CG : बरसात में भीगते सपनों पर इंसानियत की चादर – जब ‘इम्मू दिलेर’ बने राहत की बूंद
गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। बरसात में भीगते सपनों पर इंसानियत की चादर – बारिश की पहली फुहार जहां किसी के लिए खुशबू बनकर आती है, वहीं किसी के लिए कांपती रातों का पैगाम भी लाती है। गरियाबंद की गलियों और चौक-चौराहों पर जब आसमान से बारिश उतर रही थी, तब एक शख्स भी था, जो आसमान से बरसती बूंदों से ज्यादा, इंसानियत के बूंदों की बरसात कर रहा था। नाम है इमरान उर्फ ‘इम्मू दिलेर भाई जान’।
यह कहानी सिर्फ एक रेनकोट बांटने की नहीं है। यह कहानी है उस सोच की, जो कहती है — “किसी की भीगती हथेली में एक सूखी उम्मीद रख दीजिए, यही इंसानियत है।”

बारिश – किसी के लिए सुकून, किसी के लिए सजा
गरियाबंद के मुख्य बाजार, बस स्टैंड और मजदूर मंडी के पास रोज़ाना दर्जनों मजदूर दूर-दराज के गांवों से आते हैं। सुबह घर से सूखी रोटी खाकर निकलते हैं और शाम को काम के पैसे से बच्चों के लिए आटा, दाल, नमक-तेल खरीद ले जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश ने उनका जीना मुहाल कर दिया। न उनके पास छत है, न छाता, और रेनकोट तो सपनों जैसी चीज़ है।
बारिश में भीगने का मतलब उनके लिए सिर्फ कपड़े गीले होना नहीं, बल्कि बुखार, सर्दी-जुकाम और मजदूरी छूट जाना भी है। एक मज़दूर बाप की आवाज़ सुनिए — “भीग गए तो बुखार होगा, बुखार हुआ तो काम नहीं कर पाऊंगा, और काम नहीं किया तो बच्चों को भूखा सुलाना पड़ेगा।”
‘बारिश में भी रोटी न रुके’ – इम्मू दिलेर की मुहिम
ऐसे में जब समाजसेवी इमरान उर्फ ‘इम्मू दिलेर भाई जान’ की नजर इन कांपते, भीगते, थरथराते मजदूरों पर पड़ी तो उनका दिल पसीज गया। उन्होंने तुरंत अपनी टीम से कहा, – “पैसे से बड़ी चीज़ है इरादा। आज ही रेनकोट और छाते का इंतजाम करो। कोई भी मज़दूर बारिश में भीगकर बीमार न पड़े।”
बस फिर क्या था। ‘बारिश में भी रोटी न रुके’ नाम की मुहिम शुरू हुई। इम्मू खुद बाजार गए, थोक दुकानों से रेनकोट और छाते खरीदे और अगली सुबह से गरीब मजदूरों, रिक्शा चालकों, सब्जी बेचने वालों और झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को बांटना शुरू कर दिया।
रेनकोट लेते वक्त एक बुजुर्ग महिला की आंखों में आंसू आ गए। उसने कहा, – “बेटा, बरसात में तवा भीग जाता था तो लकड़ी नहीं जलती थी, आज तवा भी सूखा रहेगा और मैं भी।”
कौन हैं ‘इम्मू दिलेर’?
गरियाबंद में अगर किसी से पूछें कि ‘दिलेर भाई जान’ कौन है, तो हर दूसरा शख्स एक ही जवाब देगा — “वो, जो हर जरूरतमंद के साथ खड़ा होता है।”
- कोविड काल में जब लोग घरों से नहीं निकल रहे थे, इम्मू अपनी मोपेड पर दवा, राशन, दूध और खाना पहुंचाते थे।
- दिव्यांग स्कूल के बच्चों को क्रिकेट किट, फुटबॉल, बैडमिंटन से लेकर स्कूल बैग तक दे चुके हैं।
- वृद्धाश्रम में गर्मियों में कूलर और सर्दियों में कंबल पहुंचाते हैं।
- दिवाली पर गरीब बच्चों को नए कपड़े दिलाना उनकी परंपरा बन गई है।
इसीलिए लोग प्यार से कहते हैं – ‘इम्मू दिलेर’ सिर्फ नाम नहीं, भरोसे का दूसरा नाम है।
इम्मू दिलेर का संदेश
इम्मू भाई जान कहते हैं, – “बारिश सिर्फ भीगने की बात नहीं है, गरीब के लिए ये उसकी दिहाड़ी, उसके बच्चों की भूख और उसकी इज्जत तक रोक देती है। अगर आपके पास छाता है, तो किसी के लिए एक और खरीदकर दे दीजिए। रेनकोट छोटा हो सकता है, लेकिन इंसानियत की छांव सबसे बड़ी होती है।”
असली नायक – वो जो किसी के आंसू पोछ दे
आज जब समाज में स्वार्थ, दिखावा और प्रचार का बोलबाला है, इम्मू दिलेर जैसे लोग बिना शोर किए, बिना किसी पुरस्कार की चाहत के, रोज़ किसी का आंसू पोछते हैं। यही लोग साबित करते हैं कि इंसानियत जिंदा है, और जब तक ऐसे दिलेर हैं, गरीब की झोपड़ी में भी उम्मीद का दीया जलता रहेगा।