न्यायधानी में “राजस्व विभाग बना दलालों का अड्डा!” खुद खसरा बटांकन करें और फिर कहें -‘हमें जानकारी नहीं’!…

न्यायधानी में “राजस्व विभाग बना दलालों का अड्डा!” खुद खसरा बटांकन करें और फिर कहें -‘हमें जानकारी नहीं’!…

 

बिलासपुर (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ की न्यायधानी में भूमाफिया अब खुलेआम नंगा नाच कर रहे हैं, और राजस्व विभाग उनके लिए रेड कारपेट बिछा रहा है। किसानों की जमीनें औने-पौने दामों पर लूटकर बिना रजिस्ट्री और बिना डायवर्शन, खेतों को प्लॉट में तब्दील किया जा रहा है—और सरकार की आंखें बंद हैं, या कहिए जानबूझकर बंद कर दी गई हैं।

“ये राज नहीं, साज़िश है!” :

जब भूमाफिया खेत के टुकड़े कर बेचते हैं तो नक्शा, खसरा, नामांतरण, डायवर्शन—सब कुछ उन्हीं राजस्व अधिकारियों की मुहर से होता है जो बाद में कह देते हैं, “हमें जानकारी नहीं थी।”

सवाल ये है : बिना उनकी मिलीभगत के क्या एक खसरा भी हिल सकता है?

“तहसील नहीं, भ्रष्टाचार का खदान!” :

राजस्व न्यायालय अब न्याय का नहीं, रिश्वत का अड्डा बन चुका है। जहाँ आम आदमी की फाइल धूल फांकती है, वहीं भूमाफियों की अवैध फाइलें नोटों की चटाई पर उड़ती हैं। जिन अफसरों की कलम संविधान और कानून से चलनी थी, वो अब सिर्फ नोटों की गड्डियों से चलती है।

“किसानों से धोखा, जनता से ठगी!” :

भूमाफिया पहले किसान को बहलाते हैं, फिर बिना नामांतरण, बिना पंजीयन, मुख्तियारनामा के सहारे उसकी जमीन काटकर बेच देते हैं। और फिर आम आदमी को बिना सड़क, पानी, बिजली वाले अवैध प्लॉट में फंसा देते हैं। इसका पूरा खाका राजस्व विभाग के भ्रष्टाचार से ही संभव है।

“सरकार बदली, सिस्टम वही है!” :

सत्ता परिवर्तन के बाद उम्मीद थी कि अब न्यायधानी से अवैध प्लाटिंग का खात्मा होगा। लेकिन कुछ जेसीबी की ‘ड्रामा कार्यवाही’ के बाद पूरा सिस्टम फिर भूमाफियाओं की गोद में जा बैठा। न जेसीबी चल रही है, न कलम। चल रहा है तो बस भूमाफियों का धंधा और अफसरों की दलाली!

“विष्णु सरकार की चुप्पी—समर्थन या असमर्थता?” :

क्या ये वही सुशासन है जहां भूमाफिया अखबारों में विज्ञापन देकर अवैध प्लॉट बेचते हैं और शासन सिर्फ देखता रहता है? क्या राजस्व अधिकारी और जनप्रतिनिधि मिलकर इस अपराध को संरक्षण दे रहे हैं? कितने अफसरों की जेब में हैं प्लॉट? कितने नेताओं को मिली है ‘कमीशन की कॉलोनी’?

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