गरियाबंद (गंगा प्रकाश)। दीपावली जैसे पवित्र त्योहार पर जब हर घर में दीप जल रहे हैं, उसी वक्त गरियाबंद जिले में कुछ व्यापारी ऐसे हैं जो जहर बेचकर त्योहार की पवित्रता को कलंकित कर रहे हैं। जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण अंचल—नहरगांव, कोकड़ी, मालगांव और भूतेश्वर नाथ देव स्थल—तक प्रतिबंधित जर्दा और गुटखा की बिक्री बेधड़क जारी है।

मुख्य भूमिका में है एक तथाकथित कॉन्फास्नोरी व्यापारी, जो लंबे समय से इस अवैध धंधे को प्रशासन की नाक के नीचे संचालित कर रहा है।

 कॉन्फास्नोरी व्यापारी का जर्दा साम्राज्य

स्थानीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, यह कॉन्फास्नोरी व्यापारी पिछले कई सालों से प्रतिबंधित सितार, पान पसंद, राजनिगंधा, दिलबाग, वाघ बखरी जैसे नामी ब्रांडों के जर्दा–गुटखा का थोक वितरण कर रहा है।

इन उत्पादों का भंडारण उसके गोदाम में किया जाता है और फिर छोटे-छोटे पान ठेले, चाय ठेले और किराना दुकानों तक इन्हें गुपचुप सप्लाई किया जाता है।

त्योहार के दिनों में इनकी बिक्री कई गुना बढ़ जाती है। हर दुकान पर खुलेआम इन पाउचों की बिक्री होती है, जबकि कानूनन यह पूरी तरह प्रतिबंधित है।

एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया— भैया, सब यहीं से आता है, सबको पता है कौन सप्लाई करता है। अधिकारी भी जानते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं कहता।

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खाद्य विभाग की गहरी नींद

प्रदेश सरकार ने गुटखा और जर्दा पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाया है। फिर भी गरियाबंद में इस पर कोई नियंत्रण नहीं दिखता। खाद्य सुरक्षा विभाग के अधिकारी और स्थानीय पुलिस इस कारोबार पर आंखें मूंदे हुए हैं। लोगों का कहना है कि उक्त कॉन्फास्नोरी व्यापारी का प्रभाव इतना है कि हर दिन विभागीय कर्मचारी और अधिकारी उसके दुकान में चाय पीने के बहाने आते-जाते रहते हैं।

इस “मुलाकात संस्कृति” ने व्यापारी के हौसले इतने बुलंद कर दिए हैं कि अब वह पूरी तरह बेखौफ होकर गुटखा बेच रहा है।

सप्लायर से प्रतिक्रिया मांगी, पर मिला सन्नाटा

जब पत्रकार ने इस मुद्दे पर कॉन्फास्नोरी व्यापारी से संपर्क करने की कोशिश की, तो पहले तो उसने फोन कॉल रिसीव नहीं किया।

बाद में व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजा गया, लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला।

यह चुप्पी अपने आप में बहुत कुछ कहती है—या तो व्यापारी को विभागीय संरक्षण का भरोसा है, या उसे किसी कार्रवाई का डर ही नहीं है।

ग्रामीण अंचल में तेजी से फैल रहा “जहर”

नहरगांव, कोकड़ी, मालगांव से लेकर भूतेश्वर नाथ देव स्थल तक के क्षेत्रों में यह प्रतिबंधित उत्पाद अब आम हो चुका है। इन पाउचों की बिक्री चाय–पान की दुकानों पर बच्चों तक को आसानी से कर दी जाती है। स्थानीय लोगों का कहना है कि अब 14-15 साल के किशोर भी गुटखा चबाते दिख रहे हैं, जिससे क्षेत्र में नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है।

यह न केवल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है, बल्कि समाज के भविष्य के लिए भी एक गंभीर संकेत है।

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दीपावली की रौनक में कानून की धज्जियां

त्योहार के समय बाजारों में रौनक तो दिख रही है, लेकिन उसके पीछे गुटखे का यह काला व्यापार विभागीय तंत्र की पोल खोलता है।

खाद्य विभाग और प्रशासन को इस पर तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए, क्योंकि यह मामला अब सिर्फ अवैध बिक्री का नहीं बल्कि जनस्वास्थ्य और कानून व्यवस्था का भी बन चुका है।

लेकिन अब तक की स्थिति देखकर ऐसा लगता है कि “कार्रवाई” शब्द सिर्फ़ फाइलों में सीमित है, ज़मीनी स्तर पर नहीं।

जनता की मांग – उच्चस्तरीय जांच हो

स्थानीय सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि इस कॉन्फास्नोरी व्यापारी पर FSSAI और IPC की धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई की जाए।

साथ ही इस बात की भी जांच हो कि आखिर किन विभागीय कर्मचारियों और अधिकारियों के संरक्षण में यह अवैध व्यापार फल-फूल रहा है।

लोगों का कहना है कि “जब तक सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक ये व्यापारी गुटखे में जहर मिलाकर लोगों की जिंदगी से खेलते रहेंगे।”

अंतिम सवाल

गरियाबंद की सड़कों पर दीप जले हैं, पर इन दीपों की रोशनी में जर्दा–गुटखा का अंधकार फैल चुका है।

अब सवाल यह है कि आखिर प्रशासन कब जागेगा?

क्या विभागीय अफसर अपनी “चाय की आदत” छोड़कर कानून की लाज रखेंगे, या फिर यह “कॉन्फास्नोरी व्यापारी” आगे भी बेखौफ होकर जनता की सेहत से खेलता रहेगा?

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