समायोजन नहीं, तो संघर्ष सही! B.Ed सहायक शिक्षक खून से लिखने को मजबूर अपना भाग्य?…

रायपुर (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ की सड़कों पर एक बार फिर शिक्षकों की चीखें गूंज रही हैं। सरकारी नौकरी से निकाले गए B.Ed सहायक शिक्षक अब समायोजन की मांग को लेकर आर-पार की लड़ाई लड़ने को मजबूर हैं। लेकिन इस बार विरोध की तस्वीरें सत्ता के गलियारों को झकझोर देने वाली हैं-अपनी पीड़ा को कलम से नहीं, खून से लिखकर उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को संबोधित किया है!
क्या सरकार को सुनाई दे रही है युवाओं की चीख
शिक्षा, जिसे समाज की रीढ़ कहा जाता है, उसी शिक्षा के संवाहक अब अन्याय के खिलाफ खून बहाने को मजबूर हैं। ये वे युवा हैं जिन्होंने बच्चों के भविष्य को संवारने के सपने देखे थे, मगर अब खुद के भविष्य को लेकर अनिश्चितता की आग में जल रहे हैं, सरकारें जब चुनावी रैलियों में रोजगार देने के खोखले दावे करती हैं, तब यही सवाल उठता है कि जब युवाओं को शिक्षक बनने के लिए प्रेरित किया गया था, तब उनके अधिकारों की रक्षा की गारंटी क्यों नहीं दी गई? शिक्षक जैसा सम्मानजनक पद भी अगर राजनीतिक उदासीनता और लापरवाही की भेंट चढ़ रहा है, तो आम जनता की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।
समायोजन की मांग या सरकार की परीक्षा
क्या शिक्षकों का समायोजन कोई गैरवाजिब मांग है? बिल्कुल नहीं। यह उनका हक है। यह सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है कि वह इन शिक्षकों की पीड़ा को समझे और उनके भविष्य का सम्मानजनक समाधान निकाले। यदि शिक्षक ही हताश होकर सड़कों पर संघर्ष करेंगे, तो नई पीढ़ी को कौन दिशा देगा? सरकार को इस संवेदनशील मुद्दे पर तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए, वरना यह आंदोलन एक बड़े जनाक्रोश का रूप ले सकता है, जिसकी गूंज सत्ता के गलियारों तक सुनाई देगी।