

भारत में महात्मा गाँधी के बाद अगर कोई समाज सेवी पैदा हुए तो वे थे जय प्रकाश नारायण । जिनको कभी भी किसी पद का कोई लोभ नहीं रहा। चाहे वो केंद्रीय मंत्री मंडल हो या १९७७ का इंदिरा के खिलाफ क्रांति। इनका केवल एक ही उद्देश्य रहता था की किस प्रकार से गरीब पिछड़े, दलित हो या शोषित उनको न्याय मिले।
जब इंदिरा गाँधी ने इमरजेंसी लगाया था तो उन्होंने ऐसा विरोध किया की उनकी सत्ता चली गयी। लेकिन राजनीतिक में उनका परिवार नहीं होने के कारण उचित सम्मान नहीं मिला। यहाँ तक की उनके आंदोलन से जन्मे नेता भी उनको सही सम्मान नहीं दिला सके।
जय प्रकाश नारायण का नाम सुनते ही जून 1975 की उनका भाषण याद आ जाता है। जब जून, 1975 को अपने प्रसिद्ध भाषण में जयप्रकाश ने कहा था कि “भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रान्ति लाना आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकतीं, क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति-’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक है।” पांच जून, 1975 की विशाल सभा में जे. पी. ने पहली बार ‘सम्पूर्ण क्रान्ति’ के दो शब्दों का उच्चारण किया।
लोकनायक के बेमिसाल राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा पहलू यह है कि उन्हें सत्ता का मोह नहीं था, शायद यही कारण है कि नेहरू की कोशिश के बावजूद वह उनके मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. वह सत्ता में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना चाहते थे।
आज के समय में नितीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, ज्योति बासु, राम बिलाश पासवान, एवं अन्य नेतागण जय प्रकाश नारायण को अपना आदर्श मानते है। ये लोग जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति के नारा जो इंदिरा गाँधी के खिलाफ सत्ता छोड़ो जनता जाग चुकी है। उत्तर भारत में बहुत ही नेता इस आंदोलन से पैदा हुए लेकिन असल में बहुत ही काम लोग सत्ता पाने के बाद उनके आदर्श को भूल गए । उनका साफ कहना था कि इंदिरा सरकार को गिरना ही होगा। यह क्रांति उन्होंने बिहार और भारत में फैले भ्रष्टाचार की वजह से शुरू की। बिहार में लगी चिंगारी कब पूरे भारत में फैल गई पता ही नहीं चला। जयप्रकाश जी की निगाह में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार भ्रष्ट व अलोकतांत्रिक होती जा रही थी।
1975 में निचली अदालत में गांधी पर चुनावों में भ्रष्टाचार का आरोप साबित हो गया और जयप्रकाश ने उनके इस्तीफ़े की मांग की। इसके बदले में इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर दी और जय प्रकाश नारायण तथा अन्य विपक्षी नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया।
जयप्रकाश नारायण का नाम जब भी जुबां पर आता है तो यादों में रामलीला मैदान की वह तस्वीर उभरती है जब पुलिस जयप्रकाश को पकड़ कर ले जाती है और वह हाथ ऊपर उठाकर लोगों को क्रांति आगे बढ़ाए रखने की अपील करते हैंI जयप्रकाश नारायण ही वह शख्स थे जिनको गुरू मानकर आज के अधिकतर नेताओं ने मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा की है। लालू यादव, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, जार्ज फर्नांडिस, सुशील कुमार मोदी जैसे तमाम नेता कभी जयप्रकाश नारायण के चेले माने जाते थे लेकिन सत्ता के लोभ ने उन्हें जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से बिलकुल अलग कर दिया।
यह जयप्रकाश नारायण ही थे जिन्होंने उस समय की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी से लोहा लेने की ठानी और उनके शासन को हिला भी दिया। लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आज उनके आदर्शों की उनकी ही पार्टी में कोई पूछ नहीं है। सभी जानते हैं अगर इतिहास में जयप्रकाश नारायण नाम का इंसान नहीं होता तो भारतीय जनता पार्टी का कोई भविष्य ही नहीं होता।
जय प्रकाश नारायण की हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।
दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से अधिक लोगों ने जब जय प्रकाश नारायण की गिरफ्तारी के खिलाफ हुंकार भरी थी तब आकाश में सिर्फ उनकी ही आवाज सुनाई देती थी। उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह “दिनकर” ने कहा था “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”
जनवरी 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और लोकनायक के “संपूर्ण क्रांति आदोलन” के चलते देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी। इसके बाद भी जेपी का सपना पूरा नहीं हुआ। इस क्रांति का प्रभाव न केवल देश में, बल्कि दुनिया के तमाम छोटे देशों पर भी पड़ा था। वर्ष 1977 में हुआ चुनाव ऐसा था जिसमें नेता पीछे थे और जनता आगे थी। यह जेपी के करिश्माई नेतृत्व का ही असर था।
जय प्रकाश नारायण का जन्म एक कायस्थ परिवार में 11 अक्टूबर, 1902 को बिहार में सारन के सिताबदियारा में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री देवकी बाबू श्रीवास्तव था, माता ‘फूलरानी देवी’ थीं। 1920 में जय प्रकाश का विवाह ‘प्रभा’ नामक लड़की से हुआ। प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं। उन्होंने ही अपने पति जयप्रकाश नारायण को गांधी जी से मिलने की सलाह दी थी।
पटना से शुरुआती पढ़ाई करने के बाद वह शिक्षा के लिए अमेरिका भी गए, हालांकि उनके मन में भारत को आजाद देखने की लौ जल रही थी। यही वजह रही कि वह स्वदेश लौटे और स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय हुए।
अमेरिका से पढ़ाई करने के बाद जेपी 1929 में स्वदेश लौटे। उस वक्त वह घोर मार्क्सवादी हुआ करते थे। वह सशस्त्र क्रांति के जरिए अंग्रेजी सत्ता को भारत से बेदखल करना चाहते थे, हालांकि बाद में बापू और नेहरू से मिलने एवं आजादी की लड़ाई में भाग लेने पर उनके इस दृष्टिकोण में बदलाव आया।
नेहरू के कहने पर जेपी कांग्रेस के साथ जुड़े, हालांकि आजादी के बाद वह आचार्य विनोबाभा भावे से प्रभावित हुए और उनके ‘सर्वोदय आंदोलन’ से जुड़े। उन्होंने लंबे वक्त के लिए ग्रामीण भारत में इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। उन्होंने आचार्य भावे के भूदान के आह्वान का पूरा समर्थन किया।
जयप्रकाश नारायण ने 1950 के दशक में ‘राज्यव्यवस्था की पुनर्रचना’ नामक एक पुस्तक लिखी। कहा जाता है कि इसी पुस्तक को आधार बनाकर नेहरू ने ‘मेहता आयोग’ का गठन किया। इससे लगता है कि सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात शायद सबसे पहले जेपी ने उठाई थी।
जयप्रकाश नारायण मैगसाय पुरस्कार से सम्मानित हुए और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये 1998 में लोकनायक जय प्रकाश नारायण को मरणोपरान्त भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया। जयप्रकाश नारायण ने 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में अंतिम सांस ली।