छुरा (गंगा प्रकाश)। प्रधानमंत्री आवास की चोरी —गरीब और हक़दार आदिवासी बिसाहू राम गोंड का प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाला सपना कागजों में पूरा हो गया, लेकिन हक़ीक़त में उनका घर आज भी मिट्टी और खपरैल से ढंका है। योजनाओं की सफलता के ढोल पीटने वाले अफसर और नेता इस घोटाले पर चुप्पी साधे बैठे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब हितग्राही तक योजना का पैसा पहुँचा ही नहीं, तो लाखों रुपए गए कहाँ?

कागजों में बना पक्का मकान, ज़मीन पर टूटी झोपड़ी
हिराबतर (ग्राम पंचायत भरुवामुडा, जनपद छुरा) के आदिवासी मज़दूर बिसाहू राम गोंड पिता फिरतुराम को 2017 में प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुआ था। सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि तीन किश्तों में ₹1,30,000 का भुगतान उनके बैंक खाते में हुआ और आवास पूर्ण भी दर्ज कर दिया गया।
लेकिन बिसाहू राम का कहना है कि उनके खाते में फूटी कौड़ी भी नहीं आई, और आवास के नाम पर आज भी वह उसी जर्जर झोपड़ी में अपने परिवार के साथ जिंदगी गुजार रहे हैं।
हितग्राही की आपबीती – “मोला धमकाय देहे”
बिसाहू राम ने फूट-फूट कर अपनी व्यथा सुनाई – का बताव साहब… मोर प्रधानमंत्री आवास ह चोरी होगे। छुरा जनपद पंचायत के बड़े साहब मोर घर आए रहिसे, मोला धमकाय के कहिन बिसाहू एक लाख तीस हजार रुपया दारु-कुकरी खा दे, अब तक घर नहीं बनाए हस? मैं आज तक एक लाख रुपया देखे नहीं हो, फेर बड़े साहब मोला ही चोर बतावत हंव। कागज में जबरन दस्तखत कराय के बोलिन तोर नाम के आवास दूसर ला दे हन।”
एक गरीब मज़दूर पर इस तरह की धमकी और दबाव ने प्रशासन की नीयत पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सीईओ की भूमिका पर सवाल
जनपद पंचायत छुरा के प्रभारी सीईओ सतीष चन्द्रवंशी पर आरोप है कि उन्होंने इस पूरे मामले को दबाने का प्रयास किया। हितग्राही की शिकायत पर उन्होंने उच्च अधिकारियों को जानकारी देने के बजाय आवास शाखा के जिम्मेदार कर्मचारियों पर कार्रवाई से परहेज़ किया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि सतीष चन्द्रवंशी खुद को गृहमंत्री और उपमुख्यमंत्री का करीबी बताकर मामले को दबाते रहे हैं। यही कारण है कि आज तक किसी दोषी पर कार्रवाई नहीं हुई।
अफसरशाही और भ्रष्ट तंत्र का गठजोड़
- 2017 में आवास स्वीकृत
- दस्तावेज़ों में ₹1,30,000 का भुगतान दर्शाया गया
- धरातल पर आवास शून्य
- हितग्राही के खाते में पैसा नहीं
- सीईओ ने कार्रवाई के बजाय चुप्पी साध ली
यह सीधे-सीधे योजनाबद्ध आवास चोरी का मामला है, जिसमें अफसरों की मिलीभगत के बिना संभव ही नहीं।
जनता में आक्रोश, सरकार पर सवाल
हिराबतर के ग्रामीणों का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री आवास जैसी गरीब-हितैषी योजना में इस तरह की लूट और बंदरबांट होगी, तो आम आदमी न्याय की उम्मीद किससे करेगा?
बिसाहू राम और उनके परिवार की पीड़ा आज पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय है। लोग पूछ रहे हैं –
- जब आवास स्वीकृत था, तो पैसा किसके खाते में गया?
- किसके संरक्षण में आवास चोर आज भी खुलेआम घूम रहे हैं?
- गरीब आदिवासी का हक़ छीनने वाले अधिकारी और कर्मचारी कब तक बचते रहेंगे?
अब ज़रूरी है उच्च स्तरीय जांच
यह मामला सिर्फ एक आवास की चोरी का नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी और भ्रष्टाचार का आईना है। गरियाबंद जिले के जिम्मेदार अधिकारी और शासन को इस मामले की उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए, ताकि दोषियों को सज़ा मिले और बिसाहू राम जैसे गरीब हितग्राही को उसका हक़ लौटाया जा सके।