धरमजयगढ़: “इच्छा मृत्यु” की मांग ने सुशासन तिहार को किया भावुक – बर्खास्त डॉक्टर की गुहार से हिला प्रशासन

धरमजयगढ़: “इच्छा मृत्यु” की मांग ने सुशासन तिहार को किया भावुक – बर्खास्त डॉक्टर की गुहार से हिला प्रशासन

रायगढ़ (गंगा प्रकाश)। धरमजयगढ़ में आयोजित सुशासन तिहार 2025 के दौरान एक ऐसा मामला सामने आया जिसने ना केवल प्रशासनिक हलकों बल्कि आमजन को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बायसी में पदस्थ रहे बर्खास्त संविदा डॉक्टर डॉ. खुर्शीद खान ने जिला प्रशासन को एक भावुक आवेदन सौंपते हुए मांग की है कि यदि उन्हें सेवा में पुनर्नियुक्त नहीं किया जाता, तो उन्हें “इच्छा मृत्यु” की अनुमति प्रदान की जाए।

लगातार ठोकरें खाने के बाद टूटा मनोबल

डॉ. खुर्शीद खान ने अपने आवेदन में लिखा है कि सेवा समाप्त किए जाने के बाद से वे लगातार पुनर्नियुक्ति के लिए प्रयासरत हैं। कलेक्टर कार्यालय से लेकर न्यायालय तक उन्होंने कई बार गुहार लगाई, परंतु हर बार उन्हें निराशा ही मिली। अब वे मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुके हैं और जीवन का कोई उद्देश्य शेष नहीं मानते।

पूर्व कार्यकाल में लगे थे गंभीर आरोप

प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, डॉ. खान के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान कार्य में लापरवाही और अनियमितता के आरोप सामने आए थे। इसके अलावा एक गंभीर आपराधिक प्रकरण में युवती द्वारा लगाए गए आरोपों के चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। यह मामला अभी न्यायिक प्रक्रिया में है।

प्रशासन ने लिया संज्ञान, कई अधिकारियों को भेजा गया पत्र

डॉ. खान द्वारा 11 अप्रैल 2025 को प्रस्तुत आवेदन (क्रमांक 2554344610007) को गंभीरता से लेते हुए जिला आयुष अधिकारी, रायगढ़ ने इसे संबंधित उच्चाधिकारियों को अग्रेषित किया है। पत्र की प्रतियां आयुष विभाग रायपुर, कलेक्टर रायगढ़, एसपी रायगढ़, जिला पंचायत सीईओ, जनपद पंचायत धरमजयगढ़ और थाना प्रभारी चक्रधरनगर को भेजी गई हैं।

सवालों के घेरे में सुशासन की परिभाषा

इस पूरे घटनाक्रम ने शासन के समक्ष कई संवेदनशील और नीतिगत प्रश्न खड़े कर दिए हैं:*क्या विवादों से घिरे पूर्व चिकित्सक को दोबारा सेवा में लिया जा सकता है?*क्या “इच्छा मृत्यु” जैसी मांग को सार्वजनिक मंचों पर स्वीकार करना उचित है?*क्या सुशासन तिहार जैसे कार्यक्रमों का उद्देश्य इस प्रकार की पीड़ा को उजागर करना भी होना चाहिए?

सुशासन: नीति, संवेदना और विवेक की कसौटी

डॉ. खुर्शीद खान का मामला केवल एक डॉक्टर की व्यथा नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था की भी कहानी है जहाँ संवेदना, न्याय, और शासन की मर्यादा – तीनों की कठिन परीक्षा होती है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस अपील को केवल कागजी कार्यवाही तक सीमित रखता है या इसके समाधान की दिशा में कोई ठोस कदम भी उठाया जाता है।

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