Brekings: पाली ब्लॉक में मितानिनों की जंग: चुनाव, इस्तीफा, रिश्वत और षड्यंत्र के आरोपों से गरमाया माहौल, कामकाज ठप
कोरबा/पाली-हरदीबाजार (गंगा प्रकाश)। पाली विकासखंड के हरदीबाजार क्षेत्र में मितानिन कार्यकर्ताऔर स्वास्थ्य विभाग के डीआरपी तथा एमटी के बीच मचा घमासान अब पूरी तरह राजनीतिक रंग ले चुका है। यह विवाद केवल आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि मितानिन कार्यक्रम की साख और उसके संचालन पर भी बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है।

पूरा मामला तब शुरू हुआ जब हरदीबाजार की मितानिन श्रीमती अनुसुईया राठौर ने कलेक्टर जनदर्शन में शिकायती आवेदन सौंपते हुए गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि पिछले पंचायत चुनाव में खड़े होने के लिए उन्होंने खंड चिकित्सा अधिकारी को पत्र लिख अनुमति मांगी थी। चुनाव के बाद उन्होंने पुनः मितानिन कार्य में लौटने के लिए आवेदन दिया, लेकिन पाली ब्लॉक के डीआरपी विजय कश्यप, एमटी सुनीता कंवर और श्रीमती विमला कलिहारे ने मिलकर उनसे काम पर वापसी के एवज में एक लाख रुपये की रिश्वत मांगी।
अनुसुईया राठौर का कहना है कि जब उन्होंने रकम देने से इनकार किया, तब उन्हें तीन महीने तक गुमराह किया गया। आरोप यह भी है कि उक्त अधिकारियों ने मितानिनों से अवैध वसूली की प्रक्रिया चला रखी है। उन्होंने कहा,
“मेरे खिलाफ षड्यंत्रपूर्वक माहौल बनाया गया। भोली-भाली मितानिनों को कोरे कागजों पर हस्ताक्षर कराए गए ताकि मेरे खिलाफ झूठी शिकायतें दर्ज कराई जा सकें। थाने में भी मेरे खिलाफ शिकायत दी गई और लगातार प्रयास हो रहे हैं कि मुझे कार्यक्रम में वापसी न मिल सके।”
उनका दावा है कि वे हमेशा मितानिनों के अधिकार और उनके आर्थिक शोषण के खिलाफ आवाज उठाती रही हैं, इसलिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। अनुसुईया राठौर के समर्थन में मितानिनों की एक टीम ने भी कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर निष्पक्ष जांच की मांग की है।
दूसरी ओर पलटवार: इस्तीफा देने के बाद वापसी कैसी?
मितानिन संघ की जिलाध्यक्ष विमला कंवर और डीआरपी-एमटी टीम ने इस आरोप को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना है कि अनुसुईया राठौर ने पंचायत चुनाव लड़ने के लिए स्वयं इस्तीफा दिया था, और नियम के तहत त्यागपत्र देने के बाद वापसी संभव नहीं है। जिलाध्यक्ष विमला कंवर ने कहा,
“यदि उन्हें वापस लिया गया तो पूर्व में इस्तीफा दे चुके सैकड़ों मितानिनों को भी फिर से मौका देना पड़ेगा। यह संभव नहीं है।”
उन्होंने रिश्वत के आरोप को भी बेबुनियाद बताते हुए कहा कि चुनाव हारने के बाद अनुसुईया राठौर विभिन्न हथकंडे अपना रही हैं, जिससे अन्य मितानिनों में भी भ्रम की स्थिति बन रही है और कार्य प्रभावित हो रहा है।
प्रदेश नेतृत्व तक पहुंचा मामला, साख दांव पर
इस विवाद ने तब और तूल पकड़ लिया जब प्रदेश मितानिन संघ छत्तीसगढ़ के सहसंयोजक राजेश यादव को भी ज्ञापन सौंपा गया। अब पूरा मामला प्रदेश नेतृत्व की नजर में है। दोनों पक्ष अपने-अपने तर्कों को सही ठहराने में जुटे हैं। एक तरफ अनुसुईया राठौर इसे “भ्रष्टाचार और अधिकार की लड़ाई” बता रही हैं, तो दूसरी ओर मितानिन संघ की टीम इसे “कार्य प्रणाली के नियमों का उल्लंघन और अनावश्यक दबाव” करार दे रही है।
मितानिनों का कार्य प्रभावित
मितानिनों का कहना है कि इस विवाद के चलते नियमित बैठकें, ट्रेनिंग, सामुदायिक स्वास्थ्य जागरूकता अभियान और ड्यूटी शेड्यूल तक प्रभावित हो रहा है। पाली ब्लॉक की एक वरिष्ठ मितानिन ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“हम लोग पहले ही बेहद सीमित मानदेय में काम कर रहे हैं। ऊपर से ऐसे आरोप-प्रत्यारोप और गुटबाजी से स्वास्थ्य सेवाओं का लक्ष्य प्रभावित होगा। गांव की महिलाएं दवाओं और स्वास्थ्य सलाह के लिए मितानिन पर ही निर्भर हैं।”
अब जांच पर टिकी निगाहें
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, कलेक्टर कार्यालय ने शिकायत की प्रारंभिक जांच की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यदि अनुसुईया राठौर के आरोप सही साबित होते हैं तो यह स्वास्थ्य विभाग के कामकाज पर बड़ा सवाल खड़ा करेगा, वहीं यदि उनके आरोप गलत साबित होते हैं तो उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी संभव है।
राजनीतिक रंगत और ग्रामीण स्वास्थ्य पर असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि मितानिन जैसी सामुदायिक स्वास्थ्य योजना में जब राजनीति घुसपैठ करती है, तो उसका सीधा खामियाजा गांव की गरीब और वंचित आबादी को भुगतना पड़ता है। अनुसुईया राठौर की शिकायत में जहां भ्रष्टाचार की बू आ रही है, वहीं डीआरपी-एमटी पक्ष इसे नियम-संहिताओं का मामला बता रहे हैं।
फिलहाल, दूध का दूध और पानी का पानी तो निष्पक्ष जांच के बाद ही होगा, लेकिन इतना तय है कि इस खींचतान ने मितानिन कार्यक्रम की जड़ों को हिला दिया है।