
भाजपा-कांग्रेस में जारी है आरोप-प्रत्यारोप का दौर
नई दिल्ली (गंगा प्रकाश)। झीरम घाटी नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है। इस हमले की जांच कर रही केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

झीरम घाटी नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ पुलिस को बड़ी कामयाबी मिली है। इस हमले की जांच कर रही केंद्रीय जांच एजेंसी एनआईए की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इससे एनआईए को बड़ा झटका लगा है। अब इस मामले की जांच छत्तीसगढ़ पुलिस कर सकेगी। राज्य सरकार इस मामले की जांच करा सकेगी। कोर्ट ने एनआईए की याचिका को खारिज करते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस को मामले की जांच करने की अनुमति दे दी है। कोर्ट ने कहा है हम इस मामले में दखल नहीं देंगे।इस फैसले के बाद सीएम भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर ट्वीट कर लिखा कि ‘झीरम कांड पर माननीय सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला छत्तीसगढ़ के लिए न्याय का दरवाज़ा खोलने जैसा है। झीरम कांड दुनिया के लोकतंत्र का सबसे बड़ा राजनीतिक हत्याकांड था। इसमें हमने दिग्गज कांग्रेस नेताओं सहित 32 लोगों को खोया था। कहने को एनआईए ने इसकी जांच की, एक आयोग ने भी जांच की, लेकिन इसके पीछे के वृहत राजनीतिक षडयंत्र की जांच किसी ने नहीं की। छत्तीसगढ़ पुलिस ने जांच शुरु की तो एनआईए ने इसे रोकने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। आज रास्ता साफ़ हो गया है। अब छत्तीसगढ़ पुलिस इसकी जांच करेगी। किसने किसके साथ मिलकर क्या षडयंत्र रचा था। सब साफ हो जाएगा।
वृहद षड्यंत्र की जांच के लिए एफआईआर दर्ज हुई थी
इस मामले में राजनांदगांव के दिवंगत विधायक उदय मुदलियार के बेटे के वकील सुदीप श्रीवास्तव ने कहा कि आज सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की बेंच ने एनआईए की अपील को खारिज कर दिया है। इस मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस ने वृहद षड्यंत्र की जांच के लिए एफआईआर दर्ज की थी। मामले में एनआईए का कहना था कि चूंकि जांच हमने की है इसलिए छत्तीसगढ़ पुलिस इस जांच को नहीं कर सकती। इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार और राजनांदगांव के पूर्व विधायक उदय मुललियार के बेटे जितेंद्र मुदलियार ने थाना दरभा में आवेदन किया था। इस आधार पर पुलिस नया एफआईआर दर्ज कर मामले की चांच कर रही थी। जांच को राकने के लिए एनआईए ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। मामले में निचली अदालत से उच्चतम न्यायालय तक केस चला। सभी जगह छत्तीसगढ़ पुलिस के पक्ष में फैसला आया है। शिकायतकर्ताओं का कहना था कि इस मामले में वृहद षड्यंत्र की जांच एनआईए ने जानबूझकर नहीं की है, इसलिए दोबारा उन्हें जांच देने का सवाल ही नहीं होता। इन तर्कों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की अपील को खारिज कर दी है। अब इस मामले की जांच छत्तीसगढ़ पुलिस कर सकेगी।
‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित पक्ष को न्याय मिलेगा’?
इस मामले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर और महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जीरम नक्सली हमले की जांच के लिए छत्तीसगढ़ पुलिस को आदेश दिया है और एनआईए की आपत्ति को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि लगातार जीरम घाटी नक्सली हमले की जांच को प्रभावित करने का षड्यंत्र किया जा रहा था। भाजपा जब सरकार में थी तब जांच को प्रभावित किया और कांग्रेस की सरकार बनने के बाद इस मामले में न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया था, उसमें नए बिंदू जोड़े गए थे तब भाजपा नेता इस मामले की जांच को रोकने गए थे। एनआईए ने फाइल नहीं दिया था। आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पीड़ित पक्ष को न्याय मिलेगा। झीरम घाटी कांड के जो भी पड़यंत्रकारी हैं, वह सलाखों के पीछे जाएंगे। इस घटना की काली सच्चाई जनता के बीच उजागर होगी।

झीरम नक्सली हमले में 32 लोग हुए थे दिवंगत
नक्सलियों ने बस्तर के झीरम घाटी में 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला किया था। हमले में बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, नंद कुमार पटेल, विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार, योगेंद्र शर्मा समेत कुल 30 लोग दिवंगत हो गए थे। मामले में कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर सुरक्षा में लापरवाही बरतने और राजनीतिक षड़यंत्र रचने का आरोप लगाया था। झीरम हमला में लोकतंत्र पर बड़ा हमला था। कांग्रेस की एक पूरी पीढ़ी इस हमले में खत्म हो गई थी। 32 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
रमन ने की थी सीबीआई जांच की घोषणा
तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मामले में जांच और सुनवाई के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। छह साल बाद भी आयोग की रिपोर्ट नहीं आई है। रमन सिंह ने विधानसभा में सीबीआई जांच की घोषणा की थी, लेकिन मामले को सीबीआई को नहीं सौंपा। कांग्रेस सरकार ने जनवरी में तत्कालीन मुख्यमंत्री और गृहमंत्री को गवाह बनाने का आवेदन लगाया था, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया था। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की निगरानी में सीबीआई जांच की मांग की थी, लेकिन बीजेपी की केंद्र सरकार ने एनआईए से जांच करवा रही थी। आरोप है कि एनआईए ने जांच में कई बिंदुओं को छोड़ दिया। उसने बस्तर के तत्कालीन आइजी, एसपी और अन्य पुलिस अधिकारियों का बयान तक नहीं लिया। जब भूपेश सरकार ने एसआईटी से जांच के लिए केंद्र सरकार से एनआईए की रिपोर्ट मांगी तो केंद्र सरकार ने सहयोग नहीं किया। रिपोर्ट देने से मना कर दिया।
फिर गठित हुई थी एसआईटी
इसके बाद साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री बघेल ने दोबारा झीरम कांड की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन किया था। कांग्रेस सरकार का कहना था कि एनआइए ने जांच में जिन बिंदुओं को छोड़ दिया है। एसआइटी केवल उन विंदुओं की जांच करेगी। इस पर एसआईटी के खिलाफ नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी जिस पर सुनवाई चल रही थी।

भाजपा-कांग्रेस में जारी है आरोप-प्रत्यारोप का दौर
छत्तीसगढ़ में नई सरकार के गठन के पहले ही झीरम का जिन्न बाहर आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय के बाद अब कांग्रेस-भाजपा इस मामले पर एक-दूसरे पर हमलावर हो चुकी है। झीरम कांड पर दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने जांच प्रभावित करने के नाम पर एक-दूसरे पर आरोप लगाया है।
कांग्रेस ने कहा है कि भाजपा झीरम हत्याकांड के आपराधिक षड्यंत्र की जांच नहीं होने देना चाहती है। सुप्रीम कोर्ट ने न्याय का रास्ता दिखाया। इस पर भाजपा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं। अब राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल झीरम मामले में राजनीति छोड़कर अपनी जेब से सबूत निकालकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को सौंप दें। कोर्ट के निर्णय के बाद मंगलवार को पत्रकारवार्ता में दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे पर कई सवाल दागे।
किसे और क्यों बचाना चाहते हैं भाजपा के नेता: कांग्रेस
वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने कहा कि झीरम हत्याकांड पर भाजपा किसे और क्यों बचाना चाहती है। यह लोकतंत्र के इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक हत्याकांड था। एनआइए की जांच में कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाया। हत्याकांड का षड्यंत्र किसने रचा था।यह सिर्फ़ नक्सली हमला था या इसके पीछे राजनीतिक षड्यंत्र भी था? ऐसे कई सवाल हैं, जो कि आज तक अधूरे हैं। कांग्रेस की सरकार बनते ही पुलिस ने आपराधिक षडयंत्र की जांच शुरु की तो एनआइए ने अदालती अडंगा अटका दिया। पहले वे ट्रायल कोर्ट में गए, वहां उनकी याचिका खारिज हुई फिर हाईकोर्ट में खारिज हुई। इसके बाद एनआईए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका खारिज कर दी गई है।
इस फ़ैसले के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस 26 मई, 2020 को दर्ज दूसरे एफ़आइआर के आधार पर यह जांच कर पाएगी कि किसके कहने पर, किसे बचाने के लिए केंद्र सरकार की एजेंसी एनआइए, जांच का रास्ता रोक रही थी? वर्मा ने कहा कि हमारा सवाल है कि तत्कालीन भाजपा सरकार ने आपराधिक षड्यंत्र की जांच क्यों नहीं करवाई? आयोग बनाया तो उसके दायरे में षड्यंत्र क्यों नहीं रखा?2014 में एनआइए ने पहला चालान प्रस्तुत किया। फिर 2015 में दूसरा चालान पेश किया। इन दोनों चालान में नक्सली संगठन के प्रमुख कर्ताधर्ता गणपति और रमन्ना के नाम नहीं डाले गए। तथ्य यह है इससे पहले जांच के दौरान एनआइए ने इन दोनों नेताओं को भगोड़ा भी घोषित किया था और संपत्ति कुर्क करने की नोटिस भी निकाली थी।
अब तो झीरम के सबूत जेब से निकालें: अरुण साव
कांग्रेस आरोपों पर पलटवार करते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व सांसद अरुण साव ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अब झीरम मामले में राजनीति छोड़कर अपनी जेब से वे सबूत निकालकर राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दें, जिन्हें वे मुख्यमंत्री रहते हुए पूरे कार्यकाल में अपनी जेब में छिपाए रहे। किसी अपराध के साक्ष्य को छुपाना भी गंभीर अपराध होता है।
साव ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भूपेश बघेल ने स्वयं यह कबूल किया है कि झीरम के सबूत उनके कुर्ते की जेब में हैं। तब पांच साल मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने यह सबूत जांच एजेंसी के सुपुर्द क्यों नहीं किए? भाजपा आरंभ से स्पष्ट तौर पर यह मत प्रकट करती रही है कि झीरम मामले में कांग्रेस का चरित्र संदिग्ध है। कांग्रेस झीरम पर राजनीति कर रही है।जनता को भूपेश बघेल यह भी बताएं कि झीरम हमले के चश्मदीद उनके कैबिनेट मंत्री ने क्यों इस मामले में न तो न्यायिक जांच आयोग के सामने गवाही दी और न ही जांच एजेंसी को कोई सहयोग दिया। आखिर कांग्रेस और उसकी सरकार ने झीरम का सच सामने क्यों नहीं आने दिया, इसका जवाब छत्तीसगढ़ की जनता मांग रही है।झीरम कांड के तथ्यों के मामले में कांग्रेस की रहस्यमयी चुप्पी और राजनीतिक बयानबाजी में तत्परता इसका प्रमाण है कि कांग्रेस ही इस मामले में संदिग्ध है। कांग्रेस ने झीरम मामले का राजनीतिकरण किया। सरकार चलाते हुए पांच साल तक साक्ष्य छुपाए और अंत में झीरम के दो बलिदानियों की विधवाओं को विधायक रहते हुए टिकट से वंचित किया। कांग्रेस कभी झीरम में मारे गए परिवार को न्याय नहीं मिलने देना चाहती।
जानिए झीरम घांटी हत्या कांड के बारे में
वह दिन जो हर साल अपने साथ एक भीषण खूनी संघर्ष की याद वापस लेकर आता है। देश के सबसे बड़े आंतरिक हमलाें में से एक झीरम हत्या कांड। छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में सात साल पहले हुई इस नक्सल घटना ने सबको झकझोर कर रख दिया था। 25 मई 2013 की शाम को हुए इस हमले में 32 लोग अपनी जान गंवा बैठे थे। हमले में जान गंवाने वाले ज्यादातर छत्तीसगढ़ कांग्रेस के शीर्ष नेता थे, जिनकी स्मृतियां ही आज हम सब के बीच बाकी रह गई हैं। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा माओवादी हमला था। यह हमला बस्तर जिले के दरभा इलाके के झीरम घाटी में कांग्रेस के परिवर्तन यात्रा पर हुआ था।इस हमले को कांग्रेस ने सुपारी किलिंग करार दिया था। कल पूरे राज्य में इस झीरम घाटी शहादत दिवस मनाने का ऐलान सीएम भूपेश बघेल ने किया है। हम इस घटना की सातवीं बरसी मनाने जा रहे हैं, लेकिन आज भी इस जघन्य हत्याकांड की कई सच्चाईयों से पर्दा नहीं उठ पाया है। इस घटना को अंजाम देने के पीछे आखिर क्या वजह थी, यह आज तक पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है। आइए जानते हैं इस भयावह हमले की पूरी कहानी-
25 मई 2013, करीब 5 बजे का समय था। भीषण गर्मी के बीच लोग अपने घरों और कार्यालयों में पंखे-कूलर की हवा के नीचे बैठे थे। इसी बीच अचानक टीवी पर एक खबर आई। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के झीरम घाटी में करीब डेढ़ घंटे पहले एक माओवादी हमला हुआ था। यूं तो यहां आज भी रोजाना माओवादी हिंसा होती है, लेकिन यह घटना उन घटनाओं से कहीं अधिक खौफनाक और भीषण थी। प्रारंभिक खबर आने के करीब 15 मिनट बाद अपडेट खबर आई। इस खबर में बताया गया कि माओवादी हमले में बस्तर टाइगर के नाम से मशहूर कांग्रेसी नेता महेन्द्र कर्मा और नंद कुमार पटेल सहित कई लोग मारे गए हैं। विद्याचरण शुक्ल की हालत गंभीर है।इसके बाद धीरे-धीरे खबर का दायरा बढ़ने लगा। रात करीब 10 बजे जब यह जानकारी आई कि हमले में कुल 32 लोग मारे गए हैं, तो लोगों को इस खबर पर भरोसा कर पाना मुश्किल हो रहा था। एक-एक कर घटना में मारे गए लोगों के नाम सामने आने लगे। इनमें वे नाम थे जो उस वक्त छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के पहली कतार के नेता थे। यह देश के इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा नक्सल हमला था। आज इस हमले की छठवीं बरसी मनाई जा रही है।घटना को भले ही 7 साल हो गए, लेकिन इसके जख्म आज भी पूरी तरह ताजा हैं। घटना की जांच लंबे समय तक अटकी रही और फिर राज्य में कांग्रेस की सरकार के सत्ता में आने के बाद इसकी जांच फाइल दोबारा खोली गई है। इस घटना में कुछ नक्सली लीडर के नाम सामने आए, जिनपर एनआईए ने भी नगद इनाम की घोषणा की है, लेकिन इनमें से कुछ को छोडकर अधिकांश नक्सली पकड़ में नहीं आए हैं।
नवंबर 2013 में राज्य में विधानसभा चुनाव होने थे। आपसी अंतरकलह से उबर कर एकजुटता दिखाते हुए कांग्रेस राज्य में परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी। इस यात्रा में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस के सभी वरिष्ठ नेता शामिल थे। अलग-अलग इलाकों से होते हुए कांग्रेस की यह यात्रा नक्सलियों के गढ़ से गुजर रही थी। 25 मई को प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल, दिग्गज कांग्रेसी विद्याचरण, शुक्ल, बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा और बहुत सारे नेताओं के साथ यात्रा पर थे।सुकमा जिले में एक सभा के बाद सभी नेता सुरक्षा दस्ते के साथ काफिला लेकर अगले पड़ाव के लिए निकले थे। काफिले में सबसे आगे नंदकुमार पटेल, उनके बेटे दिनेश पटेल और कवासी लखमा (वर्तमान में राज्य में आबकारी मंत्री) सुरक्षा गार्ड्स के साथ आगे बढ़ रहे थे। पीछे की गाड़ी में मलकीत सिंह गैदू और बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा सहित कुछ अन्य नेता सवार थे। इस गाड़ी के पीछे बस्तर के तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी उदय मुदलियार कुछ अन्य नेताओं के साथ चल रहे थे।इस काफिले में सबसे पीछे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण शुक्ल एनएसयूआई के दो नेताओं देवेन्द्र यादव (अब भिलाई से विधायक) व निखिल कुमार के साथ थे। इस पूरे काफिले में करीब 50 लोग शामिल थे। दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर यह काफिला घने जंगलों से घिरी झीरम घाटी पर पहुंचा। अचानक दोनों से ओर से बंदूक से चली गोलियों की आवाज गूंजने लगी। काफिले में सबसे आगे चल रही गाड़ी को नक्सलियों ने पहला निशाना बनाया।इस घटना में पीसीसी के वर्तमान अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और उनके बेटे दिनेश की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद लगातार गोलियों की आवाज झीरम घाटी में गूंजने लगी। करीब एक घंटे तक गोलियां बरसती रहीं। मौत का तांडव जारी था। एक के बाद एक काफिले की गाड़ियां इस गोलीबारी की जद में आती रहीं। घाटी के दोनों ओर ऊंची पहाड़ियों में चढ़कर सैकड़ों नक्सली अंधाधुंध गोलियां बरसा रहे थे। करीब 1 घंटे बाद गोलीबारी बंद हो गई। अब तक मीडिया के जरिये यह खबर पूरे देश में फैल चुकी थी। सुरक्षा बल मौके पर पहुंचे तो दूर-दूर तक सिर्फ लाशें बिखरी पड़ी थीं।एक ओर वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विद्याचरण घायल अवस्था में पड़े थे। महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल, दिनेश पटेल, उदय मुदलियार सहित कई बड़े नेता हमले में मारे जा चुके थे। टीवी और न्यूज पोर्टल पर उस भयावह मंजर की तस्वीरें अब नजर आने लगी थीं। रात बजे तक पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ पड़ी। घटना की पूरी कहानी अब स्पष्ट हो चुकी थी। किसी ने अंदाजा भी नहीं लगाया था कि छत्तीसगढ़ में माओवादी इतनी बड़ी घटना को अंजाम दे सकते हैं, लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई थी।घायल विद्याचरण कोमा में रहने के बाद करीब 2 माह बाद इस दुनिया से चले गए। घटना में कई नेताओं के साथ ही कुल 32 लोग मारे गए थे। इस रक्त रंजिश घटना को आज 10 साल से अधिक हो चुके हैं। मामले की जांच आज भी चल रही है, लेकिन अब तक पूरे षणयंत्र का खुलासा नहीं हो पाया है। इस घटनाक्रम के अंदर की कहानी आज भी अनसुलझी ही है।