
छत्तीसगढ़ की प्रयाग नगरी राजिम में नगर पंचायत में लिखी गई भ्रष्टाचार की इबारत,अधूरे कार्य और बिना मूल्यांकन, भौतिक सत्यापन के कर दिया ठेकेदार को भुगतान

आरटीआई से हो रहें है नए नए खुलासे
राजिम(गंगा प्रकाश)। भारत के प्रधानमंत्री ने 76वें स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद की दोहरी चुनौतियों के खिलाफ तीखा हमला करते हुए कहा था कि यदि समय पर इसका समाधान नहीं किया गया तो यह बड़ी चुनौती बन सकती है। साथ ही ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा ‘भ्रष्टाचार बोध सूचकांक’ 2023 (CPI) जारी किया गया हैं।
समग्र तौर पर यह सूचकांक दर्शाता है कि पिछले एक दशक में अधिकांश देशों में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की स्थिति या तो काफी हद तक स्थिर या खराब रही है। भारत ने भ्रष्टाचार बोध सूचकांक 2023 में 40 अंक प्राप्त किये।
भ्रष्टाचार सत्ता के पदों पर बैठे लोगों द्वारा किया गया असन्निष्ठ व्यवहार है। इसकी शुरुआत किसी निजी लाभ के लिये सार्वजनिक पद का उपयोग करने की प्रवृत्ति से होती है।इसके अलावा यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भ्रष्टाचार कई लोगों के लिये आदत का विषय बन गया है। यह इतनी गहराई तक व्याप्त है कि भ्रष्टाचार को अब एक सामाजिक मानदंड माना जाता है। इसलिये भ्रष्टाचार का तात्पर्य नैतिकता की विफलता से है।बताना लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ की प्रयाग नगरी राजिम की धरा को प्रशासनिक भ्रष्टासुरों कलंकित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हैं।मामला धर्म नगरी राजिम में एक बार फिर नगर पालिका का विकास कार्यों में बड़ा झोल झाल सामने आया है ।यह खुलासा नगर के आरटीआई कार्यकर्ता विनित पारख ने किया है।उन्होंने मीडिया को बताया की नगर पंचायत राजिम में भ्रष्टाचार की नई इबारत लिखी गई है ।जो परत दर परत राज खुल रहे है। श्री पारख का कहना है कि शासन के पैसों का बंदरबाट हुआ है।और यह सब दावा करते हुए बड़ा आरोप लगाया है। आरटीआई कार्यकर्ता श्री पारख के अनुसार उन्हें यहा जानकारी सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुई है। जिसमे धर्म नगरी राजिम में लगाए गए ट्यूबलर लाइट में ठेकेदार के द्वारा
राजिम के आरटीआई कार्यकर्ता विनित पारख ने नगर पंचायत राजिम पर एक और भ्रष्टाचार करने व शासन के पैसों का बंदरबाट करने का दावा करते हुए एक बड़ा आरोप लगाया है, जिसमे नगर में लगाए गए ट्यूबलर लाइट में ठेकेदार के द्वारा गुणवत्ताहीन सामग्री का प्रयोग किया गया है, और तय समय सीमा बीत जाने के बावजूद भी अभी तक कार्य अधूरा पड़ा हुआ है, साथ ही बिना गुणवत्ता जांच और भौतिक सत्यापन व मूल्यांकन किए बगैर अपने लाड़ले ठेकेदार को 30 लाख रूपये के कार्य में 26 लाख रूपये का भुगतान भी कर दिया गया है, जबकि गुणवत्ता जांच रिपोर्ट आए बिना किसी भी कार्य में कोई भुगतान नहीं करने का शासन के द्वारा निर्देश दिया गया है, जिसका कड़ाई से पालन भी करने की बात कही गई हैं। साथ ही ठेकेदार के द्वारा स्टीमेट से बाहर काम किया गया है जोकि जांच का विषय है।
वही पूरे मामले पर सीएमओ नगर पंचायत राजिम अशोक सलामे का कहना है की गुणवत्ता जांच रिपोर्ट अभी नहीं आया है और भुगतान भी ठेकेदार को किया गया है, कार्य में अनियमितता की जांच करायी जायेगी। क्योंकि
भ्रष्टाचार किसी भी देश के लिए दीमक की तरह है, जो मजबूत से मजबूत और बड़े से बड़े वृक्ष की जड़ों को चाट कर उसे ढहा देता है। भ्रष्टाचार हमारे समाज को अंदर से खोखला कर हर क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन करने की हमारी क्षमता को खत्म करता है। सभी तरह की आर्थिक गतिविधियों पर इसका असर भी व्यापक रहता है। भ्रष्टाचार को चार तरह से समझा जा सकता है।

दाल में नमक
पहला भ्रष्टाचार निम्नस्तरीय और बहुत ही आम है। इसे ‘स्पीड मनी’ भी कहा जाता है। इसमें छोटे-छोटे भुगतान कर सरकारी दफ्तरों में अपने काम तेजी से निपटवाकर आम आदमी अपना समय व पैसा बचाने की जुगत में रहता है। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति अपने वैध चेक न रोकने और पासबुक में सही समय पर एंट्री सुनिश्चित करने के लिए बैंक के रोकड़िये को मामूली भुगतान कर खुश रखता है। आदर्श रूप से प्रक्रिया और प्रणाली अंतर-संवाद से इतनी सुरक्षित होनी चाहिए कि इस तरह के भ्रष्टाचार को पनपने का मौका ही न मिले, लेकिन इस तरह की चीजें सामान्य तौर पर संभव नहीं हो पाती हैं, जिससे निम्नस्तरीय भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है। लोग इस तरह के भ्रष्टाचार को आम बोलचाल में ‘दाल में नमक’ कहते हैं। सामाजिक तौर पर इसे पूरी तरह स्वीकार भी किया जा चुका है। इसका अर्थव्यवस्था पर भी गंभीर असर नहीं पड़ता है।

कानून का उल्लंघन करने की छूट
दूसरे तरह का भ्रष्टाचार भुगतान करने वाले को कानून का उल्लंघन करने की छूट देता है। यातायात नियमों का उल्लंघन करने के दौरान पकड़े जाने पर ट्रैफिक पुलिस को दी जाने वाली घूस इसका सामान्य सा उदाहरण है। इस तरह के भ्रष्टाचार का समाज और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है। दंड या जुर्माने से कम घूस देकर छूट जाने पर कानून का उल्लंघन करने वालों के हौसले बढ़ जाते हैं। उनका व्यवहार आक्रामक होता जाता है। यातायात के मामले में इस तरह के भ्रष्टाचार के नतीजे ट्रैफिक जाम, सड़क पर मारपीट-झगड़ा और दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी के तौर पर सामने आता है। कई बार गंभीर मामलों में भी पुलिस या मामले से जुड़े अधिकारियों को घूस देकर आरोपी बच निकलते हैं। कई बार नेताओं से दबाव डलवाकर भी आरोपी साफ बरी हो जाता है।
संगठनों और यूनियनों का भ्रष्टाचार
कुछ लोग एकजुट होकर जरूरतमंदों से ज्यादा शुल्क या लागत वसूलते हैं, जिससे सेवाओं या वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है। नतीजतन कुछ उपभोक्ता उन वस्तुओं और सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। यह तीसरे प्रकार का भ्रष्टाचार है। उत्पादक संगठन और मजदूर यूनियन इस भ्रष्टाचार में लिप्त रहती हैं। इससे निश्चित तौर पर अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचती है और जनकल्याण पर नकारात्मक असर पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं का संगठन या दवा निर्माता इसका उदाहरण हो सकते हैं। स्वास्थ्य सेवा प्रदाता आम आदमी से अस्पताल में भर्ती होने की भारी कीमत वसूलते हैं, तो दवा निर्माता जीवनरक्षक दवाइयों के ऊंचे दाम लेते हैं। हवाई सुविधाओं के क्षेत्र में पायलट और केबिन क्रूफ की ट्रेड यूनियन खराब व्यवहार को बढ़ावा देते हैं और सुरक्षा मानकों से समझौता करते हैं।
सरकार का भ्रष्टाचार
सरकार का दो पक्षों में से एक की तरफ से खड़े होकर सौदा पक्का कराने से देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर बहुत ही खराब असर पड़ता है। यह चौथे तरह का भ्रष्टाचार है। इसमें भुगतान के लिए कई तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। सरकार से जुड़े लोगों को खुश करने के लिए दलाली, घूस, उपहार या सीधे नकद भुगतान भी किया जाता है। सरकार को यह भुगतान सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और कई बार निजी कंपनियों को वस्तु व सेवा आपूर्ति का सौदा पक्का कराने के लिए किया जाता है। रक्षा उपकरणों की आपूर्ति और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं का सौदा पक्का कराने के लिए घूस और दलाली इस तरह के भ्रष्टाचार का सीधा उदाहरण है। इसी श्रेणी के भ्रष्टाचार में भूमि, स्पेक्ट्रम, खनन लाइसेंस, कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन के लिए सरकार या उनकी एजेंसियों को घूस देना भी शामिल है। कुछ लोगों को फायदा या प्रतिस्पर्धियों को नुकसान पहुंचाने के लिए नियमों को बदलने के लिए दी जाने वाली रिश्वत सरकारी भ्रष्टाचार की इसी श्रेणी की उपश्रेणी है। इसमें कारोबारी घरानों का खास वर्ग नेताओं और नौकरशाहों के साथ गठजोड़ कर लेता है। इस तरह का भ्रष्टाचार इस हाथ ले-इस हाथ दे की नीति पर काम करता है। अपने फायदे के बदले में कारोबारी घराने भ्रष्ट राजनीतिक दलों और अधिकारियों को लाभ पहुंचाते हैं।
देश के रणनीतिक हितों से समझौता
नेताओं और कारोबारी घरानों की साठगांठ से होने वाला भ्रष्टाचार सरकारी फैसलों पर बुरा असर डालता है। नतीजतन कंपनियों को बाजार में बराबर का मौका नहीं मिलता। इससे न केवल कारोबार की लागत बढ़ जाती है, बल्कि देश के रणनीतिक हितों के साथ भी समझौता किया जाता है। इस श्रेणी के भ्रष्टाचार का सबसे खतरनाक असर सरकारी फैसलों में नजर आता है। निवेश का माहौल पूरी तरह से अनिश्चित नजर आने लगता है और निवेशक घबराने लगते हैं। निवेशकों को पता ही नहीं चलता कि मौजूदा नियम कब और किस दिशा में बदल दिए जाएंगे। उन्हें निवेश प्रस्ताव को मंजूरी दिलाने की परिस्थितियों का जरा भी अंदाजा नहीं होता। ऐसे अनिश्चित माहौल में निवेश गतिविधियां पूरी तरह ठप पड़ जाती हैं। दुर्भाग्य से कुछ ऐसा ही संप्रग-दो के शासनकाल में हुआ है। आर्थिक वृद्धि अपने निचले स्तर पर पहुंच गई, जिसका रोजगार और जनकल्याण पर बुरा असर पड़ा। सबसे खतरनाक बात है कि इस तरह का भ्रष्टाचार संगठित हो गया है, जबकि बाकी सभी स्तर के भ्रष्टाचार दबे-छुप रहते हैं। सरकार का प्रणालीगत और अद्श्य भ्रष्टाचार अमूमन संगठित व वैध आर्थिक गतिविधियों को क्षति पहुंचाता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था और समाज पर बुरा असर पड़ता है। संगठित भ्रष्टाचार समाज में जंगलराज को बढ़ावा देता है। इतिहास गवाह है कि इस तरह के भ्रष्टाचार ने बड़े-बड़ साम्राज्यों को खत्म कर दिया। ऐसे भ्रष्टाचार से ही आजिज आकर जनता ने बड़े-बड़े खूनी आंदोलनों को खड़ा किया है। देखना है भारत में क्या होता है।
राजनीति: भ्रष्टाचार का फैलता नासूर
आज भारत में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें फैला रहा है और इसके कई रूप हैं, जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझ कर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि। समस्या यह है कि अब भ्रष्टाचार हमारी आदत में शामिल हो गया है।भारत में भ्रष्टाचार को लेकर ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में देश को नंबर-1 बताया गया है।
भ्रष्टाचार एक ऐसी समस्या है, जो खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। सरकार भले कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त हो, लेकिन देश में अब भी लोग अपना काम कराने के लिए रिश्वत देने को मजबूर हैं। यह खुलासा भ्रष्टाचार पर निगाह रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा भ्रष्टाचार खत्म करने के दावों के बावजूद स्थिति जस की तस बनी हुई है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब उनतालीस प्रतिशत लोगों को अपना काम कराने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। यह एशिया में रिश्वत की सबसे ऊंची दर है। सैंतीस प्रतिशत के साथ कंबोडिया दूसरे और तीस प्रतिशत के साथ इंडोनेशिया तीसरे नंबर पर है। नेपाल में यह दर बारह प्रतिशत, बांग्लादेश में चौबीस और चीन में अट्ठाईस प्रतिशत पाई गई। एशिया में सबसे ईमानदार देशों के बारे में बात करें तो मालदीव और जापान में सिर्फ दो प्रतिशत लोग मानते हैं कि उन्हें रिश्वत देनी पड़ी। तीसरे नंबर पर दक्षिण कोरिया है। इस हिसाब से घूसखोरी के मामले में भारत एशिया में अव्वल है।
सर्वे में सरकारी कर्मचारियों में पुलिसकर्मियों को सबसे ज्यादा भ्रष्ट पाया गया। छियालीस फीसद लोगों ने माना कि पुलिस सबसे ज्यादा भ्रष्ट है। इसके अलावा बयालीस प्रतिशत का मानना है कि सांसद भ्रष्ट हैं। इकतालीस प्रतिशत लोगों को लगता है कि सरकारी विभागों में भ्रष्टाचार है। बीस प्रतिशत लोगों ने कहा कि जज और मजिस्ट्रेट भी भ्रष्ट हैं।
इस रिपोर्ट में देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को अलग-अलग श्रेणी में रखा गया है। जैसे नवासी फीसद भारतीय सरकारी भ्रष्टाचार को सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। इसके बाद उनतालीस फीसद रिश्वतखोरी को बड़ी समस्या मानते हैं, जबकि छियालीस फीसद किसी भी चीज के लिए सिफारिश किए जाने को समस्या मानते हैं। अठारह फीसद भारतीय ऐसे भी हैं, जो मानते हैं कि वोट के लिए नोट एक बड़ी समस्या है। वहीं ग्यारह फीसद ने माना कि काम निकलवाने के लिए होने वाला शारीरिक शोषण एक बड़ी समस्या है। देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर ज्यादातर भारतीयों की आम राय है कि बीते एक वर्ष में यह बढ़ा है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशन भ्रष्टाचार के खिलाफ काम करने वाली संस्था है। यह 2003 से हर साल भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट जारी कर रही है। विभिन्न संगठनों के संघर्ष के बाद भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए 12 अक्तूबर, 2005 को देश में सूचना का अधिकार कानून भी लागू किया गया। इसके बावजूद रिश्वतखोरी कम नहीं हुई। बहरहाल, आज पूरी दुनिया में सार्वजनिक क्षेत्र, खासकर राजनीतिक दलों, पुलिस और न्यायिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है।
दुनिया में सत्ता का दुरुपयोग, गोपनीय सौदेबाजी और रिश्वतखोरी बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से दुनिया भर के समाज बर्बाद हो रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। भ्रष्टाचार के इस रोग के कारण हमारे देश का कितना नुकसान हो रहा है, इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। पर इतना तो साफ दिखता है कि सरकार द्वारा चलाई गई अनेक योजनाओं का लाभ लक्षित समूह तक नहीं पहुंच पाता। इसके लिए सरकारी तंत्र के अलावा जनता भी दोषी है। यों कहें कि भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। कायदे से भारत सरकार को यह आकलन करना चाहिए कि देश में भ्रष्टाचार घट रहा है या बढ़ रहा है और उसी के अनुरूप कदम उठाने चाहिए, लेकिन वह ऐसा नहीं करती।
आजादी के एक दशक बाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा था और उस समय संसद में इस बात पर बहस भी होती थी। 21 दिसंबर, 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ. राममनोहर लोहिया का भाषण आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त लोहिया ने कहा था कि सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है। सवाल है कि भारत जब दुनिया का एक सभ्य और आदर्श लोकतांत्रिक देश है, तो यहां भ्रष्टाचार क्यों नहीं घट रहा है?
एक सफल देश का मतलब यह होना चाहिए कि वहां भ्रष्टाचार न हो। हालांकि, सफलता का पैमाना केवल आर्थिक आंकड़े नहीं हैं। सामाजिक विकास का पैमाना केवल धन-संपदा नहीं है, असली सामाजिक-आर्थिक विकास तो हम उसे ही कहेंगे, जहां भ्रष्टाचार की गुंजाइश न हो। भ्रष्टाचार अगर बना रहा, तो विकास के हमारे सारे प्रयास व्यर्थ हो जाएंगे। यदि भारत के राजनीतिक-सामाजिक माहौल की बात करें तो भ्रष्टाचार के विरोध में समाज का हर तबका खड़ा दिखाई तो देता है, लेकिन विरोध हर बार भ्रष्टाचार के आगे दम तोड़ देता है।
दूसरी तरफ यह भी सच है कि भ्रष्टाचार के संबंध में अपने विचार प्रकट करना एक बात है और इसको हटाने के लिए वास्तव में कुछ करना अलग बात है। कानूनी कमजोरियां और सरकारों में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं और इस वजह से भ्रष्टाचारियों के बच निकलने का मौका भी मिलता है। काफी समय से देश की जनता भ्रष्टाचार से जूझ रही है और भ्रष्टाचारी राज कर रहे हैं। अब भ्रष्टाचार रोकने के लिए सच्चे, दूरगामी और वास्तविक उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
जरूरत है तो इस बात की कि समाज और प्रतिष्ठान भ्रष्टाचारी तत्वों को पहचानें और इस समस्या से मुक्ति पाने का इंतजाम करें। पहले भ्रष्टाचार के लिए परमिट-लाइसेंस राज को दोष दिया जाता था, पर जबसे देश में वैश्वीकरण, निजीकरण, उदारीकरण, विदेशीकरण, बाजारीकरण और विनियमन की नीतियां आई हैं, तबसे घोटालों की बाढ़ आ गई है। इन्हीं के साथ बाजारवाद, भोगवाद, विलासिता तथा उपभोक्ता संस्कृति का भी जबर्दस्त हमला शुरू हुआ है।
हालांकि भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सरकारी स्तर पर भी तमाम दावे करके औपचारिकता पूरी कर ली जाती है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहता है। अब तो हालत यह हो गई है कि हमारा देश भ्रष्टाचार के मामले में भी लगातर तरक्की कर रहा है। प्रधानमंत्री भी मानते हैं कि मौजूदा समय में देश में भ्रष्टाचार और गरीबी बड़ी समस्याएं हैं।
हकीकत में जनता के कल्याण के लिए शुरू की गई तमाम योजनाओं का फायदा नेता और नौकरशाह ही उठाते हैं। आखिर में जनता ठगी रह जाती है। शायद यही उसकी नियति है। यह सच है कि भारत महाशक्ति बनने के करीब है, पर हम भ्रष्टाचार की वजह से इससे दूर होते जा रहे हैं।
भारत सरकार के साथ-साथ देश की सिविल सोसायटी और आमजन के लिए भी यह गहरे आत्ममंथन का विषय है कि हाल के वर्षों में भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़े पैमाने पर जनभावना उभरने के बावजूद वास्तविक स्थिति में सुधार क्यों नहीं हुआ? बता दें कि यह सूचकांक तैयार करते वक्त सरकारी क्षेत्र में भ्रष्टाचार को लेकर विशेषज्ञों की राय पर गौर किया जाता है। बहरहाल, आज भारत में भ्रष्टाचार अपनी जड़ें फैला रहा है और इसके कई रूप हैं, जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझ कर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि।
समस्या यह है कि अब भ्रष्टाचार हमारी आदत में शामिल हो गया है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल भारत के बारे में हर साल कहता है कि देश के आधे से ज्यादा लोग (उनमें बच्चे भी शामिल हैं) यह जानते हैं कि भ्रष्टाचार क्या होता है और कैसे किया जाता है? खैर, कलंक हमारा है और मुक्त करने का तरीका भी हमें ही खोजना है।