
नई दिल्ली(गंगा प्रकाश)- दैत्यों के संहार एवं धर्म की रक्षा और संसार से अंधकार मिटाने के लिये माँ दुर्गा अपनी तीसरी शक्ति चंद्रघंटा के रूप में प्रकट हुई। दुर्गा मांँ की तीसरी शक्ति का नाम ही चंद्रघंटा है। आज नवरात्रि के तीसरे दिन इसी देवी की पूजा आराधना की जाती है। इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुये अरविन्द तिवारी ने बताया कि इसका शस्त्र कमल है और सवारी सिंह है। देवी का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इसका ध्यान हमारे इहलोक और परलोक दोनों के लिये कल्याणकारी और सद्गति देने वाला है। इस देवी के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चंद्र होने के कारण इसे चंद्रघंटा कहा गया है । इनका शरीर स्वर्ण के समान उज्जवल है इनके दसों हाथों में खड्ग , बाण आदि विभिन्न प्रकार के शस्त्र सुशोभित रहते हैं। इनका यह स्वरूप परम शक्तिदायी और तेजपूर्ण है। तीसरे दिन देवी की उपासना आराधना भयमुक्ति और साहस की ओर ले जाता है। मांँ तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती है और ज्योतिष में इनका संबंध मंगल ग्रह से है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिये उद्यत रहने की होती है। मन कर्म और वचन के साथ समर्पणता से विधि विधान के अनुसार परिशुद्ध पवित्र होकर चंद्रघंटा देवी की उपासना आराधना करने से मनुष्य सारे कष्टों से मुक्त होकर सहज ही परम पद का अधिकारी बन सकता है। इनकी कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधायें विनष्ट हो जाती हैं।इनकी आराधना फलदायी है। इनके उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है। इनके घंटे की ध्वनि अपने भक्तों को प्रेतबाधा से रक्षा करती है।इनका ध्यान करते ही शरणागत की रक्षा के लिये इस घंटे की ध्वनि निनादित ह़ उठती है। इनकी आराधना से संसार में यश , कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त होता है। इनको लाल रंग का फूल और लाल सेव चढ़ायें।
चंद्रघंटा देवी के मंत्र —
देवि प्रचण्डदोर्दण्डदैत्यदर्पविनाशिनि ।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
— प्रचण्ड भुजदण्डों वाले दैत्यों का घमंड चूर करने वाली देवि तुम्हारी जय हो! तुम रूप दो, जय दो, यश दो और काम क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो, अर्थात् माँ दुर्गा के तृतीय रूप चंद्रघण्टा को बारंबार प्रणाम है।
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात् हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें।
मां चंद्रघंटा की कथा –
पौराणिक काल में एक बार देव-असुर संग्राम बहुत लम्बे समय तक चला। उस समय असुरों का स्वामी और सेनापति महिषासुर था। महिषासुर ने इंद्र आदि देवताओं को पराजित कर स्वर्ग के सिंहासन पर कब्जा कर स्वर्ग का राजा बन गया। युद्ध में हारने के बाद सभी देवता इस समस्या के निदान के लिये त्रिदेवों के पास गये। देवताओं ने भगवन विष्णु , महादेव और ब्रह्मा जी को बताया कि महिषासुर ने इंद्र , चंद्र , सूर्य , वायु और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिये हैं और उन्हे बंदी बनाकर स्वर्ग लोक पर कब्जा कर लिया है। देवताओं ने बताया कि महिषासुर के अत्याचार के कारण देवताओं को धरती पर निवास करना पड़ रहा है। देवताओं की बात सुनकर त्रिदेवों को अत्याधिक क्रोध आ गया और उनके मुख से ऊर्जा उत्पन्न होने लगी। इसके बाद यह ऊर्जा दशों दिशाओं में जाकर फैल गई , उसी समय वहां पर एक देवी चंद्रघंटा ने अवतार लिया। भगवान शिव ने देवी को त्रिशुल , विष्णु जी ने चक्र दिया। इसी तरह अन्य देवताओं ने भी मां चंद्रघंटा को अस्त्र शस्त्र प्रदान किये। इंद्र ने मां को अपना वज्र और घंटा प्रदान किया , भगवान सूर्य ने मां को तेज और तलवार दिये। इसके बाद मां चंद्रघंटा को सवारी के लिये शेर भी दिय गया। मां अपने अस्त्र शस्त्र लेकर महिषासुर से युद्ध करने के लिये निकल पड़ीं। मां चंद्रघंटा का रूप इतना विशालकाय था कि उनके इस स्वरूप को देखकर महिषासुर अत्यंत ही डर गया। उन्होंने अपने असुरों को मां चंद्रघंटा पर आक्रमण करने के लिये कहा। सभी राक्षस युद्ध करने के लिये मैदान में उतर गये। मां चंद्रघंटा ने महिषासुर के सभी बड़े राक्षसों को मारकर अंत में महिषासुर का भी अंत कर दिया। इस तरह मां चंद्रघंटा ने देवताओं की रक्षा की और उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति करायी।