नेहरू की राजनैतिक महत्वकांक्षाओं और सत्ता की लालसा ने देश का विभाजन कराया – सांसद रुपकुमारी चौधरी

महासमुंद (गंगा प्रकाश)। विभाजन विभीषिका 14 अगस्त (1947) भारत देश का एक महत्वपूर्ण और हृदय विदारक अध्याय है, जिसने भारत और पाकिस्तान के बीच हुए विभाजन के दौरान असंख्य लोगों के जीवन में अमिट कष्ट और पीड़ा दी। इस विभाजन ने लाखों लोगों को उनके घरों से बेदखल किया, सामुदायिक सौहार्द को क्षति पहुंचाई और एक विभाजित राष्ट्र के रूप में भारत और पाकिस्तान का निर्माण हुआ। 

सांसद रुपकुमारी चौधरी ने देश विभाजन निर्णय का कड़ा आक्रोश व्यक्त करते हुए यह कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में और बिना जनता की वास्तविक स्थिति को समझे हुए लिया गया। उस समय के नेताओं ने राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं और सत्ता के लालच में आकर विभाजन को अंतिम रूप दिया, बिना यह समझे कि इसका आम लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा। 

इस विभाजन के बाद जो विभीषिका उत्पन्न हुई, वह इस निर्णय की अनीति को उजागर करती है। लाखों लोगों को अपने घर, परिवार और मित्रों से बिछड़ना पड़ा,रक्त से भारत के सीमावर्ती राज्य और राष्ट्र की आत्मा महिलाओं,बच्चों  पर हुए अत्याचार से लहू लुहान हो गई ।

इस विभाजन ने केवल भूगोल को नहीं बल्कि हृदय को भी चीर दिया। यह विभाजन उस समय के तथाकथित महानुभावों की  स्वार्थपरकता और आत्मकेंद्रित व्यक्तित्व को दर्शाता है, जो आपसी मतभेदों को सुलझाने के बजाय विभाजन के रास्ते पर चले गए। विभाजन के फैसले का विरोध इसीलिए होता है कि इसे टाला जा सकता था, अगर नेताओं में सही दृष्टिकोण और जनता के प्रति संवेदनशीलता होती। 

विभाजन की इस त्रासदी ने हमें यह सिखाना है कि सांप्रदायिकता, जातिवाद और राजनीति की हठधर्मिता रखने वालों ने  कितना नुकसान पहुंचाया है। इस विभीषिका को स्मरण करने का उद्देश्य यही है कि हम भविष्य में ऐसे निर्णयों से बच सकें, जो लोगों के जीवन और समाज को खंडित कर सकते हैं।

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *