
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ अपने स्वरूप में आये बीस से बाईस वर्ष से भी ज्यादा का समय समय हो रहा है किन्तु आज भी हमारे मूल भाषा है को जो पहचान मिलनी चाहिए वे अभी तक नही मिल पाया है आज भी छत्तीसगढ़ी भाषा अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी पीछे हैं छत्तीसगढ़ राजभाषा स्थापना दिवस के अवसर पर जिले के साहित्यकारों ने अपनी बात प्रमुखता के साथ रखते हुए छत्तीसगढ़ी भाषा में ज्यादा से ज्यादा काम काज हो छत्तीसगढ़ी भाषा को उनकी मूल पहचान मिले नगर के युवा साहित्यकार एवं मानस व्याख्याकार थानू राम निषाद ने कहा किसी भी व्यक्ति की पहचान उसकी बोली जाने वाली भाषा से होती हैं हम कह सकते हैं व्यक्तित्व की पहचान उसकी बोली जाने वाली भाषा से होती हैं हमारे समाज में बहुतायत रूप में छत्तीसगढ़ी भाषा का उपयोग किया जाता है किंतु जब कार्यालयों में कामकाज की बात आती हैं तो हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का उपयोग किया जाता है छत्तीसगढ़ी भाषा तभी समृद्ध एवं मजबूत होगा जब इसका उपयोग सभी विभागों में अन्य भाषाओं के समान के साथ दर्जा आपसी बोलचाल में कुछ वर्गों के बीच बोला जाता है ।देवरी के युवा साहित्यकार एवं शिक्षक वेदप्रकाश नागरची ने कहा छत्तीसगढ़ी में जो कहा जाता है कि गोठ पोठ होना चाहिए अर्थात अपनी भाषा से प्रेम होना चाहिए भाषा पर सर्वाधिकार हो हम अपनी बात अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा में दमदारी के साथ किसी भी देश राष्ट्र राज्य व्यक्ति विशेष या स्थान के समक्ष अभिव्यक्त कर सके। छत्तीसगढ़ में आजतक केवल साहित्यिक पत्र पत्रिकाओ व सांस्कृतिक मंचो पर ही छत्तीसगढ़ी भाषा को स्थान मिला है किंतु सरकार को इस पर विचार करना चाहिए कि केवल व्यवहारिक ही नही बल्कि सभी जगह जैसे स्वास्थ्य शिक्षा न्याय व प्रारम्भिक व उच्च शिक्षा आदि प्रदान किये जाने वाले संस्थानों में छत्तीसगढ़ी भाषा की शिक्षा प्रदान किया जाना चाहिए है। फिंगेश्वर के युवा साहित्यकार कुमेश किरणबेर ने कहा भाषा ही विचार अभिव्यक्ति का मूल है चाहे सांकेतिक भाषा हो व्यवहारिक या मातृभाषा चूंकि छत्तीसगढ़ की अस्मिता पहचान यंहा कि भाषा छत्तीसगढ़ी से है। इसलिए छत्तीसगढ़ी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल कर राजकाज की भाषा बनाकर छत्तीसगढ़ी व छत्तीसगढ़ के मान सम्मान को उच्च शीर्ष पर स्थापित किया जा सकता है। जो हमारे राज्य व राष्ट्र के लिए विशेष उपलब्धि होगी।बहरापाल के युवा साहित्यकार डॉ मोती लाल साहू ने कहा छत्तीसगढ़ मंह भी हिन्दी व अंग्रेजी भाषा की तरह समान अधिकार मिले ताकि हम हमारी भाषा की अस्मिता को जीवित रख सके।