राजिम नगर पंचायत में कार्यरत 43 कर्मियो के बजाए 53 के नाम निकाली जा रही थी सैलरी,4 साल में 55 लाख का लगाया शासन को चूना।आरटीआई से हुआ खुलासा।

प्रकाश कुमार यादव
गरियाबंद/राजिम(गंगा प्रकाश )।
भ्रष्टाचार एक ऐसा जहर है जो देश,संप्रदाय,समाज और परिवार के कुछ लोगों के दिमाग में बैठ गया है। इसमें केवल छोटी सी इच्छा और अनुचित लाभ के लिए सामान्य जन के संसाधनों की बरबादी की जाती है। किसी के द्वारा अपनी ताकत और पद का गलत इस्तेमाल करना है, फिर चाहे वो सरकारी या गैर-सरकारी संस्था क्यों न हो। इसका प्रभाव व्यक्ति के विकास के साथ ही राष्ट्र पर भी पड़ रहा है और यही समाज और समुदायों के बीच असमानता का बड़ा कारण बन चूका है। साथ ही ये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक रुप से राष्ट्र के प्रगति और विकास में बाधा बनते जा रहा है।दूषित और निन्दनीय, पतित और अवैध आचरण भ्रष्टाचार है। अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा विहित कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक यथोचित रूप से पालन न करके,अवैध ढंग से, विलम्ब से तथा कार्यार्थी से रिश्वत लेकर अनुचित रूप में कार्य करना भी भ्रष्टाचार है। भ्रष्ट आचरण का अभिप्राय ऐसा आचरण और क्रियाकलाप है जो आदर्शों, मूल्यों, परम्पराओं, संवैधानिक मान्यताओं और नियम व कानूनों के अनुरूप न हो। भारतीय संविधान, भारतीय मूल्यों और आदर्शों के साथ किया जाने वाला विश्वासघात भी भ्रष्ट आचरण है। व्यापारी खाद्य वस्तु और पेट्रोलियम पदार्थों में मिलावट करते हैं, तीन रुपये की वस्तु के तेरह रुपये वसूलते हैं, यह भी भ्रष्टाचार ही है। भ्रष्टाचार सामाजिक स्वास्थ्य के लिए विकार उत्पन्न करने का कारण है।बताना लाजमी होगा कि
गरियाबंद जिले के राजिम नगर पंचायत में सैलरी घोटाले का मामला समाने आया है, यहा शासन द्वारा कुशल,अकुशल व अर्ध कुशल श्रेणी के 43 कर्मी की स्वीकृति मिली थी,प्लेसमेंट एजेंसी ने भी 43 की नियुक्ति किया,लेकिन नियम को ताक में रख कर यहा 53 लोगो को सैलरी निकाली जा रही थी।आरटीआई कार्यकर्ता विनीत परख द्वारा सूचना के अधिकार के तहत निकाले गए दस्तावेजों के आधार पर सैलरी घोटाले का आरोप लगाया है।पारख का आरोप है की नगर पंचायत द्वारा मिलीभगत कर 10 अतरिक्त लोगो के नाम सैलरी निकाला जा रहा था।2019 से अब तक सैलरी निकाली जा रही है जो 55लाख से ज्यादा होगी।इसी 55 लाख के बंदर बांट का आरोप लगाया गया है।

सीएमओ की सफाई

वहीं इस पूरे मामले में जब संबंधित अधिकारी नगर पंचायत राजिम के सीएमओ अशोक सलामे से जानने की कोशिश की गई तो उन्होंने बताया कि प्लेसमेंट एजेंसी के तहत सिर्फ 43 लोग ही कार्यरत है, लेकिन 10 सफाई कमांडो ऐसे है, जिनका पेमेंट प्लेसमेंट के साथ किया जाता है।

मंजूरी 43 की तो 53 को भुगतान क्यों, मैनवल टेंडर भी गलत

शासन द्वारा जारी नोटशिट में प्लेसमेंट में 43 लोगों को रखने का नियम है, तो दस अन्य लोगों का पेमेंट आखिर क्यों प्लेसमेंट के तहत निकाला जा रहा है, निर्देश के मुताबिक सफाई कर्मी भर्ती के लिए ई टेंडर निकाला जाना था,लेकिन यहा मेनवल टेंडर जारी कर नगर पंचायत फंसते नजर आ रही है ,इस मामले में सीएमओ नए होने के कारण अनुभव की कमी को कारण बता रहे।इतना ही नहीं पूर्व में हुई गलती को अब दिखवा लेने की बात कहते नजर आए। बहरहाल सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी ने राजिम नगर पंचायत में गड़बड़ झाला के संकेत तो दे दिए है, अब देखना ये होगा कि आरटीआई कार्यकर्ताओं के इन आरोपों की जांच कब तक हो पाती है, और जांच के बाद दोषियों पर किस तरह की कार्यवाही की जाएगी ये देखने वाली बात होगी।

निर्माण कार्य के टेंडर प्रक्रिया भी गलत

पारख ने सफाई कमांडो के ठेके में गड़बड़ी उजागर होने के साथ ही नगर पंचायत में निर्माण कार्य के टेंडर में भी गड़बड़ी का आरोप लगाकर प्रमाणित दस्तावेज दिखाए। पारख ने बताया कि 06 जून 2022 को राजिम नगर पंचायत में निर्माण कार्य का टेंडर जारी हुआ था।तय नियमों के मुताबिक किसी भी टेंडर को खोलने के लिए कम से कम 30 दिनों की अवधि दी जानी होती है। लेकिन नियम कायदों को ताक में रखकर नगर पंचायत के जिम्मेदार 17 दिनो के भीतर प्रकिया पूरी दिखा 23 नवंबर को टेंडर खोल दिया। आरटीआई कार्यकर्ता की माने तो अधिकारी अपने चहते ठेकेदारों को मन मुताबिक काम दिलवाने के लिए इस तरह से टेंडर प्रक्रिया में गड़बड़ी करते हैं।बताते चलें कि छत्तीसगढ़ समेत भारत में वैसे तो अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिसके कारण देश की प्रगति धीमी है। उनमें प्रमुख है बेरोजगारी,गरीबी,अशिक्षा,आदि लेकिन उन सबमें वर्तमान में सबसे ज्यादा यदि कोई देश के विकास को बाधित कर रहा है तो वह है भ्रष्टाचार की समस्या।आज छत्तीसगढ़ सहित इससे सारा देश संत्रस्त है। लोकतंत्र की जड़ो को खोखला करने का कार्य काफी समय से इसके द्वारा हो रहा है। और इस समस्या की हद यह है कि इसके लिए भारत के एक पूर्व प्रधानमंत्री तक को कहना पड़ गया था कि रूपये में मात्र बीस पैसे ही दिल्ली से आम जनता तक पंहुच पाता है और वास्तव में यह स्थिति सिर्फ एक दिन में ही नहीं बनी है। भारत को जैसे ही अंग्रेजी दासता से मुक्ति मिलने वाली थी उसे खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलने वाला था उसी समय सत्तालोलुप नेताओं ने देश का विभाजन कर दिया और उसी समय स्पष्ट हो गया था कि कुछ विशिष्ट वर्ग अपनी राजनैतिक भूख को शांत करने के लिए देश हित को ताक मे रखने के लिए तैयार हो गये हैं। खैर बीती ताहि बिसार दे। उस समय की बात को छोड वर्तमान स्थिति में दृष्टि डालें तो काफी भयावह मंजर सामने आता है। भ्रष्टाचार ने पूरे राष्ट्र को अपने आगोश में ले लिया है। वास्तव में भ्रष्टाचार के लिए आज सारा तंत्र जिम्मेदार है। एक आम आदमी भी किसी शासकीय कार्यालय में अपना कार्य शीध्र करवाने के लिए सामने वाले को बंद लिफाफा सहज में थमाने को तैयार है। 100 में से 80 आदमी आज इसी तरह कार्य करवाने के फिराक में है। और जब एक बार किसी को अवैध ढंग से ऐसी रकम मिलने लग जाये तो निश्चित ही उसकी तृष्णा और बढेगी और उसी का परिणाम आज सारा भारत देख रहा है।
भ्रष्टाचार में सिर्फ शासकीय कार्यालयों में लेने देनेवाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है। भ्रष्टाचार के इस तंत्र में आज सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं का ही दिखाई देता है इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब नागरिकों द्वारा चुने हुए सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा प्रदर्शित किया गया।कभी कफन घोटाला, कभी चारा- भूसा घोटाला, कभी दवा घोटाला, कभी ताबूत घोटाला तो कभी खाद घोटाला कभी खनिज घोटाला आखिर ये सब क्या इंगित करता है? ये सारे भ्रष्टाचार के एक उदाहरण मात्र हैं।बात करें भारत को भ्रष्टाचार से बचाने के लिए तो जिन लोगों को आगे आकर भ्रष्टाचार को समाप्त करने का प्रयास कर समाज को दिशा निर्देश देना चाहिए वे स्वयं ही भ्रष्ट आचरण में आकंठ डूबे दिखाई देते है।वास्तव में देश से यदि भ्रष्टाचार मिटाना है तो ने सिर्फ साफ स्वच्छ छवि के नेताओं का चयन करना होगा बल्कि लोकतंत्र के नागरिको को भी सामने आना होगा। उन्हें प्राणपण से यह प्रयत्न करना होगा कि उन्हें भ्रष्ट लोगों को समाज से न सिर्फ बहिष्कृत करना होगा बल्कि उच्चस्तर पर भी भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों का बायकॉट करना होगा। अपनी आम जरूरतों को पूरा करने एवं शीर्ध्रता से निपटाने के लिए बंद लिफाफे की प्रवृत्ति से बचना होगा। कुल मिलाकर जब तब लोकतंत्र में आम नागरिक एवं उनके नेतृत्व दोनों ही मिलकर यह नहीं चाहेंगे तब तक भ्रष्टाचार के जिन्न से बच पाना असंभव ही है।

भारत में भ्रष्टाचार को लेकर ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में देश को नंबर-1

भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है, जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। सरकार भले कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त हो, लेकिन देश में अब भी लोग अपना काम कराने के लिए रिश्वत देने को मजबूर हैं। यह खुलासा भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा भ्रष्टाचार खत्म करने के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब उनतालीस प्रतिशत लोगों को अपना काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। यह एशिया में रिश्वत की सबसे ऊंची दर है। सैंतीस प्रतिशत के साथ कंबोडिया दूसरे और तीस प्रतिशत के साथ इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है। नेपाल में यह दर बारह प्रतिशत, बांग्लादेश में चौबीस और चीन में अट्ठाईस प्रतिशत पाई गई। एशिया में सबसे ईमानदार देशों के बारे में बात करें तो मालदीव और जापान में सिर्फ दो प्रतिशत लोग मानते हैं कि उन्हें रिश्वत देनी पड़ी। तीसरे नंबर पर दक्षिण कोरिया है। इस हिसाब से घूसखोरी के मामले में भारत एशिया में अव्वल है।जिसका सारा श्रेय राजनेताओं को जाता हैं।

आर टी आई कार्यकर्ता विनीत पारख
अशोक सलामे सीएमओ नगर पंचायत राजिम

भ्रष्‍ट नौकरशाही की लगाम कौन लगाए और कैसे?

आजादी के 77 साल में भी इस देश के आम आदमी को देश की भ्रष्‍ट नौकरशाही से निजात नहीं मिल पायी है। नौकरशाही सत्ता के साथ मिलाकर दोनों हाथों से जनता को लूट रही है। नौकरशाही को लेकर आम आदमी और देश की सबसे बड़ी अदालत की चिंता एक जैसी है। दोनों चाहते हैं कि भ्रष्‍ट नौकरशाहों को जेल के सींखचों के पीछे होना चाहिए, लेकिन सवाल ये है कि भ्रष्‍ट नौकरशाही की नकेल कसे कौन?
देश की सबसे बड़ी अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना ने ब्यूरोक्रेट्स और पुलिस अफसरों के बर्ताव पर सख्त टिप्पणी की है। जस्टिस रमना ने कहा कि देश में ब्यूरोक्रेट्स और पुलिस अफसर जिस तरह का बर्ताव कर रहे हैं वह बेहद आपत्तिजनक है। सरकार के साथ मिलकर अवैध तरीके से पैसा कमाने वाले अफसरों को जेल के अंदर होना चाहिए। जब जस्टिस रमना ये बात कहते हैं तो मान लेना चाहिए कि पानी सर से ऊपर हो चुका है। जस्टिस रमना हमारे समाज के ही प्रतिनिधि हैं और उन्हें नौकरशाही के चरित्र के बारे में आम आदमी से कहीं ज्यादा जानकारी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्‍पणी छत्तीसगढ़ के निलंबित अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गुरजिंदर पाल सिंह द्वारा दायर तीन अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की। जीपी सिंह ने छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से अपने खिलाफ राजद्रोह, भ्रष्टाचार और जबरन वसूली की तीन प्रथम सूचना रिपोर्ट्स के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमना,जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान नौकरशाही के चरित्र को लेकर इतनी सख्त टिप्पणी की है। जस्टिस रमना ने कहा ‘देश में स्थिति दुखद है। जब कोई राजनीतिक दल सत्ता में होता है, तो पुलिस अधिकारी उस सरकार के साथ होते हैं। फिर जब कोई नई पार्टी सत्ता में आती है, तो सरकार उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करती है। यह एक नया चलन है, जिसे रोकने की जरूरत है।’
नौकरशाही के भ्रष्‍टाचार को लेकर जो बात आज देश के मुख्य न्यायाधीश कर रहे हैं वो ही बात इस देश की जनता दशकों से करती आ रही है, लेकिन सुनता कौन है। नौकरशाही और सत्तारूढ़ दलों के बीच की दुरभि संधि टूटती ही नहीं है, उलटे ये और मजबूत होती जा रही है। केंद्रीय सतर्कता आयोग को वर्ष 2021 में भ्रष्टाचार के संबंध में 37, 208 शिकायतें मिली हैं जो कि पिछले साल की तुलना में 113 फ़ीसदी अधिक हैं।देश में नौकरशाही का भ्रष्‍टाचार सुरसा के मुख की तरह बढ़ता ही जा रहा है। कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां के नौकरशाह दूध के धुले हों। राज्यों की तो छोड़िये केंद्र सरकार के सचिवालयों में बैठने वाले नौकरशाह तक भ्रष्ट हैं। मुझे याद आता है कि दस साल पहले सीबीआई ने तत्कालीन वित्त मंत्री जी. रामचंद्रन के निजी सचिव आर. पेरूमलस्वामी को उप आयकर आयुक्त अनुराग वर्धन से उनका तबादला करने के लिए कथित तौर पर 4 लाख रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ़्तार किया था। मज़े की बात ये है कि पेरुमलस्वामी के पास 69 लाख रुपए नक़द के अलावा 85 लाख रुपए के ब्लैंक चेक भी मिले थे। ये तथ्य कि भ्रष्ट अधिकारी चेक से रिश्वत लेने के लिए तैयार थे, बताता है कि भारतीय व्यवस्था में भ्रष्टाचार किस हद तक घर कर गया है।ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सार्वजनिक कार्यालय से काम कराने के लिए 62 फ़ीसदी लोगों को रिश्वत देने का अनुभव है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल का ही मानना है कि भारत में ट्रक मालिकों को हर साल अपना काम कराने के लिए करीब 22, 500 करोड़ रुपए की रिश्वत देनी पड़ती है। मजे की बात ये भी है कि देश के भ्रष्‍ट नौकरशाहों के नामों की सूची अक्सर जारी होती है लेकिन केंद्र सरकार के साथ ही राज्यों कि सरकारें इन सूचियों की तरफ से आँखें फेर लेती हैं। साल 1996 में उत्तर प्रदेश आईएएस एसोसिएशन के एक सर्वेक्षण में अखंड प्रताप सिंह को कथित रूप से प्रदेश का सबसे भ्रष्ट अफ़सर बताया गया था। उनकी सारी संपत्ति की जाँच कराने की माँग की गई थी, जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने नामंज़ूर कर दिया था।उत्तरप्रदेश के अखंड प्रताप सिंह इस अखंड भ्रष्ट नौकरशाही के एक प्रतिनिधि भर हैं। और उत्तर प्रदेश की सरकार इस भ्रष्‍टाचार की संरक्षक है। सरकार कोई भी हो, मुख्यमंत्री कोई भी हो लेकिन भ्रष्‍टाचार को संरक्षण देने के मामले में सब एक जैसे होते हैं। जिन अखंड प्रताप को कल्याण सिंह ने बचाया था, उन्हें राजनाथ सिंह ने भी बचाया और मायावती ने भी और मुलायम सिंह ने भी। केंद्र सरकार ने अखंड प्रताप सिंह के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच के लिए राज्य सरकार की अनुमति मांगी थी जिसे राजनाथ सिंह सरकार ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद आई मायावती सरकार ने न केवल सीबीआई जांच की एक और मांग ठुकराई बल्कि सिंह के ख़िलाफ़ विजिलेंस के मामले भी वापस ले लिए। मायावती के बाद आए मुलायम सिंह यादव एक कदम आगे गए और उन्होंने अखंड प्रताप सिंह को राज्य का मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया और बाद में केंद्र सरकार की सहमति से उन्हें सेवा विस्तार भी दिया।भ्रष्‍ट नौकरशाही में केवल आईएएस या आईपीएस ही नहीं बल्कि आईआरएस और आईएफएस अफसर तक शामिल पाए जाते हैं। दुर्भाग्य ये कि इन भ्रष्‍ट अफसरों के नामों की फेहरिस्त खुद इन अफसरों की एसोसिएशनें जारी करती हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। अव्वल तो केंद्र सरकार भ्रष्‍ट अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति नहीं देती और अगर दे भी दे तो प्रक्रिया ऐसी है कि किसी भी आरोपी अफसर को जेल नहीं होती, और खुदा न खस्ता कोई जेल भी पहुँच जाये तो उसे सजा नहीं होती और वो आराम से सारी जिंदगी जमानत पर जेल के बाहर रहकर अपना ऐश्वर्य भोग लेता है।
इस देश की नौकरशाही निर्भीक नौकरशाही है। नौकरशाही किसी से नहीं डरती। न क़ानून से न भगवान से। देश के कोई 300 ऐसे नौकरशाह हैं जो क़ानून होते हुए भी अपनी सम्पत्ति की घोषणा नहीं करते। अपवाद के रूप में सीबीआई की एक अदालत ने कुछ साल पहले 1991 बैच के एक आईएएस ऑफिसर को आय के ज्ञात स्रोतों से 3.18 करोड़ की अधिक संपत्ति रखने के जुर्म में चार साल कैद की सजा सुनाई थी। अदालत ने कहा कि भ्रष्टाचार आज इस हद तक बढ़ गया है कि इससे राष्ट्र के विकास में रुकावट पैदा हो रही है।मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रमना की ही तरह स्पेशल सीबीआई जज भूपेश कुमार ने कहा था कि- ‘आजकल करप्शन समाज में इतनी गहरी जड़ें जमा चुका है कि इससे राष्ट्र के विकास में बड़ी रुकावट पैदा हो रही है। यह गरीब विरोधी, आर्थिक विकास विरोधी और राष्ट्र विरोधी है। कुछ पब्लिक सर्वेंट्स की वजह से पूरा समाज भुगत रहा है, क्योंकि आम जनता ने करप्शन को एक सच और जीने के ढंग की तरह लेना शुरू कर दिया है। इसीलिए, करप्ट पब्लिक सर्वेंट्स को गैरवाजिब रियायत नहीं दी जानी चाहिए। उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए जिससे अन्य पब्लिक सर्वेंट्स को सबक मिले।’ लेकिन किसी को कोई सबक नहीं मिल रहा।दुर्भाग्य ये है कि अखिल भारतीय परीक्षाओं में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले नयी पीढ़ी के नौकरशाह तक भ्रष्‍टाचार के दलदल में फंसकर देश की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर रहे हैं। भ्रष्‍टाचार की ये कहानी ‘हरि अनंत, हरि कथा अनंता’ जैसी है। किस्से पढ़ते रहिये, होना जाना कुछ नहीं है। मोदी जी भी हैं लेकिन नौकरशाही को सुधारना उनके लिए भी मुमकिन नहीं है, क्योंकि वे भी आखिर इसी भ्रष्‍ट नौकरशाही के सहारे हैं।

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