करप्ट अधिकारी अजय कुमार खरे का खेल! किसान हितैषी योजना में करोड़ों का घोटाला, घटिया निर्माण से फूटा भ्रष्टाचार का बुलबुला, पिथौरा जल संसाधन उपसंभाग बना लूट का अड्डा
महासमुंद/रायपुर(गंगा प्रकाश)। नहर में दरार नहीं, सिस्टम में दरार – छत्तीसगढ़ का जल संसाधन विभाग एक बार फिर कटघरे में है। विभाग जिसके जिम्मे किसानों को सिंचाई की सुविधा पहुंचाना है, वही विभाग भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का गढ़ बन चुका है। महासमुंद परियोजना अंतर्गत पिथौरा जल संसाधन उपसंभाग में चल रहा माइनर नाली नहर सीसी लाईनिंग कार्य भ्रष्टाचार की ऐसी पोल खोल रहा है, जिससे साफ हो गया है कि सरकारी योजनाओं का मकसद विकास नहीं, बल्कि अफसर-ठेकेदार की जेब भरना है।

नियम-कायदों को ताक पर, भ्रष्टाचार को सिर पर
नहर की सीसी लाईनिंग कार्य में ड्रेन और पोरस ब्लॉक जैसी बुनियादी तकनीकी मानकों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया। ठेकेदार ने मनमर्जी से काम कराया और विभागीय अफसरों ने आंख मूंद ली। नतीजा— कुछ ही महीनों में करोड़ों की लागत वाली नहर जगह-जगह से फटकर दरारों से भर गई।
यह दरारें महज़ कंक्रीट में नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के भ्रष्टाचार की हैं।
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EE अजय कुमार खरे की भूमिका पर सवाल
पिथौरा उपसंभाग के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर (EE) अजय कुमार खरे पर गंभीर आरोप लगे हैं कि वे इस पूरे भ्रष्टाचार कांड में कमीशनखोरी के केंद्र में हैं।
- शिकायतों के बावजूद घटिया निर्माण रोका नहीं गया।
- गुणवत्ता की जांच के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति होती रही।
- और जब मीडिया ने सवाल पूछे तो EE खरे बौखला गए और पत्रकारों से बदसलूकी पर उतर आए।
अब सवाल यह है कि एक जिम्मेदार अधिकारी को अगर अपने काम पर भरोसा है, तो वह पारदर्शिता से जवाब देने से क्यों बचता है?

ठेकेदार की मनमानी, अधिकारी बने “गूंगे-बहरे”
सूत्र बताते हैं कि ठेकेदार की मनमर्जी के आगे पूरा प्रशासन नतमस्तक है। जिन अफसरों को निगरानी करनी चाहिए थी— मुख्य तकनीकी परीक्षक (सतर्कता),मुख्य अभियंता,अधीक्षण अभियंता,मिट्टी पदार्थ गुण नियंत्रक ये सभी मूकदर्शक बने हुए हैं। उच्चाधिकारियों की “कमीशनखोरी” ने पूरे विभाग को पंगु बना दिया है।
जनता के पैसे की लूट
यह भ्रष्टाचार केवल कागजों का खेल नहीं, बल्कि सीधे-सीधे जनता के पैसे की डकैती है।
- सरकार करोड़ों खर्च करती है ताकि किसानों को पानी मिल सके।
- किसान समय पर सिंचाई कर सकें, उपज बढ़ा सकें।
- लेकिन घटिया निर्माण ने इस योजना को महज़ एक “कागजी ढांचे” में बदल दिया।
किसानों को न तो सिंचाई का फायदा मिलेगा और न ही जनता को अपने टैक्स के पैसों का सही इस्तेमाल।
अफसरों की ऐश, किसानों की बदहाली
सरकार इन अफसरों को मोटा वेतन, सरकारी वाहन, पेट्रोल-डीजल और तमाम सुविधाएं देती है। लेकिन ये जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ वाहनों में घूमकर डीजल जलाते हैं और रिपोर्टिंग कागजों में पूरी कर देते हैं। वास्तविक निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण कहीं दिखाई नहीं देता।
दूसरी ओर, जिन किसानों के लिए ये योजनाएं बनीं, वे पानी के लिए तरसते रहते हैं।
उच्च स्तरीय जांच की मांग
इस पूरे मामले की शिकायत उच्च विभाग तक लिखित रूप में पहुंच चुकी है। लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। यही कारण है कि जनता और किसान सवाल कर रहे हैं— कब सुधरेगा प्रशासन?कब रुकेगी ठेकेदार-अफसर की मिलीभगत?कब जवाब देंगे मंत्री और विधायक?
अब यह मामला केवल भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि किसानों के हक और जनता के भरोसे का भी है।
पत्रकारों पर दबाव और बदसलूकी
इस मामले की सच्चाई जानने पहुंचे पत्रकारों से EE अजय कुमार खरे का बदसलूकी करना यह साबित करता है कि भ्रष्टाचारियों को मीडिया की ताकत का डर है। लेकिन सवाल यह भी है कि— क्या अब भ्रष्ट अधिकारी अपनी करतूतें छिपाने के लिए पत्रकारों को दबाने का काम करेंगे?
पिथौरा जल संसाधन उपसंभाग का यह मामला छत्तीसगढ़ की उस सच्चाई को उजागर करता है, जिसमें सरकारी योजनाएं गरीब और किसानों के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्ट अफसरों और ठेकेदारों की तिजोरी भरने के लिए बनाई जाती हैं।
अब समय आ गया है कि सरकार और विभाग ऐसे मामलों पर कठोरतम कार्रवाई करे।
वरना यह समझा जाएगा कि सत्ता और सिस्टम दोनों ही इस लूट में बराबर के हिस्सेदार हैं।

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