
पिछड़ा वर्ग प्राधिकरण मद से देवभोग के 50 मिडिल स्कूलों में भेजे गए 50-50 हजार रुपये कि पुस्तकें
गरियाबंद(गंगा प्रकाश):-जैसा कि आप सभी को मालूम है कि भ्रष्ट्राचार दो शब्दों से मिलकर बना है। भ्रष्ट+आचार। जिसका अर्थ हुआ भ्रष्ट आचरण। जिस तरह से आचरण से गिरा व्यक्ति पतित-दुराचारी कहलाता है। वैसे ही साफ-सुथरी से रिश्वत-कामचोरी की व्यवस्था अपना लेना भ्रष्ट्राचार है। दूसरे शब्दों में कहें तो जब कोई कार्य नियमों का उल्लंघन कर अथवा गलत तरीके से किया जाय तो वही भ्रष्टाचार है। हमारे धर्मग्रन्थों में आचरण को बड़ा महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। धन से हीन व्यक्ति हीन नहीं माना जाता किन्तु आचरण से हीन व्यक्ति को मरे हुए के समान माना जाता है यथा-
वृत्तं यत्नेन संरक्षेद वित्तमायाति याति च।
अक्षीणेां वृत्ततः क्षीणों वृत्तत वस्तु हतोहतः॥
प्रत्येक देश अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता तथा चरित्र के कारण पहचाना जाता है।भारत जैसा देश अपनी सत्यता, ईमानदारी,अहिंसा,धार्मिकता, नैतिक मूल्यों तथा मानवतावादी गुणों के कारण विश्व में अपना अलग ही स्थान रखता था,किन्तु वर्तमान स्थिति में तो भारत अपनी संस्कृति को छोड़कर जहां पाश्चात्य सभ्यता को अपना रहा है,वहीं भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में वह विश्व का पहला राष्ट्र बन गया है।हमारा राष्ट्रीय चरित्र भ्रष्ट्राचार का पर्याय बनता जा रहा है ।भारत में भ्रष्ट्राचार मूर्त और अमूर्त दोनों ही रूपों में नजर आता है । यहां भ्रष्ट्राचार की जड़ें इतनी अधिक गहरी हैं कि शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र बचा हो, जो इससे अछूता रहा है।राजनीति तो भ्रष्ट्राचार का पर्याय बन गयी है।
घोटालों पर घोटाले, दलबदल, सांसदों की खरीद-फरोख्त, विदेशों में नेताओं के खाते, अपराधीकरण-ये सभी भ्रष्ट राजनीति के सशक्त उदाहरण हैं । चुनाव जीतने से लेकर मंत्री पद हथियाने तक घोर राजनीतिक भ्रष्ट्राचार दिखाई पड़ता है । ठेकेदार,इंजीनियर निर्माण कार्यो में लाखों-करोड़ों का हेरफेर कर रकम डकार जाते हैं।अब भला भ्रष्ट्राचार की इस होड़ में शिक्षा विभाग भी क्यों पीछे रहता कहते हैं गिरगिट को देखकर गिरगिट रंग बदलता ही हैं अन्य विभागों में व्याप्त भ्रष्ट्राचार और भ्रष्ट्राचारियों को देख शिक्षा विभाग के गिरगिटों ने भी अपना रंग बदल ही दिया हैं अब गरियाबंद जिला का शिक्षा विभाग भी भ्रष्ट्राचार का केन्द्र बनता जा रहा है।एडमिशन से लेकर समस्त प्रकार की शिक्षा प्रक्रिया तथा नौकरी पाने तक, ट्रांसफर से लेकर प्रमोशन,छात्रों का मध्यान भोजन तक परले दरजे का भ्रष्ट्राचार मिलता है।
चिकित्सा विभाग में भी भ्रष्टाचार कुछ कम नहीं है।बैंकों से लोन लेना हो,पटवारी से जमीन की नाप-जोख करवानी हो, किसी भी प्रकार का प्रमाण-पत्र या ड्रावरिंग लाइसेंस,वन अधिकार पत्र इत्यादि बनवाना हो,तो रिश्वत दिये बिना तो काम नहीं होता हैं।
मजाल है कि जिला गरियाबंद में कोई भी काम बिना किसी लेन-देन के हो जाये। सरकारी योजनाएं तो बनती ही हैं लोगों की भलाई के लिए, किन्तु उन योजनाओं में लगने वाला पैसा जनता तक पहुंचते-पहुंचते कौड़ी का रह जाता है,स्वयं राजीव गांधी ने एक बार कहा था कि दिल्ली से जनता के विकास कें लिए निकला हुआ सौ रुपये का सरकारी पैसा उसके वास्तविक हकदार तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसे का हो जाता है।बताना लाजमी होगा कि गरियाबंद शिक्षा विभाग भ्रष्ट्राचारियों के लिये चारागाह बन गया है।शिक्षा विभाग में कभी व्हाइट बोर्ड तो कभी खेल सामग्री तो कभी नियुक्ति तो कभी तबादला में हुए गड़बड़ियों के चलते सुर्खियों में रहा है।अब शिक्षा विभाग ने ज्ञान देने वाली पुस्तकों के नाम पर बड़ी गड़बड़ी की सारी तैयारी कर लिया है।छत्तीसगढ़ के अंतिम छोर पर वसे देवभोग ब्लॉक अंतर्गत के 50 मिडिल स्कूलो में पुस्तकों से भरा एक नीली कलर का पार्सल पहुंचा हुआ है।इसमे जनरल नॉलेज व महापुरुषों की जीवन गाथा पर आधारित 104 किताबें मौजूद है।सारी पुस्तक 3 से 4 साल पुरानी पब्लिश्ड है।मजे की बात तो यहा हैं कि स्कूलों में मरम्मत ,फर्नीचर व बैठने के टाटपट्टी जैसे कई आवश्यक चीजों की आवश्यकता है,जनरल नॉलेज से भरे लाइब्रेरी की कभी मांग नही हुई थी ,ऐसे में किताबो के पार्सल ने उन 50 मिडिल स्कूलो के प्रधान पाठक को तब चौका दिया जब उन्हें एनएफटी फार्म व चेक के साथ सितम्बर माह के अंतिम तारीख तक ब्लॉक कार्यालय बुलाया गया है।नाम न छापने के शर्त पर प्रधान पाठकों ने कहा कि इस लाइब्रेरी के लिए उनके स्कूलो के खाते में 50,50 हजार भी डाल दिये गए है।कीमत के अनुकूल पुस्तकों के मूल्य 3 गुना से अधिक देखकर स्कूलों में इसके भुगतान को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है,चूंकि घपले के तार ऊपर तक जुड़े है,ऐसे में बेचारे शिक्षको पर दबाव बनाना भी शुरू कर दिया गया है।

क्रय नियम का पालन नहीं,आडिटमें फँसेगा पेंच
48 पेज की छोटी किताब का मूल्य 300 है,अधिकतम 900 रुपये मूल्य एमआरपी वाले किताब खपाई गई है।किताब में प्रिटिंग एमआरपी के ऊपर मनचाहे कीमत का स्टिकर चिपकाया गया है।स्कूलों के खाते से सामग्री क्रय करने जनभागीदारी समिति में एक क्रय समिति बनाई गई है।10 हजार से ऊपर की खरीदी में क्रय एव भंडार नियम का पालन करना होता है।क्रय समिति द्वारा तीन फर्म का कोटेशन बुलाकर ही ख़िरीदी तय किया जाता है।इस पूरी प्रक्रिया में ख़िरीदी नियम व समिति को दरकिनार किया गया है, ऐसे में भुगतान हुआ तो मामला ऑडिट में फंस सकता है।
किस फर्म का भुगतान करना है पहले से तय
इस पूरे पड़ताल में हमे एक सूची हाथ लगी है,सूची के मूताबिक प्रगति पब्लिशिंग हाइस प्राइवेट लिमिटेड व सुराना पब्लिसड को 20-20 स्कूले व इम्प्रेशन प्रिंटर्स को 10 स्कूलो को भुगतान करना है ।स्कूल के नाम के आगे बैंक खाता नम्बर व एमाउंट लिखा गया है।इतना ही नही पार्सल के साथ इन तीनो फर्मों के कोटेशन भी भेजा गया है।यह तैयारी बताने के लिए काफी है कि यंहा क्रय नियम की खाना पूर्ति दर्शाने खरीदी से पहले कर दिया गया है।जबकि किताबो से पहले कोटेशन मंगाया जाता है।

डीईओ बोले नियम से वे सबके जानकारी में है,विधायक भी मौन?
बताया जा रहा है कि यह खरीदी पिछड़ा वर्ग प्राधिकरण मद से क्षेत्रीय विधायक डमरूधर पुजारी के अनुशंसा से हो रहा है।विधायक ने इस बात को स्वीकार तो किया पर गड़बड़ी के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध लिया हैं।मामले का पत्रचार व प्रकिया में भाग लेने वाले शिक्षा विभाग के उपसंचालक अरविंद ध्रुव ने डीईओ से बात करने कह दिया।जब डीईओ करमन खटकर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि विधायक के अनुशंसा पर लाइब्रेरी के लिए किताबे खरीदी हुई है।सारी प्रक्रिया की जानकारी कलेक्टर महोदय को भी है,सब कुछ सही किया जा रहा है।
सत्यमेव जयते का सिद्धान्त बनता जा रहा हैं भ्रष्ट्राचार मेव जयते का सिद्धान्त?

हमारे देश में भ्रष्ट्राचार शब्द कोई नया नहीं है। आजादी के कई दशकों के बाद हमने किसी भी क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति न की हो, लेकिन भ्रष्ट्राचार के क्षेत्र में हमारे लिए विश्व में एक-दो देशों को छोड़कर कोई चुनौती नहीं है। आजादी के बाद ही यद्यपि तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहरलाल नेहरू द्वारा कहा गया था कि भ्रष्ट्राचार करने वाले व्यक्ति को निकटतम खम्भे(पोल) पर लटका देना चाहिए। लेकिन इसके कुछ समय बाद ही उनके मन्त्रिमण्डल के एक सहयोगी पर भ्रष्ट्राचार का आरोप लगा, सिद्ध हुआ तब भी वे कोई दण्ड न दे पाये थे। तब से पड़ा भ्रष्ट्राचार का बीज महाराष्ट्र में अंतुले से, शेयर, टेलीफोन, यूरिया,हवाला, बोफोर्स, चीनी,ताबूत,लाटरी, चारा,सांसद रिश्वत,तहलका, तेलगी,दूरसंचार,कामनवेल्थ, प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक करने जैसे अनेकाने पड़ावों का सफर तय कर चुका है। परिणामतः प्रवासी भारतीयों को छोड़कर इतना पैसा स्विस जैसी विदेशी बैंकों में जमा है,जितने से भारत के प्रत्येक गरीब का जीवन खुशहाल बनाया जा सकता है। ट्रांसपेरेसी इंटरनेकशनल इंडिया के सर्वे के अनुसार भारत के लोग सार्वजनिक सेवा के बदले प्रतिवर्ष 26728 करोड़ रूपया नौकर शाहों की जेब में डालते हैं।
यह धनराशि हिन्दुस्तान के रक्षाबजट का करीब आधा है। वहीं सकल घरेलू उत्पाद का 1.5 प्रतिशत है। यही नहीं देश का प्रत्येक दसवां व्यक्ति भ्रष्ट्राचार से प्रभावित है। जहां तक विविध सेवा क्षेत्रों का प्रश्न है देश की दस शीर्ष सेवाओं (भ्रष्ट) में स्वास्थ्य सेवा नम्बर एक पर, ऊर्जा दो पर और शिक्षा नम्बर तीन पर है। यही नहीं देश की न्यायिक सेवा के आंकड़े भी चौकाने वाले हैं। जहां एक अनुमान के अनुसार 2510 करोड़ रूपये बतौर घूस के दे दिये जाते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप ही देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के विरुद्ध वारंट जारी कर दिये जाते हैं जबकि अपराधियों, माफियों के विरुद्ध वारंट वर्षों तामील नहीं हो पाते हैं।राष्ट्र की विविध सेवाओं में भ्रष्ट्राचार था। इस मामले में शिक्षा जगत काफी पीछे था। अपनी पारदर्शिता व लोकप्रियता के स्तर पर निरन्तर आगे बढ़ रहा था। लेकिन जब कतिपय शिक्षकों के द्वारा विद्यार्थियों को अपने यहां टयूशन पढ़ने के लिए प्रेरित किया गया तो इस विभाग का नम्बर भी तीसरा हो गया। इसके साथ ही माध्यमिक स्तर से प्रशिक्षण काल, डिग्री लेने, नियुक्ति पत्र लेने, नियुक्ति पाने, व्यवसाय चयन, शिक्षण अवकाश, चिकित्सा अवकाश, विविध देयकों के भुगतान, बोनस, टी. ए., डी.ए. एरियर आदि के लिए अपेक्षा से अधिक बिलम्ब, सुविधा शुल्क की मांग, अनावश्यक कमियां निकालना आदि के कारण शैक्षिक जगत भ्रष्ट्राचार के चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। और इसमें आग में घी डालने का कार्य किया रमसा के अन्तर्गत आने वाले अगाध पैसे ने। ऊपर से आडिट की लचर व्यवस्था। कभी महामुनि भर्तृहरि द्वारा कही जाने वाली-किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।‘ भ्रष्ट्राचार के मकड़जाल में उलझ गयी। सत्यमेव जयते का सिद्धान्त भ्रष्ट्राचार मेव जयते बन गया।यदि हम शैक्षिक जगत में भ्रष्ट्राचार के संभावित कारणों पर विचार करें तो निजी, गैर सरकारी, संस्थाओं में प्रबन्ध तंत्र की भूमिका, शासकीय में अधिकारी वर्ग की अपने अधीनस्थों पर अधिक निर्भरता, निजी संस्थाओं में कम वेतन देना और अधिक पर हस्ताक्षर करवाना, सत्रारम्भ में छँटनी करना महिला शिक्षकों का शोषण, कहीं-कहीं पर प्रबन्धकों द्वारा शैक्षिक प्रमाणपत्र अपने पास रखकर मनमानी करना, प्रवेश प्रक्रिया, डिग्री प्राप्ति, साक्षात्कार, प्रवेश परीक्षाओं व नियुक्ति में खुला व्यापार, प्रायोगिक परीक्षाओं का धन-बल से अंकन किया जाना आदि माने जा सकते हैं। वहीं वर्तमान समय में बढ़ रही रिश्वत खोरी की प्रवृत्ति, स्वार्थपरता, जमाखोरी की भावना, जातिवादी धारणा, बढ़ती महंगाई, नैतिकता की कमी, श्रम के प्रति उदासीनता, कर्त्तव्यनिष्ठा में कमी, शिक्षा का राजनीतिकरण, शीघ्रातिशीघ्र नियुक्ति, पदोन्नति, कार्य की पूर्ति करवाने की ललक, द्वेष की भावना आदि कारण भी शैक्षिक जगत में व्याप्त भ्रष्ट्राचार के कारण है। वहीं कुकुरमुत्ते की तरह गैर पंजीकृत संस्थाओं, कोचिंगों का खुलना, मनमाने पाठय्क्रमों का प्रयोग, उनमें कम पढ़े लिखों के बिना अंकुश के बच्चों को सौंपना कहीं न कहीं भ्रष्ट्राचार को बढ़ाता है। दूसरी ओर कुशल अध्यापक के द्वारा मन्द बुद्धि बालक को घर पर बुलाकर अतिरिक्त सहायता देना टयूशन की श्रेणी में लाना भी शैक्षिक जगत में भ्रष्ट्राचार को बढ़ाता है। हालांकि पूरी कक्षा को टयूशन के लिए प्रेरित करना, न पढ़ने वालों को कम अंक देना या फेल करने की धमकी देना पाप ही नहीं अध्यापक के आचरण के प्रतिकूल है। उसका अपना कर्त्तव्य से पीछे हटना है। इसके अतिरिक्त कस्बों, शहरों से लेकर बड़े नगरों तक में अधिकांश अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों की आवश्यकता के अनुसार नहीं आस-पड़ोसियों व नाते-रिश्तेदारों पर रौब डालने के लिए टयूशन अधिक पढ़वायी जा रही है। के. जी. नर्सरी वाले बच्चों के लिए टयूटर को 400-500 रुपये तक दिये जा रहे हैं।प्राचीन काल में गुरु द्रोण को अभावों के चलते दूध के स्थान पर आटा घोलकर अपने पुत्र अश्वत्थामा को पिलाना पड़ा था। उन्होंने पद का दुरुपयोग करते हुए मोहवश एकलव्य का अंगूठा मांगा था जबकि आज ऐसी स्थिति नहीं है शिक्षकों को पर्याप्त वेतन, सुविधायें मिल रही हैं। उनको अधिक टयूशन की प्रवृत्ति से बचना चाहिए। दबाब की राजनीति न कर स्वकर्त्तव्य का निर्वहन करना चाहिए। यदि कोई छात्र मन्द बुद्धि अथवा गरीब है तो उसका सहयोग करना कोई अपराध नहीं है।शिक्षा-शिक्षण प्रभावित हो रहा है, बल्कि शिक्षकों में दायित्व निर्वहन की भावना कम हो रही है। वह सम्पूर्ण पाठ्य-शिक्षण- प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों को न पढ़ाकर टाप टेन, महत्वपूर्ण जैसी पद्धतियों का सहयोग ले रहा है। शिक्षा-शिक्षण का स्तर गिर रहा है। शिक्षक की मानसिकता, व्यवहार व आचरण भी प्रभावित हो रहा है। उदाहरणार्थ-यदि किसी अध्यापक के चिकित्सा, बोनस, टी.ए., डी. ए. जी.पी. एफ. अग्रिम आदि के सभी देयक निश्चित प्रतिशत लेकर पास किये जा रहे हों तो क्या वह वैसा ही निष्ठापूर्वक अपनी कक्षा में शिक्षण कार्य करेगा जैसाकि इन सभी के बगैर प्रतिशत दिये पास होने पर करता था। मुझे तो नहीं लगता।निजी संस्थाओं में कम वेतन वाले अध्यापकों की मनःस्थिति किसी से छिपी ही नहीं है। साथ ही गत कई वर्षों से उत्तरप्रदेश व उत्तराखण्ड में स्वकेन्द्र परीक्षाप्रणाली ने माध्यमिक शिक्षा को भ्रष्ट्राचार के और समीप कर दिया है जिससे ही कतिपय संस्थायें, संस्था प्रधान, शिक्षक अपना परीक्षाफल येन-केन प्रकारेण परीक्षाओं में नकल करवाकर साध रहे हैं। परिणाम यह हो रहा है कि शिक्षा गुणात्मक दृष्टि से रसातल में जा रही है। 35 प्रतिशत न ला पाने वाला छात्र 75-80 प्रतिशत ला रहा है। वहीं 75-80 वाला 55-60 पर सिमट रहा है। अध्यापक और बच्चे दोनों अपने कर्त्तव्य से भागने लगे हैं। फल बिना श्रम मिल रहा है।
मनुष्य यदि अपने आचरण को सुधार ले तो उसकी समस्त बुराईयां नष्ट हो जाती है। वैसे ही शैक्षिक जगत में भ्रष्टाचार की समस्या के समाधान के लिए हमें शिक्षाजगत के उच्चाधिकारियों से लेकर स्वच्छकार तक की गरिमा व आचरण को बदलने का प्रयास करना होगा। प्रत्येक पहलू, शिक्षक चपरासी, प्रशासन, प्रबन्धक, अभिभावक, छात्र, प्रधानाचार्य, अधिकारी वर्ग आदि में अपने कर्त्तव्य निर्वहन के प्रति जागरूकता लानी होगी। साथ ही ऊपर से नीचे तक शैक्षिक जगत की गतिविधियों पर एक मजबूत गोपनीय तंत्र विकसित करना होगा। जो इन सब पर तत्काल आवश्यक व कठोर समय बद्ध कार्यवाही कर सके। अभिभावकों की जागरूकता संस्थाओं को अधिक कल्याणकारी, बच्चों को लगनशील बनायेगी, वहीं शिक्षकों के हितों की रक्षा, छात्र कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगी। शिक्षण, प्रशिक्षण, नियुक्ति, पदोन्नति, स्थानान्तरण, पेंशन, भुगतान आदि प्रकरणों के लिए स्पष्ट पारदर्शी नीति बनानी पड़ेगी।
उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य उपाय भी हो सकते हैं। शैक्षिक जगत में भ्रष्ट्राचार को समाप्त किये बिना स्वामी दयानन्द, विवेकानन्द, गाँधी, सुभाष, टैगोर, नेहरू,अम्बेडकर,शास्त्री,कलाम जैसे शिष्यों की कल्पना नहीं की जा सकती है और न ही गुरु संदीपन,रामानन्द,चाणक्य, राधाकृष्णन व जाकिर हुसैन जैसे गुरु प्राप्त हो सकते हैं।
भारत में शिक्षा प्रणाली में भ्रष्ट्राचार
भारत में शिक्षा का विस्तार अद्भुत रहा है। इन आशावादी विशेषताओं के अलावा,शैक्षिक क्षेत्र में कुछ अकुशल उद्यमों और राजनीति द्वारा शैक्षिक प्रणाली को नुकसान पहुंचाया जाता है। अधिकांश भारतीय अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्ट्राचार का बोलबाला है। संपूर्ण मानव विकास की अवधारणा पर जोर देने के बजाय,आधुनिक शिक्षण संस्थान पैसा बनाने और उपभोक्तावाद पर जोर देते हैं। भ्रष्ट्राचार पहले सरकारी कार्यालयों,व्यापारिक संगठनों और पुलिस थानों तक ही सीमित था, लेकिन अब इसकी जड़ें शिक्षा प्रणाली में भी बढ़ गई हैं। स्कूल अब सीखने का अभयारण्य नहीं है, बल्कि निम्न गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए एक बाजार है।शिक्षा प्रणाली में भ्रष्ट्राचार को निजी लाभ के लिए सार्वजनिक कार्यालय के संगठित उपयोग के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका शैक्षिक वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता, साथ ही साथ शैक्षिक पहुंच, गुणवत्ता और समानता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। भारत की शिक्षा प्रणाली वर्तमान में विसंगतियों से घिरी हुई है। भारत की शिक्षा प्रणाली में नियामक या निरीक्षण संस्थाएं भी भ्रष्ट्राचार के मामलों में शामिल हैं। व्यापक भ्रष्ट्राचार निवारण अधिनियम, 1988 सरकारी एजेंसियों और सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायों में भ्रष्ट्राचार से निपटने के लिए भारत का प्राथमिक कानून है। न्यायपालिका ने उन लोगों की कीमत पर सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा अनैतिक, द्वेष से प्रेरित, लाभ कमाने वाले कृत्यों के खिलाफ लड़ाई के लिए आधार तैयार करने में विशेष रुचि ली है, जिन्हें वे वर्षों से सेवा करने वाले हैं।
शिक्षा व्यवस्था की समस्या
आज की दुनिया में शिक्षा के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है। लेकिन भविष्य कितना उज्ज्वल हो सकता है जब शिक्षा में ही धांधली हो। भ्रष्ट्राचार शिक्षा प्रणाली में नई चुनौतियों का परिणाम है जैसे विकेंद्रीकरण, छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा में वृद्धि, आदि। शिक्षा प्रणाली में,भ्रष्ट्राचार ने प्रवेश या अच्छे ग्रेड और कई अन्य के लिए दी जाने वाली रिश्वत से अपनी पकड़ बना ली है। शिक्षण सामग्री की खरीद या स्कुल के बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए आवंटित धन का गबन जैसे तरीके। यह सब शिक्षा की खराब गुणवत्ता,संसाधनों तक सीमित पहुंच और एक भ्रष्ट शिक्षा प्रणाली के कारण होता है। शैक्षिक संस्थानों को संचालित करने वाले शासी निकाय समय-समय पर शैक्षिक संस्थानों के कामकाज को विनियमित करने के लिए नियम, विनियम और दिशानिर्देश बनाते हैं। नियामक निकाय द्वारा निर्धारित न्यूनतम शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारी, प्रयोगशाला और उपकरण आवश्यकताएं।कई निजी कॉलेजों ने आवश्यक बुनियादी ढांचे या प्रशिक्षित प्रशिक्षकों के बिना विभिन्न विषयों में पाठ्यक्रमों की पेशकश शुरू कर दी है। इस वृद्धि के कारण कुछ वस्तुओं के रूप में प्रतिष्ठित डिग्रियों की बिक्री हुई है। भ्रष्ट शिक्षण संस्थान प्रवेश परीक्षा, कोचिंग सेंटर आदि के माध्यम से पैसा कमाते हैं। प्रबंधन के लिए सीट कोटा की आड़ में,वे प्रवेश के लिए धन प्राप्त करने के लिए दान का शोषण कर रहे हैं। संस्थान उच्च शुल्क लेते हैं जो हर कोई वहन नहीं कर सकता। शिक्षकों की भर्ती में भी भ्रष्ट्राचार हुआ है जिससे पक्षपात और शिक्षा की गुणवत्ता खराब हुई है। द्वारा संचालित शिक्षा भ्रष्टाचार [3] पर एक रिपोर्ट के अनुसारयूनेस्को के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग, भारत में शिक्षकों की अनुपस्थिति की दर दुनिया में सबसे अधिक 25% है। हालांकि सभी शिक्षकों की अनुपस्थिति भ्रष्ट्राचार का प्रमाण नहीं है, लेकिन इन सभी का छात्रों के सीखने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत की छात्र छात्रवृत्ति प्रणाली में भ्रष्ट्राचार व्याप्त है, और झूठे नामांकन योग्य छात्रों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करते हैं, जिससे देरी होती है और छात्रवृत्ति निधि की हानि होती है।
शिक्षा क्षेत्र के क्षेत्रों की कमियां
इस तरह की शिक्षा केवल परीक्षा और परीक्षा को छात्र की बुद्धि का फैसला बनाती है, अच्छे चरित्र और छात्र की प्रतिभा या कौशल की उपेक्षा की जा रही है जिससे इस पीढ़ी का कोई योगदान नहीं होगा। देश का विकास। ये असंतुष्ट किशोर कभी-कभी असामाजिक तत्वों के संपर्क में आते हैं,
शैक्षणिक क्षेत्र में कानूनी वकालत
सुब्रमण्यम स्वामी बनाम मनमोहन सिंह में सर्वोच्च न्यायालय अदालतों को भारत में भ्रष्ट्राचार-विरोधी कानूनों को कैसे समझना चाहिए, इसे परिभाषित करने में एक अनुमोदक रुख अपनाया, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ऐसी स्थिति में जहां दो निर्माण समान रूप से प्रशंसनीय हैं, न्यायालय को उस व्यक्ति को पहचानना चाहिए जो भ्रष्ट अधिकारियों की तलाश करता है जो इसे बनाए रखना चाहता है। हाल के वर्षों में, शिक्षा क्षेत्र विवादों और घोटालों से ग्रस्त रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में व्यापमं घोटाले और एमबीबीएस प्रवेश घोटाले में शामिल 634 डॉक्टरों की डिग्री रद्द कर दी थी। दोनों निर्णयों में, न्यायालय ने कानून के शासन के रक्षक के रूप में कार्य किया, नैतिकता और चरित्र के आदर्शों के आधार पर एक राष्ट्र के निर्माण के उद्देश्य पर बल दिया, जहां धोखाधड़ी को राष्ट्र के मूल मूल्यों को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी। गुजरात राज्य बनाम मनसुखभाई कांजीभाई शाह के मामले में निर्णय न्यायपालिका द्वारा भ्रष्ट्राचार निवारण अधिनियम, 1988 के दायरे को व्यापक बनाने और इसे व्यवहार में और अधिक प्रभावी बनाने के लिए पिछली उपलब्धियों को मजबूत करने का एक और प्रयास है। भारत में न्यायपालिका ने हमेशा एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय के रूप में कार्य करने की मांग की है, जो भारत के संविधान के संरक्षक के रूप में सेवा करने के लिए समर्पित है, और विवादों से मुक्त समाज की कल्पना करता है, जहां पारदर्शिता और जवाबदेही सेटअप के कुशल कामकाज का आधार बन जाती है।
इस समस्या का समाधान कैसे हो सकता है?
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग होनी चाहिए यदि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होता है तो मांग अंततः बढ़ेगी। सभी नीतियां स्पष्ट और आसानी से समझ में आने वाली होनी चाहिए क्योंकि वे अनुचित प्रथाओं से बचने के लिए माता-पिता, छात्रों और प्रक्रिया में शामिल सभी लोगों को स्पष्टता प्रदान करेंगी। प्रतिशोध के डर के बिना संदिग्ध भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग, गोपनीय शिकायत चैनल मुद्दे के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण हैं। शिक्षकों को उनके अनुभव और योग्यता के प्रमाण की जांच के बाद ही प्रवेश दिया जाना चाहिए ताकि शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता न हो। धोखाधड़ी का पता लगाने और उसे रोकने के लिए बाहरी ऑडिट नियमित रूप से किए जाने चाहिए। इसके अलावा, बार-बार स्कूल निरीक्षण शिक्षक प्रबंधन और व्यवहार भ्रष्ट्राचार को रोकने में मदद कर सकता है क्योंकि यह समय-समय पर सब कुछ जांच में रखेगा यदि कोई समस्या है जिसे हल किया जा सकता है। अनुचित व्यवहार और पक्षपात को रोका जाना चाहिए और प्रवेश योग्यता के आधार पर होना चाहिए। शिक्षा को मानव व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के साथ-साथ मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के सुदृढ़ीकरण के लिए तैयार किया जाना चाहिए। शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार जनता के विश्वास को कमजोर करता है और लोगों की क्षमता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में भाग लेने की इच्छा को कम करता है।अपने लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में उच्च ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए विकासशील भारत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के महत्व पर जोर देना असंभव है। वैश्विक भ्रष्ट्राचार रैंकिंग में भारत के निम्न स्थान का अर्थ है कि अभी और काम किया जाना बाकी है। भ्रष्ट्राचार के मुद्दे को हल करने के लिए, कानूनी नींव को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। सरकारी अधिकारियों की भर्ती, उन्नति और पुरस्कार में जवाबदेही भ्रष्ट मुक्त समाज के आदर्श को साकार करने की दिशा में एक लंबा रास्ता तय करेगी। हम जो निष्कर्ष निकाल सकते हैं, वह यह है कि भारत आधुनिक समय में भी नैतिकता और नैतिक सौंदर्य से समृद्ध एक समृद्ध ज्ञान-समृद्ध भूमि के रूप में अपनी स्थिति को पुनः प्राप्त कर सकता है। केवल एक चीज जो हम कर सकते हैं, वह है स्वयं का विकास करना, और क्षेत्र की परवाह किए बिना, अच्छे को पहचानने और बुरे को दंडित करने के लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है।