
ऐसे में कृषि विस्तार अधिकारियो द्वारा खेत में पहुंच कर किसानों को बता रहे उपचार
मैनपुर(गंगा प्रकाश):-लंबे समय से अटक अटक कर गिर रही बारिश की वजह से अब मैनपुर क्षेत्र की फसलों पर कीट प्रकोप का खतरा मंडराने लगा है।वैसे तो इस वर्ष बारिश की अच्छी संभावना बनी रही और बारिश अच्छी हुई भी हैं लेकिन अभी किसानों को चिंता बनी हुई है। क्योंकि धान की फसलों में बीमारियों का प्रकोप जकड़ने लगा है,ऐसे में किसानों को इसकी चिंता सता रही है। लेकर इस बार धान की फसल में तना छेदक व माहू जैसी बीमारियां मंडराने लगी हैं। किसानों के मुताबिक अगर जल्द ही बेहतर थोड़ी और बारिश व सही उपचार नहीं हुई तो इसका असर पैदावार पर पड़ना तय है।इधर किसानों का दावा है कि इस तरह की हालात रहे तो फसलों पर मंडरा रहे बीमारियों के खतरे को देखते हुए कृषि विभाग भी अपने कर्मचारियों के माध्यम से किसानों तक पहुंचकर लगातार बचाव की जानकारी दिया जा रहा है। इस बार की बारिश अच्छी बारिश हो रही है, बीते साल की तुलना में बेहतर तो माना जा रहा है, लेकिन फसल के आयु अनुरूप पानी की उपलब्धता नही होने से इसका बुरा असर सामने आ रहा है। बिगड़ती स्थिति पर नियंत्रण के लिए जल्द ही कम से कम कुछ दिनों की बेहतर बारिश की जरूरत है।
आने वाले समय में किसानों और अफसरों को करने होंगे उपाय
धान की फसल इस बार बेहतर नजर आ रही है लेकिन बारिश की आवश्यकता और भी है।फसल कमजोर, बाली बनने में देरी हो रही है। लगभग 60 दिन की आयु पूरी कर चुके धान की फसल गभोट यानी बाली लगने की स्थिति में पहुंच जाती है। लेकिन इस अवस्था में पर्याप्त पानी नहीं मिलने से बाली लगने की प्रक्रिया कमजोर होने लगती है, जिसका असर आगे चलकर पैदावार पर पड़ता है।
कृषि विस्तार अधिकारियो द्वारा खेत पर पहुंचकर किसानों को बता रहे उपचार
कृषि विभाग के मुताबिक पैदावार को बेहतर बनाने के लिए अगले पखवाडे़ भर में जोरदार बारिश की जरूरत है, जिससे कमजोर हो रही पैदावार के खतरे से राहत मिल सके।बचाव के तरीके बता रहे हैं बीमारियों की आशंका को देखते हुए किसानों को बचाव के तरीके मैदानी कर्मचारियों के माध्यम से बताए जा रहे हैं। बेहतर बारिश से स्थिति नियंत्रित हो जाएगी।जिसमे कृषि विभाग के अधिकारी शशीकांत पटेल ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी नंदलाल देव ग्रामीण कृषि विस्तर अधिकारी श्रीमती पदमा ध्रुव कृषि विकास अधिकारी भावेश शांडिल्य वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी मैनपुर द्वारा दी जा रही हैं।वही कृषि अधिकारी द्वारा बताया कि धान में तना छेदक होने पर दवाई बायो मेथाक्सान,12.6%+, लेक्तासा इलो थ्रिन 200ml/प्रति एकड़, साईंकरमेथीन+क्लोरोपेयरी फास 400ml प्रति एकड़ के लेकर बीमारी का उपचार बताया।
और वही गंगई नामक धान रोगी के लिए इमामे क्तिन बेंजोएट 1.5%+फिप्रोनील 3.5%व 200ml प्रति एकड़ छिड़काव करके बीमारी से निजात बताया गया। इसी कड़ी में धान में रोग के लक्षण भी बताया रोक के मुख्य लक्षण में झंडा पत्ती ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती है यह सीधी खड़ी रहती है व पत्तियां दोनों किनारों से लहरदार होकर सूखने लगती है। जिससे पौधों की बढ़वार रुक जाती है रोग कारक यह एक जीवाणु बैक्टीरियल जनित रोग है रोग लगने पर नत्रजन उर्वरक यूरिया का प्रयोग ना करने की हिदायत दी जा रही है एन पी के उर्वरक की संतुलित मात्रा का उपयोग करने के लिए बताया जा रहा है खेत में लगभग 2 इंच छिपछिपा जहर बाला पानी होने पर 20 किलो अतिरिक्त पोटाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करने की सलाह दी जा रही है।

धान की फसल में लगते हैं ये पांच प्रकार के खतरनाक तना छेदक रोग, पहचान कर इनकी ऐसे करें रोकथाम
भावेश कुमार शांडिल्य वरिष्ठ कृषि विस्तार अधिकारी मैनपुर से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि धान की फसल में पांच प्रकार के खतरनाक तना छेदक रोग लगते हैं।बरसात के समय या बरसात के ठीक बाद धान की फसल में तना छेदक रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है।कई बार किसान ध्यान नहीं दे पाते जिसके चलते उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है।तना छेदक कुल पांच प्रकार के होते हैं जो धान की फसल को बर्बाद करते हैं, लेकिन अगर सही समय पर इनकी पहचान कर ला जाए तो फसल को इनसे बचाया जा सकता है।पीला तना छेदक जिनके अंडे चमकीले रंग के बालों से ढंके रहते हैं जो गुच्छे में दिए जाते हैं।लार्वा हलके पीले रंग के होते हैं जिनका सिर गहरे भूरे रंग के होते हैं।मादा मोथ के अगले पंख चमकीले पीले से भूरे रंग के होते हैं तथा उन पर काले दाग पाये जाते हैं।पौधे के वानस्पतिक वृद्धि अवस्था में ये लार्वा कंसों को छेद के तनो को खाते हैं जिसके परिणामस्वरूप पूरे पौधे का तना भाग सूख जाता है जिसे “डेड हार्ट” कहते हैं।पौधे के जनन अवस्था में ये लार्वा तना को छेद के केन्द्रीय तना के उत्तको को खाते हैं जिससे दाने नहीं भरते जिसे “वाइट इयरहेड” कहते है।
रोकथामफेरोमोन ट्रैप जिनमें 5 मी.ग्रा. ल्यूर डाल कर 8 ट्रैप/हे. की दर से लगाएं या सीधे नियंत्रण के लिए 20 ट्रैप/हे. की दर से लगायें. ल्युर को हर 25 से 30 में बदलें,अंडा परजीवी जैसे ट्राईकोग्रामा जेपोनिकम 100,000 प्रौढ़/हे. की दर से 5 से 6 बार रोपाई के 15 दिन बाद से अनियमित रूप से छोडें,
नीम की खली 150 कि.ग्रा./हे. की दर से खेत में रोपाई के समय डालें।क्लोरेट्रानीलीप्रोल 0.4 जी 10 कि.ग्रा./हे. की दर से या इमिडाक्लोप्रिड 0.3 जी 15 कि.ग्रा. की दर से या फिर कर्ताप 4 जी 25 कि.ग्रा. की दर से अथवा फिप्रोनिल 0.3 जी 25 कि.ग्रा. की दर से उपयोग करें।
क्लोरेट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी 150 एम्एल./हे. या फ्लूबेंडामाईड 20 डब्ल्यूजी 125 ग्रा./हे. या थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी 500 एमएल./हे. या कर्ताप 50 डब्ल्यू पी. 1000 ग्रा./हे. की दर से अथवा क्लोरोपाईरीफोस 20 ई.सी. 1250 एम्.एल./हे. अथवा कुइनलफास 25 ईसी 1000 एम्.एल./हे. की दर से उपयोग करें।

गुलाबी तना छेदक
अंडे क्रीमी सफ़ेद से गहरे रंग के होते हैं।लार्वा गुलाबी रंग के होते हैं जिनमे कोई कोई पट्टी नहीं पाई जाती।प्रौढ़ भूसे के रंग के होते हैं,
पौधे के वानस्पतिक वृद्धि अवस्था में ये लार्वा कंसों को छेद के तनो को खाते हैं जिसके परिणामस्वरूप पूरे पौधे का तना भाग सूख जाता है जिसे “डेड हार्ट” कहते हैं।पौधे के जनन अवस्था में ये लार्वा तना को छेद के तना के उत्तको को खाते हैं जिससे दाने नहीं भरते जिसे “वाइट इयरहेड” कहते है।
ऐसे करे रोकथाम
श्री शांडिल्य का कहना हैं कि फेरोमोन ट्रैप जिनमें 5 मी.ग्रा. ल्यूर डाल कर 8 ट्रैप/हे. की दर से लगाएं या सीधे नियंत्रण के लिए 20 ट्रैप/हे. की दर से लगाये, ल्युर को हर 25 से 30 में बदलें।
अंडा परजीवी जैसे ट्राईकोग्रामा जेपोनिकम 100,000 प्रौढ़/हे. की दर से 5 से 6 बार रोपाई के 15 दिन बाद से अनियमित रूप से छोडें।नीम की खली 150 कि.ग्रा./हे. की दर से खेत में रोपाई के समय डालें,
क्लोरेट्रानीलीप्रोल 0.4 जी 10 कि.ग्रा./हे. की दर से या इमिडाक्लोप्रिड 0.3 जी 15 कि.ग्रा. की दर से या फिर कर्ताप 4 जी 25 कि.ग्रा. की दर से अथवा फिप्रोनिल 0.3 जी 25 कि.ग्रा. की दर से उपयोग करें.
क्लोरेट्रानीलीप्रोल 18.5 एससी 150 एम्एल./हे. या फ्लूबेंडामाईड 20 डब्ल्यूजी 125 ग्रा./हे. या थियाक्लोप्रिड 21.7 एससी 500 एमएल./हे. या कर्ताप 50 डब्ल्यू पी. 1000 ग्रा./हे. की दर से अथवा क्लोरोपाईरीफोस 20 ई.सी. 1250 एम्.एल./ हे. की दर से उपयोग करें।
पट्टीदार तना छेदक
श्री शांडिल्य ने आगे बताया कि नय दिए हुए अंडे सफ़ेद रंग के होते हैं जो बाद में पीले रंग में परिवर्तित हो जाते हैं।लार्वा गुलाबी या हलके भूरे रंग के होते हैं जिनके शरीर पर पांच कतार की लम्बवत पट्टी पाई जाती है।
प्रौढ़ भूरे पीले रंग के होते हैं जिनमें 1-2 अगले पंखों पर काले बिंदी पाई जाते हैं जबकि पिछले पंख सफ़ेद रंग के होते हैं।
ऐसे करें रोकथाम
गुलाबी और पीला तना छेदक को रोकने की विधि इस पर भी कारगार है
सफ़ेद तना छेदक
अंडे सफ़ेद रंग के होते हैं तथा मादा एनल बालों से घिरे होते हैं।
लार्वा सफ़ेद हलके पीले रंग के होते हैं जिनमें कोई पट्टी नहीं पाई जाती,मादा मोथ पीले तना छेदक के सामान दिखते हैं लेकिन पूरे सफ़ेद रंग के होते हैं जिनके अगले पंखों पर कोई धब्बे नहीं पाये जाते हैं।इसकी रोकथाम भी दूसरे तना छेदक जैसी ही होती है।
डार्कहेडेड तना छेदक
अंडे सफ़ेद रंग के होते हैं जो पत्तियों के आधार पर दिए जाते हैं।इनके लार्वा धुसरनुमा सफ़ेद रंग के होते हैं और शरीर पर पांच लम्बवत पट्टी पाई जाती है तथा सिर गहरे भूरे से काले रंग के होते हैं,प्रौढ़ भूरे पीले रंग के होते हैं।
इसकी रोकथाम भी दूसरे तना छेदक जैसी ही होती है।