सांप काटने की झूठी कहानी रचाकर मुआवजा ठगा: बिलासपुर में वकील, डॉक्टर और परिजनों के खिलाफ केस दर्ज

बिलासपुर (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में मुआवजा योजना के दुरुपयोग का सनसनीखेज मामला सामने आया है। एक युवक की सामान्य मृत्यु को सर्पदंश बताकर शासन से तीन लाख रुपये की सहायता राशि ठगने की कोशिश की गई। पुलिस ने इस मामले में वकील, फॉरेंसिक डॉक्टर और मृतक के परिजनों समेत पाँच लोगों के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक षड्यंत्र का मामला दर्ज किया है।
पोस्टमार्टम में भी दिखाई गई झूठी कहानी
मामला 12 नवंबर 2023 का है, जब पोड़ी गांव निवासी शिवकुमार घृतलहरे (उम्र 36 वर्ष) को उल्टी और मुंह से झाग आने की स्थिति में बिल्हा सीएचसी लाया गया था। वहां से उसे सिम्स अस्पताल, बिलासपुर रेफर किया गया, जहाँ इलाज के दौरान 14 नवंबर को उसकी मौत हो गई। परिजनों ने दावा किया कि उसकी मौत सांप काटने से हुई है और पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी यही दर्ज हुआ।
पुलिस जांच में हुआ खुलासा
शव निरीक्षण के दौरान पुलिस को मृतक के शरीर पर सर्पदंश के कोई निशान नहीं मिले। सिम्स के डॉक्टरों ने स्पष्ट किया कि मरीज को शराब और किसी अज्ञात ज़हर के सेवन के कारण भर्ती किया गया था। गहन जांच में यह भी सामने आया कि परिजनों को स्थानीय वकील कामता प्रसाद साहू ने सलाह दी थी कि अगर मृत्यु को सर्पदंश बताकर रिपोर्ट दर्ज कराई जाए तो शासन से मुआवजा मिल सकता है।
फॉरेंसिक डॉक्टर की भूमिका संदिग्ध
फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका सोनी पर आरोप है कि उन्होंने बिना उचित जांच के सर्पदंश को मृत्यु का कारण बताया, जबकि रिकॉर्ड में इसका कोई प्रमाण नहीं था। उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही परिजनों ने मुआवजे के लिए आवेदन किया था।
इन लोगों पर दर्ज हुआ केस
बिलासपुर पुलिस ने इस मामले में कामता साहू (वकील), डॉ. प्रियंका सोनी (फॉरेंसिक डॉक्टर), मृतक के पिता परागदास घृतलहरे, भाई हेमंत और पत्नी नीता घृतलहरे के खिलाफ धारा 420 (धोखाधड़ी), 511 (अपराध का प्रयास), और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत एफआईआर दर्ज की है।
प्रशासन ने सभी मामलों की पुनः जांच शुरू की
घटना के बाद जिला प्रशासन ने सभी संदिग्ध मुआवजा प्रकरणों की समीक्षा और पुनः जांच शुरू कर दी है। अधिकारियों का कहना है कि यह मामला मानव संवेदना का क्रूर मज़ाक है और ऐसे ‘मुआवजा माफियाओं’ पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सरकार की योजनाओं पर ‘भरोसे की चोट’
यह मामला शासन की मुआवजा योजनाओं की पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जहां एक ओर यह योजना गरीब और पीड़ित परिवारों के लिए बनाई गई थी, वहीं ऐसे मामले न केवल सरकारी कोष को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि वास्तविक हकदारों को भी सहायता से वंचित कर देते हैं।