संजीवनी।

संजीवनी।

व्यंग कविता।

नेताजी का ज्ञानी भाषण.

एक बार चुनाव के समय,

नेताजी को पेट्रोल पंप के उद्घाटन का मिल गया मौका।

फीता काटकर किया उद्घाटन।

जनता के बीच भाषण देकर लगाना चाहते थे चौका।

उन्होंने थोड़ा सोचा, 

फिर मालिक से पूछा,

थोड़ा यह तो बताओ, 

मेरा ज्ञान बढ़ाओ,

तुम्हें यह कैसे पता चला,

पंप के नीचे पेट्रोल है भला,

पंप का मालिक चकराया,

उनके अल्प ज्ञान पर भरमाया,

इसके पहले वह कुछ बोलता,

एक चमचा वहां आ टपका,

बोला हुजूर,

जैसे पानी के पंप के नीचे जल की धारा बह रही है,

हमारे शासन में विकास की धारा बह रही है,

उसी तरह इस पंप के नीचे पेट्रोल की धारा बह रही है,

नेताजी को उसके ज्ञान पर था पूरा भरोसा,

जनता के बीच पेट्रोल की धारा पर उन्होंने लंबा भाषण परोसा,

जनता इससे पहले कुछ समझती,

अपना रिएक्शन दिखाती,

पंप के मालिक के शर्म से उड़ गए होश,

आज तक पड़ा है अस्पताल में बेहोश।

संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़

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