न्यूज वेब-पोर्टल पर लगे लगाम : पत्रकारिता को कलंकित कर रहे फर्जी पत्रकार?

प्रदेश स्तर पर न्यूज पोर्टलों के लिए कड़े कानून की जरूरत, डीपीआर तय करे मापदंड

रायपुर(गंगा प्रकाश):– प्रदेश में न्यूज वेब पोर्टल की आड़ में व्लैकमेलिंग और अवैध वसूली की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है। अनाधिकृत और कुकुरमुत्ते की तरह उग आए वेब पोर्टलों पर सरकार द्वारा कारगर रोक नहीं लगाने तथा न्यूज पोर्टलों को सरकारी विज्ञापन की सुविधा मिलने से इसकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। स्वतंत्र पत्रकारिता के नाम पर वेब पोर्टल की आड़ में तथाकथित पत्रकार अवैध उगाही और ब्लैकमेलिंग के जरिए मोटी कमाई का रास्ता ढूंढते हैं। लोग इसे शार्टकट से कमाई का जरिया बनाने लगे हैं। बिलासपुर से संचालित एक न्यूज पोर्टल से संचालकों द्वारा मुंगेली के एक रेंजर से एक करोड़ से ज्यादा वसूली के मामले में कुछ दिन पहले ही एक महिला सहित दो पत्रकार पकड़े गए थे। अब राजधानी में ही एक वेबपोर्टल से जुड़े तीन पत्रकार पुलिस के हत्थे चढ़े हैं। हैरानी की बात यह है कि पकड़े गए पत्रकारों में एक ऐसा पत्रकार भी शामिल है जो देश के सबसे बड़े न्यूज चैनल का राज्य ब्यूरो रह चूका है। स्थापित तथा बड़े संस्थानों में काम कर चूके पत्रकार का अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग में संलिप्त होना पत्रकारिता के गिरते स्तर को दर्शाता है। यही नहीं कुछ संस्थाएं न्यूज वेबसाइट्स के नाम पर विदेशों से भी फंडिंग कर रहे हैं। ऐसे ही आरोप में हालहि में दिल्ली की एक न्यूज पोर्टल के दफ्तर और उससे जुड़े पत्रकारों के घरों में प्रवर्तन निदेशालय ने छापे की कार्रवाई की थी। छत्तीसगढ़ में भी लगभग 45 हजार न्यूज पोर्टल और वेबसाइट्स रजिस्टर हैं जिनमें से लगभग 100 न्यूज पोर्टल्स को राज्य सरकार के संबंधित विभाग ने शार्टलिस्ट कर इंम्पेनलिस्ट किया है। जिन्हें सरकारी विज्ञापन की पात्रता मिली हुई है। इनमें से ज्यादा तर किसी भी अखबार की वेबसाइट नहीं है और इनका आरएनआई नहीं है।

न्यूज पोर्टल की आड़ में वसूली-ब्लैकमेलिंग

प्रदेश में भाजपा सरकार से जुड़े और उपकृत अधिकारी-नेताओं ने शार्टकट कमाई का नया रास्ता निकाल लिया है। सरकार में बैठे नेताओं और मंत्रियों के चहेतों के साथ पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के मुंह लगे अधिकारी और नेताओं को विभाग में बैठे अधिकारी सरकार के जनसंपर्क फंड को लुटाने के लिए वेबपोर्टलों के रुप में नया रास्ता दे दिया है। भ्रष्ट अधिकारियों ने अपनी ऊपरी कमाई का जरिया बनाए रखने के लिए नेताओं और अधिकारियों के बेटे-बेटियों को वेबपोर्टल शुरू करने की सलाह देकर पत्रकार बनाकर बिना मेहनत के कम खर्च में लाखों कमाने का जरिया दे दिया है। इनपेनलमेंट कमेटी में शामिल लोगों को भी नहीं मालूम की वेबपोर्टल का आरएनआई में रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है। सरकारी विज्ञापन की बाध्यता भी प्रिंट मीडिया की तरह नहीं है। फिर भी मनमर्जी से वेबपोर्टल को धड़ाधड़ लाखों के विज्ञापन जारी किए जा रहे हैं। अखबार में 60-40 के रेसो के साथ प्रसार संख्या के आधार पर विज्ञापन दिया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ में उल्टा खेल चल रहा है। प्रदेश में दौड़ रहे अधिकांश वेबपोर्टल आरएनआई में न रजिस्टर्ड है और न ही गूगल एनालेस्टिक में उनकी गुणवत्ता क्राइटेरिया में है, फिर भी पोर्टलवालों को सरकार में बैठे भ्रष्ट अधिकारियों का एक वर्ग लाभ पहुंचा रहे है। परिणाम प्रदेश में कुकुरमुत्ते की तरह वेबपोर्टल मोबाइल पर चल रहे है। जिसे देखिए वही मार्केट में कम्प्यूटर आईटी इंजीनियरों और साफ्टवेयर का काम करने वालों से 5 से 15 हजार में वेबपोर्टल बनाकर सरकार से हर महीने 50 से एक लाख तक विज्ञापन लेकर सरकारी धन डकार रहे हंै।

एक नाम पर 40-50 डोमिन

न्यूज पोर्टल की प्रदेश में ऐसी दुकानदारी चल रही है कि लोगों ने इससे लाभ कमाने के एक नाम पर ही कई-कई डोमिन रजिस्टर करा ली है। इसमें से कुछ संचालन स्वयं कर रहें बाकि को दूसरे लोगों के माध्यम से संचालित करवा रहे हैं ताकि सरकार से ज्यादा विज्ञापन और अधिकारियों-ठेकेदारों से भी ज्यादा वसूली की जा सके। इस तरह के न्यूज पोर्टल संचालित करने वालों में ज्यादातर राजनीतिक दलों, सरकार और संबंधित विभाग के अधिकारियों के नजदीकी और उनसे जुड़े हुए लोग शामिल हैं। इतना ही नहीं कई अवैध गतिविधियों और कारोबारों लिप्त लोगों के साथ उद्योगपति और रियल स्टेट से जुड़े लोग भी न्यूज पोर्टल संचालित कर रहे हैं।

पत्रकारों की प्रतिष्ठा हो रही धूमिल

न्यूज पोर्टल के लिए किसी तरह की पात्रता या अनिवार्यता से संबंधित मापदंड नहीं होने से अखबार की तरह ही कोई भी व्यक्ति एक वेबसाइट बनाकर न्यूज पोर्टल संचालित कर लेता है। अखबारों-चैनलों से जुड़े पत्रकारों के साथ स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले इसे अपना माध्यम तो बना ही रहे हैं। बड़े उद्योगपति, बिल्डर, कारोबारियों के अलावा छुटभैय्ये नेता और अपराध से जुड़े लोग भी न्यूजपोर्टल चला रहे हैं। जेल में बंद अपराधी भी अपने परिजनों-गुर्गो के सहयोग से न्यूज पोर्टल चला रहे हैं। न्यूज पोर्टलों की बाढ़ से आम पत्रकारों की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो रही है। न्यूज पोर्टल चलाने वाले तथाकथित पत्रकार वास्तविक पत्रकारों को भी नहीं बख्शते और पांच-दस हजार में पत्रकार तैयार करने की बात कहकर मजाक भी उड़ाते हैं। ऐसे न्यूज पोर्टलों को सरकार और उसके संबंधित विभाग भी उपकृत कर रहा है जिससे ऐसे पचासों न्यूज पोर्टल रोज पैदा हो रहे हैं।

न्यूज पोर्टल के लिए मापदंड जरूरी

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने वेबसाइटों पर विज्ञापन के लिए एजेंसियों को सूचीबद्ध करने एवं दर तय करने की खातिर दिशानिर्देश और मानदंड तैयार तो किए हैं ताकि सरकार की ऑनलाइन पहुंच को कारगर बनाया जा सके और एक बयान भी दिया जिसमे यहां कहा गया कि दिशानिर्देशों का उद्देश्य सरकारी विज्ञापनों को रणनीतिक रूप से हर महीने सर्वाधिक विशिष्ट उपयोगकर्ताओं वाले वेबसाइटों पर डालकर उनकी दृश्यता बढ़ाना है। नियमों के अनुसार, विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) सूचीबद्ध करने के लिए भारत में निगमित कंपनियों के स्वामित्व एवं संचालन वाले वेबसाइटों के नाम पर विचार करेगा। हालांकि विदेशी कंपनियों के स्वामित्व वाली वेबसाइट को इस स्थिति में सूचीबद्ध किया जाएगा कि उन कंपनियों का शाखा कार्यालय भारत में कम से कम एक साल से पंजीकृत हो एवं संचालन कर रहा हो। पत्रकारिता हो रही कलंकित मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। व्यवस्थागत कमियों को दूर करने की पहल के साथ समाज और लोकहित में शोषितों-वंचितों और पीडि़तों के लिए आवाज उठाना पत्रकारिता का धर्म है, लेकिन आज पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है। मीडिया भी पूरी तरह से व्यवसायिक हो गई है। लोग इसका इस्तेमाल व्यक्तिगत फायदे के लिए करने लगे हैं। पत्रकार भी अब पत्रकार नहीं रहा। स्वतंत्र पत्रकारिता करने वाले जहां अखबार, न्यूज पोर्टल की आड़ में आर्थिक लाभ के रास्ते तलाशते रहते हैं वहीं बड़े-बड़े बैनर्स, अखबार और न्यूज चैनल से संबद्ध पत्रकारों को संस्थानों ने पत्रकार की जगह समाचार संकलक और लाइजनर बना दिया है। जिन्हें ये विशेषज्ञता हासिल नहीं है उनकी पत्रकारिता ही संकट में है। अब न्यूज पोर्टलों को माध्यम बनाकर कोई भी आदमी पत्रकारिता के आड़ में व्यवसाय के साथ ब्लेमेलिंग और धौंस दिखाकर वसूली जैसा कृत्य कर रहे हैं। राज्य सरकार को भी सभी वेबपोर्टल की निगरानी केे लिए कदम उठाने चाहिए। प्रदेश में भी उन्हीं न्यूज वेबपोर्टल को अनुमति मिलनी चाहिए जो किसी न किसी प्रिंट अथवा इलेक्ट्रानिक मीडिया से संबंधित हो, वहीं स्वतंत्र वेबपोर्टल के लिए आरएनआई अथवा डीपीआर में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अवैध गतिविधियों में संलिप्त वेबपोर्टल को ब्लैकलिस्ट कर उसका रजिस्ट्रेशन निलंबित करने के अलावा ब्लैकलिस्ट कर उसकी सरकारी सुविधा व मान्यता खत्म करने की कार्रवाई की जानी चाहिए।

न्यूज पोर्टल वैध है और इससे जुड़े संवाददाता भी पत्रकार हैं : एक तार्किक विश्लेषण

आज के तकनिकी युग में हर क्षेत्र में क्रांति आयी। जिसमे पत्रकारिता भी पीछे नहीं रही। पत्रकारों को अपने विचारों व अभिव्यक्ति को व्यक्त करने के लिए एक नया क्रन्तिकारी मंच मिला जिसे आज हम “न्यूज पोर्टल” के नाम से जानते है. दुनिया भर में न्यूज पोर्टल की शुरुआत बड़ी तेजी से हुई. न्यूज पोर्टल्स की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए कई पुराने अख़बार व टीवी चैनलों ने भी अपना-अपना वेब पोर्टल शुरू किया। लेकिन जहाँ एक ओर न्यूज पोर्टल से पत्रकारिता में एक नयी क्रांति आ रही है वहीँ दूसरी ओर कई बार ये खबर फैलती रहती है कि न्यूज पोर्टल फ़र्ज़ी है और न्यूज पोर्टल पर काम करने वाले संवाददाताओं /कार्य कर्ताओं को सरकार पत्रकार नहीं मानती।इस तरह कि भ्रामक और झूठी खबरे आये दिन सोशल मीडिया में देखने को मिल जाती है।इतना ही नहीं कई सरकारी अधिकारी भी इन ख़बरों पर सही कि मुहर लगा बैठते है।ये जो लोग या अधिकारी गण ये मानते और कहते हैं कि न्यूज पोर्टल फ़र्ज़ी है और इनमे कार्यरत संवाददाताओं को सरकार पत्रकार नहीं मानती है, दर असल इन लोगों/ अधिकारियों को न ही पत्रकारिता के विषय में कोई ज्ञान है और न ही पत्रकारिता के संघर्ष की जानकारी।ये पहली बार नहीं है जब किसी ऐसे मंच को मौन रखने कि साजिश रची जा रही है जिसका सम्बन्ध पत्रकारिता से हो।

न्यूज पोर्टल्स फर्जी है या नहीं ये जानने से पहले एक नजर डालते है भारत में पत्रकारिता के इतिहास प

भारत में पत्रकारिता का इतिहास बहुत ही उपेक्षा पूर्ण रहा है।अगर हम इतिहास को देखें तो पाएंगे कि अंग्रेजी शाशकों ने पत्रकारों को दबाने का बहुत प्रयास किया है।अंग्रेजी हुक्मरानो ने पत्रकारों कि आवाज दबाने के लिए भारतीय प्रेस पर तरह तरह के एक्ट पारित किये। अंग्रेजों को सबसे ज्यादा तकलीफ हिंदी में प्रकाशित समाचार पत्रों से होती थी।अंग्रेजी शाशन काल में प्रेस पर क़ानूनी नियंत्रण की शुरुआत सबसे पहले तब हुई जब लॉर्ड वेलेजली ने प्रेस नियंत्रण अधिनियम द्धारा सभी समाचार- पत्रों पर नियंत्रण (सेंसर) लगा दिया।इसे प्रेस नियंत्रण अधिनियम,1799 के नाम से जाना जाता है।

हिंदुस्तानी पत्रकारिता पर पूर्ण प्रतिबंध

 गवर्नर जरनल जॉन एडम्स ने सन् 1823 में भारतीय प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया,इस नियम के अनुसार मुद्रक तथा प्रकाशक को मुद्रणालय स्थापना करने के लिए लाइसेंस लेना पड़ता था , कि वजह से राजा राम मोहन रॉय को अपनी पत्रिका ‘मिरात-उल-अख़बार’ का प्रकाशन बंद करना पड़ा।

 मुंह बून्द करने वाला अधिनियम या वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट,1878: लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू किया इस एक्ट के प्रमुख प्रावधान थे:..

>प्रत्येक प्रेस को यह लिखित वचन देना होगा कि वह (अंग्रेजी) सरकार के विरुद्ध कोई लेख नहीं छापेगा.

>प्रत्येक मुद्रक तथा प्रकाशक के लिए जमानत राशि जमा करना आवश्यक होगा।

इस संबंध में जिला मजिस्ट्रेट का निर्णय अंतिम होगा तथा उसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकेगी।

ये कुछ ऐसे एक्ट थे जिनका मुख्य उद्देश्य भारतीय प्रेस को पूर्ण रूप से मौन करना था।

आजादी के बाद सन 1966 में भारतीय प्रेस परिषद् कि स्थापना हुई।जिसका उद्देश्य भारत में प्रेस के मानकों को बनाए रखने और सुधार की स्वतंत्रता का संरक्षण है।

 लेकिन भारत में एमर्जेन्सी के दौरान एक बार फिर से पत्रकारिता को काले दिन देखने पड़े।सरकारी तानाशाही कि वजह से बहुत से समाचारों पत्रों ने दम तोड़ दिया।फ़िलहाल किसी तरह से पत्रकारिता ने खुद को संभाला और तमाम सरकारी और कॉरपरेट दबाव के बावजूद भी पत्रकारों ने पत्रकारिता के वजूद को जिन्दा रखा।इस दौरान टीवी का युग आया और फिर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का जन्म हुआ।शुरुआत में इलेक्ट्रिक मीडिया को भी तरह तरह कि उपेक्षाएँ सहनी पड़ीं।लेकिन धीरे धीरे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने प्रिंट मीडिया को पीछे छोड़ दिया।

इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आने से भारत में जहाँ एक ओर नई क्रांति आई वहीँ दूसरी ओर निजी /व्यवसाई कंपनियों के हस्तक्षेप से पत्रकारिता का स्तर भी गिरा।इस सम्बन्ध में प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष रहे जस्टिस काटजू ने कहा था कि भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पत्रकारिता कि गरिमा को भूल बैठा है।उसे जन सरोकार से कोई मतलब नहीं बल्कि वो कॉपोरेट और सरकारी प्रचारक कि तरह काम कर रहा है।यह वह समय था जब भारतीय पत्रकारिता वाकई बुरे दौर से गुजर रही थी।इस समय हम एक नए युग में आ गए थे, जिसे आज हम इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी का युग के नाम से जानते है।

इस तकनिकी युग के आने के कुछ ही वर्षों के बाद न्यूज पोर्टल्स कि शुरुआत हुई। न्यूज पोर्टल्स ने काफी हद तक पत्रकारिता से सरकारी व् कॉर्पोरेट दबाव का कम किया।

क्यों उड़ती है न्यूज पोर्टल्स के सम्बन्ध में अफवाहें?

सरकारी व् कॉपोरेट दबाव न होने कि वजह से न्यूज पोर्टल के संवादाता व संपादक स्वतंत्र हो कर सरकारी व् निजी कंपनियों कि खामियों को लिखते व् दिखाते है।जिस वजह से न्यूज पोर्टल्स इन लोगों को नहीं भाता इसलिए समय समय पर न्यूज पोर्टल के सम्बन्ध में फ़र्ज़ी अफवाहें उड़ाई जाती है।कौन उड़ाते है फर्जी अफवाह  न्यूज पोर्टल्स के आने से सबसे ज्यादा नुकसान चाटुकार पत्रकारों व् भृष्ट सरकारी कर्मचारियों और अवैध व्यापार करने वालों को हुआ है।पहले भृष्टाचार, किसी विभाग कि कमी या फिर किसी अवैध व्यापार कि जानकारी किसी कलमचोर टाइप के पत्रकार को हो जाती थी तो वो खबर लिखने से पहले उस अधिकारी/व्यापारी से बात करके मोटी रकम वसूल लेते थे और खबर गायब कर जाते थे।लेकिन न्यूज पोर्टल के समय में इन दलाल पत्रकारों व् भृष्ट अधिकारीयों कि दाल नहीं गल पाती है। क्यूंकि कलमचोर पत्रकारों कि सेटिंग होने से पहले ही वह खबर न्यूज पोर्टल/सोशल मीडिया में वायरल हो जाती है।

सरकार ने कभी नहीं कहा कि न्यूज पोर्टल का संवाददाता पत्रकार नहीं है वैसे तो कई बार देखने को मिलता है बहुत से अधिकारी गण भी ये फरमान जारी कर देतें है कि न्यूज पोर्टल को सरकार फ़र्ज़ी मानती है।कई जनपदों में सूचना अधिकारी भी यही राग अलापते मिल जायेंगे. लेकिन यदि इनसे मांग कि जाय कि “क्या इनके पास सरकार/ मिनिस्ट्री ऑफ़ इनफार्मेशन एंड ब्रॉडकास्टिंग, प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया या प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी किया गया ऐसा कोई भी आदेश है जिसमे ये कहा गया हो कि सरकार न्यूज पोर्टल के संवाददाता को पत्रकार नहीं मानती.” तो ये न तो आपको कोई लिखित आदेश दिखा पाएंगे और न ही कोई आई कार्ड।

न्यूज पोर्टल्स पूर्णत: वैध?

 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए स्वतंत्रता के मूल अंधिकार को प्रेस की स्वतंत्रता के समकक्ष माना गया है।भारतीय नागरिक को न्यूज पोर्टल शुरू और संचालित करने कि स्वतंत्रता है।सरकार जल्दी ही लागू करने वाली है न्यूज पोर्टल हेतु नियमावली। न्यूज पोर्टल के पत्रकार भी असली पत्रकार हैं।    न्यूज पोर्टल कि बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए 4 अप्रैल 2018 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि देश में चलने वाले टीवी चैनल और अखबारों के लिए नियम कानून बने हुए हैं और यदि वह इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं तो उससे निपटने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) जैसी संस्थाएं भी हैं, लेकिन ऑनलाइन मीडिया के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।इसे ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन मीडिया के लिए नियामक ढांचा बनाने के लिए एक समिति का गठन किया जायेगा.दस लोगों की इस कमेटी के संयोजक सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव होंगे।इस कमेटी में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और एनबीए के सदस्य भी शामिल होंगे। गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के सचिव भी इस कमेटी का हिस्सा होंगे।अब जब दस लोगों कि एक टीम निर्धारित कि गयी जो न्यूज पोर्टल को रेगुलेट करने सम्बन्धी नियम बना रहे तो इस नियम के बनने के पहले ही यदि कोई यह फरमान जारी करे कि न्यूज पोर्टल फर्जी है तो या तो वह अलप ज्ञानी है या तो सरकार से ऊपर,सरकार ने न्यूज पोर्टल्स को कभी भी फ़र्ज़ी नहीं माना यही कारण है कि दस सद्द्स्यीय समिति न्यूज पोर्टल हेतु नियमावली बना रही है।

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