Brekings: गरियाबंद से बड़ी खबर: जंगल में लकड़ी बटोरने गया व्यक्ति बना दो भालुओं का शिकार, पैर से धक्का देकर बचाई जान, हालत गंभीर

गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले से एक चौंकाने वाली और रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना सामने आई है। बिन्द्रानवागढ़ वन परिक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कामेंपुर जंगल में जलाऊ लकड़ी लेने गए एक 40 वर्षीय व्यक्ति गुमान सिंह नागेश पर दो जंगली भालुओं ने एक साथ हमला कर दिया। यह हमला इतना अचानक और खतरनाक था कि गुमान सिंह को गंभीर रूप से घायल अवस्था में जान बचाकर भागना पड़ा।
यह घटना न केवल मानव-वन्यजीव संघर्ष की भयावह तस्वीर पेश करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस प्रकार आज भी दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन कितना जोखिम भरा है, जहां लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए जान हथेली पर रखकर जंगल में उतरते हैं।
भालुओं का हमला: एक खौफनाक मंजर
घटना आज गुरूवार की सुबह 11 बजे की है जब कामेंपुर गांव निवासी गुमान सिंह नागेश रोज़ की तरह जलाऊ लकड़ी लेने जंगल की ओर निकले थे। यह इलाका बिन्द्रानवागढ़ के घने जंगलों का हिस्सा है, जहां जंगली जानवरों की भरमार है। बताया जा रहा है कि जैसे ही गुमान सिंह जंगल के भीतर कुछ दूरी तक पहुंचे, दो जंगली भालू अचानक झाड़ियों से निकलकर उन पर झपट पड़े।
भालुओं के इस हमले ने गुमान सिंह को संभलने तक का मौका नहीं दिया। उन्होंने जान बचाने की भरपूर कोशिश की, परंतु भालू के नुकीले पंजों और दांतों के आगे वे बुरी तरह घायल हो गए। गुमान सिंह ने पूरी हिम्मत दिखाते हुए एक भालू को जोरदार पैर से धक्का दिया, जिससे वह थोड़ी देर के लिए पीछे हटा। इस मौके का फायदा उठाकर वे किसी तरह वहां से भाग निकले।

घायल अवस्था में घर पहुँचे, परिजनों ने पहुँचाया अस्पताल
हमले में गुमान सिंह के शरीर पर गहरे घाव हो गए। उनके हाथ, पीठ और पैरों में जगह-जगह पंजों के निशान हैं और खून से लथपथ अवस्था में वे किसी तरह घसीटते हुए अपने गांव तक पहुंचे। घर पहुंचते ही परिवार में हड़कंप मच गया। तत्काल उन्हें परिजनों ने जिला अस्पताल गरियाबंद पहुँचाया, जहां डॉक्टरों ने प्राथमिक इलाज शुरू किया।
डॉक्टरों के अनुसार, गुमान सिंह की हालत गंभीर बनी हुई है, परंतु वह खतरे से बाहर हैं। शरीर पर तीन से अधिक गहरे घाव, अंदरूनी चोटें और अत्यधिक रक्तस्राव की स्थिति बनी हुई थी। उन्हें फिलहाल अस्पताल में निगरानी में रखा गया है।
वन विभाग की भूमिका पर उठे सवाल
घटना के बाद वन विभाग ने तत्काल चिकित्सा सहायता के तौर पर मात्र 1000 रुपये की तात्कालिक राहत राशि परिजनों को सौंपी है। इस मामूली सहायता राशि को लेकर परिजन और गांववाले बेहद नाराज़ हैं। उनका कहना है कि जानलेवा हमले के बाद इतनी मामूली सहायता नाकाफी है और सरकार को इस तरह की घटनाओं के लिए एक ठोस मुआवजा नीति बनानी चाहिए।
ग्रामीणों में दहशत, वन्यजीव गतिविधियों की बढ़ती घटनाएं
इस हमले के बाद कामेंपुर और आसपास के गांवों में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों से भालुओं और हाथियों की गतिविधियाँ बढ़ गई हैं, परंतु वन विभाग की ओर से कोई ठोस कार्यवाही नहीं की जा रही। कई बार भालू गांव के आसपास तक आ चुके हैं, लेकिन ना कोई जागरूकता अभियान चलाया गया और ना ही वन विभाग ने गश्त तेज की।
एक बड़ी चेतावनी: मानव-वन्यजीव संघर्ष की अनदेखी न करें
गुमान सिंह नागेश की यह घटना एक बड़ी चेतावनी है। यह दर्शाता है कि कैसे विकास और वनों के अंधाधुंध दोहन के कारण वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास संकुचित हो गया है, जिससे वे भोजन और सुरक्षा की तलाश में इंसानी इलाकों की ओर बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप, ग्रामीण जनता, जो अब भी जंगल पर आश्रित है, सीधे इस संघर्ष की चपेट में आ रही है।
सरकार, वन विभाग और जिला प्रशासन को चाहिए कि वे इस घटना को सिर्फ एक ‘आंकड़ा’ न समझें, बल्कि इसे एक गंभीर चेतावनी के रूप में लें और स्थायी समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
माँगें और अपेक्षाएँ
- घायल व्यक्ति को कम से कम 50,000 रुपये की तत्काल सहायता प्रदान की जाए।
- भालुओं की गतिविधियों वाले क्षेत्रों में सिग्नलिंग सिस्टम, चेतावनी बोर्ड और वन गश्त बढ़ाई जाए।
- ग्रामीणों को वन्यजीव हमलों से बचाव के लिए प्रशिक्षण और उपकरण उपलब्ध कराए जाएं।
- स्थायी मुआवजा नीति बनाई जाए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं में पीड़ितों को न्याय मिल सके।
गरियाबंद की यह घटना एक जंगल की कहानी नहीं, बल्कि एक संघर्षशील ग्रामीण की जीवटता, सरकारी उदासीनता और जंगलों की बदलती तस्वीर की सच्ची दास्तान है।