छुरा (गंगा प्रकाश)। छुरा नगर मुख्यालय और आसपास का क्षेत्र आज जनता की सुविधा और विकास का केंद्र बनने के बजाय उनकी सबसे बड़ी परेशानी का ठिकाना बन चुका है। यहाँ शिक्षा विभाग, जनपद पंचायत, नगर पंचायत, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, वन परिक्षेत्र और राजस्व विभाग जैसे अहम कार्यालय तो हैं ही, अब निजी विद्यालयों की भरमार ने भी जनता की जेब पर डाका डालना शुरू कर दिया है।

स्थिति यह है कि जनता जहाँ भी जाती है—सरकारी कार्यालय हो या निजी संस्था—उसे सुविधा और राहत कम, लूट और परेशानी ज़्यादा मिलती है।

शिक्षा विभाग: भविष्य से खिलवाड़

छुरा क्षेत्र में शिक्षा विभाग की लापरवाही किसी से छिपी नहीं है। स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है। जो शिक्षक पदस्थ हैं उनमें से कई मेडिकल अवकाश का सहारा लेकर महीनों घर पर आराम फरमाते हैं। छात्रों की पढ़ाई और गुणवत्ता पर इसका सीधा असर पड़ रहा है।

स्थानीय अभिभावक बताते हैं कि बच्चों को किताबें और भवन तो मिलते हैं, लेकिन पढ़ाई नाम मात्र की होती है। शिक्षक वेतन तो मोटा उठाते हैं लेकिन पढ़ाने की जिम्मेदारी निभाने से बचते हैं। शिक्षा विभाग अब जनता के लिए उम्मीद नहीं बल्कि निराशा का कारण बन चुका है।

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निजी विद्यालय: मनमानी और मोटी कमाई

छुरा और आसपास जगह-जगह निजी विद्यालय खुल चुके हैं। अभिभावक सरकारी स्कूलों की बदहाली देखकर मजबूरी में अपने बच्चों को इन निजी संस्थानों में भेज रहे हैं। लेकिन यहाँ स्थिति और भी खतरनाक है।

राज्य शासन के दिशा-निर्देशों पर संचालित होना तो दूर, अधिकांश निजी विद्यालय संस्थापकों की अपनी मनमानी पर चल रहे हैं। फीस के नाम पर मोटी रकम वसूली जा रही है। यूनिफॉर्म, किताबें, परिवहन और एडमिशन के नाम पर अभिभावकों की जेब पर सीधा बोझ डाला जा रहा है।

शहरवासी और ग्रामीण दोनों ही अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने की होड़ में निजी स्कूलों का शिकार बन रहे हैं। सरकार एक तरफ शिक्षा के लिए पुख्ता इंतज़ाम का दावा करती है, लेकिन निजी स्कूलों के संस्थापक इन दावों की परवाह किए बिना अपने नियमों से खेल खेल रहे हैं।

अभिभावकों का सवाल है—“अगर सरकार ने मुफ्त शिक्षा और गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई का दावा किया है, तो फिर क्यों हमें निजी स्कूलों की मनमानी झेलनी पड़ रही है?”

जनपद पंचायत: योजनाओं का गोरखधंधा

जनपद पंचायत छुरा के अधीन ग्राम पंचायतों में सचिव और सरपंच की मनमानी खुलेआम देखने को मिलती है। मनरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना और जल जीवन मिशन जैसी योजनाएँ कागज़ों में तो चमक रही हैं लेकिन ज़मीनी हकीकत बिल्कुल उलट है।

ठेकेदारों और जीएसटीधारी व्यापारियों के साथ मिलकर योजनाओं की राशि का बड़ा हिस्सा ग़लत दिशा में बहा दिया जाता है। ग्रामीणों को मजदूरी और लाभ अधूरा ही मिलता है। जनपद पंचायत सीईओ की खामोशी पर भी सवाल उठ रहे हैं।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र: अस्पताल या रेफ़र सेंटर?

छुरा का सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अब ‘रेफ़र सेंटर’ के नाम से बदनाम हो चुका है। यहाँ मरीज इलाज की उम्मीद लेकर पहुँचते हैं लेकिन उन्हें या तो सिर्फ़ प्राथमिक दवा मिलती है या सीधे जिला अस्पताल/रायपुर रेफ़र कर दिया जाता है।

गरीब और ग्रामीण परिवारों को मजबूरी में प्राइवेट अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है। जनता का आरोप है कि डॉक्टर केवल ड्यूटी निभाने और वेतन लेने आते हैं, इलाज करने की नीयत से नहीं।

वन परिक्षेत्र: गश्त काग़ज़ों में, जंगल असुरक्षित

वन परिक्षेत्र छुरा में सरकारी वाहन तक नहीं है। रेंजर साहब ऑफिस में बैठकर ड्यूटी बजाने को विवश हैं। नतीजा यह है कि अवैध कटाई और वन्य अपराधों पर कोई नियंत्रण नहीं है।

ग्रामीण बताते हैं कि विभाग गश्त और कार्रवाई सिर्फ़ कागज़ों पर दिखाता है, जबकि जमीनी स्तर पर जंगल लगातार असुरक्षित होते जा रहे हैं।

नगर पंचायत: टैक्स वसूली, योजनाएँ गायब

छुरा में नगर पंचायत बनने के बाद नागरिकों को उम्मीद थी कि उन्हें शहरी सुविधाएँ और रोज़गार मिलेगा। लेकिन हुआ इसका उल्टा। आज नगर पंचायत केवल टैक्स वसूली का अड्डा बन गई है।

नगरवासियों से संपत्ति कर, सफाई कर और अन्य शुल्क वसूले जाते हैं। लेकिन नालियाँ टूटी पड़ी हैं, पानी की व्यवस्था चरमराई है और सफाई व्यवस्था लचर है। गरीब परिवारों के लिए कोई योजना या रोजगार गारंटी नहीं है।

लोगों का कहना है— नगर पंचायत बनने के बाद हम सिर्फ़ टैक्सदाता बन गए हैं। सुविधाएँ और योजनाएँ सिर्फ़ कागज़ों में दिखती हैं।

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राजस्व विभाग: भूमाफ़ियाओं का कब्ज़ा

राजस्व विभाग की हालत और भी गंभीर है। नगर मुख्यालय से लेकर ग्रामीण अंचल तक भूमाफियाओं का कब्ज़ा हो चुका है।

दलाल सक्रिय होकर दूर-दराज़ शहरों से आने वाले लोगों को कृषि भूमि अवैध तरीके से बेच रहे हैं। नतीजा यह है कि न केवल स्थानीय ग्रामीण अपनी ज़मीन खो रहे हैं, बल्कि सरकार को भी भारी राजस्व हानि हो रही है।

लोग पूछते हैं—क्या सरकार ने इन भूमाफियाओं को भूमि बेचने का लाइसेंस दे रखा है? आखिर राजस्व विभाग चुप क्यों है? क्यों दलाल खुलेआम अपनी जेब गर्म कर रहे हैं और गरीब किसान अपनी ही जमीन से बेदखल हो रहे हैं?

जनता का गुस्सा

  1. छुरा की जनता अब आक्रोशित है।
  2. शिक्षा विभाग बच्चों का भविष्य बिगाड़ रहा है।
  3. निजी विद्यालय अभिभावकों की जेब पर डाका डाल रहे हैं।
  4. पंचायतें योजनाओं को लूट का साधन बना चुकी हैं।
  5. स्वास्थ्य केंद्र इलाज की जगह रेफ़र सेंटर बन गया है।
  6. वन विभाग जंगल बचाने में नाकाम है।
  7. नगर पंचायत सिर्फ़ टैक्स वसूल रही है।
  8. और राजस्व विभाग भूमाफियाओं का अड्डा बन चुका है।

प्रशासन पर सवाल

छुरा नगर और ग्रामीण अंचल की जनता कर देती है, टैक्स देती है, लेकिन बदले में उसे सिर्फ़ परेशानी और लूट मिल रही है। प्रशासन से जनता पूछ रही है:

  • आखिर सरकारी कर्मचारी सिर्फ़ वेतन के लिए ड्यूटी क्यों कर रहे हैं?
  • क्या भूमाफियाओं को ज़मीन बेचने का लाइसेंस दे दिया गया है?
  • नगर पंचायत सिर्फ़ टैक्स वसूली के लिए है या सुविधा देने के लिए?
  • निजी विद्यालयों की मनमानी पर रोक कौन लगाएगा?

छुरा मुख्यालय आज जनता के लिए सुविधा का नहीं बल्कि मुसीबत का केंद्र बन चुका है। शिक्षा, स्वास्थ्य, पंचायत, नगर पंचायत, वन और राजस्व विभाग—सभी जनता की सेवा की बजाय लूट और मनमानी में लगे हैं।

जनता का धैर्य अब जवाब देने लगा है। अगर हालात नहीं सुधरे तो छुरा की गलियों और चौक-चौराहों से जनता की आवाज़ ज़रूर उठेगी।

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