अगहन बृहस्पति में माता लक्ष्मी की उपासना से मिलती है  सुख, समृद्धि, शांति

मैनपुर (गंगा प्रकाश)। अगहन माह में इस वर्ष पांच गुरूवार पड़ है, जो 30 नवंबर7,14,21 दिसंबर को है। गुरुवार के दिन हर घर में मां लक्ष्मी की स्थापना कर विधि-विधान से पूजन द्वार को दीपों से रोशन किया जाता है। अगहन मास में गुरुवार को लक्ष्मी जी की व्रत पूजा से सुख, संपत्ति और ऐश्वर्य प्राप्ति के साथ मन की इच्छा पूरी होती है।

पदमपुराण में यह व्रत गृहस्तजनों के लिए बताया गया है। इस पूजा को पति पत्नी मिलकर कर सकते हैं। अगर किसी कारण पूजा में बाधा आए तो औरों से पूजा करवा लेनी चाहिए पर खुद उपवास अवश्य करें। उस गुरुवार को गिनती में न लें। अगर किसी दूसरी पूजा का उपवास गुरुवार को आए तो भी यह पूजा की जा सकती है। दिन या रात में भी पूजा की जा सकती है। दिन में उपवास करें तथा रात में पूजा के बाद भोजन किया जा सकता है। इस व्रत कथा

प्रति गुरुवार को माता को अलग-अलग व्यंजनों चढ़ता  है भोग भक्ति अनुसार हो सकती है पूजा

को सुनने के लिए अपने आस पड़ोस के लोगों को, रिश्तेदारो को तथा घर के लोगों को बुलाएं व्रत कथा को पढ़ते समय शान्ति तथा एकाग्रता रखें। गुरुवार को सुबह ब्रह्म मुहूर्त से ही माता लक्ष्मी की भक्तिभाव के साथ पूजा-अर्चना की जाती है, इसके बाद उन्हें विशेष प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि अगहन महीने के गुरुवारी पूजा में माता लक्ष्मी को प्रत्येक गुरुवार को अलग-अलग व्यंजनों का भोग लगाने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। ताँबे या पीतल के लोटे को पानी से

हर कोई अपनी शक्ति और भक्ति से पूजा कर सकते हैं। एक दिन पूर्व ही घर को गोबर से लेप कर ले या फिर गीले कपड़े से पोछ लें। इसके बाद एक ऊँचे पीढे या चौकी पर या छोटे मेज पर बीच में थोड़े गेहूँ या चावल रख का एक साफ सुथरे

भर कर चावल या गेहूँ पर रखें, पानी में सुपारी, कुछ पैसे और दुब (दूर्वा घास) डाले। ऊपर से लोटे में चारों तरफ पाँच तरह के पेड़ के पांच या सात पत्ते डाल कर बीचों बीच एक नारियल रखें, उस नारियल पर बाजार में उपलब्ध देवी के मुखोटे या चहरे को बांध या चिपका दें और लोटे पर हल्दी – कुमकुम लगाएं और साथ ही उस लोटे के गले में लोटे के हिसाब से लहंगा बाँध दे और नारियल के ऊपर एक छोटी चुनरी

भी चढ़ा देवें साथ ही देवी की प्रतिमा या फोटो को पूर्व दिशा में मुँह करके या उत्तर दिशा में मुँह करके स्थापना करनी चाहिए। इस व्रत कथा की पुस्तक में जो फोटो हैं उसे भी सामने रखें तथा पूजा प्रारंभ करें। अगहन माँस के शेष गुरुवार के

दिन आठ सुहागनों या कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें सम्मान के साथ पीढा या आसान पर बिठाकर श्री महालक्ष्मी का रूप समझ कर हल्दी कुमकुम लगाएं। पूजा की समाप्ति पर फल प्रसाद वितरण किया जाता है तथा इस कथा की एक प्रति उन्हें दी जाती है। केवल खी ही नहीं अपितु पुरष भी यह पूजा कर सकते हैं। वे सुहागन या कुमारिका को आमंत्रित कर उन्हें हाथ में हल्दी कुंकुं प्रदान करें तथा व्रत कथा की एक प्रति देकर उन्हें प्रणाम करें। पुरुषों को भी इस व्रत कथा को पढ़ना चाहिए। जिस दिन व्रत हो, उपवास करे, दूध, फलाहार करें। खाली पेट न रहे, रात को भोजन से पहले देवी को भोग लगाएं

एवं परिवार के साथ भोजन करें। इस तरह से प्रथम गुरुवार को अचल में अगहन बृहस्पति में माता लक्ष्मी की उपासना घर-घर में की जा रही है।

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