नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपना सरकारी आवास अभी तक खाली नहीं किया है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने जब केंद्र को चिट्ठी लिखी तो पूर्व चीफ जस्टिस ने बंगले को खाली करने में हो रही देरी के लिए व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया है।
बंगला खाली न करने की बताई ये वजह
चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकारी आवास खाली करने में देरी उनके परिवारिक कारणों के चलते हुई है। उन्होंने कहा कि उनकी “दो बेटियां हैं जिन्हें विशेष जरूरत है।” पूर्व सीजेआई ने कहा, “मेरी बेटियों को गंभीर comorbidities और आनुवंशिक समस्याएं हैं – विशेष रूप से नेमालाइन मायोपैथी, जिसका एम्स के विशेषज्ञों द्वारा इलाज किया जा रहा है।”
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मैं अपनी जिम्मेदारियां समझता हूं
उन्होंने कहा कि परिवार के लिए उपयुक्त घर ढूंढने में समय लग रहा है, हालांकि उन्होंने माना कि यह एक व्यक्तिगत समस्या है। पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया कि इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के जजों और अधिकारियों के साथ चर्चा की गई है। इस बात पर जोर देते हुए कि वह “सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने” के कारण अपनी जिम्मेदारियों से पूरी तरह अवगत हैं, उन्होंने कहा कि वह कुछ ही दिनों में सरकारी आवास को खाली कर देंगे। चंद्रचूड़ ने कहा कि अतीत में भी पूर्व मुख्य न्यायाधीशों को रिटायरमेंट के बाद सरकारी आवास में रहने के लिए समय का विस्तार दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार को पत्र
सुप्रीम कोर्ट ने 1 जुलाई को आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) को एक चिट्ठी लिखी थी जिसमें कहा था कि लुटियंस दिल्ली में कृष्ण मेनन मार्ग पर बंगला नंबर 5 – जो वर्तमान CJI के लिए निर्धारित है – को तुरंत खाली किया जाए। पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने आठ महीने पहले पद छोड़ दिया था, वे अभी भी टाइप VIII बंगले में रहते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ के बाद संजीव खन्ना चीफ जस्टिस बने लेकिन उन्हें चीफ जस्टिस के लिए आवंटित सरकारी बंगला नहीं मिल पाया।
सीजेआई के लिए क्या है बंगले का नियम?
नियमों के मुताबिक रिटायर होने के छह महीने बाद तक ही चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया सरकारी बंगले में रह सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की चिट्टी के मुताबिक चंद्रचूड़ ने 18 दिसंबर, 2024 को तत्कालीन CJI खन्ना को चिट्ठी लिखकर 30 अप्रैल, 2025 तक बंगले में अपने रहने का अनुरोध किया था। तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने उनके अनुरोध को मंजूरी दे दी थी। इसके बाद आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने लाइसेंस शुल्क 5,430 रुपये प्रतिमाह के आधार पर जस्टिस चंद्रचूड़ को सरकारी बंगले में रहने की इजाजत दी थी।