सरकारी दावों के बीच खुली मजदूरों के पलायन की पोल:श्रीनगर में बंधक बनाए गए छत्तीसगढ़ के श्रमिक, सीएम भूपेश बघेल ने कहा- की जाए त्वरित कार्रवाई

रायपुर(गंगा प्रकाश):-छत्तीसगढ़ सरकार गांवों में रोजगार के अवसर बढ़ाने का दावा करती है, लेकिन जमीनी सच्चाई जस्ट उलट है। छत्तीसगढ़ के लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं।  सैकड़ों लोग गांव छोड़कर उत्तरप्रदेश, तेलंगाना,आंध्रप्रदेश, हैदराबाद,से लेकर कश्मीर के ईंट भट्ठों में काम करने चले जाते है और शासन को खबर तक नहीं लगती।और सरकार बड़े बड़े दावे जरूर करती हैं कि हमारे यहां रोजगार की कमी नही हैं।जबकि हर साल रोजगार की तलाश में अपना गांव-घर व परिजनों को छोड़कर छत्तीसगढ़ के हजारों लोग अन्य प्रदेशों में पलायन करते हैं। प्रदेश के अधिकतर जिले पलायन से प्रभावित हैं।बेरोजगारों का प्रदेश बन गया है छत्तीसगढ़।

उद्योगों के लिए कृषि भूमि अधिग्रहित करने से खेतिहर मजदूरों व छोटे किसानों के बेरोजगार होने और इन उद्योगों में स्थानीय के बजाय बाहरी लोगों को रोजगार मिलने से भी प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ रही है।

किसी भी समाज की खुशहाली के लिए जरूरी है कि विभिन्न कारणों से होने वाले पलायन को रोका जाए। छत्तीसगढ़ में हो रहे पलायन के सरकारी आंकड़े न केवल विचलित करते हैं, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करते हैं। सरकारी दावों के बावजूद पलायन न रुकना यह बताता है कि विकास के लिए जिस तरह के समेकित प्रयास होने चाहिए वह नहीं हो रहा है।समय-समय पर किसानों की आत्महत्या भी इशारा करती है कि गांवों में लोगों का आर्थिक आधार मजबूत नहीं है। दूसरी ओर पलायन केवल आर्थिक समस्या नहीं है। यह एक ही साथ राजनीतिक समस्या भी है और सामाजिक समस्या भी।

चुनाव के समय एक-एक वोट तक पहुंचने की कोशिश करने वाले नेताओं के लिए शर्म की बात है कि उनके झूठे वादों के वजह से उनके ‘वोटर पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं। इसके अलावा पलायन सामाजिक रूप से हमारी कमजोरी को भी उजागर कर देता है।समाज अगर सशक्त और परस्पर एकजुट रहे तो पलायन रुक जाएगा। राजनीति अगर वोट के पीछे खड़े इंसान की सेवा करे तो पलायन खत्म हो जाएगा। सरकारी महकमा अगर अपनी एक-एक योजनाओं का लाभ वंचितों तक पहुंचाने लगेगा तो पलायन करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। छत्तीसगढ़ के लोग यही उम्मीद करते हैं कि हर मोर्चे पर पलायन रोका जाए।ग्रामीणों का पलायन करना न सरकार के हित में है, न समाज के और न ही प्रदेश के। ऐसे में ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध नहीं कराने के लिए दोषी चाहे सरकार के नुमाइंदे हों, जनप्रतिनिधि हों या फिर नौकरशाह, किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। यदि सरकार ऐसा नहीं करती तो इसका मतलब साफ है कि रोजगार उपलब्ध कराने में लापरवाही बरत रही है और प्रदेश के गरीब व बेरोजगार ग्रामीणों की अनदेखी कर रही है।बताना लाजमी होगा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने श्रीनगर के बडगाम जिले में छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा और सक्ती जिले के 60-65 श्रमिकों को बंधक बनाए जाने का मामला संज्ञान में आने पर जिला प्रशासन जांजगीर-चांपा को त्वरित कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद में जांजगीर-चांपा के कलेक्टर तारन प्रकाश सिन्हा ने मामले की जांच और बंधक श्रमिकों को आवश्यक मदद पहुंचाने की कार्रवाई की है। जिला प्रशासन जांजगीर-चांपा और जिला प्रशासन बडगाम (श्रीनगर) की संयुक्त पहल से वहां काम न करने के इच्छुक श्रमिकों को वापस लाने की पहल शुरू कर दी गई है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जल्द कार्रवाई करने के लिए दिए निर्देश

जिला जांजगीर-चांपा और जिला-सक्ती (छ.ग) के लगभग 60-65 श्रमिक जम्मू कश्मीर के डोंगारगांव चुटरू, जिला-बडगाम (श्रीनगर) के ईट भट्ठे में अधिक रुपये कमाने लिए गए हुए थे और श्रमिकों को भट्ठा मालिक/जमीदार द्वारा मजदूरी का भुगतान भी नहीं किया जा रहा है। इस मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जिला प्रशासन जांजगीर-चांपा को प्रभावी कार्रवाई के निर्देश दिए।

छत्तीसगढ़ प्रशासन ने श्रीनगर के प्रशासन से की बात

मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद जिला प्रशासन जांजगीर-चांपा द्वारा बडगाम (श्रीनगर) के प्रशासन से सम्पर्क किया गया और उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया,जिला प्रशासन बडगाम द्वारा एक संयुक्त टीम जिसमें प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, सहायक श्रम आयुक्त और क्षेत्रीय पुलिस प्रशासन की बनाई गई. इस संयुक्त टीम के द्वारा शिकायत पर 13 सितंबर 2022 को जांच की गई और जिला प्रशासन जांजगीर-चांपा को वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया। संयुक्त टीम के प्रतिवेदन अनुसार श्रमिक बंधक नहीं थे, स्वतंत्र रूप से कार्य कर रहे थे।पैसों को लेकर कुछ विवाद अवश्य था जिसका प्रशासन के हस्तक्षेप से समाधान करा दिया गया है. 25-30 श्रमिक अपने राज्य वापस जाना चाहते है।पंचनामा तैयार कर श्रमिकों को गृह राज्य छत्तीसगढ़ भेजने की प्रक्रिया पूरी की जा रही है।

प्रशासन ने की अपील

जिला प्रशासन जांजगीर-चांपा ने सभी श्रमिकों से अपील की है कि ज्यादा मजदूरी पाने की लालसा में अन्य राज्यों में जाने के बजाय स्थानीय स्तर पर रोजगार व्यवसाय से जुड़कर आजीविका का साधन प्राप्त करें। स्थानीय स्तर पर रोजगार के पर्याप्त संसाधन उपलब्ध है।

मजदूरों की पलायन की मजबूरी

छत्तीसगढ़ के 2011 जनगणना के अनुसार एक परिवार के पास 0.27 हेक्टेयर खेती की जमीन है। और एक मौसम में एक ही खेती होती है,उसमें भी बारिश के ऊपर निर्भर होते है। अगर अच्छी खेती हुई तो ठीक नही तो आय कम हो जाती है,और घर चलाने के लिए प्रवास करना होता है।प्रवासी मजदूर की विभिन्न समस्याएं होती है, जैसे कि हमें गांव या कस्बे में रहते हुए रोटी, कपड़ा, मकान की भरपाई ना हो पाना और बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए भी एक जगह से दूसरे जगह प्रवास करना होता है।

मनोज सिंह कहते हैं, हम लोगों को प्रतिदिन 250 रुपये मिल सके, इसलिए मजदूरी करते हैं और अपने घर के खर्चे चलाते हैं। जैसे-ईंट के भठ्ठो में जाकर के ईट बनाना औऱ इनसे मिले पैसों को अपने बच्चों की पढ़ाई,लिखाई के लिए और खाना के लिए खर्च करना। गांव में अधिकतर लोगों को साल भर काम नहीं मिल पाता। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ में कुल कर्मियों की संख्या 1,21,80,225 जो कि कुल जनसंख्या का 47.7% है।काम न होने के कारण बच्चों को सही पोषक तत्व नहीं मिल पाता हैं। माता पिता को प्रतिदिन अपने बच्चों की चिंता लगी रहती है, की वे अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई और खानपान का खर्च कैसे उठाएं। ऐसे में उनके पास प्रवास के अलावा कोई चारा नहीं बचता।गांव में मनरेगा के तहत काम मिलता है, लेकिन पैसे समय से नहीं आते। बैंक के चक्कर काटते काटते लोग परेशान हो जाते हैं। कई लोग पैसे की तंगी में अपने बच्चों की पढ़ाई लिखाई की भी नहीं सोचते और परिवार समेत दूसरे राज्य में पलायन कर जाते हैं। जिससे घर की गरीबी स्थिति और भी बढ़ जाती है।प्रवासी मजदूर वोट डालने के समय घर आते हैं, और अपनी नागरिकता का प्रमाण देकर चले जाते हैं,और सरकार द्वारा दी जाने वाली बहुत सारे लाभों से वंचित हो जाते हैं। जिससे वे गरीबी की ओर और अग्रसर हो जाते हैं और अपनी स्थिति का जिम्मेवार सरकार को ही हैं। उनके बच्चों के अधिकार भी छीन लिए जाते हैं। जैसे शिक्षा का अधिकार,स्वास्थ्य का, इससे वे आगे चलकर बेरोजगार ही रह जाते हैं शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक अर्ध विकसित मानसिकता के कारण गांव में ऐसे प्रवासी मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है। बहुत सारे लोग तो गांव के साहूकार से या गांव के कोई रिश्तेदार से 20,000-30,000रुपये कर्ज लेकर कमाने चले जाते हैं।इन कर्ज़ को चुकाने में ही उनकी सारी उम्र चली जाती है और इस प्रकार वे अपनी बहुत सारी इच्छाओं को मारकर निरंतर प्रवासी मजदूर ही बने रहते हैं। जमीन के कारोबारी लेनदेन के कारण बहुत सारे लोगों को अपना घर बार छोड़कर या बेच कर प्रवास करना पड़ता है, और बहुत सारे लोगों को तो अपने  गहने बैंक बैलेंस सब कुछ को देना पड़ता है।अधिकतर गांव के मजदूर अपने सपने पूरे करने के लिए प्रवास को बेहतर समझते हैं,जैसे 6 महीने या 7 महीने के लिए प्रवास करने से वे 40 से 50 हजार कमा कर लाते हैं।और उसी से अपना  घर बनाते हैं और अपनी बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्च भी उसी से उठाते हैं। ऐसे माता-पिता ज्यादा शिक्षित नहीं होते और अपने कार्य क्षमता के अनुसार काम ढूंढते रहते हैं।जबकिं “बाहर बाहर ही होता है अपना देश ,राज्य,गांव अपना ही होता है।” बाहर में अपने गांव के परिवेश जैसा  माहौल नहीं मिलता और झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं। ढंग से बिजली पानी नहीं मिल पाता, फिर भी जैसे-तैसे रह लेते हैं,लोगों के दबाव में भी रहते हैं.। बहुत सारे मजदूर पूरे पैसों को लिए बिना ही घर वापस आ जाते हैं ,क्योंकि जो ठेकेदार और जमादार होते हैं। वह पैसे देने में कोताही करते हैं और देर से देते हैं।अक्सर गांव के मजदूर जनवरी माह से पलायन करना शुरू कर देते हैं,और 6 महीने के बाद आते हैं।मजदूरी के लिए बाहर जाना हमारी मजबूरी है।इन मजदूर परिवार के बहुत सारे सदस्य जो घर पर ही रह जाते हैं।और काम करने लायक नहीं होते,जैसे-बच्चे और बुजुर्ग वे पलायन करने वाले माता-पिता पर ही निर्भर रहते हैं।और उनके आने का इंतजार करते हैं। तब तक गांव में उनके खाने-पीने का व्यवस्था करने के लिए दुकानदारों से उधारी खाता चलता है। और कपड़े के दुकान हो या बर्तन के दुकान राशन के सभी में उधारी खाता चलाते हैं ।और जब माता-पिता आ जाते हैं तो वही दुकानदार ज्यादा पैसा  बढ़ा चढ़ाकर उनको बहीखाता दिखाते हैं,जिससे मजदूरों को पैसा चुकाना ही पड़ता है ।इस प्रकार परिवार भी पूरी तरह कमजोर रहता है ।और उनकी पूर्ति नहीं हो पाती इसलिए बहुत सारी चीजों से वंचित रहते हैं, जैसे बहुत सारे एग्जाम नहीं दिला पाते ,अगर बच्चे भी चले जाते हैं।तो उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य और मानसिक प्रवृत्तियों पर प्रभाव पड़ता है। वह आम बच्चों की तरह नहीं बल्कि हमेशा पारिवारिक लेनदेन में ही रह जाते हैं, घर परिवार को चलाने के लिए आम दानी करने के रास्ते बहुत कम होते हैं,इसलिए कई बच्चे 14 साल में ही मजदूरी का काम करने लगते हैं।और घर के युवा सिर्फ अपने सर्वांगीण विकास बाधित कर के परिवार के भरण-पोषण में ध्यान देने लगते हैं,और वे अपने आप को सक्षम नागरिक नहीं बना पाते हैं। छोटे-मोटे हुनर सीखकर अपना घर चलाने लगते हैं,और इन्ही सब के कारण पढ़ाई लिखाई के बारे में सोचने के लिए उनके पास समय नहीं रहता और इसी प्रकार उनकी जीवन चर्या चलती जाती है।जो पलायन नहीं करते गांव में ही रह कर खुद का स्वरोजगार करते हैं।या दूसरों के घरों में मजदूर बनकर काम करने जाते हैं। प्रतिदिन डेढ़ सौ रुपए काम के बदले में मिल जाते हैं, और अपना खेती-बाड़ी करके परिवार की सहायता करते है और अपना खर्चा चलाते हैं। परिवार के अन्य सदस्य जैसे भाई-बहन, माता-पिता, दादा-दादी सब मिलकर अपने घर के व्यवसाय को इसी प्रकार बढ़ाते जाते हैं ।इस प्रकार उनके घर का खर्च चलता रहता है।जो परिवार को छोड़कर बाहर नहीं जाना चाहते हैं ,गांव में ही रह जाते हैं।गांव में छोटे कारोबार करने वाले लोगों के साथ मिलकर अपने मजदूरी के लिए काम करते हैं, करोना काल में जिस प्रकार लोग बाहर काम करने नहीं गए वे लोग गांव में या सड़कों में रह कर फल की दुकान या चाय,नाश्ता,होटल जैसे किराना दुकान खोलकर अपना घर का खर्चा चला रहे थे औऱ ये भी लोग दूसरों से कर्ज लेकर अपना कारोबार शुरू किए होते हैं.|इस प्रकार  प्रावशी मजदूरों को कई  प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है ।इस प्रकार प्रवासी मजदूरों के लिये देश के हर राज्य में मनरेगा , उज्ज्वला , सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जानी चाहिये । प्रवासी मजदूरों के गृह राज्य , आयु , कार्य करने की क्षमता के आधार पर एक विस्तृत डेटाबेस स्थापित किया जाना चाहिये औऱ राज्यों के बीच प्रवासी मज़दूरों से जुड़े विवादों के समाधान हेतु संविधान के अनुच्छेद -263 के तहत स्थापित ‘ अंतर्राज्यीय परिषद ‘ ( The Inter – State Council – ISC ) की सहायता ले सकते है।ताकि एक मजदूर ,मजबूर न रहे।

पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव

पलायन या प्रवास एक सार्वभौमिक तथ्य है। दुनिया के प्रत्येक समाज में किन्हीं न किन्हीं कारणों से प्रवास की प्रवृत्ति आवश्यक रूप से देखा जा सकता है। प्रवास के कारण भी अनेक हो सकते हैं, कभी प्रवास का कारण धार्मिक यात्रा या तीर्थांटन होता है तो कभी उच्च शिक्षा, रोजगार युद्ध, अकाल व महामारी जनसंख्या के बड़े पलायन का कारण बनती है। कारण के अनुरूप ही हमें इसका प्रभाव भी समाज में सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों ही रूपों में देखने को मिलता रहा है। जहाँ सकारात्मक प्रवास के प्रभाव भी सकारात्मक होते है, वहीं विपत्ति एवं आपदा में किये जाने वाले प्रवास का नकारात्मक प्रभाव भी समाज पर पड़ता है। भारत में प्रवास की प्रकृति को अभी तक मूल रूप से प्राकृतिक आपदा, गरीबी और भूखमरी से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसका कारण भी वाजिब है, क्योंकि भारत की जनगणना 2001 के अनुसार देश की कुल आबादी का 26 प्रतिषत भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करता है और प्रवास का संबंध इस बड़े भाग से रहा है। भारत में जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार देश की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ आंकलित की गयी है जिसमें 68.84 प्रतिषत जनसंख्या गांवों में निवास करती है, जबकि 31.16 प्रतिषत की आबादी षहरों में निवास करती है। स्वतंत्र भारत के प्रथम जनगणना 1951 में गांवों और षहरों की आबादी का अनुपात 83 प्रतिषत एवं 17 प्रतिषत था। आजाद भारत के छः दषक बाद 2011 की जनगणना में गांवों और षहरों की जनसंख्या का प्रतिषत 70 एवं 30 प्रतिषत थी। इन आंकडों से स्पष्ट होता है,कि भारत में गांव के व्यक्तियों का षहरों की ओर पलायन बढ़ रहा है।भारत में प्रवास का जो स्वरूप देखने को मिलता है,वह ग्राम में नगर उत्प्रवास मुख्य है, अर्थात् लोग विभिन्न कारणों से गाँव से षहर की ओर प्रवास करते हैं। ऐसी स्थिति में इसका सर्वाधिक प्रभाव भी ग्रामीण समुदाय में ही देखा जा सकता है,यदि हम इसके प्रभाव की व्यापकता पर विचार करते हैं तो इससे बच्चे और वृद्ध ही सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। एक ओर जहाॅं पूरा विष्व भारत को 21वीं सदी के महाषक्ति के रूप में देख रहा है, जिसका कारण भारत में कार्यषील जनसंख्या का प्रतिषत दुनिया में सर्वाधिक होना है।प्रस्तुत अध्ययन ग्रामीण क्षेत्रों से लघु व सीमांत कृषकों तथा भूमिहीन मजदूरों के पलायन से संबंधित है, जिसमें परिवार के कार्यषील सदस्यों (युवा सदस्यों) के पलायन के फलस्वरूप परिवार में रह गये वृद्धजनों या महिला और बच्चों सहित परिवार पर प्रभाव को ज्ञात किया गया है। अध्ययन मुख्य रूप से श्रमिक परिवारों पर केन्द्रित है। अध्ययन में कार्यशील श्रमिक परिवार के सदस्यों पलायन से उनके सामाजिक-आर्थिक स्थिति का बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभावों को शोधपरक ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।अतः स्पष्ट है, कि छत्तीसगढ़वासियों का सम्पूर्ण जीवन आधार कृषि है, कृषि का स्वरूप भी अनुपजाऊं एवं एक फसलीय है, वही ग्रामीण क्षेत्रों की बढ़ती जनसंख्या एवं आवष्यकताओं की वृद्धि ने ग्रामीण क्षेत्रों से श्रम पलायन की प्रवृत्ति में निरंतर वृद्धि की है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय श्रम की अनुपलब्धता ने स्थानीय विकास को प्रभावित किया है इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए इस विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया गया है, ताकि छत्तीसगढ़ से श्रम पलायन का यहाॅ की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा सके। प्रस्तुत षाोध प्रबंध “पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के समाजिक-आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन ”(जांजगीर-चांपा जिले के विषेश संदर्भ में) षोधकर्ता द्वारा इस समस्या के समाधान के लिए अध्ययन किया गया,जिसके द्वारा पलायन करने वाले श्रमिक परिवारों के समाजिक-आर्थिक स्थिति का उनके बच्चों की षिक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन की वास्तविक स्थिति की प्राप्ति हुई है।

पलायन का अर्थ

पलायन शब्द का प्रयोग प्रवास के संदर्भ में ही किया जाता है,क्योंकि पलायन शब्द की कोई पृथक व्याख्या उल्लेखित नहीं मिलती है। छत्तीसगढ़ राज्य के श्रमिकों के प्रवास को पलायन की प्रवृत्ति से जोड़कर देखा जाता रहा है। वास्तव में पलायन भागने की प्रवृत्ति की ओर इषारा करता है। जब कोई व्यक्ति अपने कत्र्तव्यों से विमुख होता है तो इसे ही पलायनवादी प्रवृत्ति कहा जाता है। छत्तीसगढ़ राज्य के श्रमिकों के प्रवास को पलायन की प्रवृत्ति से जोड़कर देखा जाता रहा है क्योंकि यहां के लघु व सीमांत कृषक तथा भूमिहीन मजदूर मूलनिवास के आस-पास रोजगार की संभावनाओं को तलाषने के स्थान पर सीधे ही देश व राज्य के बड़े नगरों की ओर रोजगार की तलाष में पलायन करते है। विगत कई वर्षों से पलायन की प्रवृत्ति इन्हें आदतन पलायनकर्ता बना चुकी है। परिणामतः चाहे परिस्थितियां सामान्य हो, अच्छी बारिश हो, रोजगार उपलब्ध हो तो भी ये राज्य या राज्य के बाहर प्रवास करते है और इसी प्रवृत्ति को पलायन कहा जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में पलायन से संबंधित सभी अवधारणाओं की व्याख्या प्रवास की सैद्धातिक व्याख्या एवं अवधारणाओं को ध्यान में रखकर किया गया हैं।

अध्ययन की हैं आवष्यकता

स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है। षिक्षा स्वस्थ्य समाज का निर्माण करती है एवं स्वस्थ समाज में खुशहाली व सम्पन्नता होती है। समाज की इकाई व्यक्ति है। यह सर्वविदित है कि इस इकाई की दृढ़ता पर समाज निर्भर रहता है। समाज सही दिषा में विकास करें। इसके लिए आवष्यक है,कि समाज में रहने वाले षिक्षित हो। सभी लोगों को षिक्षित करने के लिए सिर्फ सरकारी नीतियाँ ही सहायक नहीं होती हैं। वरन् व्यवहार के रुप में सकारात्मक कदम उठाने से है। श्रम पलायन करने वाले परिवारों के समक्ष न केवल आर्थिक समस्या है,वरन् सामाजिक, आर्थिक, पारिवारिक स्थिति से संबधित समस्याएं भी आती हैं। इन समस्याओं का उचित समाधान नहीं हो पाता तो वे कुंठा के शिकार हो जाते हैं। इस स्थिति में बालक – बालिका के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस समय उनको सही मार्गदर्षन की आवष्यकता होती है,पर पालक उनको पूरा-पूरा समय नही दे पाते, जिसका कारण यह है, कि वे अपने प्राथमिक आवष्यकता (रोटी, कपड़ा व मकान) की पूर्ति में दिन रात लगे रहते हैं। तो वे अपने बच्चों के विकास पर कैसे ध्यान दे पायेगे।

बच्चों के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान शिक्षा का है, षिक्षा प्रकाष का वह स्रोत है, जो बालक के विकास के प्रत्येक पक्ष में सच्चा पथ प्रदर्शन करती है और यदि बालक के परिवार आर्थिक समस्या से ग्रसित है,तो उनके लिये शिक्षा कैसे विकास का कारण बन सकता है। इस तरह आज पोषित, दलित व मजदूर वर्ग के लोगों के बच्चे के समक्ष अनेक समस्याएं होने के कारण वे षिक्षा से वंचित रह जाते हैं।पलायन करने वाले श्रमिक परिवार जो समाज में षोषक मेहनती व कमजोर हैं तथा रात दिन मजदूरी करने में लगे रहते हैं, वहां के बच्चों का शैक्षणिक स्तर बहुत अच्छा नहीं होता है और ये श्रम पलायन करने वाले परिवारों के जीवन में षिक्षा के महत्व को भली-भांति समझते हैं। लेकिन अपने आर्थिक समस्या के कारण बच्चों के षिक्षा-अर्जन में उत्पन्न समस्या को दूर नहीं कर पाते। श्रम पलायन करने वाले परिवारों के बच्चों की षैक्षिक समस्या एक ज्वलंत समस्या के रुप में विद्यमान हैं।शासन द्वारा शिक्षा से संबंधित चलाये जा रहे, विभिन्न अभियानों के फलस्वरुप भी वांछित परिणामों की प्राप्ति नहीं हो पा रही हैं। अतः श्रम पलायन करने वाले परिवारों के बच्चों की  शैक्षणिक समस्या का अध्ययन आवष्यक है,जिसके द्वारा इन बच्चों की शैक्षणिक समस्याओं का सूक्ष्म अध्ययन कर उन कारणों का पता लगाया जा सकें,जो इन बच्चों की शिक्षा के प्राप्ति में अवरोध उत्पन्न करते हैं, जिससे इन अवरोधों को दूर कर बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। अतः उक्त बातें अध्ययन की आवष्यकता को स्पष्ट करता हैं।

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