CG: चाकाबुड़ा पंचायत में भ्रष्टाचार का विस्फोट: मरम्मत कार्यों के नाम पर 9.28 लाख का घोटाला, ग्रामीणों का फूटा आक्रोश, जांच और कार्रवाई की उठी मांग
कोरबा/कटघोरा (गंगा प्रकाश)। चाकाबुड़ा पंचायत में भ्रष्टाचार का विस्फोट: “विकास” के नाम पर धन तो खूब आया, लेकिन जमीन पर कुछ नहीं उतरा। कागजों में मरम्मत, निर्माण और सुविधा का जाल बिछाया गया, लेकिन असलियत में गांव की गलियों से लेकर सार्वजनिक भवनों तक में टूटी छतें, जर्जर नालियां और बेकार पड़ी सुविधाएं इस सच की गवाही दे रही हैं कि चाकाबुड़ा ग्राम पंचायत में किस तरह से सरकारी धन को बंदरबांट कर डकार लिया गया।
चाकाबुड़ा पंचायत में पूर्व सरपंच पवन सिंह कमरो और तत्कालीन सचिव रजनी सूर्यवंशी पर करोड़ों के सरकारी धन के दुरुपयोग का गंभीर आरोप लगा है। पंचों और ग्रामीणों ने इन दोनों को पंचायत में हुए वित्तीय घोटालों का मुख्य साजिशकर्ता बताया है। आरोप है कि पंचायत को मिले 15वें वित्त और मूलभूत मद की राशि को मरम्मत कार्यों, स्ट्रीट लाइट, भवन सुधार आदि के नाम पर लूटा गया, जबकि धरातल पर काम या तो अधूरे हैं या दिखाई ही नहीं देते।

कागजों में निर्माण, धरातल पर शून्य
ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत द्वारा कई कार्यों के नाम पर लाखों रुपये की राशि खर्च करना बताया गया है। लेकिन जब ग्रामीणों ने इन कार्यस्थलों की हकीकत जाननी चाही तो अधिकांश स्थानों पर कार्य अधूरे या नगण्य स्तर पर पाए गए। वहीं कई ऐसे बिंदु सामने आए जहाँ एक ही कार्य को बार-बार दिखाकर राशि आहरित की गई है, विशेषकर बोर मरम्मत कार्यों में।
मरम्मत कार्यों के नाम पर निकाली गई 9.28 लाख की राशि
पंचायत में जिन 16 मदों में राशि निकाली गई, उनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
- प्राथमिक शाला भवन: ₹49,938
- हैंडपंप, आंगनबाड़ी शौचालय व यात्री प्रतीक्षालय: ₹1,10,000
- स्वास्थ्य केंद्र: ₹1,00,000
- पीडीएस व सामुदायिक भवन: ₹44,000
- बोर मरम्मत के नाम पर — 9 बार में ₹3 लाख से अधिक
- पंप सेट, नाली, शौचालय की मरम्मत: ₹1.5 लाख से अधिक
इन सबके अलावा पंचायत द्वारा 15वें वित्त से सिर्फ कुछ स्ट्रीट लाइट लगाने के लिए ₹3.21 लाख खर्च किए गए हैं, जबकि धरातल पर बमुश्किल गिनती के खंभे और घटिया गुणवत्ता की लाइटें ही देखने को मिलती हैं।
जनपद व जिला प्रशासन पर भी उठे सवाल
ग्रामीणों का कहना है कि इस पूरे घोटाले में पंचायत स्तर तक ही नहीं, बल्कि जनपद पंचायत और जिला प्रशासन की चुप्पी और उदासीनता भी संदेह के घेरे में है। पूर्व में हुई शिकायतों को नजरअंदाज किया गया और किसी प्रकार की जाँच नहीं की गई, जिससे भ्रष्टाचारियों के हौसले बुलंद हुए।
गांव के मौजूदा हालात और आक्रोश
गांव के गली-मोहल्लों में गंदगी, जलभराव और खराब रोशनी की स्थिति है। स्कूल भवन की छतें टपकती हैं, शौचालय अनुपयोगी हैं, हैंडपंप खराब पड़े हैं। लेकिन कागजों पर हर चीज ठीक-ठाक दिखा दी गई है। यह स्थिति तब है जब गांव को हर साल लाखों की राशि विकास के नाम पर दी जाती रही।
ग्रामीणों का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो चाकाबुड़ा पंचायत कभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए आत्मनिर्भर नहीं बन पाएगी। गांव की जनता ने अब यह तय कर लिया है कि वे इस मामले को शांत नहीं होने देंगे। उन्होंने कलेक्टर, जनपद सीईओ और राज्य सरकार से सीबीआई या ईओडब्ल्यू स्तर की जांच कराने की मांग की है।
क्या कहती है पंचायत की वर्तमान व्यवस्था?
पंचायत के वर्तमान प्रतिनिधियों ने भी माना कि पूर्व कार्यकाल में भारी अनियमितताएं हुई हैं। वे भी इस मामले में पारदर्शी जांच चाहते हैं ताकि दोषियों को सजा मिले और ग्राम पंचायत की छवि बहाल हो सके।
ग्रामीणों की मांगें स्पष्ट:
- पंचायत में बीते पांच वर्षों में खर्च की गई राशि की स्वतंत्र जांच हो।
- फर्जी बिल और वाउचर का ऑडिट कराया जाए।
- दोषी सरपंच, सचिव और संलिप्त अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर गिरफ्तारी हो।
- पंचायत निधि से लूटे गए धन की वसूली सुनिश्चित हो।
- आने वाली योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने हेतु निगरानी समिति का गठन हो।
निष्कर्ष
यह मामला केवल एक पंचायत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उस व्यापक समस्या की तस्वीर है जो ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त प्रशासनिक भ्रष्टाचार की पोल खोलती है। यदि समय रहते इस प्रकार की शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह हमारे लोकतांत्रिक ढांचे की जड़ों को कमजोर करेगा।
अब सवाल यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस गूंजती आवाज़ को सुनेगा? या फिर चाकाबुड़ा की तरह हजारों पंचायतें इसी तरह लूट का शिकार होती रहेंगी?