लैलूंगा विधानसभा चुनाव असंतुष्टों ने किया जमकर भीतर घात

चंद्रशेखर जायसवाल

रायगढ़(गंगा प्रकाश) विधानसभा चुनाव 2023 लैलूंगा विधानसभा के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। यूं तो लैलूंगा विधानसभा एक समय कांग्रेस, फिर भाजपा का गढ़ रहा। परंतु छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद यहां की जनता ने हर बार विधायक बदला। लगभग 2 लाख 3 हजार मतदाताओं वाले इस आदिवासी बाहुल्य विधानसभा में इस बार लगभग 85% मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।मतदान समाप्त हुए लगभग 10 दिन से ज्यादा का समय हो चुका है। मतदाता जहां शांत हैं, वहीं राजनीतिक दल और उनके कार्यकर्ता किसी भी प्रकार के दावा करने से बच रहे हैं। कारण भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में अंदर खाने हुए जमकर भीतर घात का कितना प्रभाव जनता पर पड़ा है इसका अनुमान लगाना सहज नहीं है। लैलूंगा विधानसभा में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के ही बीच होता है। इस बार दोनों ही दलों ने पूरे चुनाव के दौरान विरोधियों से ज्यादा भीतर घातीयों के चुनौतियों से निपटने में अपनी उर्जा लगाया। भाजपा में इस बात से नाराजगी थी कि पिछले 20 वर्षों से लैलूंगा विधानसभा में एक ही परिवार का प्रभुत्व रहा है। वहीं कांग्रेस में टिकट न मिलने से नाराज वर्तमान और पूर्व दिग्गज , नेताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी का जमकर विरोध किया।कांग्रेस का चुनाव प्रबंधन पूरे समय अपने घर (कांग्रेस) को ही संभालने में ठीक लगा। पूर्व विधायक प्रेम सिंह सिदार की बहू श्रीमती विद्यावती सिदार के टिकट की घोषणा होते ही कांग्रेस में खलबली मच गई।विधायक चक्रधर सिंह सिदार के बेहद करीबी सरपंच संघ लैलूंगा के अध्यक्ष महेंद्र सिदार कांग्रेस को हराने चुनाव मैदान में कूद पड़े। कांग्रेस टिकट के बड़े दावेदार लैलूंगा विधायक चक्रधर सिंह सिदार, पूर्व विधायक हृदय राम राठिया और लघु वनोपज संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र सिदार ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मिलकर विधानसभा क्षेत्र लैलूंगा के कांग्रेस संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और विधानसभा के तीनों ब्लॉक अध्यक्ष ठंडाराम बेहरा लैलूंगा, बिहारी लाल पटेल तमनार एवं रामलाल पटेल रायगढ़ परिसीमन के साथ जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष ओम सागर पटेल विधानसभा युकां अध्यक्ष रुपेश पटेल को हटाने की मांग कर डाली। आरोप लगाए कि इनकी गलत रिपोर्टिंग के वजह से जिला महिला कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती विद्यावती सिदार को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया। कांग्रेस के असंतुष्ट स्थानीय छत्रपों के भारी विरोध के बीच जैसे तैसे कांग्रेस ने चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत किया। प्रचार अभियान जैसे ही जो पकड़ना शुरू किया। प्रदेश संगठन ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष ओमसागर पटेल और लैलूंगा ब्लॉक कांग्रेस के अध्यक्ष ठंडा राम बेहरा को लैलूंगा चुनाव संचालन से हटाकर रायगढ़ प्रचार प्रभारी बना दिया। इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल तो टूटा ही, वही पार्टी के प्रति समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भय, निराशा, अनिश्चय और उहापोह की स्थिति निर्मित हो गई। कांग्रेस कार्यकर्ता तय नहीं कर पा रहे थे कि वह कांग्रेस पार्टी के प्रति समर्पित रहे या व्यक्ति के प्रति अपने निष्ठा रखें।ऐसे में कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती विद्यावती सिदार के मजबूत प्रतिरोध और एआईसीसी के सचिव और छत्तीसगढ़ सह प्रभारी सप्तगिरि उल्का के हस्तक्षेप से न केवल वरिष्ठ कांग्रेसियों की लैलूंगा चुनाव संचालन में वापसी हुई बल्कि असंतुष्ट स्थानीय क्षत्रपो पर भी लगाम लगाया गया।सप्तगिरि उल्का और केंद्रीय पर्यवेक्षक लेफ्टिनेंट कर्नल रिटायर्ड एन राजन एक्का के लैलूंगा आगमन ने कार्यकर्ताओं में फिर से जोश और उत्साह भर दिया। हालांकि केंद्रीय नेतृत्व के चेतावनियों और समझाइश का ज्यादा असर टिकट वितरण से नाराज स्थानीय क्षत्रपों पर पड़ता दिखाई नहीं दिया, असंतुष्ट कांग्रेसियों ने जमकर पार्टी प्रत्याशी का विरोध किया। नाराज कांग्रेसी नेताओं के समर्थन से भाजपा ने भी “अभी नहीं तो कभी नहीं” मानकर अंतिम तीन-चार दिनों में जमकर जोर लगाया। भाजपा द्वारा अंतिम समय में किए गए मजबूत प्रयासों और सटीक रणनीतियां ने एक समय एक तरफा दिख रहे इस चुनाव को रोमांचक मोड़ पर पहुंचा दिया। भाजपा के जीत का पूरा दारोमदार ईस बात पर टिका है कि टिकट न मिलने से नाराज का कांग्रेसी नेताओं के भीतर घात का जनता पर कितना प्रभाव पड़ा है। भाजपा रणनीतिकारों के सटीक रणनीति तथा कांग्रेस के अंदर उपजे नाराजगी और भीतर घात के भरोसे भाजपा लैलूंगा सीट जीत के प्रति आसान्वित है। वहीं कांग्रेसी नए चेहरे और भूपेश सरकार की योजनाओं के बूते इस चुनाव वैतरणी पार करना चाहती है। कांग्रेसी रणनीतिकार पूरे चुनाव के दौरान अपनों से ही उलझे रहे। भाजपा के विरुद्ध चुनाव लड़ने का उन्हें अवसर ही नहीं मिल पाया। शायद यही वजह है कि पूरा चुनाव बेहद शांतिपूर्ण तरीके और बिना किसी तनावपूर्ण स्थिति के निपट गया। अगर यह कहा जाए कि यह चुनाव कांग्रेस विरुद्ध कांग्रेस या जनता विरुद्ध भाजपा का रहा तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। 3 दिसंबर यह तय करेगा की क्षेत्र में कांग्रेस के स्थानीय क्षत्रपों का प्रभाव आज भी बरकरार है या जनता ने उन्हें नकार कर कांग्रेस प्रत्याशी विद्यावती सिदार को अपना समर्थन दिया है।

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