गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। छत्तीसगढ़ के नक्सल मोर्चे पर शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक साबित हुआ। शासन द्वारा प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन को तब गहरा झटका लगा जब गरियाबंद जिले में सक्रिय “उदंती एरिया कमेटी” के समस्त सक्रिय सदस्य हथियारों के साथ आत्मसमर्पण कर दिए।
इस आत्मसमर्पण में कुल 07 हार्डकोर नक्सली शामिल रहे, जिन पर कुल 37 लाख रुपए का इनाम घोषित था। इनमें संगठन के डिवीजनल कमेटी सदस्य, सचिव, डिप्टी कमांडर और कई एरिया कमेटी सदस्य शामिल हैं।

समर्पण करने वाले शीर्ष माओवादी और उनका प्रोफाइल
आत्मसमर्पण करने वालों में सबसे बड़ा नाम रहा — सुनील उर्फ जगतार सिंह, जो संगठन का डिवीजनल कमेटी सदस्य था और उस पर 8 लाख रुपए का इनाम घोषित था। इसके साथ ही उसकी पत्नी और उदंती एरिया कमेटी सचिव अरीना टेकाम उर्फ सुगरो (8 लाख इनामी), डिप्टी कमांडर विद्या उर्फ जमली (5 लाख इनामी, इंसास हथियार सहित), लुदरो उर्फ अनिल (5 लाख इनामी, एसएलआर हथियार सहित), नंदनी (5 लाख इनामी, सिंगल शॉट हथियार सहित), कांति (5 लाख इनामी, इंसास हथियार सहित) तथा पार्टी सदस्य मल्लेश (1 लाख इनामी, इंसास हथियार सहित) ने भी समर्पण किया।
इन सभी नक्सलियों ने न केवल हिंसा का मार्ग त्यागा, बल्कि गरियाबंद पुलिस अधीक्षक निखिल कुमार राखेचा, आईजी अमरेश मिश्रा, डीआईजी सीआरपीएफ विजय शंकर पांडे, तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में आत्मसमर्पण किया।
कैसे टूटी वर्षों पुरानी माओवादी कमेटी
गरियाबंद और ओडिशा सीमा पर फैली “उदंती एरिया कमेटी” पिछले एक दशक से दोनों राज्यों में नक्सली गतिविधियों का बड़ा केंद्र रही।
इसी एरिया कमेटी के माध्यम से सीनापाली, इंदागांव, और सोनाबेड़ा क्षेत्र में कई बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया गया था।
पुलिस के अनुसार, इस कमेटी के सक्रिय सदस्य लगातार सुरक्षा बलों पर आईईडी ब्लास्ट, फायरिंग, आगजनी और विकास कार्यों में बाधा डालने में संलिप्त रहे हैं।
लेकिन बीते दो वर्षों में गरियाबंद मिस E-30 टीम, कोबरा बटालियन, और सीआरपीएफ के संयुक्त नक्सल विरोधी अभियानों ने संगठन की जड़ों को कमजोर कर दिया।
लगातार दबाव, जंगलों में बढ़ती घेराबंदी, और राज्य सरकार की प्रभावी “आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति” ने संगठन के भीतर दरारें गहरी कर दीं।
इन्हीं परिस्थितियों में, उदंती एरिया कमेटी के शीर्ष नेतृत्व ने अंततः आत्मसमर्पण का निर्णय लिया।

सुनील उर्फ जगतार सिंह: हरियाणा से गरियाबंद तक की लंबी माओवादी यात्रा
आत्मसमर्पण करने वालों में सबसे बड़ा नाम सुनील उर्फ जगतार सिंह का है — एक ऐसा शख्स जिसने उत्तर भारत से लेकर छत्तीसगढ़ के सघन वनों तक नक्सली विचारधारा को जिया।
हरियाणा के जिला कुरुक्षेत्र के धांदड़ गांव का रहने वाला सुनील, 2004 में “शिवालिक जनसंघर्ष मंच” से जुड़ा था। यह मंच दिल्ली क्षेत्र में माओवादी नेटवर्क का शहरी चेहरा था।
यहीं उसकी मुलाकात सीसी लंकापापारेड्डी और सुब्रमण्यम से हुई। बाद में सुनील दो बार जेल भी गया।
2015 में हिमाचल प्रदेश के बद्दी में मनदीप नामक माओवादी से संपर्क के बाद वह छत्तीसगढ़-ओडिशा सीमा पर नक्सली गतिविधियों में उतर आया।
वर्ष 2016 में वह “सीनापाली एरिया कमेटी” में एसीएम बनाया गया और 2018 में डिवीजनल कमेटी सदस्य (डीवीसीएम) पद पर पदोन्नत हुआ।
उसी वर्ष उसने संगठन की सक्रिय सदस्य अरीना टेकाम से विवाह किया — और यही रिश्ता दोनों के अंत तक संगठन के भीतर एक जोड़ी के रूप में पहचाना गया।
अरीना टेकाम उर्फ सुगरो: बस्तर की बेटी, जंगल की सचिव
अरीना टेकाम, कांकेर जिले के नेलचांग गांव की रहने वाली, माओवादी संगठन से वर्ष 2005 में जुड़ी।
पहले वह सीएनएम (छत्तीसगढ़ नारी मुक्ति मंच) के साथ काम करती रही और बाद में प्लाटून 05 में शामिल हुई।
2010 में उसे “खोलीभीतर एरिया कमेटी” भेजा गया — यही कमेटी बाद में “सीनापाली एरिया कमेटी” के नाम से जानी गई।
लगातार सक्रियता और कठोर अनुशासन के कारण अरीना को 2015 में एलओएस डिप्टी कमांडर, और 2020 में इंदागांव एरिया कमेटी सचिव बनाया गया।
इसी कार्यकाल में उसने अपने पति सुनील के साथ संगठन में कई अभियानों को अंजाम दिया।
लेकिन जंगलों में लगातार बढ़ते पुलिस दबाव, स्वास्थ्य समस्याओं और शासन की पुनर्वास नीति से प्रभावित होकर अंततः उसने हथियार डालने का निर्णय लिया।
बाकी साथियों की भूमिका और पृष्ठभूमि
- विद्या उर्फ जमली — बीजापुर के पेद्दा कोरमा गांव की रहने वाली, 2007 में संगठन में शामिल हुई। लंबे समय तक सीनापाली एरिया कमेटी में सक्रिय रही और इंसास हथियार के साथ आत्मसमर्पण किया।
- लुदरो उर्फ अनिल — दंतेवाड़ा जिले का निवासी, वर्ष 2010 से संगठन में सक्रिय रहा। एसएलआर हथियार के साथ आत्मसमर्पण किया।
- नंदनी उर्फ पोजे पोडियाम — सुकमा की रहने वाली, 2013 में संगठन में भर्ती हुई और 2017 से उदंती एरिया कमेटी में कार्यरत रही।
- कांति उर्फ मानबती — कांकेर जिले की रहने वाली, एक समय पर सीसी संग्राम की गार्ड रही। ओडिशा क्षेत्र में कालाहांडी एलजीएस में भी सक्रिय रही और इस दौरान कई मुठभेड़ों में शामिल रही।
- मल्लेश — सुकमा जिले का निवासी, 2023 में संगठन में भर्ती हुआ और 2024 से उदंती एरिया में सक्रिय था।

विभिन्न हिंसक घटनाओं में रही उपस्थिति
पुलिस के अनुसार, इन समर्पित नक्सलियों की भागीदारी कई बड़ी हिंसक घटनाओं में रही —
- मई 2018 को ग्राम आमामोरा में पुलिस पार्टी पर IED ब्लास्ट — 2 जवान शहीद हुए।
- अगस्त 2021 को देवझरअमली में पुलिस गार्डन पर हमला और ब्लास्ट।
- दिसंबर 2021 में पीपलखूंटा एनीकेट निर्माण वाहनों को आगजनी।
- जनवरी 2022 में देवडोंगर पहाड़ी में मुठभेड़, एक पुलिस कर्मी घायल।
- 2023-2024 में राजाडेरा, बेसराझर, घुमरापदर, गरीबा और मोतीपानी में कई मुठभेड़ों में शामिल रहे।
इन सभी घटनाओं में कई माओवादी मारे गए, जिससे संगठन कमजोर पड़ा।
आत्मसमर्पण के पीछे की वजहें: जंगल की थकान और ‘मुख्यधारा’ की चाह
आत्मसमर्पित माओवादियों ने पुलिस अधिकारियों के समक्ष कहा — माओवादियों की विचारधारा अब खोखली हो चुकी है। हम वर्षों से जंगलों में पशुओं की तरह भटक रहे थे।
शासन की पुनर्वास नीति, समर्पित साथियों का खुशहाल जीवन और परिवार से मिलने की चाह ने हमें आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने बताया कि शासन की “समर्पण एवं पुनर्वास नीति” के अंतर्गत — पदानुसार इनाम राशि,स्वास्थ्य सुविधा,आवास और रोजगार की सुविधा ने उन्हें नई जिंदगी की उम्मीद दी है।
गरियाबंद पुलिस की अपील
गरियाबंद पुलिस अधीक्षक निखिल कुमार राखेचा ने बताया कि यह आत्मसमर्पण केवल एक सफलता नहीं, बल्कि अंदरूनी परिवर्तन का संकेत है।
उन्होंने कहा — गरियाबंद में सक्रिय सभी माओवादी अब संगठन छोड़कर समाज की मुख्यधारा में लौट सकते हैं। शासन की नीति उनके लिए पूरी तरह सुरक्षित और लाभदायक है।
साथ ही पुलिस ने आत्मसमर्पण के इच्छुक माओवादियों के लिए विशेष हेल्पलाइन नंबर 94792-27805 जारी किया है, जिस पर सीधे नक्सल सेल से संपर्क किया जा सकता है।
वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में हुआ ऐतिहासिक आत्मसमर्पण
आत्मसमर्पण कार्यक्रम में आईजी अमरेश मिश्रा, डीआईजी सीआरपीएफ विजय शंकर पांडे, सीओ 211 बटालियन विजय प्रताप, सीओ 65 बटालियन विरेंद्र कुमार, और गरियाबंद पुलिस अधीक्षक निखिल कुमार राखेचा उपस्थित रहे।
वरिष्ठ अधिकारियों ने समर्पित नक्सलियों को शासन की योजनाओं का लाभ देने का आश्वासन दिया और कहा कि यह कदम अन्य माओवादियों के लिए प्रेरणास्रोत बनेगा।
नए सवेरा की ओर कदम
एक लंबे समय तक लाल गलियारे में सक्रिय रहने वाले इन नक्सलियों का आत्मसमर्पण इस बात का संकेत है कि जंगल अब हथियारों से नहीं, विकास से बदलेंगे।
गरियाबंद, देवभोग, और छुरा क्षेत्र में इस आत्मसमर्पण के बाद नक्सल गतिविधियों पर बड़ा असर पड़ने की उम्मीद है।
प्रशासन अब पुनर्वास, रोजगार और शिक्षा के माध्यम से इन इलाकों में स्थायी शांति स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है।



