
(आज करवा चौथ विशेष)
– करवा चौथ का व्रत हर वर्ग, आयु , जाति के हिन्दू सुहागिन महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहार है जो कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है , जिसे कर्क चतुर्थी भी कहते है। इस दिन सुहागिन महिलायें अपने पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन सुखमय होने की कामना पूर्ति के लिये निर्जला व्रत रखती हैं। इस बार करवा चौथ आज 20 अक्टूबर रविवार को पड़ रही है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि व्रत रखने का अर्थ ही है संकल्प लेना। वह संकल्प चाहे पति की रक्षा का हो , परिवार के कष्टों को दूर करने का या कोई और। यह संकल्प वही ले सकता है जिसकी इच्छा शक्ति मजबूत हो। यह पर्व संकेत देता है कि स्त्री अबला नहीं , बल्कि सबला है और वह भी अपने परिवार को बुरे वक्त से उबार सकती है। करवा चौथ की प्रचलित कथाओं में स्त्रियां सशक्त भूमिका में नजर आती है , इस देश में सावित्री जैसे उदाहरण हैं , जिसने अपने पति सत्यवान को अपने सशक्त मनोबल से यमराज से छीन लिया था। मान्यता है कि इस नक्षत्र में चंद्रमा दर्शन मनवांछित फल प्रदान करता है। वहीं रविवार का दिन होने की वजह से सूर्यदेव का भी व्रती महिलाओं को आशीर्वाद प्राप्त होगा। यह व्रत पति पत्नी में भावनात्मक लगाव और विश्वास को बढ़ाता है। इस व्रत को पहली बार करवा चौथ यानि नवविवाहिता महिलाओं के लिये बहुत अच्छा फलदायी बताया जा रहा है। करवा चौथ का पर्व महिलाओं के लिये सुखद अहसास है जिनका उन्हें साल भर इंतजार रहता है। ये व्रत चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पूरा होता है , इसलिये चांद निकलने का व्रत रखने वाली सभी महिलाओं की नजर आसमान की ओर रहती है , सबको चांद का बेसब्री से इंतजार रहता है। चांद दिखने का समय हर जगह के लिये अलग-अलग होता है। कहीं कुछ समय पहले चांद दिखाई देने लगता है , तो कहीं पर थोड़ा इंतजार भी कराता है। इस व्रत में कहीं सरगी खाने का रिवाज है तो कहीं नही भी है। किवदंती के अनुसार महाभारत काल से यह व्रत किया जा रहा है , भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर द्रौपदी ने अर्जुन के लिये इस व्रत को किया था। आज के दिन सभी सुहागिन स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करके अपने पति की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य , सौभाग्य एवं सुखद दांपत्य की कामना के लिये यह व्रत रखती हैं जो बहुत ही कठिन होता है। इस व्रत में कुछ नियम है जिनका कड़ाई से पालन किया जाता है। इस व्रत अवधि में जल भी ग्रहण नही किया जाता अर्थात निर्जला रखा जाता है। यह व्रत सूर्योदय से पहले और चाँद निकलने तक रखा जाता है। रात्रि में चाँद और पति का दीदार के लिये सुहागिन स्त्रियाँ चाँद के उदय होने का इंतजार करती हैं। मान्यता है कि चांद दर्शन के बाद ही व्रत पूरा होता है , उसके बाद ही महिलायें व्रत का समापन करती हैं। यह भी कहा जाता है कि बिना चांद दर्शन के व्रत का पूरा-पूरा फल नहीं मिलता है। चाँद निकलने पर शिव परिवार की पूजन करती हैं। फिर छलनी में घी का दीपक रखकर चंद्रमा को अर्घ्यं देकर , छलनी में से चंद्रमा के साथ अपने चाँद यानि पति का चेहरा देखती हैं। फिर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती हैं और पति के पैर छूकर आशीर्वाद लेती हैं। करवा चौथ के व्रत में माता पार्वती समेत शिव परिवार की पूजा की जाती है। इस दिन खास तौर पर गणेशजी का पूजन होता है और उन्हें ही साक्षी मानकर व्रत शुरु किया जाता है। गणेशजी को चतुर्थी का अधिपति देव माना गया है। पूजा करते और कथा सुनते समय सींक रखने की परंपरा है जो करवा माता की उस शक्ति का प्रतीक है जिसके बल पर उन्होंने यमराज के सहयोगी भगवान चित्रगुप्त के खाते के पन्नों को उड़ा दिया था। पूजन के पश्चात अर्घ्य दिये जाने का विधान है। करवा यानि मिट्टी का एक प्रकार का बर्तन जिसके द्वारा चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है , यहां अर्घ्य का मतलब चंद्रमा को जल देने से है। महिलाओं को श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल अथवा मिट्टी का करवा भरना चाहिये। इस व्रत में चंद्रमा को अर्ध्य देकर चलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति को देखते है। इसके बाद पति अपने पत्नी को अपने हाथों से पानी पिलाकर व्रत खुलवाते हैं। इस दिन करवे में जल भरकर कथा सुनने का विधान है , इसके बिना अर्घ्य अधूरा माना जाता है। चंद्रमा के माता का कारक होने की वजह से करवाचौथ के दिन किसी भी महिला को अपनी सास , मांँ या फिर दूसरी महिला का अपमान नहीं करना चाहिये। करवा चौथ वाले दिन महिलायें सफेद रंग की चीजें जैसे दही , चावल , दूध या फिर सफेद रंग का कपड़ा किसी को ना दें क्योंकि सफेद रंग चंद्रमा का कारक माना जाता है। इस दिन इन चीजों का दान करने से आपको आपकी पूजा का फल नहीं मिलेगा। इस दिन महिलायें काले, नीले और भूरे रंग के कपड़े पहन कर पूजा ना करें इससे उसको पूजा का फल नहीं मिलता है।
चलनी से चांद देखने का कारण
करवा चौथ के दिन महिलायें चलनी से अपनी पति को देखती हैं। चलनी से चांद देखने की इस परंपरा की कल्पना चंद्रमा और भगवान ब्रह्मा से की गई है। चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है , साथ ही चांद में शीतलता , शालीनता , प्यार , जगत प्रसिद्धि जैसे गुण समाहित हैं। इसलिये करवा चौथ पर सभी महिलायें चलनी से चांद को देखकर ये कामना करती हैं कि उनका पति भी चांद जैसे गुणों से परिपूर्ण हो।
कौन रख सकती हैं यह व्रत ?
कुंवारी कन्यायें — अक्सर कहा जाता है है कि करवा चौथ का व्रत विवाहित महिलायें ही रख सकती हैं , लेकिन ऐसा नहीं है। मन चाहा वर पाने की इच्छा रखने वाली कुंवारी कन्यायें भी इस दिन करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं। कुंवारी कन्याओं को निर्जला की जगह निराहार व्रत रखनी चाहिये क्योंकि निर्जला व्रत शादी के बाद ही रखा जाता है। इस दिन ये व्रती सरगी की जगह फल खाती हैं , इस दिन कुंवारी कन्याओं को चांद देखकर नही बल्कि बिना छलनी के तारों को अर्घ्य देकर व्रत पारण नहीं करना चाहिये।
सगाईशुदा लड़कियां – जिन लड़कियों की सगाई हो चुकी है और कुछ दिनों में शादी होने वाली है वे लड़कियां भी अपने होने वाले पति के लिये करवा चौथ का व्रत रख सकती हैं। सुहागिन महिलाओं की ही तरह ये लड़कियां भी पूरा दिन निर्जला रहकर पति की लंबी आयु के लिये व्रत रखती हैं। सास के यहां से मिली सरगी खाती हैं और रात के समय पति की फोटो या वीडियो कॉल के जरिये पति को देखर व्रत का पारण करती हैं।
पत्नी सहयोगी पति – आजकल नई-नवेली सुहागिनों के पति भी अपनी पत्नी के प्रति प्यार जताने के लिये करवा चौथ का व्रत रखते हैं। वे भी पत्नी की तरह दिन भर भूखे रहकर अपना प्यार जताते हैं , लेकिन पतियों के लिये करवा चौथ का ऐसा कोई नियम नहीं होता। पत्नी के साथ वे भी दिन भर भूखे-प्यासे रहकर साथ में ही व्रत का पारण करते हैं।
इनसे करें परहेज
करवा चौथ के खास मौके पर महिलायें ध्यान रखें कि इस दिन किसी दूसरी महिला की चूड़ी बिल्कुल ना पहनें , ये अशुभ माना जाता है और व्रत कभी भी सफल नहीं होता। इस दिन सुहागिन महिलायें भूल कर भी हाथों को खाली ना रखें , हाथों में चूड़ियां अवश्य पहनी हों। इस दिन सफेद रंग की चूड़ियां बिल्कुल ना पहनें , इसे भी बहुत अशुभ माना जाता है। इस शुभ दिन हाथों में चूड़ियां पहनते समय इस बात का ध्यान भी रखें कि हाथों में सिंगल चूड़ी ना पहनें , बल्कि चूड़ियां जोड़े से पहनें। एक या तीन चूड़ी कभी नहीं पहनें , साथ ही इस बात को ध्यान में रखें कि चूड़ी चटकी हुई ना हो। करवाचौथ की शॉपिंग के दौरान कुछ चीजों को भूलकर भी ना खरीदें। करवाचौथ के दिन ना तो सफेद कपड़े खरीदने और ना ही पहनने चाहिये। इस दिन लाल , पीले , हरे और संतरी रंग के कपड़ों की खरीददारी शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस दिन सुहागिन महिलाओं को तेज धार वाली वस्तुओं की खरीददारी नहीं करनी चाहये इनमें चाकू , कैंची और सुई जैसी चीजें शामिल हैं।
सोलह श्रृंगार क्या है ?
करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाओं को पूर्ण श्रृँगार के साथ तैयार होना चाहिये। मान्यता है कि पूर्ण श्रृंगार में सोलह तरह के श्रृंगार महत्वपूर्ण होते हैं जिनमें सिंदूर , मंगलसूत्र , बिंदी , मेंहदी , लाल रंग के कपड़े , चूड़ियांँ , बिछिया , काजल , नथनी , कर्णफूल (ईयररिंग्स) , पायल , मांग टीका , तगड़ी या कमरबंद , बाजूबंद , अंगूठी , गजरा।
करवा चौथ पर वीरवती की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल एक द्विज नामक ब्राह्मण के सात पुत्र और एक वीरवती नाम की कन्या थी , वीरवती सुंदर , धर्मनिष्ठ राजकुमारी और अपने सात भाईयों की इकलौती बहन थी। विवाह के बाद वीरवती ने पहली बार अपने पति की लंबी उम्र के लिये करवा चौथ का व्रत रखा , उसने दिनभर अन्न-जल ग्रहण नहीं किया और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत का पालन किया। लेकिन दिन ढलते-ढलते भूख और प्यास के कारण वह अत्यधिक कमजोर हो गई , वीरवती की यह दशा देखकर उसके भाई चिंतित हो गये। वे अपनी बहन की हालत देखकर दुखी हो गये और उसे व्रत तोड़ने के लिये मनाने लगे लेकिन वीरवती ने कहा कि जब तक चंद्रमा उदित नहीं होता , वह व्रत नहीं तोड़ेगी। वीरवती के भाईयों ने अपनी बहन की हालत देखकर एक उपाय सोचा , उन्होंने पेड़ की आड़ में छल से एक दर्पण का उपयोग करके नकली चंद्रमा बना दिया। भाईयों ने वीरवती से कहा कि चंद्रमा निकल आया है और उसे देखकर व्रत तोड़ लो। वीरवती ने वह नकली चंद्रमा देखकर व्रत तोड़ दिया और जल ग्रहण कर लिया। जैसे ही उसने व्रत तोड़ा , उसे यह सूचना मिली कि उसका पति गंभीर रूप से बीमार हो गया है। वीरवती को तुरंत आभास हुआ कि उसने चंद्रमा की पूजा किये बिना और सही समय से पहले व्रत तोड़ दिया, जिसके कारण यह अनहोनी हुई है। वह अत्यधिक दुखी हुई और पश्चाताप करने लगी , अपने पति की लंबी आयु के लिये वीरवती ने दृढ़ संकल्प किया और पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत फिर से रखा। उसकी भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया और उसका पति स्वस्थ हो गया।