स्कूल शिक्षा विभाग में “अदृश्य शक्तियों का सुपर पावर” तो नहीं??…

रायपुर (गंगा प्रकाश)। स्कूल शिक्षा विभाग में पूर्व की सरकार के कार्यकाल के दौरान व्याख्याता के अपात्र होने के बावजूद प्रभारी बीईओ बनाए रखने का ट्रेंड जोर शोर से आया था। वो इस सरकार में भी टॉप & टॉप  ट्रेंड के रूप में बरकार है। जो सवाल खड़े करता है कि इस विभाग में कोई ऐसी अदृश्य शक्ति का कोई सुपर पावर तो नहीं??…जिसकी मन मर्जी चल रही है। जो पात्र अपात्र में फर्क नहीं समझ पा रही है।

ऐसे में प्रश्न खड़ा होना लाजमी है कि राज्य में सैकड़ो की संख्या में प्राचार्य वर्ग दो और राज्य प्रशासनिक सेवा से चयनित सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारियों के कैडर के रहते व्याख्याताओं पर मेहरबानी क्यों हो रही है??… अब तो आलम यह है कि विभाग न्यायालय के अवमानना के मामले में गंभीर नजर नहीं दिखाई दे रही है..!! न्यायालय के निर्देश के बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से इन्हें लगातार अभय दान देकर तारीखें लगतार बढ़ाई जाती दिख रही है। इतना ही नहीं इस मामले में विभाग राज्य की सत्ताधारी दल की पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं की शिकायतों को भी नजर अंदाज करने से भी परहेज नहीं कर रही है..!

स्कूल शिक्षा विभाग के महानदी भवन में बैठे व्यवस्था की जिम्मेदार लोग लगता है कि छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा सेवा भर्ती पदोन्नति नियम 2019 की अनुसूची दो के अंतर्गत राजपत्र में जारी अधिसूचना के अनुसार पांच वर्षों से सेवारत प्राचार्य वर्ग दो या सहायक विकास खंड शिक्षा अधिकारी को विकास खंड शिक्षा अधिकारी बनाने की पात्रता जो छत्तीसगढ़ शासन की ओर से निर्धारित की गई है। इस नियम को समझने में चूक कर रहे है। यहां नियमों के जानकार अधिकारियों का अभाव भी दिखाई दे रहा है।

अदालत के आदेशों  में  कई बार यह बात सामने आ चुकी  है कि व्याख्याता विकास खंड शिक्षा अधिकारी बनने के पात्र नहीं है…! हाल ही में कोर्ट में इसी विषय से जुड़ा अवमानना का मामला भी सुर्खियों में रहा है। इसके बावजूद  प्रदेश के करीब 146 विकास खंडों में अभी तीन से चार दर्जन के लगभग व्याख्याता शिक्षक, प्रभारी विकास खंड शिक्षा अधिकारी के पद पर जमे हुए है।

सब कुछ जानते समझते हुए भी  छत्तीसगढ़ शासन का स्कूल शिक्षा विभाग मंत्रालय, महानदी भवन नवा रायपुर अटल नगर का व्याख्याताओं को बीईओ बनाने और बनाए रखने का मधुर प्रेम इस सुशासन की साय सरकार में भी बना ही हुआ है। अब देखना लाजमी होगा कि सुशासन की सरकार का ध्यान आखिर इन गंभीर मामलों में कब तक जाता है।

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