पराली जलाने की प्रक्रिया को कानून बनाकर नहीं बल्कि किसानों को पैरा गौठान में पहुंचाकर दान करने की प्रक्रिया को सहज एवं व्यवहारिक बनाकर की रोका जा सकता है।

गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। खरीफ फसल की तेजी के साथ चल रही कटाई के साथ मिजाई की जा रही है। इससे धान का पैरा इकट्ठा होना शुरू हो गया है। कृषक कटाई मिजाई उपरांत रबी फसल लगाने पैरे को ठिकानें लगाने में लग जावेंगे। प्रशासन को चाहिए कि पैरा कलेक्शन के लिए कठोर नियम अथवा पैरे को गौठानों में पहुंचाने कोई सुविधाजनक स्थिति बनावें। अन्यथा लाख कहने के बाद भी खेतों में पराली जलाने को रोक पाना सफल नहीं होगा। खरीफ धान फसल की कटाई पूरी होने को है। धान फसल कटाई के बाद खेत में बचे अवशेषों को जलाने की घटनाएं घटित होती रहती है जिससे वातावरण में जहरीली गैस जैसे-गीथेन, कार्बन मोनो अक्साइड, नाइट्रॉक्साईड के फैलने से प्रदूषण होता है जो मानव जीवन के साथ साथ पशु पक्षियों के लिए हानिकारक है। साथ ही फसल अवशेष जलाने से मृदा में उपलब्ध सूक्ष्म जीव के नष्ट हो जाने से मृदा की उर्वरता क्षमता कम हो जाती है और मित्र जीव जैसे-केंचुए, मकड़ी इत्यादि भी नष्ट हो जाते है। उप संचालक कृषि ने बताया कि फसल अवशेष जलाने संबंधी प्रकरण शासन के संज्ञान में आता है तो अर्थदण्ड का प्रावधान किया गया है। इसके तहत 2 एकड़ कृषि भूमि धारक किसानों पर 2 हजार 500 रू., 2 से 5 एकड़ तक भूमिधारक किसानों पर 5 हजार रू. जुर्माना तथा 5 एकड़ से अधिक भूमिधारक किसानों पर 15 हजार रू. जुर्माना एवं सजा का प्रावधान है। उप संचालक ने किसानों से कहा है कि वे फसल अवशेष को नहीं जलाये, बल्कि उचित प्रबंधन करें। इसके लिए उन्होंने सुझाव भी दिया है। एक सुझाव किसानों द्वारा पैरा को गौठानों में पहुंचाकर पशुचारे के लिए दान देने का भी है। परंतु पिछले वर्षो में इस प्रक्रिया से कृषक स्वयं भारी खर्च कर पैरा गौठानों में पहुंचाने रूचि नहीं लेते है। इसके लिए शासन स्तर पर इंतजाम करना होगा। साथ ही एक सुझाव अनुसार फसल कटाई के बाद खेत में पड़े हुए फसल अवशेष के साथ ही जुताई कर हल्की सिंचाई पानी का छिड़काव करने के बाद ट्राइकोडर्मा का छिड़काव करने से फसल कटाई के उपरांत खेत में पडे़ हुए अवशेष के साथ ही गहरी जुताई कर पानी भरने से फसल अवशेष खाद में परिवर्तित हो जाते है जिससे अगली फसल के लिए मुख्य एवं सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होंगे। भूमि को फसल अवशेष से प्राप्त होने वाले कार्बनिक तत्व जो कि मृदा में मिलकर खाद के रूप में परिवर्तित होकर फसलों को मिलती है जिससे मृदा संगठन एवं संरचना में सुधार के साथ ही भूमि की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है। धान के पैरे को यूरिया से उपचार कर पशुओं के सुपाच्य एवं पौष्टिक चारे के रूप में उपयोग किया जा सकता है। उप संचालक ने किसान भाईयों से अपील की है कि पराली न जलायें एवं पर्यावरण को सुरक्षित रखने में सहयोग प्रदान करें। कृषकों को अपना मिजाई का पैरा गौठानों में पहुंचाकर दान देने की प्रक्रिया को सहज एवं व्यवहारिक बनाकर ही पराली जलाने जैसे घोर पर्यावरण फैलाने वाले कृत्य को रोका जा सकता है। छत्तीसगढ़ के किसानों के हित में यही है कि वे अपनी फसल प्राथमिकताओं पर नए सिरे से गौर करें। राज्य में रबी उत्पादन में धान उत्पादन पर अधिक जोर देने का साफ साफ असर भूजल स्तर पर दिखने लगा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट की यह चिंता भी वाजिब है कि यदि यहां की जमीन में नमी की मात्रा कमजोर पड़ती गई तो इसका नतीजा भयानक हो सकता है। न्यायमूर्ति एस के कॉल ने तो सरकार के साथ साथ अन्य राज्य सरकारों को भी यह सलाह दी है कि वे अपने अपने क्षेत्र के किसानों को पर्यावरण एवं जल की स्थानीय उपलब्धता के अनुरूप फसलें चुनने को प्रेरित करें। केन्द्र राज्य सरकारों और राजनीतिक दलों को अब एक ऐसी संस्कृति विकसित करनी ही होगी जिसमें नागरिकों के स्वास्थ्य की कीमत पर राजनीति की कोई गुंजाइश न हो।

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