
रायपुर(गंगा प्रकाश)।निवर्तमान भूपेश सरकार की भ्रष्ट सरकार के समय से छत्तीसगढ़ राज्य का वन विभाग भारत देश का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार का केन्द्र बना हुआ है, जहाँ वन विभाग के अधिकारियों के सबसे अधिक मामले सामने आ रहे है जिन्हें ऊपर से ही पूरा संरक्षण मिला हुआ है, फ़िर “सैय्या भये कोतवाल तो अब डर काहे का?” छत्तीसगढ़ वन विभाग में अधिकारी तो छोटी मछलियाँ रही है जो पदस्थापना की वफ़ादारी के एवज में सरकारी पैसो को भ्रष्ट तरीके से अपने आका तक पहुंचाने का काम करते रहें, जिस तरह से महाराष्ट्र में छगन भुजबल ने भ्रष्टाचार किया था जिन्हे जेल जाना पड़ा था उसी तरह छत्तीसगढ़ में भी कई छगनभुजबल है जिनके भ्रष्टाचार की देर-सबेर जाँच के दायरे में आने ही वाली है। भूपेश सरकार के समय ये पॉवर में थे जी भरके सत्ता का खूब मज़े ले रहे थे और छत्तीसगढ़ की जनता की गाढ़ी कमाई को दोनों हाथो से लूट रहे थे जिस दिन पाप का घड़ा भरेगा मुँह छिपाने के लिए जेल में ही जगह मिलने वाली है जैसा कि निवर्तमान मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की निज सहायक सचिव और छत्तीसगढ की निवर्तमान सुपर सीएम सौम्या चौरसिया आज अपने भ्रष्ट कु कृत्यों के चलते जेल की हवा खा रही हैं।वैसे भी जंगल विभाग के अधिकारियों के पुराने पापों की जाँच भी अभी होनी बाकि है क्योकि सबूत तो दस्तावेजों में है देर सबेर न्यायपालिका जरूर न्याय करेगा, अब छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय जॉंच एजेंसियों पर भरोसा करना बे – मानी होगा क्योकि यहाँ तो सर से पाँव तक सब के सब एक ही थैले के चट्टे-बट्टे नज़र आते है अब राज्य स्तरीय जाँच करने के स्थान पर सी.बी.आई.जाँच कराने की आवश्यकता है | फिर देखिए कैसे बड़ी मछलियाँ जाल में फंसती है ? वैसे भी एक अयोग्य और नकारे व्यक्ति से क्या उम्मीद की जा सकती है ?वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियो के खिलाफ इतने आरोप और प्रकरण लंबित होने के बाद भी कोई कार्यवाही का नहीं होना कई संदेहो को जन्म देता है की इन भ्रष्टाचारों के पीछे कौन है ? जनता देख भी रही है और समझ भी रही है, अब छत्तीसगढ़ की जनता में भूपेश की भ्रष्ट सरकार को उखाड़कर फेक दिया हैं।अब देखना होगा की मोदी की गारंटी में इन भ्रष्टाचारियों पर जांच की आंच आएगी या इन्ही ही पोषित किया जाएगा ऐ एक बड़ा सवाल हैं?
वन विभाग तो पहले भी भ्रष्टाचार के लिए बदनाम था पर हाल ही में बड़े बड़े अधिकारियों का सोशल मीडिया में जो खबरें आ रही हैं। लगता हैं मानो विभाग में वसूली के अलावा कुछ काम नहीं हो रहा हैं। संजय शुक्ला के पीसीसीएफ बनने के बाद ज़रूर विभाग में कुछ बदलाव आया हैं, पर राकेश चतुर्वेदी के चार साल में विभाग की जो हालत हुई उससे ऊभर पाना अब मुश्किल हैं। जब से केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ वन विभाग को कैम्पा मद में 5,700 करोड़ का गिफ़्ट दिया, तबसे राकेश चतुर्वेदी और श्रीनिवास राव का खुल्लम खुल्ला खेल चालू हो गया। पीसीसीएफ का 3.25 % तो कैम्पा सीईओ का 2 % फ़िक्स हो गया। समय समय पर विभाग में उच्च अधिकारियों को प्रतिशत की खबरें आती रही हैं। कभी अधिकारी द्वारा रेंजर
को बुला के वसूली तो कभी ठेकेदारों से खुलआम वसूली की खबरें आती रही हैं। विभाग में कुछ ख़ास ठेकेदारों को ही काम देने की खबरें भी आती रही हैं।
ट्रान्सफर पोस्टिंग का तो वन विभाग में नया धंधा चालू हो गया हैं। डीएफओ का रेट 25 से 50 लाख तक है। अब ये सब पर ED की नजर पड़ चुकी हैं। केंद्र सरकार के पैसों का जो बंदरबाँट हुआ हैं उसका हिसाब कई IFS को जल्द देना पड़ सकता हैं।
राकेश चतुर्वेदी, रिटायर्ड पीसीसीएफ
हाल में 30 सितम्बर को राकेश चतुर्वेदी पीसीसीएफ के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। सोशल मीडिया में कई रेंजर के निलम्बन से बहाली के लिए रिश्वत लेते हुए की खबरें चल रही हैं जिसमें देखा जा सकता हैं राकेश चतुर्वेदी नोटों का बंडल बटोर रहे हैं। इन
रेंजर की हाल ही में बड़े बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में विधानसभा के सदन में निलम्बन की घोषणा हुई थी। पर राकेश चतुर्वेदी द्वारा अपने विदाई के दिन ही बहाली कर दिया गया।मरवाही और बिलासपुर वनमंडल में भ्रष्टाचार के इतने बड़े मामले थे जो
कि विधानसभा में उठाया गया और इन रेंजरो की निलम्बन की घोषणा हुई पर 3 महीनो में ही इनको पीसीसीएफ ने अपने विदाई के ही दिन बहाल कर दिया।मंत्री तक से इसके लिए पर्मिशन नहीं लेना समझा। इससे पहले चतुर्वेदी राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुए थे आरा मिल कांड से। तब वो रायपुर के सीएफ थे और मुख्य आरोपी भी। सभी डीएफओ से आरा मिल के फ़र्ज़ी इन्स्पेक्शन दिखा के शासन को करोड़ों का चूना लगाया।इसके वजह से चतुर्वेदी का लगभग 15 साल तक प्रमोशन रुका रहा।बाद में राजनीतिक रसूख़ के चलते राज्य सरकार से क्लीयर हो गए।जबकि इसी केस में फसे हेमंत पांडेय आज तक फ़से हैं और उनका करोड़ों का वसूली आदेश निकला हुआ हैं।जब रेंजर तक को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया तो उच्च अधिकारी कैसे उसी केस में बरी हो गए।
जेआर नायक, सीसीएफ रायपुर- सीसीएफ
रायपुर का भी वीडियो सोशल मीडिया में लगातार वाइरल हुआ था।किसी ठेकेदार का पेमेंट नायक ने रोक कर रखा हैं और ठेकेदार बार बार उनके ऑफ़िस जाकर पेमेंट कर देने की गुहार लगा रहा है। पर नायक पहले पैसे जमा करने की बात कर रहे हैं। उसके बाद ही पेमेंट देने की बात कर रहे हैं।चूल्हा काण्ड में इनका नाम उछला था। आश्चर्य की बात हैं अभी तक इस बेशरम अधिकारी पर वनमंत्री ने कोई कार्यवाही नहीं की है।
राजू अगासिमनि, सीसीएफ कांकेर
सीसीएफ कांकेर और उनका स्टेनो किसी ठेकेदार से काम के बदले पैसे लेते हुए कैमरा में क़ैद हुए थे। इसका वीडियो सोशल मीडिया में वाइरल हुआ था। कुछ अख़बारों ने ही प्रमुखता से इस मुद्दे को उठाया था। बावजूद इसके अब तक शासन ने इन पर कोई कार्यवाही नहीं की है।
श्रीनिवास राव (IFS) कैम्पा, सीईओ
सभी जानते हैं वन विभाग की पूरी फ़ंडिंग अभी कैम्पा मद से ही होता है। केंद्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ वन विभाग को 5700 करोड़ दिया गया था। इस कैम्पा के पद पर 04 साल से एक ही अधिकारी का बैठे रहना संदेहास्पद हैं। बीजेपी के सांसद और वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव द्वारा संसद में छत्तीसगढ़ कैम्पा के 4 सालो के कामों की जाँच की माँग की गयी। सूत्रों के अनुसार लैंटाना उन्मूलन में 80% तक का एडजेस्टमेंट हो रही हैं।ये मुद्दा विधानसभा में भी उठाया गाय था। पिछले वर्ष
कैम्पा के फंड से पट्रोलिंग गाड़ियों के जगह लक्जरी गाड़ियाँ सभी वनमंडलो में ख़रीदी गयी वो भी बिना माँगपत्र के। इस मुद्दे को पिछले साल अख़बारों ने उठाया भी था और विधानसभा में प्रश्न भी लगा।पर क़ोरोना के चलते मामला दब गया। सोशल
मीडिया में हाल ही में खबरें वाइरल हो रही थी किये अपने गृहग्राम हैदराबाद में आलीशान घर बना रहे हैं। इसके अलावा पीसीसीएफ बनने के लिए बड़ी पेशकश किए थे जबकि इनके ऊपर 07 सीनियर थे। राष्ट्र प्रसिद्ध आरामिल कांड के आरोपी थे।धमतरी डीएफओ रहते आरा मिल के बिना इन्स्पेक्शन किए फ़र्ज़ी वाउचर बना के शासन को करोड़ों का चूना लगाने का आरोप लगा था। बाद में अपने राजनीतिक रसूख़ के चलते आरोप पत्र नसतिबद्ध करवा लिया।
श्रीनिवास का 25 करोड़ का घर और 10 करोड़ की पोस्टिंग,सबसे बड़ा लुटेरा अधिकारी।
कैम्पा में भ्रष्टाचार का एक नमूना मरवाही वनमंडल के कामों की सीसीएफ के जाँच प्रतिवेदन से पता चल जाता हैं कि कैसे श्रीनिवास राव के दलाल डीएफओं राकेश मिश्रा फ़र्ज़ीवाड़ा किए हैं? ये मुद्दा विधानसभा में भी उठाया गया था? पिछले वर्ष कैम्पा के फंड से पट्रोलिंग गाड़ियों के जगह लक्जरी गाड़ियाँ सभी वनमंडलो में ख़रीदी गयी वो भी बिना माँगपत्र के? कैम्पा मद से बोलेरो जैसी गाड़ी ख़रीदी जाती हैं जिससे जंगल में वनकर्मी निरीक्षण कर सकते हैं? पर श्रीनिवास राव ने पेट्रोलिंग गाड़ी के जगह सभी अधिकारियों के लिए लक्जरी स्कोर्पियो ख़रीद लिया? और ये ख़रीदी वनमंडलो ने नहीं बल्कि खुद कैम्पा के बॉस ने अपने कार्यालय से सीधे ख़रीदा? सूत्रों से जानकारी मिली हैं कि श्रीनिवास राव ने एजेन्सी से डील करके गाड़ियों में कुछ सामान कम करवा के कमीशन लिया और 35 गाड़ियाँ सीधे ख़रीद लिया? इस मुद्दे को पीछले साल अख़बारों ने उठाया भी था और विधानसभा में प्रश्न भी लगा।पर क़ोरोना के चलते मामला दब गया।सोशल मीडिया में हाल ही में खबरें वाइरल हो रही थी कि ये अपने गृहग्राम हैदराबाद में 25 करोड़ का आलीशान घर बना रहे हैं।छत्तीसगढ़ का पैसा लूट के आंध्र प्रदेश में इन्वेस्ट कर रहे हैं? इसके अलावा पीसीसीएफ बनने के लिए 10 करोड़ का पेशकस किए थे जबकि इनके ऊपर 7 सीनियर थे।पर तकनीकी अर्चन और बदनामी के डर से नेताओ ने संजय शुक्ला को पीसीसीएफ बना दिया? पर श्रीनिवास राव उनके मई में सेवनिवृत्ति के बाद पीसीसीएफ बनाए जाने की ख़बर हैं? खबरें आ रही हैं कि इनका ईडी और इंकम टैक्स में लम्बी चौड़ी शिकायत हो चुकी हैं? हैदराबाद में मनी लॉंडरिंग के पुख़्ता ख़बर मिली हैं? शिकायत इनके विभाग के उच्च अधिकारी ही करवाए हैं? परिणामस्वरूप श्रीनिवास राव आजकल हैदराबाद के चक्कर लगा रहा हैं और अपने काले करतूतों को ठिकाने लगा रहे हैं? ऐसे भ्रष्ट और काली करतूत वाले अधिकारी विभाग को ख़राब कर देते हैं? राकेश चतुर्वेदी इसका सबसे बड़ा प्रमाण हैं? श्रीनिवास राव राष्ट्रप्रसिद्ध आरामिल कांड के आरोपी थे? धमतरी डीएफओ रहते आरा मिल के बिना इन्स्पेक्शन किए फ़र्ज़ी वाउचर बना के शासन को करोड़ों का चूना लगाने का आरोप लगा था? बाद में अपने राजनीतिक रसूख़ के चलते आरोप पत्र नसतिबद्ध करवा लिया? जबकि इसी केस में डीएफओं हेमंत पांडेय आज तक फँसे हुए हैं और एक रेंजर का तो अनिवार्य सेवनिवृत्ति तक हो चुका पर श्रीनिवास राव अब तक बचा हुआ हैं? केस को फिर से खोलने की ज़रूरत हैं?
अनुराग श्रीवास्तव,सीसीएफ सरगुज़ा
31 अक्टूबर को ही ये सेवानिवृत्त हुए हैं। इनका भी रेंजर से वसूली और प्रॉपर्टी और विदेश के दौरों की खबरें सोशल मीडिया में चला था। इनके ऊपर आरोप लगा था कि ये अपने वृत्त के सभी रेंजर को बंगले बुलाकर वसूली करते हैं और पीसीसीएफ के लिए 3.25% और कैम्पा सीईओ के लिए 2% की माँग करते हैं। अनुराग श्रीवास्तव ने रायपुर के पॉश इलाक़ों में अपने और अपने पिता के नाम पर महँगे प्लॉट ख़रीद करके रखा हैं। रायपुर के धरमपुरा में 12380 वर्गफ़ुट का प्लॉट ले रखा हैं जिसका अनुमानित क़ीमत 4.5 करोड़ हैं।इसके अलावा अपने पिताजी अशोक श्रीवास्तव के नाम पर 2540 वर्गफ़ुट का प्लॉट ले रखा हैं जिसका अनुमानित क़ीमत 01 करोड़ है। साथ ही रायपुर में आलीशान बंगला बना के रखा हैं। इसके अलावा अपने परिवार
के साथ विदेश घूमने भी जाते रहते हैं। सूत्रों से जानकारी मिली हैं कि इसके लिए वो सरकार से अनुमती भी नहीं लिए थे।
छत्तीसगढ़ में कैम्पा मद की लूट की कहानी आज की नही बहुत हैं पुरानी, जिसको लेकर वर्ष 2015 में वरिष्ठ पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट में किया था याचिका दायर
छत्तीसगढ़ में भयंकर भ्रष्टाचार से संबंधित एक वरिष्ठ पत्रकार की याचिका सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार कर ली गई थी श्री नारायण सिंह चौहान (वरिष्ठ पत्रकार) द्वारा सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के कैम्पा फण्ड (Compensatory Afforestation Fund Management and Planning Authority (CAMPA)) में भ्रष्टाचार पर दाखिल जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट ने 26 जून 2014 को स्वीकार कर ली गई थी। सुप्रीम कोर्ट की लताड़ के बाद केंद्र ने 2009 में उजड़े वनों के लिए फिर से वनीकरण (Afforestation) हेतु इस कोष का गठन किया था। इस कोष में छत्तीसगढ़ सरकार को 1800 करोड़ की राशि मिलनी थी, जिसमें से 400 करोड़ उन्हें मिल चुक हैं। इस पैसे से राज्य के आईएफएस, आईएएस और मंत्रियों ने खूब ऐश किया और केंद्र के गाइडलाइन के साथ सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी खुली अवहेलना की। इसी पैसे से महँगी गाड़िया खरीदी गई और बंगले बनवाए गए। करीब 100 करोड़ की राशि इन भ्रष्टाचारियों ने सीधे सीधे मात्र कूटरचना करके डकार ली। हालांकि उक्त पत्रकार को वन माफिया और आईएफएस लॉबी ने मानसिक तौर पर खूब प्रताड़ित किया और कई बार आरटीआई में जानकारी देने से भी इंकार किया था। बावजूद इसके उन्होंने हार नहीं मानी और उनके द्वारा संकलित करीब 3000 पन्नों के दस्तावेज बताते हैं कि राज्य के एक दर्जन आईएफएस अधिकारी इस मामले में भ्रष्टाचार के सीधे दोषी हैं। पत्रकार पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की पैरवी मशहूर अधिवक्ता कॉलिन गोन्साल्वीज कर रहे थे। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि कैंपा कोष से प्राप्त राशि को राज्य सरकार, वन विभाग सचिव, वन विभाग के आलाअधिकारी और वनमंडलाधिकारी ने मिलीभगत करके राशि का उपयोग स्वंय के हित में किया है और इस खेल में वनमंडलाधिकारी एक खास कड़ी हैं। याचिका को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने तत्कालीन रमन सरकार और उनके करीबी सचिव, उच्च अधिकारियों और वनमंडलाधिकारी के खिलाफ याचिका को स्वीकार कर लिया। विवादित वनमंडलाधिकारी एक के बाद एक शासन प्रशासन के आदेशों की अवहेलना करने में माहिर माने जाते हैं। इसी क्रम में उन्होंने आरटीआई में अपनी संपत्ति का ब्यौरा देने में असहमति जताई है। लेकिन कारण क्या है? यह समझ से बाहर है। बहरहाल इतना तो वनमंडलाधिकारी को अवश्य समझ आ गया है कि अगर लिखित में कुछ भी दिया तो लेने के देने पड़ जाएंगे इसलिए अपनी गर्दन फंसने से बचाने का एक कारगर उपाय है कि असहमति जता दी जाए। मगर शासन को अपनी संपत्ति का ब्यौरा न देने से क्या अर्थ निकाला जा सकता है? अब ये तो राज्य सरकार और वन विभाग के नये मंत्री को विचार करना है और उस पर कार्रवाई की योजना बनानी है। वन विभाग के नये मंत्री के लिए सबसे बड़ी मुसीबत है रायपुर सामान्य वन मंडल कार्यालय और कैम्पा कोष का वन परिक्षेत्र कार्यालय, पंडरी में व्याप्त भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कोई उचित कदम उठाना। इन दोनों ही कार्यालयों में कई ऐसे पुराने घाघ बैठें हैं जो शासन के रूपयों का जमकर दुरूपयोग करते हैं और स्वंय की संपत्ति बनाने में जुटे हैं।
भ्रष्ट्राचार की खुली लूट की कहानी
- राज्य सरकार के अधिकारियों ने राज्य के वनों को सुधारने के लिए बने छग राज्य क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष प्रबंध एंव योजना प्राधिकरण यानि कैम्पा के जरिए से 107 करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि की हेराफेर की है।
- कैग की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार का वन विभाग क्षतिपूर्ति वनीकरण के लिए गैर वनीय भूमि उपलब्ध होने के बावजूद भी गैर वनभूमि अनुपलब्धता के प्रमाण पत्र जारी करके अपनी काली करतूतों को छुपाने की लगातार कोशिशें करता आया है। जिन स्थानों पर बिगड़े वन क्षेत्रों में क्षतिपूर्ति वनीकरण का कार्य दिखाया गया है वो भी लगभग 75 प्रतिशत से अधिक फर्जी है। कार्य कराने के नाम पर कैम्पा कोष की राशि को मिल जुल कर दुरूपयोग किया गया और कई फर्जी कार्यों, स्थानों और बिलों को प्रस्तुत किया गया है। प्रति दर के हिसाब से गलत दरों के द्वारा प्रयोग किया गया है, मार्गदर्शिका या स्वीकृति आदेश की अवहेलना की गई और अकारण की मांग जारी करके अठ्ठासी करोड़ सत्तान्वे लाख रुपये (88.97 करोड़) क्षतिपूर्ति वनीकरण की लागत, शुद्ध मूल्य व प्रतिशत और तादाद आदि का रोपण किए बिना व बिना जांच के ही राशि का भुगतान कर दिया गया तथा क्षतिपूर्ति वनीकरण में शुद्ध प्रत्याशी दर पर भी वसूली कम की गई है।
- कैग में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर, छग के प्रधान वन मुख्य संरक्षक ने बिगड़ते वनों के सुरक्षा व बहाली के लिए 400 पौधे प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पहले दो वर्षों के कार्य के लिए जिसमें सर्वेक्षण, सीमांकन, क्षेत्र की तैयारी तथा पौधों की रोपणी को शामिल किया था, प्रति हेक्टेयर पन्द्रह हज़ार एक सौ रूपए (रू.15,100/-) खर्च का निर्धारण किया गया। सह-निर्माण अक्टूबर 2010 में हुआ था लेकिन वनमंडलाधिकारी धमतरी और पूर्वी सरगुजा के पांच कक्षों में बावन हज़ार सात सौ रूपए (रू.52,700/-) प्रति हेक्टेयर खर्च किया गया यानि कि दो करोड़ सत्तावन लाख रुपये (2.57 करोड़) का अतिरिक्त खर्च किया गया और जिसकी जानकारी भी छुपाई गई। यहाँ तक कि उच्च अधिकारियों को कोष की राशि के दुरूपयोग की जानकारी हो जाने के बाद भी मामले को संज्ञान में नहीं लिया गया और न ही किसी भी प्रकार की कार्यवाही ही की गई।
- कैम्पा कोष की राशि से इको टूरिज्म पर भी जम कर खर्च किया गया है और इस अतिरिक्त खर्च के फर्जीवाड़े में सामान्य वन मंडल कार्यालय, रायपुर के वनमंडलाधिकारी और पंडरी परिक्षेत्र कार्यालय के रेंज अधिकारी दोनों की ही भागीदारी है। राज्य सरकार ने वन संरक्षक अधिनियमों की धज्जियां उड़ाते हुए 77.500 हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग ईको टूरिज्म केन्द्र के विकास में खर्च कर दिया है। जबकि मार्गदर्शिका और भारत सरकार के दिशा निर्देशों के विपरीत महंगे वाहनों की खरीदी की गई, अधोसंरचना निर्माण और ईको टूरिज्म गतिविधियों पर बारह करोड़ इकत्तीस लाख रुपये (12.31 करोड़) का अनाधिकृत व्यय किया गया है। इस मामले पर उच्चतम न्यायालय में याचिका भी दायर की गई है जिसमें सिलसिलेवार गतिविधियों की पूरी जानकारी का ब्यौरा दिया गया है।
- इसके अलावा कैम्पा कोष की राशि को मनमाने ढंग से खर्च किया जा रहा है जंगल सफारी में, और जंगल सफारी के नाम पर बेहिसाब राशि का भी दुरूपयोग सामने आया है, और इस राशि की बंदरबांट में भी सामान्य वन मंडल कार्यालय, रायपुर के वनमंडलाधिकारी अभय श्रीवास्तव, उप-वनमंडलाधिकारी एम.बी.गुप्ता और पंडरी परिक्षेत्र कार्यालय के रेंज अधिकारी सिन्हा तीनों की बराबर की भागीदारी है। छग राज्य कैम्पा कोष द्वारा जंगल सफारी के अन्तर्गत स्वीकृत कार्य करने में दो करोड़ चालीस लाख रुपये (2.40 करोड़) का अतिरिक्त अनाधिकृत व्यय भी किया गया है।
- मुरूम संग्रहण पर चालीस करोड़ बीस लाख रुपये (40.20 करोड़) अनाधिकृत व्यय किया गया है। – कैम्पा कोष के तहत विशेष प्रजाति रोपण योजना में भी पिछले कई वर्षों में रोपण होने के बावजूद गलत क्षेत्रों का चयन कर गलत प्रजातियों को चयनित किया गया और उच्चतम दर का भुगतान कर एक करोड़ सात लाख रुपये (1.07 करोड़ ) अनाधिकृत खर्च किया गया है। जबकि कैम्पा कोष और वन विभाग के अधिनियमों के विपरीत जाकर कार्य करने को दर्शा रहा है बावजूद इसके वन विभाग के उच्च अधिकारी और राज्य सरकार कार्यवाही करने की बजाए इन भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास कर रही है और कैग रिपोर्ट के आंकड़ों को भी अनदेखा करते हुए राज्य के वन मंत्री ने केंद्र से कैम्पा कोष के तहत बकाया राशि की एकमुश्त मांग की है। जबकि होना यह चाहिए कि पहले इन भ्रष्टाचारियों को उनके किए गए भ्रष्टाचार के तहत कार्रवाई होनी चाहिए उसके पश्चात ही बकाया राशि की मांग रखनी चाहिए थी।
- कैम्पा कोष के दुरुपयोग की कहानी कैम्पा के गठन वर्ष 2009 के बाद जब पहली बार कैम्पा कोष के तहत राज्य को राशि आवंटित की गई थी तब से ही वन विभाग में लूट का यह खेल खेला जा रहा है, वर्तमान स्थिति तक में कैम्पा कोष के दुरुपयोग के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो आंकड़े हैरान कर देने वाले प्राप्त होतें हैं। सबसे अधिक आश्चर्य चकित करने वाली बात यह है कि वनमंडलाधिकारी, उप-वनमंडलाधिकारी और रेंज अधिकारी तीनों ने मिलजुल कर प्रधान मुख्य वन संरक्षक को भी भ्रम में रखा और उनके पास तक कई फर्जीवाड़े को पहुंचने तक नहीं दिया गया और आंकड़ों में भी हेराफेरी कर गलत दस्तावेज उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया है जिसकी भनक प्रधान मुख्य वन संरक्षक को काफी बाद में लगी, यानी कि इन भ्रष्टाचारियों ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक तक को नहीं बख्शा है। रिकार्डों में भी हेराफेर की संभावना जताई गई है।
-सूत्रों के अनुसार
वनमंडलाधिकारी काफी ऊपर तक पहुंच रखतें हैं जिस कारण से वह इतने बड़े बड़े भ्रष्टाचार करने के बावजूद भी आज तक पूरी तरह सुरक्षित हैं और भविष्य में फिर से कई बड़े भ्रष्टाचार करने की योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जा रही है। सूत्रों की मानें तो इस बार जंगल सफारी के नाम पर जोरदार हेराफेर की जाने की संभावना है और कुछ स्थानों पर सागौन रोपड़ी में भी हेराफेर की जाएगी। सूत्रों के मुताबिक, कैम्पा कोष के मद से इस बार फिर से तीन नयी लग्ज़री वाहनों की खरीदी करने की भी योजना तैयार की गई है जिसके तहत वन मंत्री, सचिव और वनमंडलाधिकारी इन लग्जरी वाहनों का उपयोग करेंगे। वाहनों में डस्टर नामक चारपहिया वाहन का चयन किया गया है।
इस सबके बावजूद भी 2015 के जुलाई माह तक में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में कोई परिवर्तन नहीं आया था आज भी लूटमारी चालू है, रायपुर सामान्य वन मंडल के वनमंडलाधिकारी अभय श्रीवास्तव की अड़ियलबाज़ी और भर्राशाही निरंतर चालू ही है। भ्रष्टाचार की यह कहानी कोई नई नहीं है बल्कि लगभग पांच वर्षों से लगातार जारी है। वन विभाग की कमान नये मंत्री को मिलने के बाद कुछ हद तक उम्मीदें जागृत हो उठीं हैं कि वनमंडलाधिकारी, उप-वनमंडलाधिकारी, रेंज अधिकारी, क्लर्क और अन्य सभी शासकीय कर्मचारी जो इन भ्रष्टाचारों में सम्मिलित हैं उन पर जांच कराई जाए और सख्त कार्रवाई की जाए, और दोषी पाए जाने वालों से शासन की राशि की वसूली भी की जाए, सारी संपत्ति को कुर्क करने जैसी प्रक्रिया भी अपनायी जाए ताकि ऐसे भ्रष्टाचार करने वालों के लिए यह कारवाई सबक साबित हो जाए और भ्रष्टाचार करने से पहले उनके अंदर इस बात का डर पैदा हो जाए कि गर पकड़े गए तो अंजाम कैसा होगा। जिस दिन ऐसा हो गया समझ लीजिए कि भ्रष्टासुरों पर लगाम कस गई?ज्ञात हो कि भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ है भ्रष्ट आचरण। ऐसा कार्य जो अपने स्वार्थ सिद्धि की कामना के लिए समाज के नैतिक मूल्यों को ताक पर रख कर किया जाता है, भ्रष्टाचार कहलाता है। भ्रष्टाचार भारत समेत अन्य विकासशील देश में तेजी से फैलता जा रहा है। भ्रष्टाचार के लिए ज्यादातर हम देश के राजनेताओं को ज़िम्मेदार मानते हैं पर सच यह है कि देश का आम नागरिक भी भ्रष्टाचार के विभिन्न स्वरूप में भागीदार हैं। वर्तमान में कोई भी क्षेत्र भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है।गौरतलब हो कि अवैध तरीकों से धन अर्जित करना भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार में व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए देश की संपत्ति का शोषण करता है। यह देश की उन्नति के पथ पर सबसे बड़ा बाधक तत्व है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में दोष निहित होने पर देश में भ्रष्टाचार की मात्रा बढ़ जाती है।
भ्रष्टाचार क्या है?
भ्रष्टाचार एक ऐसा अनैतिक आचरण है, जिसमें व्यक्ति खुद की छोटी इच्छाओं की पूर्ति हेतु देश को संकट में डालने में तनिक भी देर नहीं करता है। देश के भ्रष्ट नेताओं द्वारा किया गया घोटाला ही भ्रष्टाचार नहीं है अपितु एक ग्वाले द्वारा दूध में पानी मिलाना भी भ्रष्टाचार का स्वरूप है।
भ्रष्टाचार के कारण-देश का लचीला कानून
भ्रष्टाचार विकासशील देश की समस्या है, यहां भ्रष्टाचार होने का प्रमुख कारण देश का लचीला कानून है। पैसे के दम पर ज्यादातर भ्रष्टाचारी बाइज्जत बरी हो जाते हैं, अपराधी को दण्ड का भय नहीं होता है।
व्यक्ति का लोभी स्वभाव
लालच और असंतुष्टि एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति को बहुत अधिक नीचे गिरने पर विवश कर देता है। व्यक्ति के मस्तिष्क में सदैव अपने धन को बढ़ाने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है।
आदत – आदत व्यक्ति के व्यक्तित्व में बहुत गहरा प्रभाव डालता है। एक मिलिट्री रिटायर्ड ऑफिसर रिटायरमेंट के बाद भी अपने ट्रेनिंग के दौरान प्राप्त किए अनुशासन को जीवन भर वहन करता है। उसी प्रकार देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से लोगों को भ्रष्टाचार की आदत पड़ गई है।
मनसा
व्यक्ति के दृढ़ निश्चय कर लेने पर कोई भी कार्य कर पाना असंभव नहीं होता वैसे ही भ्रष्टाचार होने का एक प्रमुख कारण व्यक्ति की मनसा (इच्छा) भी है।भ्रष्टाचार देश में लगा वह दीमक है जो अंदर ही अंदर देश को खोखला कर रहा है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना है जो यह दिखाता है व्यक्ति लोभ, असंतुष्टि, आदत और मनसा जैसे विकारों के वजह से कैसे मौके का फायदा उठा सकता है।अपना कार्य ईमानदारी से न करना भ्रष्टाचार है अतः ऐसा व्यक्ति भ्रष्टाचारी है। समाज में आये दिन इसके विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। भ्रष्टाचार के संदर्भ में यह कहना मुझे अनुचित नहीं लगता, वही व्यक्ति भ्रष्ट नहीं हैं जिन्हें भ्रष्टाचार करने का अवसर नहीं मिला।
भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकार :-रिश्वत की लेन-देन
सरकारी काम करने के लिए कार्यालय में चपरासी (प्यून) से लेकर उच्च अधिकारी तक आपसे पैसे लेते हैं। इस काम के लिए उन्हें सरकार से वेतन प्राप्त होता है वह वहां हमारी मदद के लिए हैं। इसके साथ ही देश के नागरिक भी अपना काम जल्दी कराने के लिए उन्हे पैसे देते हैं अतः यह भ्रष्टाचार है।
चुनाव में धांधली
देश के राजनेताओं द्वारा चुनाव में सरेआम लोगों को पैसे, ज़मीन, अनेक उपहार तथा मादक पदार्थ बांटे जाते हैं। यह चुनावी धान्धली असल में भ्रष्टाचार है।
भाई-भतीजावाद – अपने पद और शक्ति का गलत उपयोग कर लोग भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। वह अपने किसी प्रिय जन को उस पद का कार्यभार दे देते हैं जिसके वह लायक नहीं हैं। ऐसे में योग्य व्यक्ति का हक उससे छिन जाता है।
नागरिकों द्वारा टैक्स चोरी
नागरिकों द्वारा टैक्स भुगतान करने हेतु प्रत्येक देश में एक निर्धारित पैमाना तय किया गया है। पर कुछ व्यक्ति सरकार को अपने आय का सही विवरण नहीं देते और टैक्स की चोरी करते हैं। यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में अंकित है।
शिक्षा तथा खेल में घूसखोरी
शिक्षा तथा खेल के क्षेत्र में घूस लेकर लोग मेधावी व योग्य उम्मीदवार को सीटें नहीं देते बल्कि जो उन्हें घूस दे, उन्हें दे देते हैं।इसी प्रकार समाज के अन्य छोटे से बड़े क्षेत्र में भ्रष्टाचार देखा जा सकता है। जैसे राशन में मिलावट, अवैध मकान निर्माण, अस्पताल तथा स्कूल में अत्यधिक फीस आदि। यहां तक की भाषा में भी भ्रष्टाचार व्याप्त है। अजय नावरिया के शब्दों में “मुंशी प्रेमचंद्र की एक प्रसिद्ध कहानी सतगति में लेखक द्वारा कहानी के एक पात्र को दुखी चमार कहा गया है, यह आपत्तिजनक शब्द के साथ भाषा के भ्रष्ट आचरण का प्रमाण है। वहीं दूसरे पात्र को पंडित जी नाम से संबोधित किया जाता है। कहानी के पहले पात्र को “दुखी दलित” भी कहा जा सकता था।“
भ्रष्ट्राचार के परिणाम
समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार देश की उन्नति में सबसे बड़ा बाधक तत्व है। इसके वजह से गरीब और गरीब होता जा रहा है। देश में बेरोजगारी, घूसखोरी, अपराध की मात्रा में दिन-प्रतिदन वृद्धि होती जा रही है यह भ्रष्टाचार के फलस्वरूप है। किसी देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारणवश परिणाम यह है की विश्व स्तर पर देश के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए जाते हैं।