राजा खुज्जी का ऐतिहासिक लंगड़ा आम: नवाबों की विरासत से अंतरराष्ट्रीय पहचान तक

राजा खुज्जी का ऐतिहासिक लंगड़ा आम: नवाबों की विरासत से अंतरराष्ट्रीय पहचान तक

 

धनंजय गोस्वामी

डोंगरगांव-(गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के डोंगरगांव ब्लॉक का ग्राम खुज्जी, शिवनाथ नदी के तट पर बसा एक ऐतिहासिक स्थल है। यह क्षेत्र अंग्रेजों के जमाने से ही अपनी समृद्ध विरासत और खास पहचान के लिए चर्चित रहा है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में यह एकमात्र मुस्लिम जमींदारी थी, जहां नवाबों का शासन था। तत्कालीन समय में खुज्जी के नवाबों के अधीन लगभग 32 ग्राम थे, जिनसे वे कर वसूली कर प्रशासनिक व्यवस्था संचालित करते थे।

             छत्तीसगढ़ की सबसे छोटी जमींदारी मानी जाने वाली खुज्जी जमींदारी के नवाब मोहिनुद्दीन प्रकृति प्रेमी थे। उन्होंने अपने क्षेत्र की खाली जमीनों पर अमरूद और आम के बगीचे विकसित किए। इनमें से एक खास बगीचा शिवनाथ नदी के किनारे लगाया गया, जहां लंगड़ा आम के पेड़ बड़ी संख्या में लगाए गए। पहले इस बगीचे में लगभग दो हजार आम के पेड़ थे, लेकिन वर्तमान में केवल चार सौ के करीब पेड़ शेष बचे हैं। आज भी इन पेड़ों पर लगे आम के मौर और फलों को नदी के इस किनारे से देखा जा सकता है।

भारत में आम की लगभग 1500 किस्में पाई जाती हैं, जिनमें बनारसी लंगड़ा आम एक प्रमुख प्रजाति है। इसकी उत्पत्ति 250-300 वर्ष पूर्व बनारस के एक शिव मंदिर से मानी जाती है। मान्यता के अनुसार, एक संत अपने साथ एक विशेष आम का बीज लेकर आए और इसे मंदिर परिसर में रोपा। वहां यह वृक्ष तेजी से बढ़ा और अत्यंत मीठे आम देने लगा। चूंकि मंदिर का पुजारी दिव्यांग था, इसलिए इस आम को ‘लंगड़ा आम’ कहा जाने लगा।

                 इस आम के बीज को लंबे समय तक मंदिर से बाहर नहीं दिया गया, लेकिन काशी नरेश के आग्रह पर एक बीज उन्हें दिया गया, जिससे यह प्रजाति पूरे देश में फैल गई। यही प्रजाति बाद में खुज्जी जमींदारी तक भी पहुंची।

आज लंगड़ा आम उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में उगाया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि पकने के बाद भी इसका रंग हरा बना रहता है, जबकि अन्य आम पीले हो जाते हैं। इसका गूदा रेशारहित, मुलायम और अत्यंत मीठा होता है। इसकी ऊपरी परत पतली होती है और हल्के रंध्र पाए जाते हैं, जिसके कारण इसे ‘दूधिया लंगड़ा आम’ भी कहा जाता है।

खास बात यह है कि खुज्जी जमींदारी के नवाबों की रिश्तेदारियां पाकिस्तान में होने के कारण यह लंगड़ा आम वहां भी पहुंचा और बेहद पसंद किया जाने लगा। आज भी बनारस के कंपनी गार्डन में इस आम के ‘मदर ट्री’ को संरक्षित रखा गया है।

खुज्जी का लंगड़ा आम न केवल क्षेत्रीय स्तर पर बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना चुका है, जो इस ऐतिहासिक जमींदारी की एक महत्वपूर्ण विरासत को दर्शाता है। यह आम हमे मई महीने में पका हुआ खाने को उपलब्ध रहेगा।

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