मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना: नाम बड़ा, दर्शन छोटा!
छुरा (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ की बहुचर्चित “मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना” जिस उद्देश्य से शुरू की गई थी — आम जनता, खासकर गरीब और पिछड़े वर्गों तक मुफ्त और बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं पहुँचाना — वो ज़मीनी हकीकत में महज़ एक दिखावे की गाड़ी बनकर रह गई है।

छुरा नगर और उसके आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्वास्थ्य सेवा बस सप्ताह में दो-तीन बार जरूर नज़र आती है, वह भी पूरे तामझाम और आकर्षक ब्रांडिंग के साथ। बस की बाहरी दीवारों पर मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की मुस्कुराती हुई तस्वीरें और बड़े-बड़े स्लोगन जनता का ध्यान जरूर खींचते हैं, लेकिन जब लोग स्वास्थ्य सेवा की उम्मीद लेकर उस बस के अंदर कदम रखते हैं, तो वहां उम्मीदें टूट जाती हैं और खाली हाथ वापस लौटना पड़ता है।
तीन कर्मचारी, शून्य सुविधा!
बस में आमतौर पर तीन कर्मचारी मौजूद होते हैं। ड्रेस में, समय पर और ईमानदारी से ड्यूटी पर रहते हैं — इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब दवा ही नहीं है, तो डॉक्टर और कर्मचारी क्या कर सकते हैं?
एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया: “ऊपर से दवाई की सप्लाई ही नहीं हो रही है, जो मिल रहा है वो तुरंत खत्म हो जाता है। हमारे हाथ बंधे हुए हैं।”
दर्द से कराहते मरीज, पर दर्द निवारक दवाएं भी नहीं
यह बात बेहद चौंकाने वाली है कि इस बस में सामान्य बुखार, बदन दर्द, सिर दर्द जैसी बुनियादी समस्याओं के लिए जरूरी दर्द निवारक दवाएं तक मौजूद नहीं रहतीं। गांव की महिलाएं, बुजुर्ग, मजदूर वर्ग — जिनके लिए यह योजना एक उम्मीद की किरण थी — निराश होकर लौटते हैं।
“हम सोचते थे सरकार ने गरीबों के लिए कुछ किया है, लेकिन यहां तो बस दिखावा है। ना दवा, ना इलाज… फिर इस गाड़ी को क्यों लाया जाता है?” — ग्राम छुरा की एक वृद्ध महिला, का कहना है
बस बन चुकी है डीज़ल और वेतनखोरी की मशीन
सवाल यह भी उठता है कि जब न तो दवा है और न इलाज, तो इस भारी-भरकम बस को गांव-गांव घुमाने का क्या औचित्य है? यह बस अब केवल डीजल, रखरखाव और कर्मचारियों के वेतन का खर्च बढ़ाने वाला एक चलित पोस्टर बन गई है।
सरकारी फाइलों में यह योजना “सफल” बताई जा रही है, पर ज़मीनी सच्चाई इससे एकदम उलट है।
मरीजों की भीड़, दवा की किल्लत — जिम्मेदार कौन?
हर दिन दर्जनों ग्रामीण इस बस के इंतजार में बैठते हैं। कोई पैर दर्द से परेशान है, कोई बुखार से तप रहा है, तो कोई हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित। लेकिन जब बस आती है, तो दवा देने के बजाय कर्मचारियों के पास केवल “दवा खत्म हो गई है, अगली बार आना” जैसा जवाब होता है।
इस पूरे सिस्टम की सबसे बड़ी विफलता है — दवा आपूर्ति तंत्र की नाकामी। क्या स्वास्थ्य विभाग ने कभी यह जांचा कि जिन जिलों में ये बसें भेजी जा रही हैं, वहां मरीजों की संख्या और जरूरतें क्या हैं? क्या हर बस को पर्याप्त स्टॉक दिया जा रहा है?
सरकार के लिए सवाल, जनता के लिए तकलीफ
- मुख्यमंत्री जी, क्या आपकी योजना केवल पोस्टर और फोटो खिंचवाने तक सीमित रह गई है?
- स्वास्थ्य मंत्री महोदय, जब गांव के गरीब को निःशुल्क दवा नहीं मिल रही, तो योजना का औचित्य क्या रह जाता है?
- स्वास्थ्य विभाग, कब तक दवा की सप्लाई में लापरवाही जारी रहेगी?
“मुख्यमंत्री स्लम स्वास्थ्य योजना” अपने उद्देश्य से भटक चुकी है। नाम के आगे “मुख्यमंत्री” जुड़ा होने से लोगों की उम्मीदें भी ज्यादा हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई है — नाम बड़ा, दर्शन छोटा।
यह एक चेतावनी है — अगर यह योजना वाकई गरीबों के लिए है, तो इसे केवल प्रचार का जरिया न बनाएं। दवा दें, सुविधा दें, वरना यह बस केवल चलती फिरती धोखा साबित होगी।