
रिंग बनाकर ठेकेदारों से मोटा कमीशन पाने की चाहत में प्रक्रिया का जिम्मेदारों ने नही किया था पालन?

प्रकाश कुमार यादव
राजिम/गरियाबंद(गंगा प्रकाश)। भ्रष्टाचार का हमारे समाज और राष्ट्र में व्यापक रूप से असर हो रहा है।संपूर्ण व्यवस्था में असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो गई।परिणामत: समाज में भय, आक्रोश व चिंता का वातावरण बन रहा है।राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक व प्रशासनिक आदि सभी क्षेत्र इसके दुष्प्रभाव से ग्रसित हैं।भ्रष्टाचार हमारे नैतिक जीवन मूल्यों पर सबसे बड़ा प्रहार है। भ्रष्टाचार से जुड़े लोग अपने स्वार्थ में अंधे होकर राष्ट्र का नाम बदनाम कर रहे हैं। दुनिया भर में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए ही 9 दिसंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस’ मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 31 अक्टूबर 2003 को एक प्रस्ताव पारित कर ‘अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी दिवस’ मनाए जाने की घोषणा की। भ्रष्टाचार के खिलाफ संपूर्ण राष्ट्र एवं दुनिया का इस जंग में शामिल होना एक शुभ घटना कही जा सकती है, क्योंकि भ्रष्टाचार आज किसी एक देश की नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की समस्या है। आज भारत जैसे सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश में भ्रष्टाचार अपनी जड़े फैला रहा है। आज भारत में ऐसे कई व्यक्ति मौजूद हैं जो भ्रष्टाचारी है। आज पूरी दुनिया में भारत भ्रष्टाचार के मामले में 94वें स्थान पर है। भ्रष्टाचार के कई रंग-रूप है जैसे रिश्वत, काला-बाजारी, जान-बूझकर दाम बढ़ाना, पैसा लेकर काम करना, सस्ता सामान लाकर महंगा बेचना आदि। भ्रष्टाचार के कई कारण है।


भ्रष्टाचार में मुख्य घूस यानी रिश्वत, चुनाव में धांधली, ब्लैकमेल करना, टैक्स चोरी, झूठी गवाही, झूठा मुकदमा, परीक्षा में नकल, परीक्षार्थी का गलत मूल्यांकन, हफ्ता वसूली, जबरन चंदा लेना, न्यायाधीशों द्वारा पक्षपातपूर्ण निर्णय, पैसे लेकर वोट देना, वोट के लिए पैसा और शराब आदि बांटना, पैसे लेकर रिपोर्ट छापना, अपने कार्यों को करवाने के लिए नकद राशि देना यह सब भ्रष्टाचार ही है।बताना लाजमी होगा की छत्तीसगढ़ प्रयाग कही जाने बाली राजिम की पावन धरा पर नगर पंचायत राजिम द्वारा भ्रष्टाचार की नई नई इबारत लिखी गई हैं जिसका खुलासा आर टी आई कार्यकर्त्ता विनीत पारख द्वारा लगातार किया जा रहा हैं।बता दें कि नगर पंचायत राजिम द्वारा अपने पालतू और लाड़ले ठेकेदार को लाभ पहुंचाने और कमीशन बतौर मोटी रकम की चाह में नियम विरुद्ध टेंडर जारी किया था जिसकी शिकायत के बाद राजिम न पं का 76.27 लाख का टेंडर(क्र. 1154) निरस्त हुआ साथ ही टेंडर क्र. 730 को भी निरस्त करने की शिकायत की जा रही हैं। राजिम के युवा सामाजिक कार्यकर्ता विनीत पारख ने दस्तावेज उपलब्ध कराते हुए आरोप लगाया कि नगर पंचायत राजिम में टेंडर क्रमांक 730 में 57.50 लाख का काम जो की ई-टेंडर द्वारा होना था उस कार्य का सीएमओ चन्दन मानकर, उप अभियंता खुशबू रामटेके, लोक निर्माण विभाग के लिपिक देवनारायण पटेल द्वारा कार्य का विभाजन कर हर काम को 20 लाख से कम का दिखा कर मैन्युअल टेंडर में बदल दिया था ताकि ठेकेदार के बीच रिंग बन सके और सबको मोटा कमीशन मिल सके। क्योंकि ई-टेंडर में यह करना नामुमकिन होता। इस टेंडर पर आडिट में स्वयं महालेखाकार एवम राजभवन के उपसचिव द्वारा गड़बड़ी और भ्रष्टाचार की आपत्ति जताई गई थी साथ ही जिम्मेदार अधिकारियो से ऐसा करने का जवाब माँगा।
क्या है निविदा में
बता दें कि कार्यालय नगर पंचायत द्वारा जारी पत्र क्रमांक 730/न.पं./लो. नि.वि./मै.नि./2022-23 दिनांक 06/09/2022 द्वारा 57.50 लाख के कार्य को टुकड़ों में बांटकर मैनुअल निविदा आमंत्रित की गई थी। जिसमें निविदा खोले जाने की तिथि 26/09/2022 अपरान्ह 4 बजे तक निर्धारित थी।
क्या है महालेखाकार की आपत्ति
गौरतलब हो कि कार्यालय प्रधान महालेखाकार (लेख परीक्षा) छत्तीसगढ़ के पत्र No. Audit/NP-Rajim/Comp. cases/2023-24/HM-01, Date- 28/06/2023 के माध्यम से आडिट हेतु 8 बिंदुओं में जानकारी चाही गई थी साथ ही चार बिंदुओं में आपत्ति दर्ज की थीं जिसमें से ठेकेदारों के बीच रिंग बनाकर ठेका देना भी पाया गया उक्त पत्र के दो दिन बाद पुनः एक पत्र No. Audit/NP-Rajim/Comp. cases/2023-24/HM-02, Date- 30/06/2023 द्वारा निविदा जारी होने और खुलने के बीच प्रथम कॉल 20 दिन, में खोले जाने का हवाला देते हुए उक्त टेंडर को निर्धारित समय सीमा से पूर्व खोले जाने (18 दिन में) और नियमों की अनदेखी का आरोप लगाया गया हैं।
क्या है उप सचिव राजभवन की आपत्ति
उप सचिव राजभवन के पत्र क्र. 4042/6153/2023/रास/शि. प्र., दिनांक 24/07/2023 के माध्यम से कलेक्टर गरियाबंद को नगर पंचायत राजिम में टेंडर सेटिंग, कमीशनखोरी, गबन, घपलबाजी का खुला खेल के संबंध में नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करने का निर्देश दिया था। परंतु कार्यवाही आज तक लंबित है।इतनी आपत्ति के बाद भी न सिर्फ कार्यादेश हुआ, कार्य हुआ, कुछ को छोड़कर सभी का भुगतान भी हो चुका है।
पुनः दोहराई टेंडर को टुकड़े में करने की प्रक्रिया
नगर पंचायत द्वारा यही प्रक्रिया सत्र 2023-24 में पुनः दोहराते हुए पत्र क्र. 1154/न.पं./लो. नि.वि./मै.नि./2023-24 दिनांक 22/09/2023 द्वारा 76.27 लाख के कार्य का ई-टेंडर न निकलकर मैनुअल टेंडर निकालने का कुत्सित प्रयास किया गया। जिसकी शिकायत विनीत पारख़ द्वारा, निदेशक एंटी करप्शन, संचालक नगरीय प्रशाशन एवं विकास, सचिव लोक आयोग तथा इसकी एक प्रतिलिपि मुख्य नगर पालिका अधिकारी के समक्ष छोड़ी जिसके परिणाम स्वरूप दिनांक 27/12/2023 को जिस अधिकारी द्वारा यह टेंडर(क्र. 1154) पास किया गया था उसी अधिकारी द्वारा शिकायत के बाद आनन् फानन में वही टेंडर(क्र. 1154) को निरस्त किया गया क्रमांक/1432/न.पं./लो. नि.वि./2023-24, विनीत पारख ने टेंडर क्रमांक 730 को भी निरस्त करने की मांग और शिकायत की है। साथ ही दोषी अधिकारियो को भी बर्खास्त करने की मांग की है।



भ्रष्टाचार के खिलाफ़ भारत की जंग,एक लंबी जंग…?
एक तरफ ऊपरी स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार अक्सर मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींच लेते हैं, और कभी कभी राष्ट्रीय आक्रोश का रूप ले लेते हैं,ज्यादातर भ्रष्टाचार जो आम आदमी को प्रभावित करती हैं,वो खुदरा / आम या बुनियादी स्तर पर ही अंजाम होते है।जब संपूर्ण विश्व 9 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोध दिवस मना रहा था, तो ऐसे समय में ये सबसे मुफ़ीद होगा कि हम भारत द्वारा इस दिशा में किये जा रहे काम, उसकी उन कोशिशों और प्रयासों की समीक्षा करें, जो उसने अपने यहां सबसे गहरी और व्यापक रूप से दिखाई देने वाली इस प्रवृत्ति या तथ्य से लड़ने के लिये किये,ये एक ऐसी समस्या है जिसने भारत में शासन-प्रशासन को भी प्रशासकीय स्तर पर महत्वहीन बना दिया है और एक आम नागरिक का राज्य पर से भरोसे को उठाने का काम किया है. ऐसे समय में ये स्टेट द्वारा किये गये प्रयासों की समीक्षा किए जाने का सबसे बेहतर अवसर है. ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल (TI) के अनुसार, एशियायी क्षेत्र में भ्रष्टाचार की रैंकिंग में भारत (180 में से 85 देशों में) सबसे ऊपरी पायदान पर है. हालांकि, सन 2013 में भारत की रैंकिंग 93 थी, तो उसकी तुलना में आज की रैंकिंग काफी बेहतर है, भारत को इस विकृत प्रचलन से पार पाने के लिए अब भी काफी फासले तय करने बाकी हैं।व्यापाक एशियाई क्षेत्र में किए गए टीआई सर्वे के अनुसार,भारत में रिश्वतखोरी की कई घटनाएं और प्रमुख नागरिक सेवाओं जैसे स्वास्थ्य और शिक्षा आदि के क्षेत्र मे अवांछित फायदा प्राप्त करने के लिए, अपनी निजी संबंधों का इस्तेमाल दर्ज है। उसी सर्वे के अनुसार, राज्य की सेवाएं जैसे न्यायालय, पुलिस, राजस्व विभाग, और अस्पताल आदि सबसे भ्रष्ट विभागें हैं।ब्रिटिश प्रशासन जिसने योजनाबद्ध तरीके से भारतीय आबादी को मुख्य राजनीतिक एवं प्रशासनिक गतिविधियों से बाहर कर रखा था, उन्होंनें महत्वपूर्ण ऑफिशियल सीक्रेट ऐक्ट,1923 अधिनियम के ज़रिए इस भ्रष्टाचारी संस्कृति को संस्थागत करने में काफी मदद की।
भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी मज़बूत क्यों है?
भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें पीछे की ब्रिटिश उपनिवेशिक राज के दौरान ही से जुड़ी हुई हैं।ब्रिटिश प्रशासन जिसने योजनाबद्ध तरीके से भारतीय आबादी को मुख्य राजनीतिक एवं प्रशासनिक गतिविधियों से बाहर कर रखा था, उन्होंनें महत्वपूर्ण ऑफिशियल सीक्रेट ऐक्ट,1923 अधिनियम के ज़रिए इस भ्रष्टाचारी संस्कृति को संस्थागत करने में काफी मदद की।इस औपनिवेशिक धारा ने किसी भी सरकारी अधिकारी द्वारा राजकीय सूचना या संदेश को जगजाहिर करना कानूनन अपराध घोषित किया. इस कार्यवाही ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी इस भ्रष्टाचारी/रिश्वतखोरी की संस्कृति को जीवित बनाए रखने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जबकि भारत पहले से ही ज्य़ादा कट्टर स्वभाव वाले राजकीय अधिनियम की वजह से इस भ्रष्टाचारी संस्कृति की मकड़जाल में फंस चुका था खासकर, जब बात आर्थिक गतिविधियों पर आयी, जिसने कुख्य़ात पर्मिट लाइसेन्स राज नाम की विकृति को पैदा किया,ये परमिट राज, जिसने विदेशी निवेश पर लगाम लगाई और “सोशलिस्ट ईकानमी” के नाम पर लोगों के भीतर बसी प्रतिद्वंद्विता की भावना को दबाने का काम किया, जिसने अंततः रिश्वतखोरी की संस्कृति को बढ़ावा देने और सरकार या किसी व्यापारी (वेंडर) से सेवा खरीदने के एवज़ में किराया प्राप्त करने की गतिविधि को प्रोत्साहित किया,इसने हरेक चीजों के लिए एक काला बाज़ार तैयार किया जिससे आयातित वस्तुओं की तस्करी एक आम प्रचलन बन गई।1991 मे शुरू हुई आर्थिक सुधार और उदारीकरण के बाद से भारत की इस भ्रष्टाचार की संस्कृति, देश के लिये बदलाव का मोड़ या टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। एक तरफ इन सुधारों ने औद्योगिक गतिविधियों की लाइसेन्सिंग और आयात कोटा के उन्मूलन का अंत किया, जिसके चलते, कई भ्रष्ट तौर तरीकों के हटाए जाने के बावजूद,भ्रष्टाचार को कम नहीं किया।उसके विपरीत, आर्थिक सुधार और ज्य़ादा उत्पादन ने भ्रष्टाचार की संभावनाओं के दरवाज़े को और खोल दिया। कौतूहलवश, किराया/पैसा लेने की प्रवृत्ती के कई रचनात्मक अवतार बन गए।एक तरफ जहां आर्थिक उदारीकरण ने विशेष कर लाइसेन्स पर्मिट राज से संबंधित, पुराने तरीकों से चले आ रहे भ्रष्टाचार को खत्म करने का काम किया, इसके बावजूद वो प्रचलन आज भी किसी न किसी आकार या रूप में कई अन्य विभागों में, ख़ासकर के खनिज पदार्थ, प्राकृतिक संसाधन,और अन्य सेवाओं में, बदस्तूर जारी है।उदाहरण के लिए, कोल ब्लॉक का अपारदर्शी एवं मनमाना आवंटन और (2जी के नाम से बदनाम) टेलीकॉम स्पेक्ट्रम, जिसने राज्य के खजाने तक को हिला कर रख दिया था, स्पष्ट तौर पर सुधार उपरांत के भ्रष्टाचार की भयावहता को बयान करता है।इतना ज्य़ादा कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA)-II (2019-14) को अपना ज्य़ादातर समय भ्रष्टाचार की सूची से लड़ने में ही व्यतीत करना पड़ा। इस लंबी कहानी को छोटी करते हुए हम यही कह सकते हैं कि, हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के कई प्रमुख सेक्टरों में उदारीकरण किए जाने के बावजूद, उसमें ज़रूरी राजनीतिक एवं प्रशासनिक सुधार समाहित नहीं किये गये हैं।ज्य़ादातर प्रशासनिक एवं विवेकाधीन शक्तियां अब भी सरकारी अधिकारीयों के पास ही हैं, जिस वजह से सत्ता का दुरूपयोग एवं रिश्वतखोरी बदस्तूर जारी है।
भ्रष्टाचार संस्कृति को परख़ने के क़दम
भ्रष्टाचार के व्यापाक स्तर और हानिकारक प्रवृत्ति से प्रभावित होते समाज और अर्थव्यवस्था की वजह से, भारत देश भ्रष्टाचार को कम करने की दिशा में लगातार प्रयासरत है।1963 में इस दिशा में एक गंभीर प्रयास किया गया था, जब मुँदरा भ्रष्टाचार स्कैन्डल के उपरांत, नेहरू सरकार ने संथानम कमिटी की स्थापना की थी। संथानम कमिटी ने राज्य में लाल फीताशाही और प्रशासनिक नियंत्रण के अलावा, भ्रष्टाचार के अन्य प्रमुख स्त्रोतों को बहुत बारीक़ी से जांचा-परखा. परिणामस्वरूप इस कमिटी के कुछ उल्लेखनीय निष्कर्ष निकल कर सामने आए, और वो थी भ्रष्टाचार निरोधक संस्था के रूप में एक केन्द्रीय निगरानी कमिशन का गठन,इसके साथ ही, 1971 में सरकार ने भारत के नियंत्रक एवं ऑडिटर जनरल की नियुक्ति की, जो प्रमुख संस्थानों के पब्लिक फाइनैन्स की ऑडिट कर सके और भ्रष्ट अभ्यासों की घटनाओं पर अंकुश लगा सके।
2011 में अन्ना हज़ारे द्वार चलाए गये भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में, जिसमें उन्होंने लोकपाल या प्रशासनिक शिकायत जांच अधिकारी की नियुक्ति की मांग की थी, संयुक्त विकासशील गठबंधन सरकार ने 2013 में बड़े भ्रष्टाचारों से निपटने के लिए लोकपाल बिल को संसद में पारित किया।इसके अलावा, इन भ्रष्ट प्रथाओं पर अंकुश लगाने के लिए राज्य-स्तरीय स्तर पर लोकायुक्त या सिविल कमिश्नर की ऑफिस की स्थापना की गई. 1966 में, प्रथम लोकयुक्त की नियुक्ति की गई।इसका अनुसरण करते हुए, कई भारतीय राज्यों ने भी अपने यहाँ खुद के लोकायुक्त नियुक्त किए। लोकायुक्त का एक उल्लेखनीय उदाहरण, कर्नाटक का मामला रहा है।साल 2011 में, कर्नाटक के लोकयुक्त ने तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.एस.येदुरप्पा पर अवैध उत्खनन के भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाने संबंधी मुकद्दमे दायर किये।जिसके बाद उन्हें मजबूरन मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी थी।2011 में अन्ना हज़ारे द्वार चलाए गये भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन में, जिसमें उन्होंने लोकपाल या प्रशासनिक शिकायत जांच अधिकारी की नियुक्ति की मांग की थी, संयुक्त विकासशील गठबंधन सरकार ने 2013 में बड़े भ्रष्टाचारों से निपटने के लिए लोकपाल बिल को संसद में पारित किया। राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन ने लोकपाल के सदस्य की नियुक्ति में ही चार से भी ज्य़ादा वर्ष ले लिए. इसे हास्यस्पद और विडंबना पूर्ण ही माना जाएगा कि, काफी बड़ी बड़ी बातों के साथ शुरू किया गया ये संस्थान, देश में होने वाले बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के खिलाफ़ की लड़ाई में अब तक फ़िलहाल अदृश्य ही रहा है।फिर भी, एक चीज़ जिसने इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को सबसे ज्य़ादा हवा दी है वो है वर्ष 2005 में पारित की गई सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम. आरटीआई के अनुसार, सरकारी अधिकारियों को सरकारी गतिविधि संबंधी मांगी गई हर प्रकार की सूचना पर त्वरित कार्यवाही करना कानूनन आवश्यक है। ये आरटीआई अधिनियम भ्रष्टाचार के खिलाफ़ एक कारगर हथियार के रूप में उभर कर सामने आयी है।उदाहरण के लिए, 2008 में दो ऐक्टिविस्ट, सिमप्रीत सिंह और योगाचार्य आनंद द्वारा दायर की गए दो आरटीआई आवेदन की वजह से 1999 के कारगिल युद्ध के पीड़ितों और जीवित बचे लोगों के लिए निर्मित आदर्श हाउसिंग के आवंटन में हुआ घोटाला आम नागरिकों की जानकारी में आ पाया. उसी तरह से, आरटीआई आवेदन की मदद से ही कॉमनवेल्थ गेम्स में हुआ घोटाला उजागर हो पाया। हालांकि, ये ट्रांसपैरेंसी मूवमेंट, जिसने राजनीतिक और ब्यूरोक्रैटिक परिधि में हलचल मचा दी थी, अब पूरी तरह से दबाव में है।हाल के वर्षों में, वर्तमान शासन ने, प्रशासनिक बदलाव एवं संविधान में सुधार/फेरबदल की मदद से, न केवल चीफ़ इनफार्मेशन कमिश्नर (CIC) के अधिकारों को कम किया है बल्कि आरटीआई आवेदन की संभावनाओं को भी सीमित कर दिया है।एक तरफ जहां भ्रष्टाचार जड़ों में गहरा समाया हुआ और अंतहीन है, भारत का भ्रष्टाचार विरोधी उपाय धीमा और आधा- अधूरा ही रह गया है। ऐसा सिर्फ़ इसलिए हुआ क्योंकि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनाए गए उन प्रमुख संस्थानों में स्वायत्ता और उद्देश्य के प्रति गंभीरता की काफी कमी रही।यहाँ तक की चंद मुट्ठीभर भ्रष्टाचार विरोधी संस्थानें (सीवीसी, लोकपाल) जिनके पास किसी हद तक स्वायत्ता थी, उन्होंने भी स्वतंत्र व स्वायत्त होने के एक भी लक्षण नहीं दिखाये।हालांकि, व्याप्त भ्रष्टाचार से लड़ाई अकेले इन मुट्ठीभर एलीट और बड़े संस्थानों तक ही सीमित नहीं किया जाना चाहिए।ऐसा इसलिए क्योंकि, ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार के जो मामले होते हैं या सामने आते हैं वो अक्सरहाँ मीडिया की नज़र में आ जाता है और कभी-कभी राष्ट्रीय आक्रोश बन जाता है, लेकिन ज्य़ादातर भ्रष्टाचार के आमले निचले और मध्यम स्तर पर होते हैं, जो आम आदमी को प्रभावित करता है और वो खुदरा स्तर पर ही होता है। एक तरफ जहां CVC ग्रुप सी, और ग्रुप डी स्तरीय अधिकारियों को शामिल करके इन शिकायतों की जांच करती है, इसके बावजूद सभी प्रतिकूल व व्यवहारिक वजहों से, CVC एक दंतहीन संस्थान ही साबित हुई है।नीचे के स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार को कम करने के लिए जो इकलौता विकास नज़र आता है, वो है सेवाओं का डिजिटलाइजेशन. हालांकि, सिर्फ़ टेक्नॉलजी की मदद से भ्रष्टाचार की परंपरा को ख़त्म नहीं किया जा सकता जो कि हाइड्रा-हेडेड दानव है जिसके एक ज़्यादा सिर है।ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार के जो मामले होते हैं या सामने आते हैं वो अक्सर हाँ मीडिया की नज़र में आ जाता है और कभी-कभी राष्ट्रीय आक्रोश बन जाता है, लेकिन ज्य़ादातर भ्रष्टाचार के आमले निचले और मध्यम स्तर पर होते हैं, जो आम आदमी को प्रभावित करता है और वो खुदरा स्तर पर ही होता है।सार में ये कहा जा सकाता है कि, भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए ठोस आधारभूत सुधार और मौजूदा कानूनों का व्यापक संशोधन किए जाने की ज़रूरत है। इसके साथ ही, भारत की व्यवस्था को भी सुधारे जाने की आवश्यकता है, जो कई तरीकों से, भ्रष्टाचार की वास्तविक जननी के तौर पर कार्य करती है। बड़े आकार के स्कैंडल, दंडमुक्ति को प्रोत्साहन और मज़बूत भ्रष्ट आचरण जैसे केस एवं मुकद्दमों के समाधान में कई वर्ष एवं दशक लग रहे हैं।उसी तरह से, ये सर्वविदित है कि, भारत में ज्य़ादातर भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के मामले आदि अस्पष्ट राजनैतिक फन्डिंग (जो की वर्तमान समय में स्पष्ट चुनावी बॉन्ड की अनुमति देने के प्रचलन से ज़ाहिर होता है)वित्तीय सुधार अभियान में बड़े सुधार – खासकर के पारदर्शिता, डिसक्लोज़र और ज़िम्मेदारी – के बगैर, अर्थव्यवस्था और समाज की जड़ों में गहरे तक समाये भ्रष्टाचार को काट पाना मुश्किल होगा।इसलिए जबकि भारत एक ज़िम्मेदार वैश्विक खिलाड़ी (एक्टर) के तौर पर खुद को स्थापित करने का ध्येय रख रहा है तो, राजनीतिक नेतृत्व के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वे राजनैतिक फन्डिंग में पारदर्शिता लाने के साथ ही व्यापक राजनीतिक सुधार लाना अत्यंत जरूरी हैं।इसके अलावा अदालतों से न्याय मिलने की प्रक्रिया में सुधार और आरटीआई की प्रक्रिया को मज़बूत रखना भी भ्रष्टाचार के खिलाफ़ की जाने वाली लंबी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण क़दम होगा।