कह सकता है कि “मैं तुम्हें तलाक देना चाहता हूं” तो एक मुसलमान को तीन तलाक कहने का अधिकार क्यों नहीं। सचमुच? मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार तीन तलाक का अंत तलाक में होता है। इसके साथ ही वह सीएए के खिलाफ रही हैं और किसान आंदोलन का समर्थन किया है। वह उन प्रभावशाली लोगों से मिल रही हैं जो पीएम मोदी के खिलाफ हैं ताकि आवश्यक धन CIA द्वारा उन तक पहुंचाया जा सके।
फोर्ड फाउंडेशन को वित्त पोषित करता है CIA, केजरीवाल हैं फोर्ड फाउंडेशन अवार्डी
दिल्ली और पंजाब में अब अरविंद केजरीवाल के रूप में CIA द्वारा वित्त पोषित फोर्ड फाउंडेशन अवार्डी के पार्टी की सरकारें हैं। विक्टोरिया नुलैंड के बाद, भारत की यात्रा करने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी की प्रशासक सामंथा पावर हैं। इस बार टारगेट हमारी सबसे बड़ी ताकत होगी- फूड। एनजीओ/आंदोलनजीवी द्वारा खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में अराजकता पैदा करने के लिए बड़े विरोध की उम्मीद है। कैबल चाहता है कि इस खाद्य श्रृंखला को तोड़ा जाए। ऐसा वे शास्त्री जी के समय से कई बार कर चुके हैं।
आर्म्स लॉबी ने भारतीयों के वीजा पर लगाया लगाम
भारत के खिलाफ प्रतिबंध वीजा से इनकार। यह आर्म्स लॉबी की सक्रियता है। विदेश मंत्री जयशंकर के शब्दों ने उनके जख्मों पर नमक छिड़क दिया था… भारतीयों को वीजा क्लियर करने में अमेरिका को 800 दिन लग रहे हैं जबकि चीनियों को वीजा क्लियर करने में 2 दिन लग रहे हैं। कैबल की नापाक साजिशें के तहत सबसे पहले WHO ने 4 भारतीय फार्मा कंपनियों का लाइसेंस रद्द कर दिया। इसके साथ ही डब्ल्यूएचओ ने भारत के फार्मास्यूटिकल्स द्वारा बनाए गए 4 खांसी और ठंडे सिरप पर अलर्ट जारी किया। इसे गंभीर गुर्दे की खराबी और गाम्बिया में बच्चों के बीच 66 मौतों से जोड़ दिया गया। डब्ल्यूएचओ के हवाले से रायटर ने खबर दी कि कंपनी और नियामक अधिकारियों के साथ आगे की जांच की जा रही है।
इसके बाद ओएनजीसी और बीपीसीएल को मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका में कुछ परियोजनाओं से बाहर करने के लिए मजबूर करने वाली तेल लॉबी हो सकती है। मुंबई में नए अमेरिकी महावाणिज्यदूत हैंकी, एक विशेषज्ञ हैं जो मिस्र में हुए आंदोलन के पीछे मुख्य ताकतों में से एक थे। वह ‘द नूलैंड स्कूल ऑफ रिजीम चेंज’ का छात्र है।
यूक्रेन में विरोध प्रदर्शन
यह विरोध यूक्रेन सरकार के अचानक निर्णय बदले जाने के बाद हुआ। इसके तहत यूक्रेन ने यूरोपीय संघ-यूक्रेन एसोसिएशन समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया और रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने को चुना। CIA को यह मंजूर नहीं था। फरवरी 2014 में यूक्रेनी राजधानी में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच घातक संघर्ष, निर्वाचित राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को हटाने और यूक्रेनी सरकार को उखाड़ फेंकने में परिणत हुआ। तत्काल यूक्रेन में अमेरिकी समर्थक राष्ट्रपति थे और हंटर बाइडेन (वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति के बेटे) यूक्रेन में जा पहुंचे और व्यवसायों को तोड़ दिया या उनमें भागीदार बन गए। ये नूलैंड और अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े कारोबारी थे।
क्यों अमेरिका व कुछ देश नरेंद्र मोदी से नफरत करते हैं?
एनसीबी ने अब तक लगभग 8 लाख करोड़ रुपये की लागत वाली 80000 किलोग्राम नशीली दवाओं को नष्ट कर दिया है। जिन लोगों ने 8 लाख करोड़ रुपये की ड्रग्स खो दी, क्या वे मोदी से नफरत नहीं करेंगे?ईडी अब तक भ्रष्टों के पास से 1,20,000 करोड़ रुपये का काला धन जब्त कर चुका है। क्या काला धन गंवाने वाले मोदी से नफरत नहीं करेंगे?मोदी ने फाइजर और मॉडर्न से कोरोना वैक्सीन आयात नहीं किया। उन्होंने स्वदेशी टीके विकसित करने में मदद की और भारत से फाइजर के अपेक्षित व्यवसाय को नष्ट कर दिया। मोदी योग, आयुर्वेद, स्वच्छता और निवारक इलाज पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। क्या यह अंतरराष्ट्रीय फार्मा लॉबी मोदी से नफरत नहीं करेगी?मोदी ने हथियारों के सौदागरों से ख़रीदना बंद कर दिया और सीधे फ़्रांस से राफेल ख़रीद लिया। मोदी ने भारत में रक्षा उपकरण बनाना शुरू किया और रक्षा खरीद कम की। क्या बेहद ताकतवर अंतरराष्ट्रीय रक्षा लॉबी मोदी से नफरत नहीं करेगी?मोदी ने मध्य पूर्व से महंगा तेल खरीदना बंद कर दिया और रूस से भारी मात्रा में रियायती दर पर खरीदना शुरू कर दिया। क्या यह मध्य पूर्व का तेल माफिया मोदी से नफरत नहीं करेगा?
मोदी भारत की सड़ी-गली व्यवस्था को साफ कर रहे हैं। 75 साल से हमारा खून चूस रहे भ्रष्टाचारी मोदी के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। वे मोदी को रोकने के लिए कुछ भी करेंगे। दुनिया 3 शक्तिशाली लॉबी द्वारा शासित है। डिफेंस लॉबी, ऑयल लॉबी और फार्मा लॉबी। मोदी इन तीनों लॉबी के खिलाफ एक साथ जंग छेड़ रहे हैं। अब आप समझ सकते हैं कि ये लोग मोदी से इतनी नफरत क्यों करते हैं।मोदी सरकार 2024 में भी चुनाव जीतेगी और ये भ्रष्ट लोग समाप्त हो जाएंगे। मोदी के पास एक ही ताकत है और वो है भारत की जनता। उसके साथ खड़े हो जाओ।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया, NYT लगातार चला रहा मोदी विरोध का प्रोपेगेंडा
पीएम मोदी को सत्ता हटाने की साजिश रच रहा पश्चिमी मीडिया भारत की छवि खराब करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता है, फिर चाहे वह कोविड काल हो, किसान आंदोलन हो, चीन के साथ सीमा विवाद हो या फिर भारत में होने वाले कोई दंगे हों। अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स (NYT) भारत की छवि करने वाले मीडिया संगठनों में सबसे आगे है। इसका सबसे बड़ा सबूत 1 जुलाई 2021 को तब देखने को मिला जब NYT ने जॉब रिक्रूटमेंट पोस्ट निकाली। दिल्ली में साउथ एशिया बिजनेस संवाददाता के लिए नौकरी निकाली गई थी। इसमें नौकरी के लिए शर्तें बेहद आपत्तिजनक थी। पत्रकारों के लिए आवेदन में ‘एंटी इंडिया’ सोच होना, ‘हिंदू विरोधी’ सोच होना और ‘एंटी मोदी’ होना भी जरूरी था। अब इससे साफ हो जाता है कि NYT का भारत के प्रति नजरिया क्या है और किस एजेंडे को वह आगे बढ़ा रहा है। न्यूयॉर्क टाइम्स का मोदी विरोध कोई नई बात नहीं है। वह पहले भी अपने लेख में कह चुका है कि पीएम नरेंद्र मोदी से भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को खतरा है। न्यूयॉर्क टाइम्स NRC के विरोध में रिपोर्ट छापता है, न्यूयॉर्क टाइम्स लेख लिखकर कहता है कि भारत हिंदू राष्ट्र बनने के करीब पहुंच रहा है? अनुच्छेद 370 की समाप्ति को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स में रिपोर्ट छपती है कि कश्मीर में हजारों मुस्लिम हिरासत में हैं। ये वही न्यूयॉर्क टाइम्स है, जो भारत के मिशन मंगलयान का पहले मजाक उड़ाता है और फिर मिशन सफल होने पर माफी मांग चुका है। सोचिए ऐसा क्यों था कि 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले को न्यूयॉर्क टाइम्स ने आतंकवादी हमले की बजाए सिर्फ विस्फोट बताया था? न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया कि पुलवामा में आतंकवादी हमला नहीं, ब्लास्ट हुआ।
कौन हैं अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस, जिसके प्रधानमंत्री मोदी पर बयानों को भाजपा बोल रही हैं ‘राष्ट्र पर हमला’
जॉर्ज सोरोस उस दौलतमंद इंसान का नाम है जो खुद सिर से पांव तक अनैतिक कार्यों में लिप्त है, लेकिन दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाता है। बीजेपी ने जॉर्ज सोरोस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सोरोस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर लगातार हमले करते रहे हैं।
हंगरी मूल के अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस फिर विवादों में हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तानाशाह बताते रहते हैं। एक देश ने जिसे आर्थिक युद्ध अपराधी कहा है, उसने भारत के लोकतंत्र और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जंग छेड़ दिया है। केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने हंगरी मूल के अमेरिकी अरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि वो भारत के खिलाफ लंबे समय से एजेंडा चला रहे हैं। असल में जॉर्ज सोरोस उस शख्सियत का नाम है जिसने यहां तक कह दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत तानाशाही व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने और नागरिकता संसोधन कानून (CAA) का भी खुलकर विरोध किया है। उनका हालिया बयान गौतम अडानी की कंपनियों के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट को लेकर आया है। उन्होंने कहा कि अडानी का पीएम मोदी के साथ इतना घनिष्ठ संबंध है कि दोनों एक-दूसरे के लिए जरूरी हो गए हैं। बीजेपी ने इसकी कड़ी आलोचना की है। वरिष्ठ नेता स्मृति इरानी ने पार्टी की ओर से मोर्चा संभालते हुए जॉर्ज सोरोस पर हमला बोला। उन्होंने सोरोस के बयान को भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में दखल देने की कोशिश बताई है। आइए जानते हैं कौन हैं कथित तौर पर भारत विरोधी एजेंडा चलाने वाले जॉर्ज सोरोस…
हंगरी में पैदा हुए अमेरिकी अरबपति हैं जॉर्ज सोरोस
जॉर्ज सोरोस का जन्म 12 अगस्त, 1930 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था। वो सटोरिए, शेयरों के निवेशक और व्यापारी हैं। हालांकि, वो खुद को दार्शनिक और सामाजिक कार्यकर्ता कहलाना पसंद करते हैं। हालांकि, उन पर दुनिया के कई देशों की राजनीति और समाज को प्रभावित करने का एजेंडा चलाने का आरोप लगता रहता है। उन पर दुनिया कई देशों में कारोबार और समाजसेवा की आड़ लेकर पैसे के जोर पर वहां की राजनीति में दखल देने के गंभीर आरोप लगते रहते हैं। उन्होंने कई देशों में चुनावों को प्रभावित करने के लिए खुलकर भारी-भरकम फंडिंग की। यही कारण है कि यूरोप और अरब के कई देशों में सोरोस की संस्थाओं पर भारी जुर्माना लगाकर पाबंदी लगा दी गई।जॉर्ज सोरोस का यह ऐलान कि वो हिंदुस्तान में मोदी को झुका देंगे, हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार को ध्वस्त करेंगे उसका मुंहतोड़ जवाब हर हिंदुस्तानी को देना चाहिए।
कथित तानाशाहों से निपटने के लिए 100 अरब डॉलर का फंड
जॉर्ज सोरोस ने 2004 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश को अमेरिका का राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए भारी चंदा दिया था। उन्होंने ओपन सोसाइटी यूनिवर्सिटी नेटवर्क (ओएसयूएन) नाम की संस्था की स्थापना की और उस पर 100 अरब डॉलर खर्च करने का वादा किया। इसे दुनिया की सभी यूनिवर्सिटी के लोगों के लिए स्टडी और रिसर्च का प्लैटफॉर्म बताया जाता है। हालांकि, यह कितना समावेशी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सोरोस ने इसकी स्थापना यह कहते हुए की कि वह दुनियाभर के तानाशाहों से निपटने के लिए इसकी स्थापना कर रहे हैं।हिंदुस्तान के लोकतांत्रिक ढांचे में हस्तक्षेप करने का ऐलान करने वाले जॉर्ज सोरोस को हम आज एकसुर में जवाब दें कि लोकतांत्रिक सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके ऐसे गलत इरादों के सामने सिर नहीं झुकाएंगे।
सोरोस की नजर में ये हैं तानाशाह
सोरोस ने 2020 में यह भी बताया कि उनकी नजर में दुनिया के तानाशाह कौन-कौन हैं। उन्होंने स्विट्जरलैंड के दावोस में आयोजित वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम (WEF) में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का नाम गिनाया था। उन्होंने कहा था कि ये सभी लोकतंत्र का गला घोंटकर तानाशाही का बढ़ावा दे रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर उन्होंने कहा कि वो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। ट्रंप को उन्होंने ठग और आत्ममुग्ध जबकि पुतिन को तानाशाह शासक कहा था। सोरोस ने कहा था कि जिनपिंग चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी की परंपरा तोड़कर सत्ता की पूरी कमान अपने हाथों में ले ली है।
बीजेपी का सोरोस पर हमला
केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने कहा कि बैंक ऑफ इंडिया को बर्बाद करने वाला व्यक्ति जो आर्थिक युद्ध अपराधी घोषित है, भारतीय लोकतंत्र को तोड़ने का सपना देख रहा है। उन्होंने कहा, ‘जॉर्ज सोरोस कई देशों के खिलाफ शर्तें लगाते हैं और अब भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बाधित करने की अपनी दुर्भावना जाहिर कर चुके हैं।’ स्मृति बैंक ऑफ इंग्लैंड को तोड़ने की जो बात कर रही हैं, वह साल 1992 की घटना है। ब्रिटेन को वर्ष 1992 में ब्लैक वेडनसडे का सामना करना पड़ा था जिसमें सोरोस ने 1 अरब डॉलर कमाया था।
इंग्लैंड, फ्रांस, इटली… कई देशों में सोरोस का ‘अनैतिक व्यापार’
जॉर्ज सोरोस पर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने जिस अकूत दौलत के दम पर दुनियाभर में दखल देते हैं, वह भी अनैतिक साधनों से जुटाया है। वर्ष 2002 में फ्रांस की अदालत ने सोरोस को अनैतिक और अनधिकृत व्यापार का दोषी पाया था। इसके लिए फ्रेंच कोर्ट ने सोरोस पर 23 लाख डॉलर का जुर्माना लगाया था। जब उन्होंने फ्रांस की सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दी तो उसने भी सोरोस का जुर्माना बरकरार रखा। अमेरिका में भी उन पर बेसबॉल खेलों में पैसा लगाकर अनैतिक तरीके से पैसे बनाने का आरोप लगा। इसी तरह, इटली की फुटबॉल टीम एएस रोमा को लेकर भी सोरोस विवादों में आए। सोरोस ने अपनी मां को आत्महत्या करने में मदद की थी। इस बात का खुलासा उन्होंने ही साल 1994 में की थी।