पोड़ी उपरोड़ा व पाली जनपद में प्रधानमंत्री आवास योजना में बड़ा खेल, भ्रष्टाचार ने ली योजना की असली आत्मा की बलि

कोरबा (गंगा प्रकाश )। केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब, वंचित और बेघर परिवारों को पक्के घर उपलब्ध कराना है। वर्ष 2016 में शुरू की गई इस योजना का लक्ष्य था कि 2024 तक हर जरूरतमंद ग्रामीण के सिर पर पक्की छत हो। लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर नजर आ रही है, खासकर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के पोड़ी उपरोड़ा और पाली जनपदों में।
यहां योजना का लाभ गरीबों को उनके हक के रूप में नहीं, रिश्वत और अहसान के रूप में मिल रहा है। सरकारी दस्तावेजों में पारदर्शिता का दावा किया जा रहा है, लेकिन जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार ने इस योजना की आत्मा को ही निगल लिया है।
भ्रष्टाचार की गहराई: मरने वालों को जिंदा दिखाकर निकाले गए पैसे
जानकारी के अनुसार, पाली जनपद के एक ग्राम पंचायत में एक वृद्ध निराश्रित व्यक्ति के नाम पर प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत किया गया। दुर्भाग्यवश, लाभ मिलने के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन भ्रष्टाचार की हद देखिए — संबंधित अधिकारी एवं बिचौलियों ने मृतक को जिंदा दिखाकर तीन किस्तों में पूरी राशि आहरित कर ली। ऐसा प्रतीत होता है कि जिम्मेदार लोग स्वर्ग में भी उनके लिए पक्का घर बनवाने को तत्पर थे।
ग्रामीणों ने इस गड़बड़ी की शिकायत जनपद सीईओ को एक महीने पूर्व की थी, लेकिन अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है। इससे यह संकेत मिलता है कि स्थानीय प्रशासनिक तंत्र पर भ्रष्टाचारियों की पकड़ कितनी मजबूत है।
फर्जी दस्तावेज, गलत लाभार्थी और बिना निर्माण निकली किस्तें
पोड़ी उपरोड़ा जनपद में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है। कई मामलों में अपात्र लोगों को पात्र दिखाकर योजना का लाभ दे दिया गया।
- पुराने कच्चे मकानों को रंग-रोगन कर नया दिखा दिया गया, और उसके आधार पर पूरी राशि उठा ली गई।
- लाभार्थियों की पहचान के लिए आधार, बैंक खातों, और जियोटैग जैसी तकनीकों का दुरुपयोग किया गया।
- कुछ मामलों में वास्तविक लाभार्थी की जगह किसी और के नाम पर आवास स्वीकृत करवा कर पैसा निकाल लिया गया।
- मनरेगा जॉब कार्ड का फर्जी उपयोग कर दूसरे व्यक्ति को पीएम आवास योजना का लाभ दिला दिया गया।
इन तमाम मामलों में आवास मित्र, रोजगार सहायक और योजना से जुड़े अन्य अधिकारी सीधे तौर पर शामिल होने के संकेत मिले हैं। यह भ्रष्टाचार इतने संगठित ढंग से किया गया है कि आम ग्रामीण, जो सच में इस योजना का हकदार है, वह वर्षों से बस इंतजार कर रहा है।
डीबीटी और आधार जैसे उपाय भी बेअसर
सरकार द्वारा डिजिटल ट्रांसफर (DBT) और आधार कार्ड को पारदर्शिता का माध्यम माना गया, लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि इन उपायों को भी धोखा देने के तरीके निकाल लिए गए हैं। नाम, फोटो और दस्तावेजों में हेरफेर कर भ्रष्टाचारियों ने योजनागत लाभ को निजी कमाई का जरिया बना लिया है।
लोगों को हक नहीं, अहसान समझकर मिल रहा है मकान
ग्रामीणों का कहना है कि यदि यह योजना वास्तव में हक के रूप में मिलती, तो उन्हें रिश्वत नहीं देनी पड़ती। कई ऐसे परिवार हैं जो कच्चे मकानों में रह रहे हैं, बार-बार आवेदन देने के बाद भी आज तक उन्हें लाभ नहीं मिला। वहीं दूसरी ओर, अपात्रों को नियमों को ताक पर रखकर आवास दे दिए गए हैं।
भौतिक सत्यापन की ज़रूरत
इन दोनों जनपदों में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत हुए निर्माण कार्यों का भौतिक सत्यापन कराया जाना आवश्यक है। यह सत्यापन न केवल जमीनी सच्चाई को उजागर करेगा, बल्कि भविष्य में योजनाओं की विश्वसनीयता को बनाए रखने में भी मदद करेगा।
निष्कर्ष
प्रधानमंत्री आवास योजना का उद्देश्य सराहनीय है, लेकिन जब तक स्थानीय प्रशासनिक ढांचे में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं लाई जाएगी, तब तक इस योजना का वास्तविक लाभ गरीबों तक नहीं पहुंचेगा। ऐसे मामलों में कठोर जांच, दोषियों पर कार्रवाई और पारदर्शी प्रक्रिया को लागू करना अत्यंत आवश्यक है।