गरीब से वसूले 15,500 रुपये, चार साल बाद भी अधूरा पड़ा मकान – जांच पर भी उठ रहे सवाल!
छुरा (गंगा प्रकाश)। गरियाबंद जिले का छुरा जनपद पंचायत क्षेत्र इन दिनों भ्रष्टाचार की गहरी परतों में दबा नजर आ रहा है। पंचायत से लेकर जनपद तक योजनाओं को पिसाई का जरिया बना लिया गया है। एक ओर सरकार गरीबों को पक्के मकान का सपना दिखाती है, वहीं दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर जिम्मेदार लोग उन्हीं गरीबों की जेब काटने और योजना को लूटने में लगे हैं। ताज़ा खुलासा ग्राम पंचायत रूवाड़ के आश्रित ग्राम लादाबाहरा से सामने आया है, जिसने पूरे सिस्टम की पोल खोल दी है।

चार साल से अधूरा पड़ा आवास
ग्राम लादाबाहरा निवासी घनसाय पिता ओबी नेताम को वर्ष 2020-21 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान स्वीकृत हुआ था। लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी न तो मकान बना और न ही उन्हें योजना का वास्तविक लाभ मिला। आज भी उनके घर में केवल नींव की खुदाई और अधूरी उम्मीदें पड़ी हैं। घनसाय बताते हैं कि हर बरसात में कच्चे घर से पानी टपकता है और परिवार को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
शिकायत हुई, लेकिन नतीजा वही – लीपापोती
ग्रामीणों ने इस मामले की शिकायत कलेक्टर जनदर्शन में की थी। उस वक्त स्थानीय मीडिया ने इस खबर को प्रमुखता से उठाया और प्रशासन ने जांच समिति गठित की। लेकिन जांच की सच्चाई ग्रामीणों के शब्दों में यही है कि – जांच तो हुई, लेकिन उसमें सिर्फ कागज पर स्याही चली। असल दोषियों को बचा लिया गया और गरीब की समस्या जस की तस रह गई।
इससे साफ है कि जांच महज़ औपचारिकता बनकर रह गई।
सरपंच का सौदा – “पैसे दो, योजना का फायदा उठाओ”
घनसाय ने अपनी आपबीती सुनाते हुए बताया कि उस समय के आवास मित्र और वर्तमान सरपंच विजय कृष्णा नागेश ने उन्हें गुमराह किया। सरपंच ने कहा – तुम्हारे पिता को पहले ही इंदिरा आवास योजना का मकान मिल चुका है। अब तुम्हारे नाम से प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुआ है। क्यों न तुम्हारे पिता का मकान ही इस योजना में दिखाकर लाभ उठा लें? इसके लिए तुम्हें मुझे कुछ पैसे देने होंगे, लेकिन बाकी का पूरा पैसा तुम्हें मिलेगा।
गरीब घनसाय को यह सलाह उस वक्त सही लगी। उन्होंने 15,500 रुपये किस्तों में फोन पे के जरिए सरपंच को सौंप दिए। लेकिन उसके बाद न तो पैसा वापस मिला और न ही मकान बना।
भ्रष्टाचार का सिंडिकेट
यह कोई अकेला मामला नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि जनपद पंचायत छुरा में आवास योजना का सिंडिकेट काम कर रहा है। पात्र गरीब परिवार आज भी कच्चे घरों में जिंदगी गुजार रहे हैं, जबकि अपात्र और रसूखदार लोग लाभ उठा रहे हैं। पात्रों को “पैसे दो और लाभ लो” की मानसिकता में फंसाकर ठगा जा रहा है।
सरपंच का पक्ष
इस मामले में जब सरपंच विजय कृष्णा नागेश से संपर्क किया गया तो उन्होंने आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना है – मैंने किसी से कोई राशि नहीं ली है। मुझ पर लगाए गए आरोप निराधार हैं।
जिला पंचायत सीईओ का बयान
जब इस विषय पर जिला पंचायत सीईओ प्रखर चंद्राकर से संपर्क किया गया तो उन्होंने स्पष्ट कहा – उक्त मामले की जांच कराई जाएगी और यदि कोई दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
जनपद पंचायत सीईओ का वर्शन
इस मामले पर जब जनपद पंचायत सीईओ सतीश चंद्रवंशी से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा – आपके माध्यम से जानकारी मिली है। जांच कर के ही बता पाऊँगा।
बड़े सवाल जो उठ खड़े हुए
1. जब जनदर्शन में शिकायत हुई थी तो कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
2. जांच समिति ने दोषियों को बचाने के लिए लीपापोती क्यों की?
3. सरपंच द्वारा वसूले गए 15,500 रुपये की जांच कौन करेगा?
4. चार साल से आवास अधूरा क्यों है और परिवार अब तक बेघर क्यों है?
जनता में आक्रोश
गांव के लोग अब आक्रोशित हैं। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना गरीबों के लिए है, लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हो रहा है। ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो और गरीब परिवार को उसका हक जल्द मिले।
यह मामला सिर्फ एक ग्रामीण का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के भ्रष्टाचार का आईना है। चार साल से अधूरा पड़ा मकान सिर्फ घनसाय के सपनों की दीवार नहीं, बल्कि पंचायत स्तर पर फैली लूट-खसोट की गवाही दे रहा है। सवाल यही है – क्या प्रशासन दोषियों पर गाज गिराएगा या यह मामला भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा?