पारंपरिक त्यौहार भोजली काफी धूमधाम से ग्राम खैरझिटी में मनाया गया

गरियाबंद/फिंगेश्वर(गंगा प्रकाश)। भोजली पर्व हमारी विशिष्ट संस्कृति है। भोजली मित्रता का अभूतपूर्व उत्सव है। छत्तीसगढ़ में मित्रता के अटूट बंधन के लिए भोजली बदने की परंपरा रही है। इस तरह भेजली केवल एक पारंपरिक अनुष्ठान नहीं रह जाता अपितु लोगों के दिल में बस जाता है। जब हमारी संस्कृति बचेगी तभी हम बचेंगे। ग्राम खैरझिटी में भोजली उत्साह पर सरपंच सियाराम धु्रव ने उक्त बात कही। फिंगेश्वर विकासखंड के ग्राम पंचायत खैरझिटी में आदिवासी धु्रव समाज द्वारा 8 दिवसीय भोजली पर्व धूमधाम से मनाया गया। सावन माह के सप्तमी तिथि से भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष यानी रक्षाबंधन के दूसरे दिन भोजली का विसर्जन आज 31 अगस्त को रायपुर के बुढ़ा तालाब में किया गया। भोजली पर्व छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसमें कुम्हार से लेकर बैगा सबकी भागीदारी होती है। मान्यता है कि इस दिन से नए जीवन की शुरूआत की जाती है। भोजली लोकगीत लोगों में नया उत्साह भर देता है। देश के कई राज्यों में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। भोजली छोटी-छोटी टोकरियों में मिटटी डालकर गेंहू के दाने बोए जाते है। भोजली नई फसल का प्रतीक होती है। भोजली का अर्थ भूमि में जल से है। छत्तीसगढ़ में भोजली कान में लगाकर मित्र बनाए जाते है और जीवन भर मित्रता कर एक दूसरे के साथ निभाते है। वहीं महिलाएं इसकी पूजा करती है। भोजली दाई देवी के सम्मान में भोजली सेवा गीत गाए जाते है। सामूहिक स्वर में गाए जाने वाले भोजली गीत को छत्तीसगढ़ी लोकगीत भी कहते है। किसान खेतों में इस समय धान की बुआई, प्रारंभिक निदाई का काम समापन की ओर होता है। आदिवासी लड़किया अच्छी वर्षा व भरपूर भंडारा देने वाली फसल की कामना करते हुए फसल के प्रतीकात्मक रूप से भोजली का आयोजन करती है। इसे रक्षाबंधन की दूसरे दिन विसर्जन करते है। नदी, तालाब और सागर में भोजली को विसर्जित करते हुए अच्छी फसल की कामना की जाती है। धु्रव समाज द्वारा भोजली विसर्जन कार्यक्रम की टोली खैरझिटी से रायपुर के बुढ़ातालाब इंडोर स्टेडियम गई है। इस कार्यक्रम में सरपंच सियाराम धु्रव, पाली सर्कल के अध्यक्ष कोमन धु्रव, इंद्रमण धु्रव, चंद्रशेखर धु्रव, तीजूराम धु्रव, बहरराम धु्रव, रूमेश धु्रव, हरिशंकर धु्रव, दयालूराम, संतोष कुमार धु्रव, निर्मला धु्रव, देवांतीन धु्रव, प्रेमीन धु्रव, कौशिल्या धु्रव, बिदा धु्रव, खागेश्वरी धु्रव, मालती धु्रव, रत्ना धु्रव, लुमेश्वरी धु्रव आदि उपस्थित थे।

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