Brekings: “दूसरी पत्नी” बताकर आवास योजना से वंचित: मोंगरा की आदिवासी महिला मीना कमार की पीड़ा

आदिवासी महिला मीना कमार

Brekings: “दूसरी पत्नी” बताकर आवास योजना से वंचित: मोंगरा की आदिवासी महिला मीना कमार की पीड़ा

आदिवासी परित्यक्ता महिला मीना कमार की आवाज़ दबाई जा रही है?

छुरा विकासखंड के मोंगरा ग्राम पंचायत की एक महिला की जिंदगी बना दी गई है प्रशासनिक अनदेखी का शिकार

आदिवासी महिला मीना कमार

छुरा/गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। “दूसरी पत्नी” बताकर आवास योजनासे वंचित : गरियाबंद जिले के छुरा विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत मोंगरा में रहने वाली एक आदिवासी महिला मीना कमार की ज़िंदगी आज एक ज़िंदा सवाल बन गई है – क्या एक गरीब, परित्यक्ता, आदिवासी महिला को सिर्फ इसलिए आवास योजना से वंचित कर देना न्यायसंगत है क्योंकि वह किसी पुरुष की दूसरी पत्नी रही है?

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मीना कमार का घर नहीं है। वह एक झोपड़ी नुमा कच्चे ढांचे में अकेले जीवन बिता रही हैं। न पति है, न कोई संतान। कोई भाई नहीं, कोई बेटा नहीं। सिर्फ एक नाम है – मीना कमार – और एक पहचान: निर्धन आदिवासी महिला।

सरकार की योजनाएं, जिनका मकसद है कि हर गरीब को छत मिले, हर महिला को सम्मान मिले, और हर आदिवासी को अधिकार मिले – उन्हीं योजनाओं की चूक से मीना कमार आज झोपड़ी में जीने को मजबूर हैं।

जनपद पंचायत छुरा

“दूसरी पत्नी” कहकर किया गया किनारे

मीना कमार ने जब अपने ग्राम पंचायत में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत आवेदन करने की कोशिश की, तो उन्हें ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक रितेश यदु ने यह कहकर मना कर दिया:

“तुम्हारे पति की पहली पत्नी को योजना की सर्वे सुची में शामिल की जा चुकी है। तुम दूसरी पत्नी हो, इसलिए तुम्हारा नाम सर्वे सुची में नहीं जोड़ा जाएगा।”

ग़ौरतलब है कि मीना कमार के पति अब उनके साथ नहीं रहते। कोई संपर्क नहीं है। वह अब एक परित्यक्ता महिला हैं। उनके पास खुद का आधार कार्ड और राशन कार्ड है, जिनमें उनके पिता फिरन सिंह कमार का नाम दर्ज है। यही उनकी असली पहचान है – उनके पिता की बेटी और एक स्वतंत्र नागरिक।

तो फिर सवाल उठता है:

क्या सिर्फ किसी की “दूसरी पत्नी” होने की सामाजिक पहचान किसी महिला को उसके संवैधानिक अधिकारों से वंचित कर सकती है?

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जनपद CEO का जवाब — “रिपोर्ट मिलने पर ही कुछ कह सकते हैं”

जब इस मुद्दे को लेकर जनपद पंचायत छुरा के सीईओ सतीश चंद्रवंशी से संपर्क किया गया, तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा:

“मामले की रिपोर्ट मिलने के बाद ही पुष्टि कर पाऊंगा। अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी।”

इस जवाब से स्पष्ट है कि अब तक पंचायत स्तर पर जो भी निर्णय हुआ है, वह केवल रोजगार सहायक के व्यक्तिगत कथनों और धारणाओं पर आधारित है, न कि किसी प्रामाणिक स्थल निरीक्षण या महिला की वास्तविक स्थिति के मूल्यांकन पर।

तथ्य यह कहते हैं कि…

  • मीना कमार के पास कोई घर नहीं है।
  • वह अकेली रह रही हैं, कोई आश्रयदाता नहीं।
  • झोपड़ी में रहती हैं, बरसात में पानी टपकता है, गर्मी में छत तवा बन जाती है।
  • उन्हें शासन से सिर्फ राशन कार्ड पर खाद्यान्न मिल रहा है।
  • निराश्रित पेंशन, महतारी वंदन योजना जैसी महिला कल्याण योजनाओं से वे पूरी तरह वंचित हैं।

आदिवासी महिला मीना कमार

क्या “दूसरी पत्नी” का होना अपराध है?

भारत के संविधान और महिला सशक्तिकरण की योजनाएं किसी महिला को उसके वैवाहिक “क्रम” के आधार पर वंचित करने की अनुमति नहीं देतीं। विशेषकर जब वह महिला आर्थिक रूप से कमजोर, आश्रयविहीन और परित्यक्ता हो।

मीना कमार का मामला सामाजिक न्याय की उस दीवार पर सवाल खड़ा करता है जिसे वर्षों से मजबूत करने का दावा किया जा रहा है। अगर समाज में कोई महिला दूसरी पत्नी है, लेकिन वह अपने पति के साथ नहीं रह रही, और अकेले मजदूरी कर जीवन काट रही है – तो उसे एक स्वतंत्र महिला के रूप में देखने की ज़रूरत है, न कि किसी पुरुष की “क्रमिक पहचान” के रूप में।

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प्रशासन की जवाबदेही और महिला आयोग की भूमिका

यह मामला महिला आयोग, अनुसूचित जनजाति आयोग, और जिला प्रशासन के लिए एक टेस्ट केस है। यदि इस मामले पर स्थल निरीक्षण, फील्ड रिपोर्ट, और यथास्थिति के आधार पर न्याय नहीं हुआ, तो यह आदिवासी और परित्यक्ता महिलाओं के लिए एक खतरनाक मिसाल बन जाएगी।

जनता और समाज से सवाल

  • क्या पंचायत के स्तर पर ऐसी टिप्पणियाँ “दूसरी पत्नी है, इसलिए हक नहीं मिलेगा” संवैधानिक मूल्यों को चोट नहीं पहुंचातीं?
  • क्या किसी महिला का अकेले रहना, निर्धन होना, और शोषण झेलना – उसे सरकार की योजनाओं से वंचित कर देने का आधार बन गया है?

 मीना कमार की लड़ाई अकेली नहीं है

मीना कमार की कहानी सिर्फ मोंगरा ग्राम की कहानी नहीं है, यह उस सिस्टम की खामोशी की कहानी है जो दस्तावेजों में सब कुछ देखता है, लेकिन जमीनी हकीकत को अनदेखा कर देता है।

ये रिपोर्ट एक गुहार है – उन तमाम मीना कमारों के लिए जो अपने अस्तित्व की पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं।

प्रशासन, पंचायत और समाज को यह जवाब देना होगा — क्या ‘दूसरी पत्नी’ होना किसी महिला को उसका हक़ छीन लेने का वैध बहाना बन सकता है?

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