
गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। मात्र अनियमिताओं के नींव पर इस ग्राम्यांचल के अनेक स्थानों में खड़ा और फल फुल रहा लाल ईटों का साम्राज्य बनाए गए सख्त नियमों के बाद भी मात्र विभागीय अधिकारियों के संरक्षण एवं भ्रष्टाचार से ही संचालित होना माना जा सकता है। इस पूरे अंचल में खनिज व पर्यावरण नियमों का हवाला देते हुए मिट्टी के लाल ईटों का निर्माण प्रतिबंधित कर दिया गया है। लेकिन प्रतिबंध का ये आदेश कागजों तक ही सीमित रह गया है। हकीकत तो ये है कि मनाही के बाद भी इलाके में बड़े पैमाने पर मिटटी की ईटें बनाकर ठेकेदार लाल हो रहे है। वहीं भटिठयों से निकलने वाले काले धुएं ने लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। लाल ईट भटिठयों के संचालकों में शासन-प्रशासन का भय नहीं है। यही वजह है कि संबंधित विभाग के अफसरों पर लेन-देन कर अवैध कारोबार को संरक्षण देने के आरोप लगते है। सबसे ज्यादा ताज्जुब तो इस बात पर होता है कि लाल ईटों से केवल निजी भवन ही नहीं बनाए जा रहे, बल्कि सरकारी भवन बनाने में भी इन्हीं का इस्तेमाल हो रहा है। वहीं विभागीय उपअभियंताओं के द्वारा लाल ईटों से बने सरकारी निर्माण कार्यो के मूल्यांकन कर ठेकेदारों को राशि भुगतान भी कराई गई है। बड़ा सवाल ये है कि समूचे अंचल में अवैध रूप से चल रहे लाल ईट भटठों पर जब कार्यवाही ही नहीं करनी है तो फिर ऐसे नियम बनाए ही क्यों जाते है। अब देखना ये है कि अहब खनिज विभाग के जिम्मेदार इन भटठों के संचालकों पर क्या कार्यवाही करते है ? बता दें कि इन भटठों में बड़े पैमाने पर जंगल की लकड़ियों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तरह लाल ईटों का व्यवसाय पूरा का पूरा मात्र अनियमियता एवं भ्रष्टाचार की राह पर न सिर्फ संचालित हो रहा है बल्कि फल फुल रही है। कार्यवाही न होने के कारण दिन दूना रात चौगुना लाल ईट का निर्माण बढ़ रहा है। अंधाधुंध कमाई के कारण नवयुवक तेजी से इस लाल ईट के धंधे में जुटते जा रहे है। प्रशासन का ध्यान इस ओर अपेक्षित है।