नवतपा के 9 दिनां की स्थिति आने वाले दिनों में होने वाली गतिविधियों की ओर करती है इशारा

गरियाबंद/फिंगेश्वर (गंगा प्रकाश)। नौतपा शुरू हो गया है। शनिवार और रविवार को सुबह 8 बजे से ही सूर्य भगवान के शनैः शनैः रौद्ररूप का अहसास होने लग गया। 11 बजे तो काफी ज्यादा गर्मी एवं तेज धूप के कारण बाजार में सन्नाटा पसरने लगा। 12-01 बजे तो शहर की सड़कों में मानो र्कफ्यू लग गया। लोग अपने अपने घरों में ही दूबक कर मानो दिन ढलने का इंतजार करने लगे। रविवार फिंगेश्वर में साप्ताहिक बाजार होता है। परंतु शाम 5 बजे ही कुछ चहल पहल हुई। साप्ताहिक बाजार में लोग मात्र 5ः30 बजे के बाद ही पहुंचकर 7 बजे तक साग सब्जी लेते रहे। 25 मई से 2 जून तक 9 दिन साल के सबसे गर्म दिन होते है। रोज तापमान में बदलाव हो रहा है। न्यूनतम और अधिकतम तापमान में कभी ज्यादा तो कभी कम अंतर होने से लोग बीमार हो रहे है। सर्दी, खांसी, बुखार और वायरल फीवर की परेशानी लेकर लोग ज्यादा आ रहे है। इन्हें लोग छोटी बीमारी समझकर इग्नोर करते है। डॉक्टर की सलाह है कि लोग कूलर और एसी से सीधे बाहर ना निकले। घर से निकलने के पहले एसी में बैठे है तो 20 मिनट पहले इसे बंद कर तापमान को सामान्य करें। कूलर में है तो कूलर बंद कर बाहर और अंदर का तापमान सामान्य करें तभी निकलें। इन दिनों चल रहे नवतपा के बारे में बुजुर्गो ने काफी अच्छी बातें बताते हुए कहते है कि नवतपा के 9 दिनों में इस प्रकार की स्थिति परिलक्षित होने से भविष्य में होने वाली संभावनाएं का अंदेशा होता है। बुजुर्गो का कहना है कि भीषण गर्मी से लोग परेशान हो रहे हैं लेकिन रोहिण नक्षत्र में सूर्यदेव का प्रवेश 25 मई से हो गया है। रोहिणी के प्रारंभिक नौ दिन बहुत गरम होते है। भारतीय मौसम विज्ञान में इसे नवतपा कहा गया है। इन नौ दिनों में सूर्य जितना तपेगा, लू चलेगी वर्षाकाल उतना ही अच्छा होगा। मान्यता है कि पहले दो दिन हवा चले तो चूहे अधिक होंगे। दूसरे दो दिन हवा न चले तो कातरे (फसलों को नष्ट करने वाले कीट)े बहुत होंगे। तीसरे दिन हवा न चले तो टिडडी दल आने की आशंका रहती है। चौथे दो दिन हवा न चले तो बुखार आदि रोगों का प्रकोप रहता है। पांचवे दो दिन हवा न चले तो अल्प वर्षा, छठे दो दिन लू न चले तो जहरीले जीव-जंतुओं बहुतायत और सातवें दो दिन हवा न चले तो आंधी चलने की आशंका रहेगी। सरल शब्दों में कहें तो अधिक गर्मी पड़ने से चूहों, कीटों व अन्य जहरीले जीव-जंतुओं के अण्डे समाप्त हो जाते है। क्योंकि यह उनका प्रजनन काल होता है। बताया जाता है कि रोहिणी नक्षत्र के पहले हिस्से में वर्षा हो तो अकाल की संभावना रहती है। पहली वर्षा होने के बाद दूसरी वर्षा अधिक दिन बाद होती है। यदि तीसरे हिस्से में बारिश हो तो घास का अभाव रहता है और चौथे हिस्से में बादल बरसे तो अच्छी वर्षा की उम्मीद रखनी चाहिए।

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