ब्रेकिंग न्यूज : आरती यादव को सिस्टम ने फांसी दी: एक महिला कर्मी, एक संविदा कर्मचारी, और एक अमानवीय शासन का शिकार!

दुर्ग/छत्तीसगढ़ (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले से जो खबर सामने आई है, वह सिर्फ एक आत्महत्या नहीं, बल्कि पूरे राज्य के स्वास्थ्य महकमे की नैतिक हत्या है।
आरती यादव नाम की 28 वर्षीय सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (CHO) ने 15 मई को अपने घर की छत से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। लेकिन इस मौत के पीछे की कहानी जब सामने आती है, तो यह साफ़ हो जाता है — आरती ने जान नहीं दी, उसे धीरे-धीरे मारा गया। और ये हत्या किसी एक व्यक्ति ने नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम ने मिलकर की।
आरती कौन थीं? और क्यों मारी गईं?
आरती दुर्ग जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में संविदा पर कार्यरत CHO थीं। एक संविदा कर्मचारी यानी सरकारी भाषा में “तत्काल उपयोग करो, फिर भूल जाओ” वाली व्यवस्था की एक और शिकार।
महज एक माह पहले उनके पति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। वह मानसिक रूप से टूट चुकी थीं, आर्थिक रूप से कमज़ोर और सामाजिक रूप से अकेली थीं। उन्होंने मानवीय आधार पर अवकाश की मांग की थी। मगर विभाग ने उनकी पीड़ा को फाइलों में “अनुशासनहीनता” कहकर दर्ज कर दिया।
- छुट्टी ठुकरा दी गई।
- वेतन काटने की धमकी दी गई।
- C.R. बिगाड़ने की चेतावनी दी गई।
- और अंततः, आरती लटक गई।
आख़िर किसने मारा आरती को?
- वे अफसर जिन्होंने उसकी याचना नहीं सुनी।
- वे अधिकारी जिन्होंने कागजों में मानवता को लाल स्याही से काट दिया।
- वे नीति-निर्माता जिन्होंने संविदा को “दासता” में बदल दिया।
- और वह सरकार, जिसने सब कुछ जानकर भी खामोशी ओढ़ रखी है।
सवाल ये है: क्या संविदा कर्मचारी इंसान नहीं होते?
आरती की मौत सिर्फ एक महिला की मौत नहीं है। यह एक सोच की हार है — वो सोच जो “बेटी बचाओ” के पोस्टर तो छपवाती है लेकिन जब एक बेटी दर्द से चीखती है, तो उसे “ड्यूटी से भागने वाली” कहकर चुप करा दिया जाता है।
CHO यूनियन का बड़ा आरोप: ये आत्महत्या नहीं, ‘इंस्टीट्यूशनल मर्डर’ है
आरती की मौत के बाद सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी संघ और NHM कर्मचारी संगठन ने सरकार पर तीखा हमला बोला है।
जिन आंकड़ों से सरकार मुंह चुरा रही है, वो हैं:
- 3 साल में 5 महिला CHO ने आत्महत्या की
- 2 महिला CHO की हत्या
- 1 CHO के साथ सामूहिक दुष्कर्म
- 15 महिला CHO को प्रताड़ना, धमकी, छेड़छाड़
- 3 सड़क दुर्घटनाओं में मौत, आवासीय सुविधा के अभाव में
- 36 से ज्यादा महिला CHO ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि ‘जीना’ मुश्किल हो गया
क्या छत्तीसगढ़ में संविदा = अदृश्य गुलामी?
संविदा का अर्थ क्या है? क्या इसका मतलब यह है कि कर्मचारी काम करें, चुप रहें, मर जाएं, लेकिन सवाल न पूछें? क्या सरकारी तंत्र में संवेदना की कोई जगह नहीं बची?
संघ की चार मांगें, नहीं मानी तो उग्र आंदोलन की चेतावनी:
- सभी CHO को नियमित किया जाए
- महिलाओं के लिए स्थानांतरण नीति लागू हो
- मानसिक स्वास्थ्य सहायता केंद्र हर जिले में बने
- आरती की मौत के जिम्मेदार अधिकारियों पर FIR हो और इंस्टीट्यूशनल मर्डर का मुकदमा चले
सरकार की चुप्पी और दिखावटी जांच
राज्य सरकार ने मामले में “जांच के आदेश” तो दे दिए हैं, लेकिन क्या इससे कुछ बदलेगा? क्या आरती वापस आएगी? क्या दोषियों को बस सस्पेंड कर देने से न्याय हो जाएगा? क्या 10 दिन की जांच रिपोर्ट के बाद फिर कोई दूसरी आरती मरने के लिए मजबूर नहीं होगी?
आरती की मौत, समाज के लिए एक आईना है
आरती ने कोई नोट नहीं छोड़ा, लेकिन उसकी मौत ही सबसे बड़ा सबूत है — कि ये सिस्टम इंसानों से नहीं, ‘संख्या’ और ‘फाइलों’ से चलता है। और जब कर्मचारी संविदा पर होता है, तो उसका दर्द दर्ज होने की भी जगह नहीं होती।
अब चुप रहना अपराध है!
हर पत्रकार, हर जनप्रतिनिधि, हर नागरिक को अब तय करना होगा कि क्या हम संविदा के नाम पर रोज़ हो रही मौतों को सिर्फ ‘नौकरी का हिस्सा’ मानते रहेंगे? या आरती की मौत को उस आख़िरी चीख़ की तरह सुनेंगे, जो बदलाव की शुरुआत बन सके?
आरती गई, लेकिन सवाल छोड़ गई:
अब अगली बारी किसकी है? और क्या तब भी हम यूं ही खामोश रहेंगे?