सूचना के अधिकार का हनन: प्रशासनिक लापरवाही या सुनियोजित षड्यंत्र?

सूचना के अधिकार का हनन: प्रशासनिक लापरवाही या सुनियोजित षड्यंत्र?

 

बिलासपुर (गंगा प्रकाश)। आरक्षक क्रमांक 840 अरुण कुमार कमलवंशी की पदोन्नति से जुड़ी जानकारी को लेकर दायर सूचना के अधिकार (RTI) आवेदन पर प्रशासन का टालमटोल और जवाब में देरी संजय जोशी के लिए संदेहास्पद बन गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि बिलासपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय सहित अन्य संबंधित कार्यालय जानबूझकर आरोपी को संरक्षण दे रहे हैं और अपराधों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

सूचना देने से इनकार नहीं किया जा सकता

 

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्रमोशन आदेश एक सार्वजनिक रिकॉर्ड होता है, जिसे सरकार द्वारा जारी किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के फैसलों के अनुसार, यह जानकारी व्यक्तिगत नहीं बल्कि प्रशासनिक होती है और इसे RTI के तहत मांगा जा सकता है।

1. प्रमोशन आदेश सार्वजनिक रिकॉर्ड होता है – जब कोई सरकारी कर्मचारी प्रमोट होता है, तो उसका आदेश सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होता है और आमतौर पर विभागीय नोटिस बोर्ड या वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया जाता है।

 

2. RTI अधिनियम, 2005 की धारा 4(1)(b) के तहत, सरकारी विभागों को अपने निर्णय लेने की प्रक्रिया और कर्मचारियों की पदोन्नति से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक करना अनिवार्य है।

 

3. यह व्यक्तिगत नहीं, बल्कि प्रशासनिक सूचना है – सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के फैसले स्पष्ट रूप से कहते हैं कि किसी सरकारी कर्मचारी की पदोन्नति, ट्रांसफर, वेतन आदि सार्वजनिक जानकारी होती है और इसे RTI के तहत मांगा जा सकता है।

 

घर पर हमला, धमकी और पुलिस की चुप्पी!

 

संजय जोशी ने बताया कि हाल ही में उनके घर पर पथराव किया गया और एक अनजान युवक संध्या 06 बजे उनके घर के अंदर घुसकर वीडियो रिकॉर्डिंग कर रहा था। जब घर में मौजूद राजा बंजारे ने इसका विरोध किया, तो उस युवक ने धमकी दी कि – “तुम लोग अरुण कमलवंशी को जानते नहीं हो, वो तुम्हारे खानदान को मिटा देगा!”

 

इस मामले की शिकायत सकरी थाने में दर्ज नहीं की गई, जिसके बाद पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपा गया। पुलिस अधीक्षक के आदेश पर जांच शुरू हुई, लेकिन जांच के दौरान अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेंद्र जयसवाल ने संजय जोशी को डराने-धमकाने का प्रयास किया और मामले को दूसरी दिशा में ले जाने की कोशिश की।

 

“समाज लिखापढ़ी को नहीं मानता” – एएसपी का विवादित बयान!

 

संजय जोशी ने बताया कि जब वह पुलिस अधिकारियों से न्याय की मांग कर रहे थे, तब अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक राजेंद्र जयसवाल ने ऐसा विवादित बयान दिया जिससे वह भी दंग रह गए। उन्होंने कहा – “समाज लिखापढ़ी को नहीं मानता!”

 

इसका ऑडियो प्रमाण संजय जोशी के पास मौजूद है। उन्होंने कहा कि यह कोई पहली बार नहीं है जब उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है, बल्कि प्रशासन द्वारा पहले भी कई बार इस प्रकार के दबाव बनाने के प्रयास किए जा चुके हैं।

सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 का उल्लंघन

संजय जोशी ने बताया कि उन्होंने आरक्षक क्रमांक 840 की पदोन्नति से संबंधित जानकारी दिनांक 31.12.2024 को सूचना के अधिकार के तहत मांगी थी। इस पर बिलासपुर पुलिस अधीक्षक कार्यालय से 05 फरवरी 2025 को पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें साफ-साफ 24 जनवरी 2025 की तारीख दर्ज थी।

उन्होंने सवाल उठाया कि – “जब पत्र 24 जनवरी को जारी हुआ, तो बिलासपुर से ही सकरी तहसील स्थित मेरे पते तक पहुंचने में 11 दिन क्यों लग गए? क्या यह आरोपी को बचाने और मुझे प्रताड़ित करने का सुनियोजित प्रयास नहीं है?”

जनता को गुमराह किया जा रहा है – संजय जोशी

संजय जोशी का कहना है कि प्रशासनिक तंत्र जानबूझकर जनता को गुमराह कर रहा है और गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि यदि एक साधारण नागरिक को अपने अधिकारों की जानकारी नहीं हो, तो प्रशासन उन्हें और भी अधिक प्रताड़ित कर सकता है।

उन्होंने इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए कहा कि – “यह सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि हर उस नागरिक की लड़ाई है जो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाना चाहता है।”

क्या प्रशासन इस पर कोई कार्रवाई करेगा?

अब देखना यह होगा कि क्या बिलासपुर पुलिस प्रशासन संजय जोशी की शिकायतों पर निष्पक्ष जांच करता है या फिर इस मामले को भी दबाने का प्रयास किया जाता है? क्या संजय जोशी को न्याय मिलेगा, या फिर प्रशासनिक लापरवाही का यह खेल यूं ही चलता रहेगा?

0Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *