
(धूमधाम से मनाया गया प्राकट्य महोत्सव)
अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
जयपुर(गंगा प्रकाश)। – विश्व की सभी समस्याओं का समाधान वर्णाश्रम व्यवस्था से सम्भव है। कर्म अनुरूप वर्ण नहीं होता अपितु पूर्वजन्म कर्म के अनुरूप वर्ण विशेष की प्राप्ति होती है। गाढ़ी नींद की उपस्थिति ही भौतिक वादियों द्वारा शरीर को ही आत्मा सिद्ध करने के सिद्धांत पर पानी फेर देती है। व्यक्त, अव्यक्त और सनातन अव्यक्त ये तीन तत्त्व ही सृष्टि संरचना में आवश्यक हैं। आने वाले दिनों में अखण्ड भारत का स्वरूप पुनः दृष्टि गोचर होगा। पदार्थ का स्वरूप ऊर्जा है , ऊर्जा का स्वरूप आत्मा है तथा परमात्मा ही आत्मा स्वरूप है।
उक्त बातें ऋग्वेदीय पूर्वाम्नाय श्रीगोवर्द्धनमठ पुरीपीठाधीश्वर अनन्तश्री विभूषित श्रीमज्जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्रीनिश्चलानन्द सरस्वतीजी महाराज ने जयपुर के वी०टी० ग्राऊण्ड में आयोजित अपने 82 वाॅं प्राकट्योत्सव समारोह को संबोधित करते हुये कही। उन्होंने कहा कि भगवान की शक्ति का नाम प्रकृति है। आकाश , पवन , तेज , जल और पृथ्वी प्रकृति के परिकर हैं। प्रकृति के परिकर के उद्भाषित होकर अग्रेसर हुये बिना स्वस्थ क्रांति सम्भव नहीं हो सकती। इसलिये स्वस्थ क्रांति के लिये प्रकृति के परिकर आकाश , पवन , तेज , जल एवं पृथ्वी को अनुकूल करना आवश्यक है। महाराजश्री ने आगे उद्घृत किया कि किसी व्यक्ति के जीवन में यदि साधक बाधक भाव का ज्ञान हो , वस्तु के रूपांतरण का ज्ञान हो और अभिव्यञ्जक संस्थान के क्षमता का ज्ञान हो तब वह परमार्थ व व्यवहार में निपुण होकर लौकिक पारलौकिक उत्कर्ष की ओर अग्रसर हो सकता है। वर्तमान में स्वस्थ क्रांति हेतु अंतर्निहित शक्ति कार्य कर रही है जो कि सामान्य जन को दृष्टिगोचर नहीं हो रहा , यह अदृश्य शक्ति त्रिवेणी संगम में स्थित अदृश्य सरस्वती नदी की उपस्थिति की तरह है। दार्शनिक , वैज्ञानिक और व्यवहारिक धरातल पर यह वस्तुस्थिति तथ्य सिद्ध है कि प्रत्येक जीव स्वभावतः सत्य का ही पक्षधर होता है। सनातन वैदिक आर्य हिन्दुओं का यह वेदादि शास्त्र सिद्धांत विश्व स्तर पर ख्यापित करने की आवश्यकता है। हमारे वैदिक वाङ्मय में सूत्रात्मक रूप में सन्निहित उन्नत ज्ञान विज्ञान वर्तमान युग में भी वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन कर सकते हैं। सच्चिदानन्द स्वरूप सर्वेश्वर भी जिस सिद्धांत का अनुपालन कर सृष्टि की संरचना करते हैं उसी का नाम सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत है। इस तथ्य को पूरे विश्व को स्वीकार करना होगा कि सभी के पूर्वज वैदिक आर्य हिन्दू ही थे। महायन्त्रों के प्रचुर आविष्कार और प्रयोग से सभी स्थावर जङ्गम प्राणियों में विकृति उत्पन्न होना स्वाभाविक ही है। यह भी सिद्ध है कि इस महायन्त्रों के युग में हर व्यक्ति की प्रज्ञाशक्ति , प्राणशक्ति का ह्रास हो रहा है। इस कल्प में पृथ्वी की आयु एक अरब सन्तानबे करोड़ उन्तीस लाख उन्चास हजार एक सौ बाइस वर्ष है और इतनी ही पुरानी हमारी सनातन सिद्धांत है , इसको फूंक मार कर उड़ा दे यह सम्भव नहीं है। अत: सनातन सिद्धांत को अपनाये बिना विश्व का कल्याण सम्भव नहीं , यह आज भी प्रासंगिक एवं सर्वोत्कृष्ट है। सनातन धर्म को विकृत करने के प्रयास पर महाराजश्री ने कहा कि शक्तियां चाहे बाहरी हो या आंतरिक , अजर - अमर सनातन धर्म को कभी नष्ट नही कर सके। पुरी शंकराचार्यजी ने कहा राजनीति का अर्थ होता है नीतियों में सर्वोत्कृष्ट जिसके द्वारा व्यक्ति और समाज को सुबुद्ध , स्वावलंबी व सुसंस्कृत बनाया जा सके। वेदादि शास्त्र सम्मत विकास एवं राजनीति की परिभाषा सुसंस्कृत , सुशिक्षित , सुरक्षित , सम्पन्न , सेवापरायण , स्वस्थ , सर्वहितप्रद व्यक्ति और समाज की संरचना को विश्व स्तर पर ख्यापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर देते हुये कहा कि मान्य आचार्यों की आज भी उपयोगिता है। जिस प्रकार रामजी को वशिष्ठ , सुधन्वा को आदि शंकराचार्य , चंद्रगुप्त को चाणक्य एवं शिवाजी को रामदास का मार्गदर्शन उपलब्ध था , ठीक इसी प्रकार हमारे मार्गदर्शन के बिना वर्तमान शासक भी आदर्श व्यवस्था स्थापित नहीं कर सकते। महाराजश्री ने आगे कहा कि पृथ्वी , जल , तेज , वायु और आकाश में अव्यक्त सिद्धांत का नाम मंत्र है। प्रकृति में पांच ही तत्व हैं तथा हमारे कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों की संख्या भी पांच है। कारण शरीर मंत्रात्मक , सूक्ष्म शरीर तंत्रात्मक एवं स्थूल शरीर यंत्रात्मक स्वरूप हैं। आकाश , वायु , तेज , जल एवं पृथ्वी के गुण शब्द , स्पर्श , रूप , रस और गंध को हम ज्ञानेन्द्रियों के ग्रहण तथा कर्मेन्द्रियों के माध्यम से विसर्जित करते हैं। गौरतलब है कि पुरी शंकराचार्य जी का प्राकट्य महोत्सव के अन्तर्गत 29 जून से 04 जुलाई तक जयपुर प्रवास यात्रा पर हैं। यहां अभिनन्दन माहेश्वरी समाज जनोपयोगी भवन पत्रकार रोड , कृष्णा सागर कालोनी मानसरोवर जयपुर में प्रतिदिन प्रातःसत्र में दर्शन , दीक्षा , संगोष्ठी , पादुका पूजन में श्रद्धालु शामिल हुये और सायं सत्र मे धर्म , अध्यात्म , राष्ट्र से संबद्ध जिज्ञासाओं का समाधान महाराजश्री द्वारा किया गया। प्राकट्योत्सव दिवस प्रात: सत्र में जनकल्याणार्थ सामूहिक रुद्राभिषेक , शिव आराधना तथा हिंदू राष्ट्र निर्माण हेतु हनुमान चालीसा पाठ वी०टी० रोड ग्राउण्ड , शिप्रा पथ थाने के पास में संपन्न हुआ। इसके पहले रिमझिम बरसात के बीच हजारों मातृशक्तियों की भव्य कलश यात्रा ऊंट , घोड़े , बैंड बाजे, सजी हुई बग्गियों सहित विशाल जन समूह के साथ राम गोपेश्वर महादेव मंदिर सेक्टर 73 परमहंस मार्ग मानसरोवर से धर्मसभा स्थल वी०टी० रोड पहुंची। यहां आयोजित मुख्य प्राकट्य महोत्सव समारोह में पुरी शंकराचार्यजी ने हिन्दू राष्ट्र बनाने का आह्वान करते हुये बहुत ही ओजस्वी , क्रांतिकारी , प्रेरणादायी उद्बोधन द्वारा हिन्दूओं को जगाने का प्रयास किया। इस प्राकट्य महोत्सव में प्रदेश एवं देश के विभिन्न प्रांतों से भक्त वृंद तथा धर्म संघ , पीठ परिषद , आदित्यवाहिनी ,आनंदवाहिनी , राष्ट्रोत्कर्ष अभियान , हिंदू राष्ट्र संघ , सनातन समिति के पदाधिकारी एवं सदस्यवृंद के अलावा सामाजिक , धार्मिक , सांस्कृतिक , राजनीतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने महाराजश्री का दर्शन एवं आशीर्वाद लिया। इस प्राकट्योत्सव में प्रदेश के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा विशेष रूप से उपस्थित थे। कार्यक्रम का सीधा प्रसारण आस्था भजन चैनल पर किया गया , जिसका दूर दराज के श्रद्धालुओं ने भी आनंद लिया। वहीं देर शाम महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र ने अभिनन्दन माहेश्वरी समाज जनोपयोगी भवन पहुंचकर शंकराचार्यजी से आशीर्वाद लिया। यहां छह दिवसीय आयोजित सभी कार्यक्रमों की समाप्ति के पश्चात पुरी शंकराचार्यजी कल 05 जुलाई को जयपुर से विमान सेवा से मुम्बई और वहां से भुवनेश्वर रवाना होंगे , जहां से वे सड़क मार्ग से गोवर्धनमठ पुरी पहुंचेंगे। जगन्नाथपुरी में वे सात जुलाई को रथयात्रा महोत्सव में शामिल होंगे।