CG: जंगल की लूट पर विभाग की चुप्पी क्यों? रेंजर लीला पटेल पर कटाई और कब्जे के आरोप, मामला SDM तक पहुँचा – जांच या लीपापोती?

 

रायगढ़(गंगा प्रकाश)। जंगल की लूटपर विभाग की चुप्पी क्यों?- “जंगल बचाओ” के सरकारी नारों के बीच हकीकत यह है कि जंगलों की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले विभाग के भीतर ही कटाई और कब्जे के गंभीर आरोप पनप रहे हैं। रायगढ़ वनमंडल के तहत कार्यरत रेंजर लीला पटेल इन दिनों कटघरे में हैं। उन पर ग्राम भगोरा के जंगल की भूमि पर अवैध कटाई और कब्जा करवाने के आरोप लगे हैं। यह मामला अब नीचे की फाइलों से निकलकर रायगढ़ SDM कार्यालय तक पहुँच चुका है, जिससे प्रशासन में खलबली मच गई है।

दस्तावेज़ों के अनुसार, वन मंडल रायगढ़ ने जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं। जांच आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि संबंधित पटवारी से भूमि की स्थिति का प्रतिवेदन लेकर आरोपों की पुष्टि की जाए। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब प्रथम दृष्टया शिकायत और सबूत पहले ही उपलब्ध हैं, तो अब तक कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं हो सकी?

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क्या है पूरा मामला

मामला रायगढ़ तहसील के ग्राम भगोरा के हल्का नंबर 00035, खसरा नंबर 68/5, रकबा 0.4890 हेक्टेयर भूमि से जुड़ा है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि इस जंगल की भूमि पर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई करवाई गई और वन विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से कुछ प्रभावशाली लोगों ने उस जमीन पर कब्जा भी कर लिया। शिकायत SDM रायगढ़ को दी गई थी, जिसके बाद उपवन मंडलाधिकारी घरघोड़ा ने भी संबंधित वनमंडलाधिकारी के पत्रों का हवाला देते हुए दस्तावेज़ सत्यापन कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश जारी किया है।

शिकायतें फाइलों में दबी, कार्रवाई ठंडी

यह पहला मौका नहीं है जब किसी रेंजर पर जंगल की कटाई और कब्जा दिलवाने के आरोप लगे हों, लेकिन प्रशासनिक कार्रवाई का रिकॉर्ड देखें तो अधिकांश मामलों में जांच सिर्फ कागजों पर सीमित रही। सूत्रों का कहना है कि इस मामले में भी विभागीय अधिकारी फाइलें इधर से उधर कर समय निकालने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि कुछ माह बाद मामला स्वतः ठंडा पड़ जाए। यही कारण है कि शिकायतकर्ता ने एक बार फिर SDM कार्यालय से अपील की है कि मौके का निरीक्षण कर जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज कराई जाए।

“दस्तावेजी हेरफेर और मिलीभगत” का आरोप

शिकायत में यह भी उल्लेख है कि वन विभाग के दस्तावेजों और पटवारी रिकॉर्ड में हेरफेर कर कटाई और कब्जे को वैध रूप देने की कोशिश की गई। यही वजह है कि जांच में पटवारी रिपोर्ट को शामिल करने के निर्देश दिए गए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि रेंजर के संरक्षण में दलाल सक्रिय हैं, जो पेड़ों को बेचकर लाखों रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं, जबकि स्थानीय ग्रामीण रोजगार, इंधन और पर्यावरण लाभ से वंचित हो रहे हैं।

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प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

जब इस मामले में रायगढ़ वनमंडल के एक वरिष्ठ अधिकारी से बात की गई तो उन्होंने कहा, “हमें शिकायत मिली है। SDM कार्यालय के निर्देश पर जांच कराई जा रही है। दोषी पाए जाने पर नियमानुसार कार्रवाई होगी।” लेकिन इसी जवाब से सवाल और गहरे होते हैं – क्या अब भी विभाग को कोई संदेह है?

जंगल की भूमि, जो स्पष्ट रूप से राजस्व रिकॉर्ड में वनभूमि के तौर पर दर्ज है, वहाँ कब्जा और कटाई किसी अदृश्य तंत्र के बिना संभव ही नहीं। अगर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं होती तो इसका सीधा मतलब यही होगा कि पूरा विभाग इस ‘सिस्टम’ का हिस्सा बन चुका है।

क्या लीपापोती होगी या जिम्मेदारी तय होगी?

अब प्रशासन के सामने दो ही विकल्प हैं –

  1.  या तो जांच को ठंडे बस्ते में डालकर आरोपितों को बचा लिया जाए, जैसा अक्सर होता आया है।
  2. या फिर पारदर्शी और सार्वजनिक तौर पर जवाबदेह कार्रवाई कर यह संदेश दिया जाए कि जंगल, पेड़ और सरकारी भूमि की लूट अब नहीं चलेगी।

पर्यावरणीय नुकसान से ज्यादा बड़ा नुकसान प्रशासनिक जवाबदेही का है

भगोरा जैसे छोटे गांव में भी यदि जंगलों को काटकर बेचा जा सकता है, तो सोचिए उन बड़े जंगलों का क्या हाल होगा, जहाँ न मीडिया पहुँचती है, न कोई शिकायत। यह मामला अकेले पर्यावरण की क्षति का नहीं है, बल्कि न्याय, शासन और जवाबदेही का भी है।

क्या रायगढ़ वनमंडल और प्रशासन यह साहस दिखा पाएंगे?

या फिर यह मामला भी विभाग की फाइलों में दबकर रह जाएगा, और जंगल कटाई के साथ-साथ आमजन का भरोसा भी कटता चला जाएगा।


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